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Books - स्वामी विवेकानंद

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भारत आगमन

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First 11 13 Last
इस प्रकार लगभग चार वर्ष तक योरोप- अमेरिका में हिंदू धर्म की ध्वजा फहराकर तथा हजारों पश्चिमी लोगों को वेदांत और भारतीय अध्यात्म का अनुयायी बनाकर स्वामीजी ने स्वदेश वापस आने का निश्चय किया। उस समय इंग्लैण्ड के वेदांत प्रेमियों ने कोई अन्य भारतीय शिक्षक वहाँ छोड़ जाने का आग्रह किया तो उन्होंने अपने आश्रम के स्वामी अभेदानंद को इंग्लैण्ड बुलाकर वहाँ का कार्यभार उनके सुपुर्द कर दिया। तब १६ दिसंबर १८९६ को स्वामीजी ने भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया। उनके कई शिष्य भी भारतवर्ष के दर्शनों की अभिलाषा रखते थे। उनमें से कप्तान सेवियर और उनकी धर्मपत्नी तथा श्री गुडवीन तो उनके साथ ही रवाना हो गए। मिस मुलर और मिस नोबल (बाद में भगिनी निवेदिता) ने कुछ समय पश्चात् आने का विचार प्रकट किया।

चलते समय लंदन के पत्र संवाददाता ने पूछा- ‘‘स्वामीजी, इस चमकते- दमकते, विलास- वैभवपूर्ण पश्चिम में चार वर्ष रहने के पश्चात् आपको अपना देश कैसा जान पड़ता है?’’

स्वामीजी ने कहा- ‘‘देखो, यहाँ आने के पहले तो मैं भारतवर्ष से प्रेम ही करता था, पर अब तो वहाँ की धूल और हवा भी मुझे पवित्र करने वाली जान पड़ती है। अब मैं उसे एक तीर्थ के समान समझ रहा हूँ।’’

जहाज की यात्रा करते हुए एक दिन दो पादरी स्वामीजी से विवाद करने आ गए और जब तर्क द्वारा निरुत्तर हो गए तो हिंदू धर्म को बुरी- बुरी गालियाँ देने लगे। कुछ देर तक तो स्वामीजी ने सहन किया, पर अब उन लोगों ने अति कर दी तो वे उठे और एक पादरी का गला पकडक़र कुछ हँसी के साथ कहा- ‘‘अब जो मेरे धर्म को गालियाँ दीं तो उठाकर समुद्र में फेंक ही दूँगा।’’ विचारा पादरी काँपने लगा और बोला- ‘‘महाराज मुझे क्षमा करो, अब कभी ऐसा न करूँगा।’’ इसके बाद वह जब कभी स्वामीजी को देखता था तो झुककर प्रणाम करता था।

First 11 13 Last


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