
कुछ प्रेरक गीत
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युग निर्माण स्काउट/गाइड
को देश, धर्म, समाज एवं संस्कृति के प्रति समर्पित जीवन जीना
चाहिए। उसके मन में ऊँचे संकल्प होने चाहिए तथा कुछ कर गुजरने
की ललक होना चाहिए। इस हेतु प्रेरणा देने के लिए कुछ गीत दिये
जा रहे हैं, इन गीतों को लय बद्ध गाने से श्रोताओं के दिल में
उत्साह एवं उमंग पैदा होती है।
मन्दिर समझो- मस्जिद समझो
मन्दिर समझो, मस्जिद समझो, गिरजा समझो या गुरूद्वारा।
यह युग निर्माण का मन्दिर है, आता है यहाँ हर मतवाला।।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, सब एक डोर से बँधे यहाँ।
यहाँ ऊँच- नीच का भेद नहीं, सबका है बराबर मान यहाँ।।
यह विश्व प्रेम का मन्दिर है, हर जन है यहाँ सबको प्यारा।।
यहाँ वेद पुराण कुरान, बाइबिल पर चर्चाएँ होती है।
हर देश- प्रदेश की भाषायें, इस मंच से मुखरित होती है।।
यह सर्वधर्म का महामंच, हर धर्म यहाँ सबको प्यारा।।
यहाँ रामचरित और गीता की, अमृत- सी वर्षा होती है।
माँ गायत्री के मन्त्रों की, पावन ध्वनि गुँजित होती है।।
नित राग, रंग, रस निर्झर की, बहती उन्मुक्त विमल धारा।।
नौजवानों उन्हें याद
नौजवानों उन्हें याद कर लो जरा।
जो शहीद हो गये इस वतन के लिए।।
जल रही है उन्हीं के लहू से शमां।
दे रही रोशनी जो चमन के लिए।।
नौजवानों वतन से तुम्हें प्यार है।
तो सूनो शूरवीरों की ये दास्तां।।
राणा, सांगा, शिवाजी, सरीखे बनो।
जुट पड़ो दुश्मनों के दमन के लिए।।
रानी पद्मावती और दुर्गावती।
रजिया सुल्ताना, झांसी की रानी बनो।।
गुड़िया फैशन की या तितलियाँ मन बनो।
ये सबक हर किसी माँ- बहन के लिए।।
चन्द्रशेखर, भगतसिंह, बिस्मिल बनो।
वीर अशफाक, अब्दुल, हमीदों जगो।।
जो चुनौती मिले तुम उसे तोड़ दो।
कुछ भी मुश्किल नहीं, बाँकपन के लिए।।
जो देते लहू वतन को
जो देते लहू वतन को, जो महकाते उपवन को।
उन्हें शत्- शत् प्रणाम मेरे देश का, सौ- सौ सलाम मेरे देश का।।
धरती को स्वर्ग बनाने, माटी का कर्ज चुकाने।
जो कदम बढ़ा करते हैं, रक्षा का बोझ उठाने।
जो मरकर भी जीते है, जो विष हरदम पीते हैं।।
जो धीर- वीर व्रतधारी, वे सच्चे देश पुजारी ।।
इतिहास वही रचते हैं, जिनका जीवन उपकारी।
जो दिल में रखें लगन को, वो पूरा करे सपन को।।
जो हाथ बने निर्माणी, है अमर वही बलिदानी।
जिनकी श्रम बूदें पावन, जैसे गंगा का पानी ।।
संकल्पी जिनका मन हो, आचरणी जिनका तन हो।।
चंदन सी इस देश की
भारतीय संस्कृति को देव संस्कृति कहा गया है। यह ऋषि- मुनियों का देश है। त्याग और सेवा यहाँ के आदर्श रहे हैं। इस भूमि पर जन्म लेना सौभाग्य की बात है, यहाँ के निवासियों को देवी देवताओं जैसा सम्मान दिया गया है तथा यहाँ की मिट्टी को चन्दन की तरह पवित्र माना गया है।
चन्दन सी इस देश की माटी, तपोभूमि हर गाँव हर ग्राम है।
हर नारी देवी की प्रतिमा, बच्चा- बच्चा राम है।।
जिसके सैनिक समर भूमि में, गाया करते हैं गीता।
यहाँ खेत में हल के नीचे, खेला करती है सीता।।
जीवन का आदर्श यहाँ पर, परमेश्वर का काम है।।
यहाँ कर्म से भाग्य बदलती श्रम- निष्ठा कल्याणी।
त्याग और तप की गाथाएँ, गाती कवि की वाणी।।
ज्ञान यहाँ का गंगा जल सा, निर्मल है अभिराम है।।
रही सदा मानवता वादी, इसकी संस्कृति धारा।
मिलकर रहते मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूद्वारा।।
सागर इसको अघ्र्य चढ़ाता, हिमगिरी करे प्रणाम है।।
हर शरीर मन्दिर सा पावन, हर मानव उपकारी।
क्षुद्र असुरता को ठुकरा दे, न्याय नीति व्रतधारी।।
यहाँ सवेरा शंख बजाता, लोरी गाती शाम है।।
फिर अपने गाँवों को
फिर अपने गाँवों को- हम स्वर्ग बनायेंगे।
अपने अन्दर सोया- देवत्व जगायेंगे।।
गाँवों की गलियाँ क्यों, गन्दी रहने देंगे।
गन्दगी नरक जैसी ,, अब क्यों सहने देंगे।।
सहयोग और श्रम से, यह नरक हटायेंगे।।
रहने देंगे बाकी, अब मन का मैल नहीं।
अब भेदभाव का हम, खेलेंगे खेल नहीं।।
सब भाई- भाई हैं, सब मिलकर गायेंगे।।
देवों जैसा होगा, चिन्तन व्यवहार चलन।
सद्भाव भरे होंगे, सबके ही निर्मल मन।।
फिर तो सबके सुख- दुःख, सबमें बँट जायेंगे।।
शोषण उत्पीड़न का, फिर नाम नहीं होगा।
फिर पीड़ा और पतन का, काम नहीं होगा।।
सोने की चिड़ियाँ हम, फिर से कहलायेंगे।।
इतनी शक्ति हमें देना दाता
इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमजोर हो ना।
हम चले नेक रस्ते पे हमसे,
भूलकर भी कोई भूल हों ना।।
दूर अज्ञान के हों अंधेरे,
तू हमें ज्ञान की रोशनी दें।
हर बुराई से बचते रहें हम,
जितनी भी दें भली जिंदगी दें।
बैर हो ना किसी का किसी से,
भावना मन में बदले की हो ना।।
हम न सोचे हमें क्या मिला हैं,
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण।
फूल खूशियों के बाटें सभी को,
सबका जीवन ही बन जाये मधुवन।
अपनी करूणा का जल तू बहाके,
कर दें पावन हर एक मन का कोना।।
अगर हम नहीं देश के
अगर हम नहीं देश के काम आये।
धरा क्या कहेगी गगन क्या कहेगा ??
चलो श्रम करें देश अपना संवारे।
युगों से चढ़ी जो खुमारी उतारें।।
अगर वक्त पर हम नहीं जाग पाये।
सुबह क्या कहेगी पवन क्या कहेगा?
मधुर गंध का अर्थ है खूब महके।
पड़े संकटों की भले मार चहके।।
अगर हम नहीं पुष्प सा मुस्कराये।
व्यथा क्या कहेगी चमन क्या कहेगा?
बहुत हो चुका, स्वर्ग भू- पर उतारें।
करें कुछ नया, स्वस्थ सोचें विचारें।।
अगर हम नहीं ज्योति बन झिलमिलाये।
निशा क्या कहेगी भुवन क्या कहेगा।।
घर- घर अलख जगायेंगे
घर- घर अलख जगायेंग, हम बदलेंगे जमाना।।
निश्चय हमारा, ध्रु्रव सा अटल है।
काया की रग- रग में, निष्ठा का बल है।।
जागृति शंख बजायेंगे, हम बदलेंगे जमाना।
बदली हैं हमने अपनी दिशायें।
मंजिल नयी तय, करके दिखायें।।
धरती को स्वर्ग बनायेंगे, हम बदलेंगे जमाना।।
श्रम से बनायंेगे, माटी को सोना।
जीवन बनेगा, उपवन सलोना।।
मंगल सुमन खिलायेंगें, हम बदलेंगे जमाना।।
पीड़ा पतन की, तोडे़गे कारा।
ममता की निर्मल, बहायेंगे धारा।।
समता की दीप जलायेंगे, हम बदलेंगे जमाना।।
माता गायत्री की ,, हम पर है छाया।
अनुभव हम करते हैं, गुरूवर का साया।।
शुभ संस्कार जगायेंगे, हम बदलेंगे जमाना।।
नन्हें बच्चों आने वाले
नन्हें बच्चों आने वाले कल, की तुम तस्वीर हो।
नाज करेगी दुनियाँ तुम पर, दुनियाँ की तकदीर हो।।
तुम हो जिस कुटिया के दीपक, जग में उजाला कर दोगे।
भोली भाली मुस्कानों से, सबकी झोली भर दोगे।
बिगड़ी जो तकदीर बदल दें, ऐसी तुम तस्वीर हो।।
नाम न लेना रोने का, रोतों को हँसाने आये हो।
नहीं रूठना किसी से तुम, रूठों को मनाने आये हो।
हँसते चलो जमाने में तुम, चलता हुआ एक तीर हो।।
एक दिन होंगे जमीं आसमाँ, चाँद सितारे हाथों में ।।
एक दिन होगी बागडोर, इस जग की तुम्हारे हाथों में।
तोड़ सके ना दुश्मन जिसको, ऐसी तुम जंजीर हो।।
जोश न ठंडा होने पाये
जोश न ठंठा होने पाये, कदम मिलाकर चल।
मंजिल तेरे पग चूमेगी, आज नहीं तो कल।।
सबकी हिम्मत सबकी ताकत, सबकी मेहनत एक।
सबकी इज्जत सबकी दौलत, सबकी किस्मत एक।
शूल बिछे अगणित राहों में, राह बनाता चल।।
नूतन वेदी बलिदानों की, माँगे आज जवानी।
देनी होगी हमें देश हित, फिर से अब कुर्बानी।
बलिदानों का ढेर लगा, इतिहास बदलता चल ।।
सबका मंदिर सबकी मंस्जिद, गिरजाघर गुरूद्वारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, भारत सबको प्यारा।
एक- एक से मिलकर बनता, है संघशक्ति का बल।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः
भारत है देश सबकी, शुभकामना जहाँ है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः, की प्रार्थना यहाँ है।।
ऋषियों ने विश्व मानव को, दृष्टि में रखा था।
सब प्राणियों में उनको, निज रुप ही दिखा था।।
माँगा सदा प्रकृति से, सबके लिए ही उनने।
वसुधा कुटुम्ब ही है, शुचि भावना यहाँ है।।
पीड़ित नहीं हो कोई, अज्ञान अभावों से।
निर्बल नहीं हो कोई, दुःख क्लेश कुभावों से।।
सुख बाँट, दुःख बँटाने, की प्रेरणा मिली है।
पर पीर से द्रवित हो, संवेदना यहाँ है।।
सद्ज्ञान के सहारे, भारत जगतगुरु था।
सोने की चिड़िया बनने, पुरुषार्थ कल्पतरु था।।
था शक्तिशाली इतना, थे देवता बुलाते।
अध्यात्म संग भौतिक, संयोजना यहाँ है।।
अब क्रांति विचारों की, अनिवार्य हो गई है।
विधि सप्तक्रान्तियों की, स्वीकार्य हो गयी है।।
हो देश मुक्त व्यसनों, आडम्बरों छलों से।
उज्ज्वल भविष्य वाली, वह सर्जना कहाँ है।।एक दिन ही जी
एक दिन ही जी, मगर इन्सान बनकर जी।
आपदा आये भले, मत छोड़ना संकल्प अपने।
हो सघन मत टूटने, देना कहीं सुकुमार सपने।।
देखना मुड़कर भला क्या? पंख बींधे कण्टकों को।
मत कभी देना महा, मार्ग- व्यापी संकटों को।।
एक दिन ही जी, सफल अभियान बनकर जी!
एक छोटी नाव, उसके ही सहारे पार जाना।
हो भले तुफान राही! सोचना मत, जूझ जाना।।
कष्ट सहकर भी स्वयं, इस विश्व का उपकार कर जा।
छोड़ जा पदचिन्ह अपने, तीर्थ नव- निर्माण कर जा।।
एक दिन ही जी, जगत की शान बनकर जी!
चमक बिजली- सा गगन में, जब कभी छायें घटायें।
बन अडिग चट्टान! तुझसे, आंधियाँ जब जूझ जायें।।
कुछ नहीं कठिनाइयाँ, विश्वास की ज्वाला जलाले।
युग नया निर्माण करने, की अटल सौगन्ध खा ले।।
एक दिन ही जी, मगर वरदान बनकर जी!
हमने आँगन नहीं बुहारा
हमने आँगन नहीं बुहारा, कैसे आयेंगे भगवान्।
मन का मैल नहीं धोया तो, कैसे आयेंगे भगवान्।।
हर कोने कल्मष कषाय की, लगी हुई है ढेरी।
नहीं ज्ञान की किरण कहीं है, हर कोठरी अँधेरी।
आँगन चैबारा अँधियारा, कैसे आयेंगे भगवान्।।
हृदय हमारा पिघल न पाया, जब देखा दुखियारा।
किसी पन्थ भूले ने हमसे, पाया नहीं सहारा।
सूखी है करुणा की धारा, कैसे आयेंगे भगवान्।।
अन्तर के पट खोल देख लो, ईश्वर पास मिलेगा।
हर प्राणी में ही परमेश्वर, का आभार मिलेगा।
सच्चे मन से नहीं पुकारा, कैसे आयेंगे भगवान्।।
निर्मल मन हो तो रघुनायक, शबरी के घर जाते।
श्याम सूर की बाँह पकड़ते, शाक विदुर घर खाते।
इस पर हमने नहीं विचारा, कैसे आयेंगे भगवान्।।
मन्दिर समझो- मस्जिद समझो
मन्दिर समझो, मस्जिद समझो, गिरजा समझो या गुरूद्वारा।
यह युग निर्माण का मन्दिर है, आता है यहाँ हर मतवाला।।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, सब एक डोर से बँधे यहाँ।
यहाँ ऊँच- नीच का भेद नहीं, सबका है बराबर मान यहाँ।।
यह विश्व प्रेम का मन्दिर है, हर जन है यहाँ सबको प्यारा।।
यहाँ वेद पुराण कुरान, बाइबिल पर चर्चाएँ होती है।
हर देश- प्रदेश की भाषायें, इस मंच से मुखरित होती है।।
यह सर्वधर्म का महामंच, हर धर्म यहाँ सबको प्यारा।।
यहाँ रामचरित और गीता की, अमृत- सी वर्षा होती है।
माँ गायत्री के मन्त्रों की, पावन ध्वनि गुँजित होती है।।
नित राग, रंग, रस निर्झर की, बहती उन्मुक्त विमल धारा।।
नौजवानों उन्हें याद
नौजवानों उन्हें याद कर लो जरा।
जो शहीद हो गये इस वतन के लिए।।
जल रही है उन्हीं के लहू से शमां।
दे रही रोशनी जो चमन के लिए।।
नौजवानों वतन से तुम्हें प्यार है।
तो सूनो शूरवीरों की ये दास्तां।।
राणा, सांगा, शिवाजी, सरीखे बनो।
जुट पड़ो दुश्मनों के दमन के लिए।।
रानी पद्मावती और दुर्गावती।
रजिया सुल्ताना, झांसी की रानी बनो।।
गुड़िया फैशन की या तितलियाँ मन बनो।
ये सबक हर किसी माँ- बहन के लिए।।
चन्द्रशेखर, भगतसिंह, बिस्मिल बनो।
वीर अशफाक, अब्दुल, हमीदों जगो।।
जो चुनौती मिले तुम उसे तोड़ दो।
कुछ भी मुश्किल नहीं, बाँकपन के लिए।।
जो देते लहू वतन को
जो देते लहू वतन को, जो महकाते उपवन को।
उन्हें शत्- शत् प्रणाम मेरे देश का, सौ- सौ सलाम मेरे देश का।।
धरती को स्वर्ग बनाने, माटी का कर्ज चुकाने।
जो कदम बढ़ा करते हैं, रक्षा का बोझ उठाने।
जो मरकर भी जीते है, जो विष हरदम पीते हैं।।
जो धीर- वीर व्रतधारी, वे सच्चे देश पुजारी ।।
इतिहास वही रचते हैं, जिनका जीवन उपकारी।
जो दिल में रखें लगन को, वो पूरा करे सपन को।।
जो हाथ बने निर्माणी, है अमर वही बलिदानी।
जिनकी श्रम बूदें पावन, जैसे गंगा का पानी ।।
संकल्पी जिनका मन हो, आचरणी जिनका तन हो।।
चंदन सी इस देश की
भारतीय संस्कृति को देव संस्कृति कहा गया है। यह ऋषि- मुनियों का देश है। त्याग और सेवा यहाँ के आदर्श रहे हैं। इस भूमि पर जन्म लेना सौभाग्य की बात है, यहाँ के निवासियों को देवी देवताओं जैसा सम्मान दिया गया है तथा यहाँ की मिट्टी को चन्दन की तरह पवित्र माना गया है।
चन्दन सी इस देश की माटी, तपोभूमि हर गाँव हर ग्राम है।
हर नारी देवी की प्रतिमा, बच्चा- बच्चा राम है।।
जिसके सैनिक समर भूमि में, गाया करते हैं गीता।
यहाँ खेत में हल के नीचे, खेला करती है सीता।।
जीवन का आदर्श यहाँ पर, परमेश्वर का काम है।।
यहाँ कर्म से भाग्य बदलती श्रम- निष्ठा कल्याणी।
त्याग और तप की गाथाएँ, गाती कवि की वाणी।।
ज्ञान यहाँ का गंगा जल सा, निर्मल है अभिराम है।।
रही सदा मानवता वादी, इसकी संस्कृति धारा।
मिलकर रहते मन्दिर, मस्जिद, गिरजाघर, गुरूद्वारा।।
सागर इसको अघ्र्य चढ़ाता, हिमगिरी करे प्रणाम है।।
हर शरीर मन्दिर सा पावन, हर मानव उपकारी।
क्षुद्र असुरता को ठुकरा दे, न्याय नीति व्रतधारी।।
यहाँ सवेरा शंख बजाता, लोरी गाती शाम है।।
फिर अपने गाँवों को
फिर अपने गाँवों को- हम स्वर्ग बनायेंगे।
अपने अन्दर सोया- देवत्व जगायेंगे।।
गाँवों की गलियाँ क्यों, गन्दी रहने देंगे।
गन्दगी नरक जैसी ,, अब क्यों सहने देंगे।।
सहयोग और श्रम से, यह नरक हटायेंगे।।
रहने देंगे बाकी, अब मन का मैल नहीं।
अब भेदभाव का हम, खेलेंगे खेल नहीं।।
सब भाई- भाई हैं, सब मिलकर गायेंगे।।
देवों जैसा होगा, चिन्तन व्यवहार चलन।
सद्भाव भरे होंगे, सबके ही निर्मल मन।।
फिर तो सबके सुख- दुःख, सबमें बँट जायेंगे।।
शोषण उत्पीड़न का, फिर नाम नहीं होगा।
फिर पीड़ा और पतन का, काम नहीं होगा।।
सोने की चिड़ियाँ हम, फिर से कहलायेंगे।।
इतनी शक्ति हमें देना दाता
इतनी शक्ति हमें देना दाता,
मन का विश्वास कमजोर हो ना।
हम चले नेक रस्ते पे हमसे,
भूलकर भी कोई भूल हों ना।।
दूर अज्ञान के हों अंधेरे,
तू हमें ज्ञान की रोशनी दें।
हर बुराई से बचते रहें हम,
जितनी भी दें भली जिंदगी दें।
बैर हो ना किसी का किसी से,
भावना मन में बदले की हो ना।।
हम न सोचे हमें क्या मिला हैं,
हम ये सोचें किया क्या है अर्पण।
फूल खूशियों के बाटें सभी को,
सबका जीवन ही बन जाये मधुवन।
अपनी करूणा का जल तू बहाके,
कर दें पावन हर एक मन का कोना।।
अगर हम नहीं देश के
अगर हम नहीं देश के काम आये।
धरा क्या कहेगी गगन क्या कहेगा ??
चलो श्रम करें देश अपना संवारे।
युगों से चढ़ी जो खुमारी उतारें।।
अगर वक्त पर हम नहीं जाग पाये।
सुबह क्या कहेगी पवन क्या कहेगा?
मधुर गंध का अर्थ है खूब महके।
पड़े संकटों की भले मार चहके।।
अगर हम नहीं पुष्प सा मुस्कराये।
व्यथा क्या कहेगी चमन क्या कहेगा?
बहुत हो चुका, स्वर्ग भू- पर उतारें।
करें कुछ नया, स्वस्थ सोचें विचारें।।
अगर हम नहीं ज्योति बन झिलमिलाये।
निशा क्या कहेगी भुवन क्या कहेगा।।
घर- घर अलख जगायेंगे
घर- घर अलख जगायेंग, हम बदलेंगे जमाना।।
निश्चय हमारा, ध्रु्रव सा अटल है।
काया की रग- रग में, निष्ठा का बल है।।
जागृति शंख बजायेंगे, हम बदलेंगे जमाना।
बदली हैं हमने अपनी दिशायें।
मंजिल नयी तय, करके दिखायें।।
धरती को स्वर्ग बनायेंगे, हम बदलेंगे जमाना।।
श्रम से बनायंेगे, माटी को सोना।
जीवन बनेगा, उपवन सलोना।।
मंगल सुमन खिलायेंगें, हम बदलेंगे जमाना।।
पीड़ा पतन की, तोडे़गे कारा।
ममता की निर्मल, बहायेंगे धारा।।
समता की दीप जलायेंगे, हम बदलेंगे जमाना।।
माता गायत्री की ,, हम पर है छाया।
अनुभव हम करते हैं, गुरूवर का साया।।
शुभ संस्कार जगायेंगे, हम बदलेंगे जमाना।।
नन्हें बच्चों आने वाले
नन्हें बच्चों आने वाले कल, की तुम तस्वीर हो।
नाज करेगी दुनियाँ तुम पर, दुनियाँ की तकदीर हो।।
तुम हो जिस कुटिया के दीपक, जग में उजाला कर दोगे।
भोली भाली मुस्कानों से, सबकी झोली भर दोगे।
बिगड़ी जो तकदीर बदल दें, ऐसी तुम तस्वीर हो।।
नाम न लेना रोने का, रोतों को हँसाने आये हो।
नहीं रूठना किसी से तुम, रूठों को मनाने आये हो।
हँसते चलो जमाने में तुम, चलता हुआ एक तीर हो।।
एक दिन होंगे जमीं आसमाँ, चाँद सितारे हाथों में ।।
एक दिन होगी बागडोर, इस जग की तुम्हारे हाथों में।
तोड़ सके ना दुश्मन जिसको, ऐसी तुम जंजीर हो।।
जोश न ठंडा होने पाये
जोश न ठंठा होने पाये, कदम मिलाकर चल।
मंजिल तेरे पग चूमेगी, आज नहीं तो कल।।
सबकी हिम्मत सबकी ताकत, सबकी मेहनत एक।
सबकी इज्जत सबकी दौलत, सबकी किस्मत एक।
शूल बिछे अगणित राहों में, राह बनाता चल।।
नूतन वेदी बलिदानों की, माँगे आज जवानी।
देनी होगी हमें देश हित, फिर से अब कुर्बानी।
बलिदानों का ढेर लगा, इतिहास बदलता चल ।।
सबका मंदिर सबकी मंस्जिद, गिरजाघर गुरूद्वारा।
हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, भारत सबको प्यारा।
एक- एक से मिलकर बनता, है संघशक्ति का बल।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः
भारत है देश सबकी, शुभकामना जहाँ है।
सर्वे भवन्तु सुखिनः, की प्रार्थना यहाँ है।।
ऋषियों ने विश्व मानव को, दृष्टि में रखा था।
सब प्राणियों में उनको, निज रुप ही दिखा था।।
माँगा सदा प्रकृति से, सबके लिए ही उनने।
वसुधा कुटुम्ब ही है, शुचि भावना यहाँ है।।
पीड़ित नहीं हो कोई, अज्ञान अभावों से।
निर्बल नहीं हो कोई, दुःख क्लेश कुभावों से।।
सुख बाँट, दुःख बँटाने, की प्रेरणा मिली है।
पर पीर से द्रवित हो, संवेदना यहाँ है।।
सद्ज्ञान के सहारे, भारत जगतगुरु था।
सोने की चिड़िया बनने, पुरुषार्थ कल्पतरु था।।
था शक्तिशाली इतना, थे देवता बुलाते।
अध्यात्म संग भौतिक, संयोजना यहाँ है।।
अब क्रांति विचारों की, अनिवार्य हो गई है।
विधि सप्तक्रान्तियों की, स्वीकार्य हो गयी है।।
हो देश मुक्त व्यसनों, आडम्बरों छलों से।
उज्ज्वल भविष्य वाली, वह सर्जना कहाँ है।।एक दिन ही जी
एक दिन ही जी, मगर इन्सान बनकर जी।
आपदा आये भले, मत छोड़ना संकल्प अपने।
हो सघन मत टूटने, देना कहीं सुकुमार सपने।।
देखना मुड़कर भला क्या? पंख बींधे कण्टकों को।
मत कभी देना महा, मार्ग- व्यापी संकटों को।।
एक दिन ही जी, सफल अभियान बनकर जी!
एक छोटी नाव, उसके ही सहारे पार जाना।
हो भले तुफान राही! सोचना मत, जूझ जाना।।
कष्ट सहकर भी स्वयं, इस विश्व का उपकार कर जा।
छोड़ जा पदचिन्ह अपने, तीर्थ नव- निर्माण कर जा।।
एक दिन ही जी, जगत की शान बनकर जी!
चमक बिजली- सा गगन में, जब कभी छायें घटायें।
बन अडिग चट्टान! तुझसे, आंधियाँ जब जूझ जायें।।
कुछ नहीं कठिनाइयाँ, विश्वास की ज्वाला जलाले।
युग नया निर्माण करने, की अटल सौगन्ध खा ले।।
एक दिन ही जी, मगर वरदान बनकर जी!
हमने आँगन नहीं बुहारा
हमने आँगन नहीं बुहारा, कैसे आयेंगे भगवान्।
मन का मैल नहीं धोया तो, कैसे आयेंगे भगवान्।।
हर कोने कल्मष कषाय की, लगी हुई है ढेरी।
नहीं ज्ञान की किरण कहीं है, हर कोठरी अँधेरी।
आँगन चैबारा अँधियारा, कैसे आयेंगे भगवान्।।
हृदय हमारा पिघल न पाया, जब देखा दुखियारा।
किसी पन्थ भूले ने हमसे, पाया नहीं सहारा।
सूखी है करुणा की धारा, कैसे आयेंगे भगवान्।।
अन्तर के पट खोल देख लो, ईश्वर पास मिलेगा।
हर प्राणी में ही परमेश्वर, का आभार मिलेगा।
सच्चे मन से नहीं पुकारा, कैसे आयेंगे भगवान्।।
निर्मल मन हो तो रघुनायक, शबरी के घर जाते।
श्याम सूर की बाँह पकड़ते, शाक विदुर घर खाते।
इस पर हमने नहीं विचारा, कैसे आयेंगे भगवान्।।