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Books - कालनेमि की माया से बचें

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कालनेमि की माया से बचें

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(गुरुपूर्णिमा २३- ७ -८६ परिजनों के नाम वीडियो संदेश ))
गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियो, भाइयो! आज से लगभग पचास वर्ष पहले हमने गायत्री परिवार की स्थापना की थी और अखण्ड ज्योति पत्रिका निकालना शुरू किया था। बहुत लंबा समय हो गया। इस पचास साल में हमने क्या किया? जिस तरीके से समुद्र में डुबकी लगाने वाले मोती ढूँढ़- ढूँढ़कर लाते हैं, हमने भी उसी तरीके से संसार भर में डुबकी लगाई और यह देखा कि कौन से आदमी प्राणवान हैं, कौन जीवंत हैं? कौन ऐसे हैं, जो आने वाले समय में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने में समर्थ होंगे। यह हमने बहुत गंभीरता से तलाश किया। हिन्दुस्तान में हमको काफी लोग मिले, क्योंकि यह ऋषियों की भूमि है, देवताओं की भूमि है। यहाँ हमारे चौबीस लाख के करीब गायत्री परिवार के मेंबर हैं। फिर हमने देखा कि केवल हिंदुस्तान तक ही हमें सीमित नहीं रहना चाहिए, वरन् सारे संसार में निगाह डालनी चाहिए, सारे संसार में खोजबीन करनी चाहिए।

मित्रो! सारे संसार की खोज- बीन की तो सबसे पहले प्रवासी भारतीयों को देखा, क्योंकि वे ऋषि- भूमि की संतान हैं। उनको देखना, उनको समझना सुगम था। इसके अलावा वे लोग भी हैं, जो हिंदुस्तान के निवासी नहीं हैं, लेकिन संसार के निवासी तो हैं। उन सभी को देखा और देखकर सभी को हमने अपने कुटुंब में- अपने परिवार में एक माला के तरीके से गूँथ लिया। ये गुँथी हुई माला है। गायत्री परिवार क्या है? एक गुँथी हुई माला है। इसमें कौन- कौन हैं? इसमें मोती हैं, हीरे हैं, पन्ना हैं, जवाहरात हैं। इन सबको- एक बढ़िया आदमी को जोड़ करके हमने रखा है। जिसमें से आप लोग हैं।

आपसे हमारा सम्पर्क कब से है? आपसे हमारा बहुत पुराने संपर्क हैं, जन्म- जन्मांतरों के भी संपर्क हैं। क्योंकि जब हमने तलाश किया, तो अपनी आध्यात्मिक शक्ति से तलाश किया कि कौन आदमी हमारे हैं, कौन हमसे संबंधित हैं, कौन हमारे साथ जुड़े हुए हैं। हमने जब यह पता लगा लिया और अखण्ड ज्योति पत्रिका भेजी, चिट्ठियाँ भेजीं, तो मालूम पड़ा कि आप लोग गायत्री परिवार में शामिल हो गए हैं। कब हुए थे? आज से पचास साल पहले। पचास वर्ष के बाद में पीढ़ियाँ बदलती चली गयीं। कुछ पुराने आदमियों का स्वर्गवास हो गया, कुछ नए बच्चे पैदा हो गए। कुछ पुराने आदमी चले गये। इस तरह से परंपरा ज्यों- की बनी रही। हार ज्यों- का रहा। यह मिशन ज्यों- का रहा। उसमें कोई कमी नहीं आने पाई। आप लोग वही हैं, जो बड़ा काम करने के लिए, जिस तरह के आदमियों की जरूरत पड़ती है, ठीक उसी तरह से हैं।

साथियो! हिंदुस्तान में भगवान् बुद्ध हुए थे, सरदार पटेल हुए थे, जवाहरलाल नेहरू हुए थे, सुभाषचंद्र बोस हुए थे और बहुत से आदमी हुए थे। इसी तरह से प्रभावशाली व्यक्तियों में से हिंदुस्तान से बाहर भी हमने देखा कि इस तरह के कौन से आदमी हैं, जो अपना मुल्क- अपना देश सँभाल सकें, वहाँ जाग्रति पैदा कर सकें और लोगों को ऊँचा उठा सकें, आगे बढ़ा सकें। यही सब बातें हमने देखीं और सबको एक सूत्र में बाँधकर रखा है। आप उसी शृंखला में बँधे हुए हैं।

भगवान् राम जब लंका- विजय के लिए और राम- राज्य की स्थापना के लिए गये थे, तो उनके साथ चलने के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ। क्योंकि रावण से लड़ाई करने के लिए कौन तैयार हो? कुम्भकरण से लड़ने के लिए कौन तैयार हो? कोई तैयार नहीं हुआ। रामचंद्र जी के भाई भी आये थे, सेना को लेकर जनक जी भी आये थे, जिनकी बेटी सीता को रावण हरण करके ले गया था, परंतु कोई भी साथ नहीं आया। कोई राजा- महाराजा कोई सैनिक- सिपाही भी नहीं आया। मनुष्यों मे से कोई तैयार नहीं हुआ। लेकिन रीछ- बंदर आगे आए। ये रीछ- बंदर कौन थे? वे देवता थे। इन देवताओं ने कहा? कि भगवान्! हम आपके साथ चलेंगे। उन्होंने अपना देवता का स्वरूप छोड़कर रीछ- बंदर का रूप बना लिया। देवताओं के रूप में आते, तो उनको वाहन लाने पड़ते, अपने हथियार लाने पड़ते, फिर रामचंद्र जी की सेना में भर्ती कैसे होते, यदि देवता बने रहते तो? अतः देवता नहीं, रीछ- बंदर बन गए। रीछ- बंदर बनकर उन्होंने वह काम किया, जो भगवान् का संकल्प था।

भगवान् के दो संकल्प थे- एक तो यह कि जो दैत्य- राक्षस हैं और विध्वंस कर रहे हैं, उनको समाप्त करें। दूसरा संकल्प यह था कि राम- राज्य की स्थापना करें, जिससे धरती पर सुख आए, शान्ति आए, चैन आए, उन्नति हो। ये उनके दो संकल्प थे। ये दोनों संकल्प जब तक पूरे नहीं हुए, जब तक वे देवता जो रीछ- बंदरों का रूप लेकर आये थे, उनके साथ- साथ बने रहे। उन्होंने राम का साथ कभी नहीं छोड़ा। रामचंद्र जी भी समझते रहे कि ये देवता हैं, जो रीछ- बंदर की शक्ल बनाकर आ गये हैं। पेंट पहनते हैं, तो क्या हुआ? हैं तो मानव की शक्ल में देवता ही। जिस तरीके से राम ने रीछ- बानरों को देवता माना और अपनी छाती से लगाकर रखा, ठीक यही बात हमारे सामने भी है। आप चाहे हिंदुस्तान में रहते हैं या हिंदुस्तान से बाहर रहते हैं, गायत्री परिवार के जितने भी लोग हैं, उनको हमने अपनी छाती से लगाकर रखा है। आपका काम करने की जिम्मेदारी हमारी है। आप हमारा काम करेंगे और हम आपका काम करेंगे।

मित्रो! कोई आदमी किसी के यहाँ नौकरी करता है, खेती- बाड़ी करता है, तो उसके बाल- बच्चों के गुजारा करने का इंतजाम वह आदमी करता है कि नहीं, जिसने उसको नौकर रखा है। आपको नौकर तो हमने बनाकर नहीं रखा है, लेकिन अपना कुटुंबी बनाकर रखा है। तो आपके कुटुंब की- जिसमें छोटे बच्चे भी हैं, घर वाले हैं और दूसरे लोग हैं, उनकी देख- भाल करने की जिम्मेदारी हमारी है। आपके शरीर की देख- भाल हम करेंगे। आपके पैसे की देख- भाल हम करेंगे। आपके मन की देख- भाल हम करेंगे और कोई मुसीबत आपके ऊपर आएगी, तो हम आपके सामने खड़े होंगे और यह कहेंगे तथा करेंगे कि ये मुसीबत पहले हमारे ऊपर आए, बाद में इन लोगों के ऊपर आए।
   



साथियो! इस गुरुपूर्णिमा की पूर्व वेला में हमारा सभी परिजनों के नाम यह संदेश और आश्वासन है, आप इसे याद करके रखिए कि आप देवता थे और अब सामान्य मनुष्य के रूप में हैं। आपका जन्म विशेष काम के लिए हुआ है और वही विशेष काम आपको करना है और बच्चों का गुजारा भी करना है। अगर कोई मुसीबत आएगी, तो आपकी मदद हम करेंगे। हमारी सहायता हमारा गुरु करता है। हमने अपने जीवन में बहुत बड़े- बड़े काम किए हैं और बड़े कामों में हमारे गुरु ने हमारी मदद की है। हमारे भगवान् ने हमारी मदद की है। अगर आपके सामने कोई दिक्कत की बात होगी, कठिनाई की बात होगी, हैरानी की बात होगी, तो हम आपकी मदद करेंगे- सहायता करेंगे। यह हमारा दूसरा आश्वासन याद रखिये।

गुरुपूर्णिमा के पावन अवसर पर आपको तीसरा संदेश यह है कि आप सब लोग संगठित होकर रहें, मिल- जुलकर रहें। प्रेम से रहें। भाई- चारा निभाएँ और मिशन के काम को आगे बढ़ाएँ। जो भी कार्य आगे बढ़ेगा, मिल- जुलकर ही आगे बढ़ेगा। बुहारी एक जगह पर एक साथ बँधी रहती है, तो झाड़ने में समर्थ होती है और अगर सींकें बिखेर दी जाएँ, तो किसी काम की नहीं रहतीं। जिस तरीके से धागों के ताने- बाने मिले हुए होते हैं, तो उससे कपड़ा बन जाता है। अगर धागों को निकालकर अलग- अलग बिखेर दें, तो मुश्किल पड़ेगी। आप लोग सब गायत्री परिवार के सदस्य इस समय इस तरह संगठित होकर रहें, जिससे मिशन का काम ठंडा न होने पावे। कहीं भी हिंदुस्तान में, या जहाँ कहीं भी गायत्री परिवार हो, वहाँ का काम ढीला न पड़ने पाए, शिथिल न होने पाए। बराबर उत्साह बना रहे और आगे- आगे बढ़ते जाने की स्कीमें चालू रखी जाती रहें। यह तीसरा संदेश हो गया।

चौथा एक और संदेश है। चौथा संदेश यह है कि जब किसी ने ऐसे ऊँचे काम किए हैं, तो उनके काम में विघ्न डालने वाले भी हुए हैं। आपको मालूम है न! महर्षि विश्वामित्र भगवान् राम की सहायता करने के लिए एक यज्ञ कर रहे थे। तो उनको विध्वंस करने के लिए ताड़का, सुबाहु और मरीचि तीनों मिलकर आ गए। आपको मालूम है न! पूतना श्रीकृष्ण भगवान् को जहर पिलाने आई थी। आपको यह भी मालूम होगा कि हनुमान् जी जब समुद्र छलाँगने जा रहे थे, तो कौन- कौन विघ्न पैदा करने के लिए आ गए थे। इसी तरह आपके काम में भी सैकड़ों विघ्न आएँगे। सैकड़ों विघ्न आने की संभावना इसलिए भी है, क्योंकि हमने सारे संसार भर को ऊँचा उठाने का काम जो बढ़ा लिया है।

मित्रो! सारे संसार में जो महायुद्ध से लेकर महामारियों तक की जो मुसीबतें आने वाली हैं, उन सबसे हम लड़ाई लड़ेंगे, मोर्चा लेंगे। हमारे ऊपर हमले होंगे कि नहीं होंगे? हमारे ऊपर भी हमले होंगे। हमारे काम का मतलब है- हमारा मिशन, गायत्री परिवार मिशन, इस पर भी हमले होंगे। कैसे होंगे? पुराने जमाने में तो आमने- सामने की लड़ाई होती थी। खर- दूषण और रावण जो था, उसकी लड़ाई होती थी कि वह जिसको देख लेता था, तलवार से मार डालता था। यह आमने- सामने की लड़ाई थी।

लेकिन रावण, कुम्भकरण के साथ- साथ एक और भी था, जो सीधे तो नहीं मारता था, पर रुला- रुलाकर मारता था। उसका नाम था- कालनेमि वह ऐसा करता था कि लोगों की बुद्धि भ्रष्ट कर देता था। किसी को भी उल्लू बना देना उसके बायें हाथ का काम था। उसने मंथरा का दिमाग खराब कर दिया और मंथरा ने कैकेयी का। उसने मंथरा को समझाया कि मैं तेरा भरत से ब्याह करा दूँगा और कैकेयी को समझाया कि तेरे भरत को राजगद्दी दिलाऊँगा। यह बात कैकेयी की समझ में आ गयी और मंथरा की भी समझ में आ गयी और उन दोनों ने ऐसा ही किया। इसी तरह कालनेमि ने सूर्पणखा को भी ऐसे ही बहका दिया। उससे यह कहा कि यहाँ के राक्षस काले हैं। उनके साथ में यदि तेरा ब्याह होगा तो काली संतान उत्पन्न होगी। दो गोरे लड़के आए हुए हैं, बड़े सुंदर राजकुमार हैं। चल तू हमारे साथ और उनसे कहना कि वे तेरे साथ ब्याह कर लें। रामचन्द्रजी खट से तुझसे ब्याह कर लेंगे। अरे उनके पिता जी के भी तो तीन ब्याह हुए थे। उनकी सीताजी रही आएँगी और तू भी रही आएगी।

बस, वह बेचारी कालनेमि के बहकावे में आ गयी। उसकी कैसी मिट्टी पलीद हुई? मंथरा की कैसी मिट्टी पलीद हुई? आपने पढ़ा होगा। इसी तरह तपस्वी कुम्भकरण ब्रह्माजी से यह वरदान माँगने को था कि मैं साल भर में एक दिन सोऊँ और छह महीने जागूँ। लेकिन कालनेमि ने उसको इस तरह से पट्टी पढ़ा दी, जिससे वह यह वरदान माँग बैठा कि वह छह महीने सोया करे और एक दिन जागा करे। वह रावण का विरोधी था। कालनेमि किसी को भी चैन से नहीं रहने देना चाहता था। उसका मन था कि कोई भी चैन से न रहने पाये। मरीचि वरदान माँगता था कि मैं स्वर्ग जाऊँ। तप करने के बाद उसने स्वर्ग माँगा था। कालनेमि ने उसे भी पट्टी पढ़ाई कि तू यह माँग कि जब मैं चाहूँ, तब मेरा शरीर सोने का हो जाए। सीता हरण के समय उसका शरीर सोने का हो गया। सोने का नहीं होता, असली मृग होता तो क्यों मारा जाता? लेकिन वह मारा गया।

मित्रो! यह कालनेमि इसी तरीके से किया करता है। बच्चों को चुरा ले जाने वाला कालनेमि अभी भी इस युग में सक्रिय है। मथुरा में संत- बाबाजी के रूप में ठग लोग आते हैं और बच्चों को चुरा ले जाते हैं। बच्चों को जहर की मिठाई खिला देते हैं। इसी महीने ४०- ५० लोग मारे गए। संत- बाबा जी का कपड़ा पहनकर कुछ लोगों ने व्यक्तियों को लड्डू खिलाकर बेहोश कर दिया और उनका माल लेकर भाग गए। आजकल कालनेमि की माया इसी तरीके से भी चल रही है। शायद आपके यहाँ भी कोई कालनेमि जा पहुँचे, तो आप सावधान रहना। कहीं ऐसा मत करना कि अपनी मेहनत, अपना श्रम और अपना पैसा किसी ऐसे काम में लगा दें, जो किसी खास व्यक्ति के काम आए। वह न समाज के काम आए, न संस्था के काम आए, न मिशन के काम आए, न जनता के काम आए, किसी काम नहीं आए, वरन् व्यक्ति के काम आए।

आपके यहाँ ऐसी कितनी ही घटनाएँ हैं कि जो आदमी कल तक दो कौड़ी के थे, आज देखो उनके यहाँ क्या हाल हो रहे हैं? कैसे- कैसे बँगले बने हुए हैं? कैसी- कैसी मोटरें आ रही हैं। करोड़ों रुपया कहाँ से इकट्ठा हो रहा है? आप अपने यहाँ देख लीजिए न? निगाहें फेंकिए, आपको मालूम पड़ जाएगा कि पहले ये क्या थे और साल- दो के भीतर क्या हो गए। इतने पर भी इनको संतोष नहीं होता, तो मिशन को ही बदनाम करने पर तुल गए। अभी जो दो महीने पहले गुरुजी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर पी.एच.डी. करते थे, वो ही हैं, जो दो महीने बाद गालियाँ सुनाते हैं, चोर और बेईमान कहते हैं। नहीं बेटे, ये कभी भी विश्वास मत करना। अगर हम चोर और बेईमान होते, तो जो हमारी पिताजी की दी हुई संपत्ति थी, वह सारी- की संपत्ति हम अपने गाँव का हाईस्कूल बनवाने के लिए क्यों दे जाते? इसके अलावा जो कुछ भी रह गया, वह सारा- का हमने गायत्री तपोभूमि बनाने में दान कर दिया। पैसा हमारे पास इतना था कि अगर हमने उसको सँभालकर रखा होता, तो सात पीढ़ी तक काम आता। जितनी किताबें हमने लिखी हैं, उन सबका कापीराइट हमारे पास होता, तो लाखों रुपये महीने की आमदनी होती। लेकिन हम तो वही रोटी खाते हैं, जो माताजी के चौके में सबके लिए बनती है। इस संस्था के कपड़े पहनते हैं। इसके अलावा कानी कौड़ी भी हमारे पास नहीं है।

बच्चो! आपको यही कहना है कि इस तरह की बातों से आप बहकना मत। हाथी अपनी राह सड़क पर चला जाता है और कुत्ते भौंकते रहते हैं। भौंकने के बाद में जब ये थक जाते हैं, तो बैठ जाते हैं। हाथी पर कोई असर नहीं पड़ता। उसको जैसा चलना चाहिए, जिस दिशा में चलना चाहिए, उसी गंभीरता से, उसी तरीके से चलता रहता है। कुत्तों के ऊपर कोई ध्यान नहीं देता। सूरज के ऊपर कोई धूल फेंकता है, तो वह धूल उसी के ऊपर गिरेगी। इससे क्या सूरज गंदा हो जाएगा? सूरज मैला हो जाएगा? सूरज बदनाम हो जाएगा? नहीं, सूरज बदनाम नहीं हो सकता। सूरज बदनाम होगा तो अपने कामों से बदनाम होगा, किसी के करने से बदनाम नहीं हो सकता। अगर हम कभी बदनाम होंगे, तो अपने कृत्यों से बदनाम होंगे और कोई दूसरा हमें बदनाम नहीं कर सकता। अगर कोई हमको बदनाम कर रहा हो, तो आपको उसकी ओर जरा भी निगाह उठाने की जरूरत नहीं है। उससे क्या हम लड़ाई- झगड़ा करें? नहीं, उससे लड़ाई- झगड़ा क्या करना है? झूठ के पाँव कहाँ होते हैं? झूठ जिंदा रहता है क्या? झूठ जिंदा नहीं रहता। झूठ अगर जिंदा रहता, तो चोर और उचक्के और उठाईगीर अब तक करोड़पति हो गए होते। लेकिन वे ऐसा थोड़े दिन ही कर पाते हैं, ज्यादा दिन तक इनका मायाजाल नहीं चल पाता।
  
आप सबसे हमारा निवेदन यही है कि मिशन को मजबूत बनाने के लिए, मिशन को सही रखने के लिए सही आदमियों को अपने आप में इकट्ठा रखिए और उनका मनोबल बढ़ाते रहिए, हिम्मत बढ़ाते रहिए। किसी आदमी के विरोध करने से, उलटा- सीधा बकने से आप कभी भी उसके चक्कर में मत आइए। आपको कोई बात तलाश करनी हो, तो आप यहाँ आ सकते हैं। यहाँ के रजिस्टर खुले पड़े हैं। हम खुले पड़े हैं। हमारी जिंदगी खुली हुई है। हमारी जिंदगी खुली किताब के तरीके से है। इसमें कोई पन्ना ऐसा नहीं है, जिसको कोई आदमी यह अँगुली उठा सके कि इसमें काला धब्बा लगा हुआ है। न हमारी जिंदगी में काला धब्बा लगा हुआ है और न हमारे विचारों पर काला धब्बा लगा है। जिस किसी को- सबको हम चैलेंज करते हैं कि कोई भी आदमी यहाँ आए और देखे कि यहाँ कोई दाग- धब्बे की बात तो नहीं है। यहाँ दाग- धब्बे की बात आपको कभी नहीं मिलेगी। हमारा इतना ७६ वर्ष का जीवन हो गया है। इसे हमने कबीर की तरीके से रखा है-
    ‘‘दास कबीर जतन से ओढ़ी,
    ज्यों- की धरि दीनी चदरिया।’’

मित्रो! हमारा जीवन, हमारा मिशन, हमारा क्रिया- कृत्य ऐसा है जिसमें हमको भी घमंड है और आपको भी गर्व होना चाहिए, आप को भी संतोष होना चाहिए। संतोष और प्रसन्नता के साथ- साथ में आपको इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आप किसी के भी बहकावे में न आवें। बल्कि पूरी हिम्मत के साथ में, अपना पूरा जोश कायम रखते हुए अपने संगठन को कायम रखें। इस मिशन की गतिविधियों में ढील न आने दें, वरन् और भी अच्छे तरीके से करें।

साथियो! अभी मैंने अपनी बात समाप्त कर दी थी, लेकिन कुछ बातें एकाएक याद आ गयीं। वह यह कि किसी ने यह अफवाह फैला दी थी कि गुरुजी मर गए। किसी- किसी ने तो मुंडन भी करा लिया था। अभी हम मरे हैं क्या? नहीं बेटे, हम बिलकुल जिंदा हैं और अभी बहुत दिनों तक जिंदा रहेंगे। अगर हम मरें भी, तो पाँच गुने होकर काम करेंगे। अभी तो हमारा मरने का कोई सवाल ही नहीं। जिस किसी ने यह अफवाह फैलाई हो और जिस किसी ने मुंडन कराया हो, यह आप उसी से पूछना और उससे कहना कि गुरुजी को तो हम अपनी आँखों से देखकर आए हैं और उनका टेप सुनकर आये हैं। माता जी भी जिंदा हैं, हम भी जिंदा हैं, हमारा क्रिया- कलाप भी जिंदा है और भी सब जिंदा है। किसी- किसी ने यह अफवाह फैलाई है कि गुरुजी ने शान्तिकुञ्ज अपने जमाई को दे दिया है। गायत्री परिवार अपने साढ़ू को दे दिया है। इन बेहूदी बातों के बारे में आप कभी विचार मत करना।

मित्रो! यह सार्वजनिक संस्था है। इसका एक ट्रस्ट बना हुआ है। सात आदमी इसके ट्रस्टी हैं। जब कभी एक आदमी नहीं रहेगा, तो उसके स्थान पर दूसरा आदमी नियुक्त हो जाएगा। किसी के बिना काम रुकेगा नहीं। यह कोई राजकुमार नहीं है, जो गद्दी पर लाकर के बैठाया जाए। यह कोई जमींदारी नहीं, दुकान नहीं, जिस पर लाकर किसी को बैठा दिया जाए। यह सार्वजनिक- पारमार्थिक संस्था है। चार्टर्ड एकाउंटेंट इसका हिसाब- किताब चैक करते हैं। अगर हमारा उत्तराधिकारी कोई होगा, तो वह समर्पित कार्यकर्ताओं की टीम ही होगी, व्यक्ति नहीं। गायत्री तपोभूमि की भी कोई होगी, तो टीम होगी। वहाँ युग निर्माण योजना ट्रस्ट है। इसका भी कोई उत्तराधिकारी हुआ तो टीम होगी। कोई व्यक्ति विशेष नहीं हो सकता। व्यक्ति विशेष के मरने पर इस संस्था पर कोई असर नहीं पड़ता। व्यक्ति विशेष के चले जाने या न रहने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता, कोई बात नहीं बिगड़ती, क्योंकि इसको चलाने वाला भगवान् है। इसको चलाने वाले हमारे गुरु हैं। अब तक जितना काम बढ़ा है, इसे आपने देखा है कि वह सौ गुना, हजार गुना हो चुका है। आगे भी हमारे रहते हुए भी और न रहते हुए भी यह काम हजार गुना होगा और सौ गुना होगा- निरंतर बढ़ेगा, सारे विश्व में बढ़ेगा। यह विश्वास दिलाना रह गया था, सो दुबारा टेप करा दिया ।।

गुरुपूर्णिमा का संदेश आपके लिए यही है, आप सब लोग अच्छे रहें, सुखी रहें। आपके बच्चे सुखी रहें, आप फलें- फूलें आपकी उन्नति हो।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥
इन शब्दों के साथ हम अपनी बात समाप्त करते हैं।

॥ ॐ शान्ति॥
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