
इस अभियान की सुखद सम्भावनाएं
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
परिवार निर्माण के लिए संगठित प्रयासों का आरम्भ कहां से किया जाए और किन गतिविधियों को अग्रसर किया जाए इसकी संक्षिप्त और प्रारम्भिक रूपरेखा पिछले पृष्ठों में दी गई है। संस्कार और पर्व त्यौहार प्रेरणाप्रद ढंग से मनाने महिला संगठन खड़ा करने और उसका मेरुदण्ड साप्ताहिक सत्संग सीधा खड़ा कर देना किसी भी जागरूक प्रतिभा के लिए बांये हाथ का खेल है। समर्थ और कुशल लोग आये दिन बड़े-बड़े सरंजाम खड़े करते और साधन जुटाते हैं। उपेक्षा और उदासीनता का भाव जिनमें हो, उनकी बात अलग है। उस स्थिति में तो तिनका उठाना भी पहाड़ उठाने जैसा प्रतीत होगा और न करने की अन्यमनस्कता पर पर्दा डालने वाले हजार बहाने बनकर खड़े हो जायेंगे।
‘महिला जागृति’ के लिए प्रत्येक परिजन को निजी रूप से यह सोचना है कि परिवार निर्माण की दिशा में उठाई गई सामूहिक प्रयत्नशीलता में उसका अनुगमन किस सीमा तक हो सकता है? वर्तमान परिस्थितियों में वह क्या कर सकता है? इन प्रश्नों पर जो भी गम्भीरतापूर्वक विचार करेगा उसे प्रतीत होगा कि कुछ न कुछ प्रयत्न निश्चय ही किया जा सकता है और उसका शुभ मुहूर्त आज हो सकता है। अपने घर की अस्त-व्यस्तता ढूंढ़ने पर प्रतीत होगा कि उसमें सुधार की बहुत गुंजाइश है। ढर्रे को बदलने में संकोच छोड़ने और साहस जुटाने की तनिक सी आवश्यकता पड़ती है। ऐसा तो हर नया कार्य आरम्भ करने पर अनिवार्य रूप से करना होता है। अभ्यस्त प्रचलन से भिन्न प्रकार की कोई भी गतिविधि जो न अपनाई गई हो उसमें झिझक की अड़चन उत्पन्न होगी ही; संकोच आड़े आयेगा ही इसमें संकल्प बल की कमी ही असमंजस खड़ा करती है। इन दिनों इसी व्यवधान को तोड़ने और नवसृजन का नया कदम परिवार में प्रगतिशीलता उत्पन्न करने के रूप बढ़ा ही देना चाहिए। सामूहिक प्रोत्साहन एवं सामूहिक प्रयत्न का जो प्रवाह इन दिनों अभियान के संचालक सूत्रों द्वारा उत्पन्न किया गया है उसे स्वीकार करने वाले अपने कार्य क्षेत्र में कुछ तो प्रयास आरम्भ कर ही सकते हैं। जिसके लिए जो सम्भव हो करने लगे भले ही वह प्रयास आरम्भ में नगण्य जितना ही क्यों न हो। ‘महिला जागृति’ के सदस्यों में से एक भी ऐसा नहीं रहना चाहिए जिसके ऊपर यह आक्षेप लगाया जा सके कि उभार, उत्साह के क्षणों में भी तत्परता नहीं अपनाई गई, निष्क्रियता न हटाई गई।
अभियान को अग्रगामी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि महिला जागृति पत्रिका के पाठकों की संख्या तेजी से बढ़ाई जाय। इसके बिना कार्य क्षेत्र के विस्तार का और कोई उपाय नहीं है स्पष्ट है कि यदि पत्रिका न होती तो पिछले दिनों इस दिशा में जो कार्य हुआ है, वह सम्भव ही न हो पाता। भावी योजना में सफलता का अति महत्वपूर्ण आधार यह है कि पत्रिका की सदस्य संख्या बढ़ाने के लिए अतिरिक्त प्रयत्न किया जाय और महिला परिवार की संख्या कई गुनी बढ़ा दी जाय।
आवश्यकता इस बात की है कि परिवार निर्माण अभियान को अग्रगामी बनाने के लिए कुछ प्रतिभाएं आगे आएं अपना अधिक समय इसमें लगायें। नये कार्यकर्त्ता उत्पन्न करना नितान्त आवश्यक है। यह अभियान इस रूप में सर्वथा नये रूप से आरम्भ हो रहा है ऐसी दशा में उसका नेतृत्व करने वाले कर्मवीर भी नये ही हो सकते हैं। जब अभियान ही पुराना नहीं तो कार्यकर्त्ता ही पुराने कैसे चल सकते हैं। महिला जागरण में रुचि लेने वाले नर-नारियों की संख्या अब तक जितनी बन सकी है उसकी व्यापकता को देखते हुए नगण्य ही कहा जा सकता है। अब इसमें तेजी से वृद्धि होनी चाहिए। महिला जागरण मिशन के प्रत्येक सदस्य को इसी का निमन्त्रण है।
मथुरा के आश्रम से हरिद्वार का केन्द्र प्रथक बनाने—शांतिकुंज का निर्माण करने का प्रधान उद्देश्य यह था कि नारी उत्थान की मुहिम संभालने के लिए सुनियोजित सरंजाम स्वतन्त्र रूप से खड़ा किया जाय। इस क्रम में देव कन्याओं का निर्माण—कन्या प्रशिक्षण—महिला सत्र—साहित्य प्रकाशन—संगठन एवं तदर्थ रचनात्मक प्रवृत्तियों के विस्तार जैसी अनेकों प्रवृत्तियों को अग्रगामी बनाया भी गया है। पिछले दिनों युग शिल्पियों के प्रशिक्षण की सामयिक व्यवस्था भी शान्तिकुंज में ही चलती रही। यह आपत्तिकालीन उपक्रम था। उसके लिए प्रथक साधन बन जाने से अब फिर मूल प्रयोजन पर अधिक ध्यान दे सकना सम्भव हो गया है। अतएव अब शांतिकुंज की प्रवृत्तियों में महिला जागरण प्रयोजन के लिए नये सिरे से नये—आधार सम्मिलित कर लिए गये हैं और अभियान को अधिक तत्परता से अग्रगामी बनाया जा रहा है। तीन-तीन महीने के महिला प्रशिक्षण सत्रों की नई व्यवस्था की गई है और परिवार सत्रों की अभिनव व्यवस्था बनाई गई है। महिला साहित्य के प्रकाशन की नई तैयारियां और महिला शाखाओं को नये सिरे से गठित किया गया है। इसके अतिरिक्त योजना के मूल स्वरूप में एक बड़ा प्रगतिशील चरण यह बढ़ाया गया है कि अभियान का मूल आधार महिला जागरण रखते हुए भी इसका क्षेत्र विस्तार परिवार निर्माण के रूप में विकसित कर दिया गया है। तथ्यतः परिवार और महिला पर्यायवाचक हैं। विवाह और प्रजनन में उसी की भूमिका प्रमुख है। अस्तु परिवार के सृजन ही नहीं निर्माण-निर्धारण में भी उसी का योगदान प्रधान रहता है। शास्त्रकार ने घर-परिवार की तात्विक व्याख्या विवेचना करते हुए कहा है—‘‘न गृहं गृहयित्या हु गृहणी गृहमुच्यते’’ अर्थात् इमारतें घर नहीं होती गृहणी की भूमिका ही सच्चे अर्थों में घर-परिवार है। समुन्नत परिवारों का निर्माण सुयोग्य नारी के बिना और कोई नहीं कर सकता, इसलिए महिला जागरण और परिवार निर्माण को अविच्छिन्न माना गया है। विस्तार क्रम में महिला प्रथम और परिवार द्वितीय ठहराता है। अभियान को इसी क्रम व्यवस्था के क्रम व्यवस्था के अनुरूप विस्तृत किया जा रहा है। परिवार निर्माण के अन्तर्गत महिला जागरण की प्रधानता रहेगी ही। यह शांतिकुंज की संचालन सम्बन्धी नीति का स्पष्टीकरण है।
शांतिकुंज में अगले दिनों चलने वाले एक-एक व तीन-तीन महीने के शिविरों में उपयुक्त महिलाओं को नारी जागरण की, परिवार निर्माण की कमान सम्हालने का प्रशिक्षण प्राप्त करने की उत्साह पूर्वक तैयारी करनी चाहिए। प्रगतिशील और सुयोग्य महिलायें यदि इस प्रशिक्षण में सम्मिलित होने का प्रयत्न करेंगी तो परिवार निर्माण आन्दोलन का अपना कार्य द्रुतगति से चलने लगेगा और अधिक प्रवीणता के साथ कार्यक्रम चलने लगेंगे यह निश्चित है।
सुशिक्षित महिलाएं, जिन पर पारिवारिक उत्तरदायित्व नहीं हैं, या बहुत कम हैं वे अपना अधिक समय इस कार्य में दे सकती हैं। महिला जागरण एवं परिवार निर्माण के लिए निमित्त उत्सर्ग भावना लेकर आगे आने वाली प्रतिभाओं की इन दिनों नितान्त आवश्यकता है। इसकी पूर्ति में संलग्न होकर जीवन को सार्थक बनाने की उमंग जिनके भी मन में उठे, मिशन उसका हार्दिक स्वागत करेगा।
अभियान को अग्रगामी बनाने के लिए यह आवश्यक है कि महिला जागृति पत्रिका के पाठकों की संख्या तेजी से बढ़ाई जाय। इसके बिना कार्य क्षेत्र के विस्तार का और कोई उपाय नहीं है स्पष्ट है कि यदि पत्रिका न होती तो पिछले दिनों इस दिशा में जो कार्य हुआ है, वह सम्भव ही न हो पाता। भावी योजना में सफलता का अति महत्वपूर्ण आधार यह है कि पत्रिका की सदस्य संख्या बढ़ाने के लिए अतिरिक्त प्रयत्न किया जाय और महिला परिवार की संख्या कई गुनी बढ़ा दी जाय।
आवश्यकता इस बात की है कि परिवार निर्माण अभियान को अग्रगामी बनाने के लिए कुछ प्रतिभाएं आगे आएं अपना अधिक समय इसमें लगायें। नये कार्यकर्त्ता उत्पन्न करना नितान्त आवश्यक है। यह अभियान इस रूप में सर्वथा नये रूप से आरम्भ हो रहा है ऐसी दशा में उसका नेतृत्व करने वाले कर्मवीर भी नये ही हो सकते हैं। जब अभियान ही पुराना नहीं तो कार्यकर्त्ता ही पुराने कैसे चल सकते हैं। महिला जागरण में रुचि लेने वाले नर-नारियों की संख्या अब तक जितनी बन सकी है उसकी व्यापकता को देखते हुए नगण्य ही कहा जा सकता है। अब इसमें तेजी से वृद्धि होनी चाहिए। महिला जागरण मिशन के प्रत्येक सदस्य को इसी का निमन्त्रण है।
मथुरा के आश्रम से हरिद्वार का केन्द्र प्रथक बनाने—शांतिकुंज का निर्माण करने का प्रधान उद्देश्य यह था कि नारी उत्थान की मुहिम संभालने के लिए सुनियोजित सरंजाम स्वतन्त्र रूप से खड़ा किया जाय। इस क्रम में देव कन्याओं का निर्माण—कन्या प्रशिक्षण—महिला सत्र—साहित्य प्रकाशन—संगठन एवं तदर्थ रचनात्मक प्रवृत्तियों के विस्तार जैसी अनेकों प्रवृत्तियों को अग्रगामी बनाया भी गया है। पिछले दिनों युग शिल्पियों के प्रशिक्षण की सामयिक व्यवस्था भी शान्तिकुंज में ही चलती रही। यह आपत्तिकालीन उपक्रम था। उसके लिए प्रथक साधन बन जाने से अब फिर मूल प्रयोजन पर अधिक ध्यान दे सकना सम्भव हो गया है। अतएव अब शांतिकुंज की प्रवृत्तियों में महिला जागरण प्रयोजन के लिए नये सिरे से नये—आधार सम्मिलित कर लिए गये हैं और अभियान को अधिक तत्परता से अग्रगामी बनाया जा रहा है। तीन-तीन महीने के महिला प्रशिक्षण सत्रों की नई व्यवस्था की गई है और परिवार सत्रों की अभिनव व्यवस्था बनाई गई है। महिला साहित्य के प्रकाशन की नई तैयारियां और महिला शाखाओं को नये सिरे से गठित किया गया है। इसके अतिरिक्त योजना के मूल स्वरूप में एक बड़ा प्रगतिशील चरण यह बढ़ाया गया है कि अभियान का मूल आधार महिला जागरण रखते हुए भी इसका क्षेत्र विस्तार परिवार निर्माण के रूप में विकसित कर दिया गया है। तथ्यतः परिवार और महिला पर्यायवाचक हैं। विवाह और प्रजनन में उसी की भूमिका प्रमुख है। अस्तु परिवार के सृजन ही नहीं निर्माण-निर्धारण में भी उसी का योगदान प्रधान रहता है। शास्त्रकार ने घर-परिवार की तात्विक व्याख्या विवेचना करते हुए कहा है—‘‘न गृहं गृहयित्या हु गृहणी गृहमुच्यते’’ अर्थात् इमारतें घर नहीं होती गृहणी की भूमिका ही सच्चे अर्थों में घर-परिवार है। समुन्नत परिवारों का निर्माण सुयोग्य नारी के बिना और कोई नहीं कर सकता, इसलिए महिला जागरण और परिवार निर्माण को अविच्छिन्न माना गया है। विस्तार क्रम में महिला प्रथम और परिवार द्वितीय ठहराता है। अभियान को इसी क्रम व्यवस्था के क्रम व्यवस्था के अनुरूप विस्तृत किया जा रहा है। परिवार निर्माण के अन्तर्गत महिला जागरण की प्रधानता रहेगी ही। यह शांतिकुंज की संचालन सम्बन्धी नीति का स्पष्टीकरण है।
शांतिकुंज में अगले दिनों चलने वाले एक-एक व तीन-तीन महीने के शिविरों में उपयुक्त महिलाओं को नारी जागरण की, परिवार निर्माण की कमान सम्हालने का प्रशिक्षण प्राप्त करने की उत्साह पूर्वक तैयारी करनी चाहिए। प्रगतिशील और सुयोग्य महिलायें यदि इस प्रशिक्षण में सम्मिलित होने का प्रयत्न करेंगी तो परिवार निर्माण आन्दोलन का अपना कार्य द्रुतगति से चलने लगेगा और अधिक प्रवीणता के साथ कार्यक्रम चलने लगेंगे यह निश्चित है।
सुशिक्षित महिलाएं, जिन पर पारिवारिक उत्तरदायित्व नहीं हैं, या बहुत कम हैं वे अपना अधिक समय इस कार्य में दे सकती हैं। महिला जागरण एवं परिवार निर्माण के लिए निमित्त उत्सर्ग भावना लेकर आगे आने वाली प्रतिभाओं की इन दिनों नितान्त आवश्यकता है। इसकी पूर्ति में संलग्न होकर जीवन को सार्थक बनाने की उमंग जिनके भी मन में उठे, मिशन उसका हार्दिक स्वागत करेगा।