
सर्वश्रेष्ठ ध्यान-गुरु का ध्यान
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मित्रो, सवेरे के वक्त जब मैं यहाँ आता हूँ तो उससे पहले अपने गुरु के सम्मुख बैठा रहता हूँ। हम दोनों के बीच ऐसे सूत्र स्थापित हो गए हैं कि शरीर तो उनका न जाने कहाँ रहता है और हमारा शरीर यहाँ रहता है, फिर भी हम आपस में बैठे हुए दो व्यक्तियों की तरह से बात करते रहते हैं। परामर्श करते रहते हैं, सलाह मशविरा करते रहते हैं कि क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। हमको क्या दिक्कत आ जाती है और क्या परेशानी आ जाती है और उसका क्या हल हो सकता है? बहुत सी बातों के लिए आपस में जैसे दो मित्र बैठकर बात कर लेते हैं, वैसे ही हम दोनों कर लेते हैं। तो महाराज जी, हमको भी यह लाभ मिल सकता है? बेटे, यह लाभ तो मैं तुझे दिला सकता हूँ पर पहले तू अपना कर्तव्यपालन कर और न करे तो ना सही, मैं तो कर सकता हूँ।
मित्रो, प्रातःकाल चार से पाँच बजे का वक्त अपने बच्चों के लिए परिजनों के लिए मेरा हमेशा के लिए सुरक्षित है। चार से पाँच बजे के वक्त में जब कभी आपको आवश्यकता पड़े, जरूरत पड़े, गुरुजी से कोई बात पूछनी है, परामर्श करना है या कोई सलाह लेनी है या कोई शक्ति की जरूरत है या कोई सहायता की जरूरत है तो उस वक्त चुपचाप उठकर बैठ जाना। गुरुजी, स्नान कर लूँ? नहीं बेटे, कर सके तो कर ले, नहीं तो स्नान किए बिना ही बैठ जाना। बैठ करके यह ध्यान करना, जैसे मैं अपने गुरु का ध्यान करता हूँ कि मैं अपने गुरु की गोदी में बैठा हुआ हूँ। वे मेरे सिर पर हाथ फेरते जाते हैं तो मुझे बड़ा मजा आता है। गायत्री माता के बारे में तो यह भी ध्यान आता है कि यह हमारी कल्पना की हुई एक मूर्ति है। ऐसा ध्यान आ जाता है, तब मेरा मन डाँवाडोल हो जाता है। अब ऐसा होने लगा है, पहले मेरे मन में ऐसा नहीं होता था। इसलिए अपने गुरु को, जिनको मैंने देखा है, जिनको जाना है, जिनके ऊपर मेरा विश्वास है, जिनको मैं भगवान मानता हूँ और मैं उन्हीं का दास हूँ उनके बारे में ऐसा संदेह नहीं उत्पन्न होता है, संकल्प-विकल्प उत्पन्न नहीं होते। शक्ल भी किसी की मुझे नहीं बनानी पड़ती।
मित्रो, जिन गुरुजी को मैंने जाना है, देखा है, परखा है। जिनकी अपार कृपा का भार मेरे ऊपर है, जिनसे मैं लड़ाई भी लड़ सकता हूँ तो उन्हें क्यों न मानूँ भगवान! जब मुझे कल्पना ही करनी पड़ी तो श्रीकृष्ण की कल्पना, शेषशायी भगवान की कल्पना की। लेकिन फिर देखा कि हमारे यहाँ जो श्रीकृष्ण का फोटो टँगा हुआ है, तो उसमें किसी का मुँह लंबा है, किसी की नाक चौड़ी है। क्यों साहब, श्रीकृष्ण भगवान की नाक लंबी थी या चौड़ी थी? नहीं बेटे, हमें नहीं मालूम। देखिए आप ही बताइए कि चौड़ी नाक वाले कृष्ण हैं या ये हलकी नाक वाले कृष्ण हैं। बेटे, ये तो तसवीर बनाने वालों ने बनाए हैं। असली कृष्ण कैसे थे, नहीं मालूम। असली 'कृष्ण ऐसे भी हो सकते हैं, जैसा तू है। महाराज जी, वे तो बहुत ही खूबसूरत थे। यह फोटो हमने बनाया है। यदि हम फोटो बना सकते हैं तो हम अपने मन का क्यों न बना लें! इसी में हम सबका कल्याण है।
आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥
मित्रो, प्रातःकाल चार से पाँच बजे का वक्त अपने बच्चों के लिए परिजनों के लिए मेरा हमेशा के लिए सुरक्षित है। चार से पाँच बजे के वक्त में जब कभी आपको आवश्यकता पड़े, जरूरत पड़े, गुरुजी से कोई बात पूछनी है, परामर्श करना है या कोई सलाह लेनी है या कोई शक्ति की जरूरत है या कोई सहायता की जरूरत है तो उस वक्त चुपचाप उठकर बैठ जाना। गुरुजी, स्नान कर लूँ? नहीं बेटे, कर सके तो कर ले, नहीं तो स्नान किए बिना ही बैठ जाना। बैठ करके यह ध्यान करना, जैसे मैं अपने गुरु का ध्यान करता हूँ कि मैं अपने गुरु की गोदी में बैठा हुआ हूँ। वे मेरे सिर पर हाथ फेरते जाते हैं तो मुझे बड़ा मजा आता है। गायत्री माता के बारे में तो यह भी ध्यान आता है कि यह हमारी कल्पना की हुई एक मूर्ति है। ऐसा ध्यान आ जाता है, तब मेरा मन डाँवाडोल हो जाता है। अब ऐसा होने लगा है, पहले मेरे मन में ऐसा नहीं होता था। इसलिए अपने गुरु को, जिनको मैंने देखा है, जिनको जाना है, जिनके ऊपर मेरा विश्वास है, जिनको मैं भगवान मानता हूँ और मैं उन्हीं का दास हूँ उनके बारे में ऐसा संदेह नहीं उत्पन्न होता है, संकल्प-विकल्प उत्पन्न नहीं होते। शक्ल भी किसी की मुझे नहीं बनानी पड़ती।
मित्रो, जिन गुरुजी को मैंने जाना है, देखा है, परखा है। जिनकी अपार कृपा का भार मेरे ऊपर है, जिनसे मैं लड़ाई भी लड़ सकता हूँ तो उन्हें क्यों न मानूँ भगवान! जब मुझे कल्पना ही करनी पड़ी तो श्रीकृष्ण की कल्पना, शेषशायी भगवान की कल्पना की। लेकिन फिर देखा कि हमारे यहाँ जो श्रीकृष्ण का फोटो टँगा हुआ है, तो उसमें किसी का मुँह लंबा है, किसी की नाक चौड़ी है। क्यों साहब, श्रीकृष्ण भगवान की नाक लंबी थी या चौड़ी थी? नहीं बेटे, हमें नहीं मालूम। देखिए आप ही बताइए कि चौड़ी नाक वाले कृष्ण हैं या ये हलकी नाक वाले कृष्ण हैं। बेटे, ये तो तसवीर बनाने वालों ने बनाए हैं। असली कृष्ण कैसे थे, नहीं मालूम। असली 'कृष्ण ऐसे भी हो सकते हैं, जैसा तू है। महाराज जी, वे तो बहुत ही खूबसूरत थे। यह फोटो हमने बनाया है। यदि हम फोटो बना सकते हैं तो हम अपने मन का क्यों न बना लें! इसी में हम सबका कल्याण है।
आज की बात समाप्त।
॥ॐ शान्ति:॥