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Books - संकल्पशक्ति की महिमा एवं गरिमा

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Language: HINDI
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संकल्पशक्ति की महिमा एवं गरिमा

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(अक्टूबर १९८२ कल्प साधना सत्र में दिया गया प्रवचन)
गायत्री मंत्र हमारे साथ- साथ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियो, भाइयो! प्रकृति का कुछ ऐसा विलक्षण नियम है कि पतन स्वाभाविक है। उत्थान को कष्टसाध्य बनाया गया है। पानी को आप छोड़ दीजिए, नीचे की ओर बहता हुआ चला जाएगा, उसमें आपको कुछ नहीं करना पड़ेगा। ऊपर से आप एक ढेला जमीन पर फेंक दीजिए, वह बड़ी तेजी के साथ गिरता हुआ चला आएगा, आपको कुछ नहीं करना पड़ेगा। नीचे गिरने में कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती, कोई प्रयास नहीं करना पड़ता। ऐसे ही संसार का कुछ ऐसा विलक्षण नियम है कि पतन के लिए, बुरे कर्मों के लिए आपको ढेरों के ढेरों साधन मिल जायेंगे, सहकारी मिल जायेंगे, किताबें मिल जायेंगी, और कोई न मिलेगा, तो आपके पिछले जन्म- जन्मान्तरों के संग्रह किये हुये कुसंस्कार ही आपको इस मामले में बहुत मदद करेंगे, जो आपको गिराने के लिये बराबर प्रोत्साहित करते रहेंगे। पाप- पंक में घसीटने के लिये बराबर आपका मन चलता रहेगा। इसके लिए न किसी अध्यापक की जरूरत है, न किसी सहायता की जरूरत है, यह तो अपनी नेचर ऐसी हो गई है। ग्रेविटी पृथ्वी में है न। ग्रेविटी क्या करती है? ऊपर की चीजों को नीचे की ओर खींचती है। न्यूटन ने देखा सेव का फल जमीन पर ऊपर से गिरा। क्यों, गिरने में क्या बात है? जमीन में एक विशेषता है, कशिश है कि वह खींच लेती है। नीचे गिराने वाली कशिश इस संसार में इतनी भरी पड़ी है, कि उससे बचाव यदि आप न करें, उसका विरोध आप न करें, उसका मुकाबला आप न करें, तो आप विश्वास रखिये आप निरंतर गिरेंगे। पतन की ओर गिरेंगे। सारा समाज इसी ओर चल रहा है। आप निगाह उठाकर देखिए आपको कहाँ ऐसे आदमी मिलेंगे, जो सिद्धान्तों को ग्रहण करते हों और आदर्शों को अपनाते हों। आप जिन्हें भी देखिये, अधिकांश लोग बुराइयों की ओर चलते हुए दिखाई पड़ेंगे। पाप और पतन के रास्ते पर उनका चिंतन और मनन काम कर रहा होगा। उनका चरित्र भी गिरावट की ओर और उनका चिंतन भी गिरावट की ओर। ऐसा ही सारे के सारे जमाने में भरा पड़ा है।

ऐसी स्थिति में आपको क्या करना चाहिये? आपको अगर ऊँचा उठना है, तो अपने भीतर से एक नई हिम्मत इकट्ठी करनी चाहिये। क्या हिम्मत करें? यह हिम्मत करें, कि ऊँचे उठने वाले जिस तरीके से संकल्प बल का सहारा लेते रहे हैं और हिम्मत से काम लेते रहे हैं, व्रतशील बनते रहे हैं, आपको उस तरीके से व्रतशील बनना चाहिये। देखा है न आपने, जब जमीन पर से ऊपर चढ़ना होता है, तो जीने का इंतजाम करते हैं, सीढ़ी का इंतजाम करते हैं, तब मुश्किल से धीरे- धीरे चढ़ते हैं। गिरने में क्या देर लगती है। आपको कोई ढेला ऊपर फेंकना हो, तब देखिये न कितनी ताकत लगाना पड़ती है और गिरा दें तब, गिराने में क्या देर लगती है। अंतरिक्ष से उल्काएँ अपने आप गिरती रहती हैं, जमीन की ओर। जब राकेट फेंकना पड़ते हैं तब। आपने देखा है न, करोड़ों- अरबों रुपया खर्च करते हैं, तब एक राकेट का अंतरिक्ष में ऊपर उछालना संभव होता है। गिरावट में तो पत्थर के टुकड़े और उल्काएँ अपने आप जमीन पर आ जाती हैं। बिना किसी के बुलाये, बिना खर्च किये। पानी को कुएँ में से निकालना होता है, तो कितनी मेहनत करना पड़ती है और कुएँ में डालना हो, तो डाल दीजिये। कोई मेहनत नहीं करना पड़ेगी।

चौरासी लाख योनियों में भटकते हुए जो ढेरों कुसंस्कार इकट्ठे कर लिये हैं, अब इन कुसंस्कारों के खिलाफ बगावत शुरू कर दीजिये। कैसे करें? अपने को मजबूत बनाइये। अगर मजबूत नहीं बनायेंगे तब? तब फिर, आपके पुराने कुसंस्कार फिर आ जायेंगे। मन को समझायें, बस जरा सी देर को समझ जायेगा, फिर उसी रास्ते पर आ जायेगा। फिर क्या करना चाहिये? अपना मनोबल ऊँचा करने के लिये आपको कोई संकल्प लेना चाहिये। संकल्प शक्ति का विकास करना चाहिये। संकल्प शक्ति किसे कहते हैं? संकल्प शक्ति उसे कहते हैं, जिसमें कि यह फैसला कर लिया जाता है कि यह तो करना ही है। यह तो हर हालत में करना है। करेंगे या मरेंगे। इस तरीके से यदि आप संकल्प किसी बात का कर लें, तो आप विश्वास रखिये कि आपका जो मानसिक निश्चय है, वह आपको आगे बढ़ा देगा। अगर आपमें मनोबल नहीं है और निश्चयबल नहीं है, ऐसे ही ख्वाब देखते रहते हैं, यह करेंगे, वह करेंगे, विद्या पढ़ेंगे, व्यायाम करना शुरू करेंगे, फलाना काम करेंगे। आप कल्पना करते रहिये, कहीं कुछ नहीं कर सकते। कल्पनाएँ आज तक किसी की सफल नहीं हुई और संकल्प किसी के असफल नहीं हुए।

इसलिये मित्रो, संकल्प शक्ति का सहारा लेने के लिए व्रतशील बनना चाहिये। आप व्रतशील बनिये। आप यह करेंगे बस यह निश्चय कर लीजिये कि अच्छा काम करेंगे। जो भी छोटा हो या बड़ा हो आप यह काम करेंगे। जैसे हमको बुराइयों को छोड़ने के लिए संकल्प करने पड़ते हैं, बीड़ी नहीं पियेंगे, नहीं साहब हमको टट्टी नहीं होगी। टट्टी नहीं होगी तो हम दूसरी जुलाब की दवा ले लेंगे पर बीड़ी नहीं पियेंगे। बस यह निश्चय हुआ तो बीड़ी गयी। और आपका मन कच्चा, कच्चा, कच्चा छोड़े कि न छोड़े, पिये कि न पियें, कल पीली, फिर आज और पी लें, कल छोड़ देंगे, आज पी लेते हैं। आगे देखा जायेगा। आप कभी नहीं छोड़ सकते। ठीक इसी तरीके से श्रेष्ठ काम करने के लिये, उन्नति की दिशा में आगे बढ़ने के लिए, आपको कोई न कोई संकल्प जरूर लेना चाहिये। यह काम करेंगे। यह काम करने तक के लिये कई लोग ऐसा कर लेते हैं कि यह काम जब तक पूरा नहीं करेंगे, तब तक यह काम नहीं करेंगे। जैसे नमक नहीं खायेंगे। घी नहीं खायेंगे, शक्कर वगैरह नहीं खायेंगे। यह क्या है? देखने में तो कोई खास बात नहीं है, आपको अमुक काम करने से नमक का क्या ताल्लुक? और आप शक्कर नहीं खायेंगे, तो क्या बात बन जायेगी। अगर आपने घी खाना बंद कर दिया, तो कौन सी बड़ी बात हो गई। कि जिससे आपको काम में सफलता मिलेगी। इन चीजों में तो दम नहीं है, लेकिन दम उस बात में है, कि आपने इतना कठोर निश्चय कर लिया है और आपने सुनिश्चित योजना बना ली है कि यह हमको करना ही करना है। करना ही करना है, तो फिर आप विश्वास रखिये वह काम पूरा होकर रहेगा।

मित्रो, चाणक्य की बात आपको नहीं मालूम? चाणक्य ने निश्चय कर लिया था, बाल बिखेर दिये थे कि जब तक नंद- वंश का नाश नहीं कर दूँगा, तब तक चोटी नहीं बाधूँगा। यह अपना व्रत और प्रतिज्ञा याद रखने का एक प्रतीक है, सिम्बल है। प्रतिज्ञा लोग भूल जाते हैं, लेकिन अगर कोई ऐसा बहिरंग अनुशासन भीतर लगा लें तो आदमी भूलता नहीं है। इसलिये कोई न कोई अनुशासन लगा लें तो अच्छा है। जैसे एक बार ऐसा हुआ- भगवान् महावीर के पास एक बहेलिया गया। उसने कहा- हमको दीक्षा लेनी है, तो भगवान् ने कहा कि आपको गुरुदक्षिणा में अहिंसा का पालन करना पड़ेगा और माँस खाना छोड़ना पड़ेगा। तो उसने कहा हम बहेलिए हैं, यह तो हम नहीं कर पायेंगे। फिर बच्चों को कहाँ से खिलायेंगे? समझदार लोगों ने उसको सलाह दी कि कम से कम एक प्राणी को न मारने का संकल्प ले ले, तो भी तेरी अहिंसा के व्रत का प्रारंभ मान लिया जायेगा। बहुत विचार करता रहा बहेलिया, फिर उसने एक जानवर को पाया। जिसके ऊपर वह दया करने को तैयार हो गया और उसे न मारने को तैयार हो गया। उस जानवर को नहीं मारूँगा, कभी नहीं मारूँगा, कौए पर दया करूँगा। बस उसने संकल्प ले लिया और दीक्षा ले ली। बस रोज विचार करता कौए पर दया करनी चाहिये। कौआ बेचारा कितना निरीह होता है, उसको कष्ट नहीं देना चाहिये, उसके भी तो बाल बच्चे होंगे, उसको भी तो भगवान् ने रचा है, हम अपने छोटे से लोभ के लिये कौए को क्यों मार डालें? बस यह विचार जब जड़ जमाता हुआ चला गया तो धीरे- धीरे फिर ऐसा हो गया कि फिर वह सब प्राणियों पर दया करने लगा। अंततः वह जैन धर्म का एक बड़ा तीर्थंकर हुआ। कैसे? दिशा जो मिल गई? छोड़ेंगे, करेंगे।
         

बुरे कर्म छोड़ेंगे और अच्छे कर्म करेंगे, इसके लिए मन कच्चा न होने पावे और भूल- भुलैयों में न पड़ने पावे, इसीलिए कोई न कोई संकल्प लेना बहुत जरूरी है। अनुष्ठान में यही होता है। अनुष्ठान में जप की संख्या तो उतनी ही होती है, पर उसके साथ- साथ व्रत और संकल्प लेने पड़ते हैं। कौन- कौन से? उपवास का एक, ब्रह्मचर्य का दो, मौन का तीन, जमीन पर सोने का चार, अपनी सेवायें अपने आप करने का पाँच। ऐसा क्यों? यह मनोबल बढ़ाने की प्रक्रियाएँ है। आदमी का संकल्प मजबूत होना चाहिये। अध्यात्म का प्राण ही संकल्प है। संकल्प को अगर आप जीवन में से निकाल दें, फिर क्या काम बनेगा? आपको ध्यान होगा? राणा प्रताप ने यह निश्चय किया था कि वह थाली में भोजन नहीं करेंगे, जब तक अपनी आजादी प्राप्त न कर लेंगे, तब तक वह पत्तल में भोजन करेंगे। आपने कभी गाड़ी वाले लोहार देखे हैं? गाड़ी वाले लोहार अभी भी पत्तल में भोजन करते हैं, थाली में भोजन नहीं करते। अपने आपको राणा प्रताप का वंशज बतलाते हैं और यह कहते हैं, जब राणा ने यह प्रतिज्ञा ली थी कि हम घर में नहीं घुसेंगे, बाहर जंगल में घूमेंगे और पत्तल में भोजन करेंगे, यह उनका था व्रत। गाड़ी वाले लोहार यही कहते पाये गये हैं- घर में अब नहीं रहेंगे, बाहर ही घूमते रहेंगे। आजादी नहीं मिली, तो हम क्यों सुखों का भोग करेंगे? इस तरीके से संकल्प कर लेना, व्रत धारण कर लेना कई बार बड़ा उपयोगी होता है। अनुष्ठान काल में नमक को त्याग करने वाली बात, शक्कर को त्याग कर देने वाली बात, हजामत न बनाने वाली बात, चप्पल न पहनने वाली बात, ऐसी बहुत सी बातें हैं, जो आदमी के संकल्प बल को मजबूत करती हैं। आपको अपने संकल्प मजबूत बनाने चाहिये।

संकल्प के लिये कई बातें हैं। कठिनाइयाँ सामने आती हैं, तो आदमी को संकल्प बल मजबूत बनाना चाहिये। संकल्प बल न हो तब? हिम्मत न हो तब? फिर आदमी बेपेंदे लोटे की तरह से इधर- उधर भटकता रहता है। मनोबल बढ़ाने के लिये कोई न कोई संकल्प जीवन में रखना बहुत जरूरी है। गाँधी जी ने ३३ वर्ष की उम्र में ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा ली थी और यह कहा था कि हम यह निभायेंगे। इसे निभाने में, मनोबल में, कच्चाइयाँ जरूर रही होंगी, दूसरों की तरीके से उनका भी मन कभी- कभी भीतर- भीतर डगमग- डगमग करता रहा हो? लेकिन उनके संकल्प ने कहा- नहीं हमने निश्चय कर लिया है, रघुकुल रीति सदा चल आई प्राण जाई पर वचन न जाहिं। इस तरीके से जब उनका संकल्प चला, तो फिर वह निभा। भीतर की कमजोरियाँ उठीं, उनसे लड़ा गया। अगर संकल्प न होता तब? व्रत नहीं लिया होता तब? निश्चय न किया होता तब? तब फिर संभव नहीं था। संकल्प कर लेने के बाद तो आदमी की आधी मंजिल पूरी हो जाती है। आपको भी अपने मनोबल की वृद्धि के लिये आत्मानुशासन स्थापित करना चाहिये। आत्मानुशासन वह है, जिसमें फिसलने वाली बरसात में पहाड़ पर चढ़ते समय लाठी लेकर लोग चलते हैं और उससे जहाँ फिसलन होती है, अपने आपको बचा लेते हैं। उसका सहारा मिल जाता है। संकल्प बल लाठी के तरीके से है, जो आपको गिरने से बचा लेता है और आपको ऊँचा चढ़ने के लिये आगे बढ़ने के लिये हिम्मत प्रदान करता है।

मित्रो, शीरी फरिहाद की बात सुनी होगी आपने? फरिहाद को यह कहा गया था अगर वह शीरी से शादी करना चाहता है, तो यहाँ से ३२ मील लम्बी दूरी को काटकर के एक नहर बनाकर के लाये। पहाड़ पर ही तालाब था ऊँचे पर। वह शहर से इतनी दूर था कि जिससे पानी के लिये बड़ी किल्लत रहती थी। राजा ने फरिहाद से यह कहा कि यदि आप ३२ मील लम्बी नहर खोदकर के यहाँ तक ला सकें, तो शीरी से शादी हो सकती है। उसने यही कहा, संकल्प लिया कि हम करेंगे या मरेंगे, यह निश्चय करके जब उसने इतना कर लिया हमको नहर खोदनी है, तो वह कुल्हाड़ी और हथौड़ी लेकर चल पड़ा। उसने पहाड़ काटना शुरू कर दिया। बाहर के आदमी आये, कुछ दिन मजाक होती रही। कुछ मखौल उड़ाते रहे, कोई पागल कहता रहा, कोई बेवकूफ कहता रहा, लेकिन जब यह देखा कि इस आदमी ने यह निश्चय कर लिया है कि हम हर कीमत पर करके रहेंगे, तो लोगों की सहानुभूति पैदा हुई। संकल्पवानों के प्रति सहानुभूति भी होती है। संकल्पवान सहानुभूति के अधिकारी होते हैं।

जिनके पास संकल्प शक्ति नहीं है, वह मजाक के कारण बनते हैं, व्यंग और उपहास के कारण बनते हैं। इसलिये फरियाद को लोगों ने मदद की, लोग आये और स्वयं भी उसके साथ बैठकर कुल्हाड़ी और हथौड़ा चलाने लगे और नहर खोदने में मदद करने लगे। टाइम तो थोड़ा लग गया, लेकिन फरिहाद ने नहर खोदकर के और वहाँ तक लाकर रख दी जहाँ तक राजा ने बतायी थी।

साथियो, यह सब संकल्प बल की बातें मैं कह रहा हूँ। संकल्प बल आपको प्रत्येक काम में उपयोग करने की जरूरत है। ब्रह्मचर्य के सम्बन्ध में, खानपान के सम्बन्ध में, समयदान और अंशदान के सम्बन्ध में, आप को कोई न कोई ऐसा काम जरूर करना चाहिये, जिसमें कि यह प्रतीत होता हो कि आपने छोटा सा संकल्प लिया और उसको पूरा करने में लग रहे हैं। यह मनोबल बढ़ाने का तरीका है। मनोबल से बढ़कर आदमी के पास और कोई शक्ति नहीं है। पैसे की ताकत अपने आप में ठीक। बुद्धि की ताकत अपने आपमें ठीक। लेकिन ऊँचा उठने का जहाँ तक ताल्लुक है, वहाँ तक मनोबल और संकल्पबल को ही सबसे बड़ा माना गया है। संकल्प बल और मनोबल से बढ़कर आदमी के व्यक्तित्व को उभारने वाली, प्रतिभा को उभारने वाली, उसके चरित्र को उभारने वाली और कोई वस्तु है ही नहीं। और यह संकल्प बल की वृद्धि के लिये यह आवश्यक है कि आप छोटे- छोटे ऐसे कुछ नियम लिया कीजिये थोड़े समय के लिये, कि यह काम नहीं कर लेंगे, तब तक, हम यह नहीं करेंगे। मसलन शाम को इतने पन्ने नहीं पढ़ लेंगे, तो सोयेंगे नहीं। मसलन सबेरे का भजन हम जब तक पूरा नहीं कर लेंगे खायेंगे नहीं। यह क्या है व्रतशीलता के साथ में जुड़ा हुआ अनुशासन है।


    
अनुशासन उन संकल्पों का नाम है, जिसमें किसी सिद्धांत का तो समावेश होता ही होता है, लेकिन उस सिद्धान्त के साथ साथ में, उस कार्य के साथ- साथ में, ऐसा भी कुछ फैसला किया जाता है, जिसमें अपने आपको स्मरण बना रहे, यह काम नहीं करेंगे। चप्पल नहीं पहनेंगे। जब तक हम मैट्रिक पास नहीं कर लेंगे चप्पल नहीं पहनेंगे। यह क्या है? बराबर यह दबाव रहता है यह काम करना था, जो नहीं कर पा रहे हैं। चप्पल इसीलिये तो नहीं पहनते। चप्पल बार- बार याद दिलाती रहेगी आपको मैट्रिक करना है। अच्छे नम्बर से पास करना है। दिन भर पढ़ना है। चप्पल पर जब भी ध्यान गया, अरे भाई चप्पल कैसे पहन सकते हैं, हमने तो संकल्प लिया हुआ है, हमने तो व्रत लिया हुआ है। संकल्प आदमी की जिंदगी के लिये बहुत बड़ी कीमती वस्तु है। आप ऐसा ही किया कीजिये। आपको यहाँ से जाने के बाद में कई काम करने हैं, बड़े मजेदार करने है, बहुत अच्छे काम करने हैं, लेकिन वह चलेंगे नहीं, बस आपका मन बराबर ढीला होता चला जायेगा। मन को काट करने के लिये आप एक विचारों की सेना, विचारों की शृंखला बनाकर तैयार रखिये। विचारों से विचारों को काटते हैं। लाठी को लाठी से मारते हैं, जहर को जहर से मारते हैं। काँटे को काँटे से निकालते हैं। कुविचार जो आपको हर बार तंग करते रहते हैं, उसके मुकाबले पर एक ऐसी सेना खड़ी कर लीजिये, जो आपके बुरे विचारों से लड़ सकने में समर्थ हो।

मित्रो, अच्छे विचारों की भी तो एक सेना है। बुरे विचार आते हैं, काम वासना के विचार आते हैं, व्यभिचार के विचार आते हैं, आप ऐसा किया कीजिये, उसके मुकाबले की एक ओर सेना खड़ी कर दीजिये। अच्छे विचारों वाली सेना। जिसमें आपको यह विचार करना पड़े, हनुमान कितने सामर्थ्यवान हो गये, ब्रह्मचर्य की वजह से, भीष्म पितामह कितने समर्थ हो गये ब्रह्मचर्य के कारण। आप शंकराचार्य से लेकर और अनेक संतों की बातें याद कर सकते हैं, महापुरुषों की। जिन्होंने कि अपने कुविचारों से लोहा लिया है। कुविचारों से लोहा नहीं लिया होता तो बेचारे संकल्पों की क्या बिसात! चलते ही नहीं टूट जाते। कुसंस्कार हावी हो जाते और जो विचार किया गया था वह एक कोने में रक्खा रह जाता। सदाचार के आप खाली विचार करें, तो कैसे बने? आप उनके विचारों की एक बड़ी सामर्थ्य बनाइये। एक सेना बना लीजिये। जो भी बुरे विचार आयें उनको काटने के लिये। लोभ के विचार आयें, लालच के विचार आयें तो आप ईमानदारों के समर्थन के लिये, उनके इतिहास और उदाहरण और शास्त्र और आप्त पुरुषों के वचन संग्रह करके रखिये। ईमानदारी की ही कमाई खायेंगे। बेईमानी की कमाई नहीं खायेंगे। अगर आपने अपने मन में ऐसे विचारों की एक सेना तैयार कर ली है, तो आपके लिये सरल होगा, कि जब बेईमानी के विचार आयें, कामवासना के विचार आयें, ईर्ष्या के विचार आयें, अधःपतन के विचार आयें, तो उनकी रोकथाम करने के लिए आप अपनी सेना को तैयार कर दें और उनसे सामने से भिड़ा दें।

मित्रो, लड़ाई लड़े बिना कैसे काम चलेगा? रावण से लड़े बिना काम चला? दुर्योधन से लड़े बिना काम चला? कंस से लड़े बिना कहीं काम चला? लड़ाई मोहब्बत की है, या कैसी है? हिंसा की है या अहिंसा की है? यह मैं इस वख्त बात नहीं कह रहा हूँ। मैं तो यह कह रहा हूँ- आपको अपनी बुराइयों और कमजोरियों से मुकाबला करने के लिये भी और समाज में फैले हुए अनाचार से लोहा लेने के लिये भी हर हालत में आपको ऐसे ऊँचे विचारों की सेना बनाना चाहिये, जो आपको भी हिम्मत देने में समर्थ हो सके और आपके समीपवर्ती लोगों में भी नया माहौल पैदा करने में समर्थ हो सके, यह संकल्प भरे विचार होते हैं।

हजारी किसान ने बिहार में यह फैसला किया था, कि मुझे हजार आम के बगीचे लगाना है। बस, घर से निकल पड़ा। जमीन पर ही सोऊँगा, नंगे पैर रहूँगा, बस, इस गाँव में गया- भाई नंगे पाँव मुझे रहना है, इस गाँव में एक आम का बगीचा जरूर लगाना है। लीजिये मैं कहीं से पौध ले आता हूँ। लाइये मैं गड्ढे खोद देता हूँ, आप लगा लीजिये। रखवाली का थोड़ा इंतजाम कर दीजिये। पानी देने का थोड़ा इंतजाम कर लीजिये, पौधा हमने लगाया है। इस तरीके से हर एक आदमी को समझाता रहा, तो उसकी बात लोगों ने मान ली। क्यों मान ली? वह संकल्पवान था। संकल्पवान नहीं होता तब? ऐसे ही व्याख्यान करता फिरता तब? हरे पेड़ लगाइये, हरियाली उगाइये। हरे पेड़ लगाइये, हरियाली उगाइये तब? तब कोई लगाता क्या? सरकार कितना प्रचार करती है, कोई सुनता है क्या? सुनने के लिए यह बहुत जरूरी है, कि जो आदमी इस बात को कहने के लिये आया है, संकल्पवान हो। संकल्पवान ही जीवन में सफल होते हैं।

संकल्पवान कौन होता है? संकल्पवान का अर्थ फिर एक बार समझ लीजिये। ऊँचे सिद्धान्तों को अपनाने का निश्चय और उस निश्चय में, रास्ते में, कोई व्यवधान न आवे, इसलिये थोड़े- थोड़े समय के लिये ऐसे अनुशासन, जिससे कि स्मरण बना रहे, मनोबल बढ़ता रहे, मनोबल गिरने न पावे, संकल्प की याद करके आदमी अपनी गौरव गरिमा को बनाये रह पाये, इसलिये आपको व्रतशील होना जरूरी है। व्रतशील आप रहा कीजिये। पीला कपड़े पहनने को आपको कहा गया है, यह व्रतशील होने की निशानी है। दूसरे लोग पीले कपड़े नहीं पहनते, आपको पहनना चाहिये, इसका मतलब यह है, कि आपके ऊपर दुनिया का कोई दबाव नहीं है। दुनिया का अनुकरण करने और नकल करने में आपको कोई मजा नहीं है। यह क्या है? यह व्रतशील की निशानी है। माघ के महीने में त्रिवेणी के किनारे लोग एक महीने के लिये व्रतशील होकर जाते हैं, तप- साधना करते हैं। बस वह यह निश्चय कर लेते हैं नहीं करेंगे। आप भी इस कल्प साधना शिविर में आये हैं व्रतशील होकर रहिये। निश्चय को पालन करिये। हमने यह नियम बनाया है, उसी को पालन करेंगे। भोजन जैसा भी हो, खराब है तो क्या, खराब से ही काम चलायेंगे। नहीं साहब जायका अच्छा नहीं लगता, समोसा कचौड़ी खायेंगे। मत खाइये संकल्पवान बनिये।

मित्रो, संकल्प में अकूत शक्ति है। संकल्पवान ही महापुरुष बने हैं, संकल्पवान ही उन्नतिशील बने हैं, संकल्पवान ही सफल हुए हैं और संकल्पवानों ने ही संसार की नाव को पार लगाया है। आपको संकल्पवान और व्रतशील होना चाहिये। नेकी आपकी नीति होनी चाहिये, उदारता आपका फर्ज होना चाहिये और अगर ऐसा कर लिया हो, तब आप दूसरा कदम यह उठाना कि हम यह काम नहीं करेंगे। समय- समय पर छोटे- छोटे व्रत लिया कीजिये। अपने यहाँ गायत्री परिवार में यह रिवाज है, कि गुरुवार के दिन नमक न खाने की बात, ब्रह्मचर्य से रहने की बात, दो घंटे मौन रहने की बात, इन सबको पालन करने पड़ते हैं। आप भी व्रतशील होकर कुछ नियम पालन करते रहेंगे और उनके साथ- साथ किसी श्रेष्ठ कर्तव्य और उत्तरदायित्व का ताना बाना जोड़कर रखेंगे, तो आपके विचार सफल होंगे, आपका व्यक्तित्व पैना होगा और आपकी प्रतिभा तीव्र होगी और आप एक अच्छे व्यक्ति में शुमार होंगे। अगर आप आत्मानुशासन और व्रतशीलता का महत्त्व समझेंगे और उसे अपनाने की हिम्मत करेंगे तब। अगर इस तरह का एक कदम भी आप आगे बढ़ा सकेंगे, तो आपको विश्वास दिलाते हैं कि हम आत्मोन्नति की दिशा में निरंतर आपको आगे बढ़ाते चलेंगे। इन्हीं शब्दों के साथ आज की बात समाप्त।
ॐ शान्तिः
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