
उच्च मानसिकता के चार सूत्र
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व्यवहार की धर्मधारणा और सेवा साधना उपरोक्त पंचशीलों को जीवन
में उतारने से बन पड़ती है। इसके अतिरिक्त दूसरा क्षेत्र मानसिकता
का रह जाता है, उसमें चरित्र और भावनात्मक विशेषताओं का समावेश
किया जा सके तो समझना चाहिए कि लोक परलोक दोनों को समुन्नत
स्तर का बना लिया गया।
चार वेद, चार धर्म, चार दिव्य वरदान जिन्हें कहा जा सकता है, उन चार मानसिक विशेषताओं को- (1) समझदारी (2) ईमानदारी (3) जिम्मेदारी (4) बहादूरी के नाम से समझा जा सकता है।
1. समझदारी-
समझदारी का अर्थ है- तात्कालिक आकर्षण पर संयम बरतना, अंकुश लगाना और दूरगामी प्रतिक्रियाओं का स्वरुप समझना तथा तद्नुरुप निर्णय करना। समझदारी यदि साथ देने लगे तो इन्द्रिय संयम, समय संयम, अर्थ संयम तथा विचार संयम अपनाते हुए उन छिद्रों को बंद किया जा सकता है, जो जीवन संपदा को अस्त- व्यस्त करके खो देते हैं। समझदारी का ही दूसरा नाम है- विवेकशीलता।
2. ईमानदारी-
बेईमान वे हैं जिन्होंने अपना विश्वास गंवाया और जिनकी मित्रता मिलती रह सकती थी उन्हें विरोधी बनाया। बेईमान व्यक्ति भी ईमानदारी नौकर रखना चाहता है। इससे प्रकट है कि ईमानदारी की सामथ्र्य कितनी बढ़ी- चढ़ी है। हमेशा अपने ईमान और भगवान को ध्यान में रखते हुए, उसी पर भरोसा रखें। ईमानदार व्यक्ति, हजार मनकों में अलग चमकने वाले हीरे की तरह होता है।
3. जिम्मेदारी -
हर व्यक्ति शरीर रक्षा, परिवार व्यवस्था, समाजनिष्ठा, अनुशासन का पालन जैसे कर्तव्यों से बंधा हुआ है। जिम्मेदारियों को निभाने पर ही मनुष्य का शौर्य निखरता है। जिम्मेदार व्यक्ति को ही प्रामाणिक माना जाता है। व्यक्तित्व जिम्मेदार लोंगो का ही प्रखर होता है। बड़े पराक्रम उन्हीं से बन पड़ते हैं। हमें अपने प्रति, ईश्वर के प्रति तथा समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह निभाना चाहिए।
4. बहादूरी-
हिम्मत भरी साहसिकता दिखाने वाला ही बहादूर होता है। जोखिम उठाते हुए सही मार्ग पर चलते रहने का नाम ही बहादूरी है। बुराईयाँ संघर्ष के बिना मिटती नहीं और संघर्ष के लिए साहसिक कदम उठाना अनिवार्य होता है। कायर अनेकों बार मरते रहते हैं, जबकि बहादूर मर कर भी अमर हो जाते हैं। प्रायः आततायियों के आक्रमण कायरों पर ही होते हैं। कठिनाइयों से पार पाने और प्रगति पथ पर आगे बढ़ने के लिए साहस ही एक मात्र साथी होता है, इसके बल पर मनुष्य एकाकी भी दुर्गम लक्ष्य को पाने में समर्थ होता है। इतिहास कायरों का नहीं लिखा जाता।
उपरोक्त पंचशील एवं चार सूत्र मिलकर नौ हो जाते हैं। गायत्री मंत्र नौ शब्द इन्हीं नौ गुणों की शिक्षा देते हैं, इन गुणों को जीवन में धारण करने से व्यक्तित्व का निर्माण होता है। ये नौ गुण सौरमण्डल के नौ ग्रह, नौ दुर्गा, नौ रत्न की तरह महत्वपूर्ण है। स्काउट- गाइड तथा रोवर- रेंजर्स को अपने व्यक्तित्व से इन गुणों का परिचय देना चाहिए।
चार वेद, चार धर्म, चार दिव्य वरदान जिन्हें कहा जा सकता है, उन चार मानसिक विशेषताओं को- (1) समझदारी (2) ईमानदारी (3) जिम्मेदारी (4) बहादूरी के नाम से समझा जा सकता है।
1. समझदारी-
समझदारी का अर्थ है- तात्कालिक आकर्षण पर संयम बरतना, अंकुश लगाना और दूरगामी प्रतिक्रियाओं का स्वरुप समझना तथा तद्नुरुप निर्णय करना। समझदारी यदि साथ देने लगे तो इन्द्रिय संयम, समय संयम, अर्थ संयम तथा विचार संयम अपनाते हुए उन छिद्रों को बंद किया जा सकता है, जो जीवन संपदा को अस्त- व्यस्त करके खो देते हैं। समझदारी का ही दूसरा नाम है- विवेकशीलता।
2. ईमानदारी-
बेईमान वे हैं जिन्होंने अपना विश्वास गंवाया और जिनकी मित्रता मिलती रह सकती थी उन्हें विरोधी बनाया। बेईमान व्यक्ति भी ईमानदारी नौकर रखना चाहता है। इससे प्रकट है कि ईमानदारी की सामथ्र्य कितनी बढ़ी- चढ़ी है। हमेशा अपने ईमान और भगवान को ध्यान में रखते हुए, उसी पर भरोसा रखें। ईमानदार व्यक्ति, हजार मनकों में अलग चमकने वाले हीरे की तरह होता है।
3. जिम्मेदारी -
हर व्यक्ति शरीर रक्षा, परिवार व्यवस्था, समाजनिष्ठा, अनुशासन का पालन जैसे कर्तव्यों से बंधा हुआ है। जिम्मेदारियों को निभाने पर ही मनुष्य का शौर्य निखरता है। जिम्मेदार व्यक्ति को ही प्रामाणिक माना जाता है। व्यक्तित्व जिम्मेदार लोंगो का ही प्रखर होता है। बड़े पराक्रम उन्हीं से बन पड़ते हैं। हमें अपने प्रति, ईश्वर के प्रति तथा समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को पूरी तरह निभाना चाहिए।
4. बहादूरी-
हिम्मत भरी साहसिकता दिखाने वाला ही बहादूर होता है। जोखिम उठाते हुए सही मार्ग पर चलते रहने का नाम ही बहादूरी है। बुराईयाँ संघर्ष के बिना मिटती नहीं और संघर्ष के लिए साहसिक कदम उठाना अनिवार्य होता है। कायर अनेकों बार मरते रहते हैं, जबकि बहादूर मर कर भी अमर हो जाते हैं। प्रायः आततायियों के आक्रमण कायरों पर ही होते हैं। कठिनाइयों से पार पाने और प्रगति पथ पर आगे बढ़ने के लिए साहस ही एक मात्र साथी होता है, इसके बल पर मनुष्य एकाकी भी दुर्गम लक्ष्य को पाने में समर्थ होता है। इतिहास कायरों का नहीं लिखा जाता।
उपरोक्त पंचशील एवं चार सूत्र मिलकर नौ हो जाते हैं। गायत्री मंत्र नौ शब्द इन्हीं नौ गुणों की शिक्षा देते हैं, इन गुणों को जीवन में धारण करने से व्यक्तित्व का निर्माण होता है। ये नौ गुण सौरमण्डल के नौ ग्रह, नौ दुर्गा, नौ रत्न की तरह महत्वपूर्ण है। स्काउट- गाइड तथा रोवर- रेंजर्स को अपने व्यक्तित्व से इन गुणों का परिचय देना चाहिए।