
बाहर की नहीं, भीतर की सफाई
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मित्रो, जहाँ कहीं भी शास्त्रों में स्नान का वर्णन है, वहाँ शरीर के धोने का सिद्धांत नहीं है। शरीर के धोने का मतलब इच्छाओं, भावनाओं, विचारणाओं की सफाई से है। जो केवल अपने शरीर को खुशबूदार बनाते रहते हैं और शरीर को कितनी ही बार धोते रहते हैं। सारे दिन कोई पाउडर लगाता रहता है, कोई सेंट लगाता रहता है, कोई क्रीम लगाता रहता है, कोई सुपर लक्स से नहाता है, कोई बढ़िया से बढ़िया साबुन से नहाता रहता है। नहाने के बारे में तो उन लोगों को देखो, जो अपने शरीर को तो धोते रहते हैं, परंतु भीतर से कैसे-कैसे धंधे करते हैं। किस-किस तरह से पैसा कमाते रहते हैं, इसमें भिक्षा भी शामिल है। बेटे, अगर हम भीतर की भी सफाई रोज करें तो भगवान भी प्रसन्न होगा और अपना आपा भी। शरीर कम धोया, कोई बात नहीं। बेटे, तू समझता क्यों नहीं, स्नान करना एक सिद्धांत है कि हमारा मन और हमारी चेतना का परिष्कार होना चाहिए। देव-पूजन से भी हमारा मतलब यही है।
मित्रो, जप करने से क्या मतलब है? जप करने से हमारा मतलब देवपूजन से है। इसमें देवपूजन के साथ आत्मशोधन की दो क्रियाएँ जुड़ी हुई हैं। यह दूसरा वाला चरण है जप का और तीसरा वाला चरण है ध्यान का। जप और ध्यान को हम मिला देते हैं। दोनों को मिला देने से एक प्रक्रिया बनती है, नहीं तो जप अधूरा रह जाएगा। आपका जप अधूरा है, अगर आप ध्यान नहीं कर रहे होंगे। जप करने पर लोगों की शिकायत होती है कि मन भागता रहता है। बेटे, मन न भागे, इसीलिए हम जप के साथ-साथ में दो ध्यान भी बताते रहते हैं। अकसर हम एक साकार ध्यान बताते रहते हैं और दूसरा निराकार ध्यान।
मित्रो, जप करने से क्या मतलब है? जप करने से हमारा मतलब देवपूजन से है। इसमें देवपूजन के साथ आत्मशोधन की दो क्रियाएँ जुड़ी हुई हैं। यह दूसरा वाला चरण है जप का और तीसरा वाला चरण है ध्यान का। जप और ध्यान को हम मिला देते हैं। दोनों को मिला देने से एक प्रक्रिया बनती है, नहीं तो जप अधूरा रह जाएगा। आपका जप अधूरा है, अगर आप ध्यान नहीं कर रहे होंगे। जप करने पर लोगों की शिकायत होती है कि मन भागता रहता है। बेटे, मन न भागे, इसीलिए हम जप के साथ-साथ में दो ध्यान भी बताते रहते हैं। अकसर हम एक साकार ध्यान बताते रहते हैं और दूसरा निराकार ध्यान।