Tuesday 09, December 2025
कृष्ण पक्ष पंचमी, पौष 2025
पंचांग 09/12/2025 • December 09, 2025
पौष कृष्ण पक्ष पंचमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), मार्गशीर्ष | पंचमी तिथि 02:29 PM तक उपरांत षष्ठी | नक्षत्र आश्लेषा 02:22 AM तक उपरांत मघा | इन्द्र योग 02:33 PM तक, उसके बाद वैधृति योग | करण तैतिल 02:29 PM तक, बाद गर 02:01 AM तक, बाद वणिज |
दिसम्बर 09 मंगलवार को राहु 02:41 PM से 03:57 PM तक है | 02:22 AM तक चन्द्रमा कर्क उपरांत सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:06 AM सूर्यास्त 5:13 PM चन्द्रोदय10:04 PM चन्द्रास्त11:37 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष पंचमी
- Dec 08 04:03 PM – Dec 09 02:29 PM - कृष्ण पक्ष षष्ठी
- Dec 09 02:29 PM – Dec 10 01:46 PM
नक्षत्र
- आश्लेषा - Dec 09 02:52 AM – Dec 10 02:22 AM
- मघा - Dec 10 02:22 AM – Dec 11 02:44 AM
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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
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नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! शांतिकुंज दर्शन 09 December 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
अमृतवाणी:- चिंतन और मनन कैसे हमारा जीवन बदलते हैं परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
भजन और पूजन की भांति,
स्वाध्याय और सत्संग की भांति,
दो और भी पूजा-परक, उपासना-परक आध्यात्मिक प्रयोग हैं जो आपको करने ही करने चाहिए।
एक का नाम है चिंतन और एक का नाम है मनन।
चिंतन और मनन के लिए किसी कर्मकांड की जरूरत नहीं है,
किसी पूजा-विधान की जरूरत नहीं है,
और किसी समय-निर्धारण की भी जरूरत नहीं है।
अच्छा तो यह हो कि आप सवेरे का समय ही इन सब कामों के लिए रखें।
आध्यात्म के लिए यह समय सबसे अच्छा प्रातःकाल का है।
दूसरे कामों के लिए भी प्रातःकाल का समय सबसे अच्छा है।
अगर चौबीस घंटों में कोई सर्वश्रेष्ठ समय है तो वह प्रातःकाल का है।
और उस प्रातःकाल के समय को आप जिस भी काम में लगा लेंगे,
उस काम में आपको बड़ी प्रसन्नता भी मिलेगी और सफलता भी।
इसीलिए चिंतन और मनन की एकांत साधना के लिए
अगर आप प्रातःकाल का समय निकाल पाएँ तो बहुत अच्छा।
कदाचित प्रातःकाल का समय निकालना आपके लिए संभव न हो,
तो फिर आप और भी समय निकाल लें —
सुविधा का समय —
जब कभी भी आप ये देख पाएँ कि 15 मिनट या आधा घंटा ऐसा मिलता है
जिसमें आप शांत चित्त रहें।
शांत चित्त होना जरूरी है चिंतन-मनन के लिए।
भाग-दौड़ में,
रास्ता चलते-चलते,
फिरते-फिरते —
जप तो कर लेंगे, पर चिंतन-मनन नहीं।
चिंतन-मनन के लिए ऐसा स्थान होना चाहिए
जहाँ बाहरी विक्षेप 0 हो जाते हों
और आपका मन एकाग्र और शांत हो जाता हो।
इसके लिए कोई मुनासिब एकांत स्थान मिल जाए तो और भी अच्छा।
ना मिले —
तो आप आँखें बंद करके भी कहीं बैठ सकते हैं।
जहाँ कोलाहल रहे —
तो आँखें बंद कर लें,
तो भी गुफा हो जाती है।
गुफा में चले जाना, शांत और एकांत के स्थान में चले जाना —
यह भी एक बात है।
लेकिन अगर वैसा संभव न हो,
तो आप आँखें बंद कर लें।
आँखें बंद करना भी एक काम है।
आँखें बंद करने से भी बहुत काम बन सकता है।
अगर आप आँखें बंद करके अपने-आप को एकांत में समाया हुआ देखें —
सब दुनिया बंद हो गई।
सारी दुनिया दिखनी बंद हो गई।
अब आपके भीतर का ही भीतर दिखता है।
बाहर न कुछ है, न कोई दिखता है।
इस तरीके से भी काम चल सकता है।
इस चिंतन और मनन के अभ्यास के लिए —
आप कभी बैठ जाएँ।
थोड़ी देर शांत चित्त से बैठ जाएँ।
यह समझें कि हम अकेले हैं।
कोई हमारा साथी और सहकारी नहीं।
साथी अपने स्थान पर,
सहकारी अपने स्थान पर,
कुटुंबी अपने स्थान पर,
पैसा अपने स्थान पर,
व्यापार अपने स्थान पर,
खेती-बाड़ी अपने स्थान पर —
इन सबको अपने-अपने स्थानों पर रहने दीजिए।
आप तो सिर्फ यह अनुभव कीजिए कि हम एकाकी और एकांत में बैठे हुए हैं।
परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
आयु तथा अनुभव में आपसे छोटे व्यक्ति भिन्न भिन्न प्रकार के व्यवहार की आकाँक्षा रखते हैं। कुछ व्यक्ति आयु में बड़े होकर ज्ञान में आपसे छोटे हो सकते हैं। कुछ आपसे आयु तथा ज्ञान दानों ही में छोटे रहते हैं। जो आपसे उम्र में छोटे हैं, उनसे आप प्रेम तथा सहानुभूति का व्यवहार कीजिए। वे आपको एक आदर्श के रूप में देखते हैं। आपके चरित्र, व्यवहार, रीति-रिवाज, दैनिक कार्यक्रम—सभी में निरन्तर आपका अनुकरण किया करते हैं। आप उनके सामने हर प्रकार से एक आदर्श बन रहे हैं। बोलचाल में उनसे पूर्ण शिष्टता का व्यवहार करें, उन्हें आयु ‘बाबू’ आदि से सम्बोधन करें। आपका यह मान प्रतिष्ठा पाकर वे चरित्र में आपके आदर्शों के अनुकूल उच्च स्तर पर आने का प्रयत्न करेंगे। आपके उत्तम भावों को कभी नष्ट न होने देंगे।
प्रेम तथा सहानुभूति का सद्व्यवहार पाकर बच्चों की गुप्त शक्तियाँ जाग्रत होती हैं। वे उसी उच्च स्तर पर आपके चरित्र का अनुकरण कर पहुँचने का उद्योग करते हैं। आपके शब्द, बातचीत प्यार प्रकट करें किन्तु अति को न पहुँच जावें। अति का व्यवहार बच्चों को बिगाड़ने वाला, उनकी आदतों को नष्ट करने वाला, होता है। बच्चों की अच्छी आदतों का विकास देर से होता है। बच्चों की जिद प्रायः ऊँचा उठने की भावना से प्रेरित रहती है। उचित बात को प्रोत्साहन दीजिए।
अनुचित बात की ताड़ना भी न भूलिए। व्यवहार कुशल व्यक्ति बालक का क्रमिक विकास देख कर प्रोत्साहन तथा ताड़ना का सदुपयोग करता है। उनकी प्रत्येक अच्छी बात पर प्रशंसा करना न भूलिये। आपकी प्रशंसा के दो मीठे शब्द पाने के लिए बच्चा कठिन परिश्रम करता है।
जहाँ स्त्रियाँ हों बड़ी सावधानी से रहिए। न ताली बजाइये, न चुटकियाँ, न असभ्यता सूचक सीटियाँ न वहाँ भँवरे की तरह मंडराइये, या घूमिये। चुपचाप बैठकर उनकी और न निहारिये। रेल या गाड़ी में बैठी हुई स्त्रियों की और भी घूर घूर कर देखना असभ्यता है। उनके सामने बैठकर अपने गुप्त अंग न खुजाओ, जाँघ पर से वस्त्र न हटाओ, छाती न खोल डालो, दिल्लगी मजाक न करो, बिना कारण बात न कर बैठो। पराई स्त्री में पूज्य मातृत्व भाव ही देखो, परायी स्त्री के पास अकेले में भी मिलने, बातचीत करने, या अनुचित सम्बन्ध बढ़ाने का प्रयत्न मत करो।
अपनी पत्नी से शिष्ट व्यवहार :- अपनी पत्नी से भी सभ्यता का व्यवहार रखिये। जो पुरुष कभी उन पर हाथ उठा बैठते हैं; अपनी समझ कर तिरस्कार करते हैं; वे उनकी बेइज्जती करते रहते हैं, वे अश्लील हैं। गुप्त मन में उनकी स्त्रियाँ उन्हें दुष्ट राक्षस-तुल्य समझती हैं। ऐसा प्रसंग ही मत आने दीजिए कि नारी को मारने पीटने का प्रसंग आये। उसे अपने आचार व्यवहार, प्रेम भरे सम्बोधन से पूर्ण संतुष्ट रखिए।
पत्नी की भावनाओं की रक्षा, उसके गुणों का आदर, उसके शील लज्जा, व्यवहार की प्रशंसा मधुर सम्बन्धों का मूल रहस्य है। पत्नी आपकी जीवन सहचरी है। अपने सद्व्यवहार से उसे तृप्त रखिए। पत्नी पति की प्राण है, पुरुष की अर्द्धांगिनी है, पत्नी से बढ़ कर दूसरा कोई मित्र नहीं, पत्नी तीनों फलों—धर्म, अर्थ, काम, को प्रदान करने वाली है और पत्नी संसार सागर को पार करने में सबसे बड़ी सहायिका है। फिर, किस मुँह से आप उसका तिरस्कार करते हैं?
उससे मधुर वाणी से बोलिए। अपने मुँह पर मधुर मुसकान हो; हृदय में सच्चा निष्कपट, प्रेम हो वचनों में नम्रता, मृदुता, सरलता, प्यार हो। स्मरण रखिये, स्त्रियों का “अहं” बड़ा तेज होता है; वे स्वाभिमानी, आत्माभिमानी होती हैं। तनिक सी अशिष्टता, या फूहड़पन से क्रुद्ध होकर आपसे सम्बन्ध में घृणित धारणाएं बना लेती हैं। उनकी छोटी मोटी माँगों या फरमायशों की अवहेलना या अवज्ञा न करें। इसमें बड़े सावधान रहें। जो स्त्री एक छोटे से उपहार से प्रसन्न होकर आपसी दासता और गुलामी करने को प्रस्तुत रहती है, उसके लिए सब कुछ करना चाहिए, अतः पत्नी का आदर करें, उसके सम्बंध में कभी कोई अपमान सूचक बातें मुँह से न निकालें और उनकी उपस्थिति में या अनुपस्थिति में उनकी हँसी न करें। “हेम दान ,गज दान ते, बड़ो दान सम्मान” याद रखें।
अखण्ड ज्योति 1952 जनवरी, पृष्ठ 17
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