Thursday 11, December 2025
कृष्ण पक्ष सप्तमी, पौष 2025
पंचांग 11/12/2025 • December 11, 2025
पौष कृष्ण पक्ष सप्तमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), मार्गशीर्ष | सप्तमी तिथि 01:57 PM तक उपरांत अष्टमी | नक्षत्र पूर्व फाल्गुनी 03:55 AM तक उपरांत उत्तर फाल्गुनी | विष्कुम्भ योग 11:39 AM तक, उसके बाद प्रीति योग | करण बव 01:57 PM तक, बाद बालव 02:21 AM तक, बाद कौलव |
दिसम्बर 11 गुरुवार को राहु 01:26 PM से 02:42 PM तक है | चन्द्रमा सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 7:07 AM सूर्यास्त 5:13 PM चन्द्रोदय 12:03 AM चन्द्रास्त 12:07 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - पौष
- अमांत - मार्गशीर्ष
तिथि
- कृष्ण पक्ष सप्तमी
- Dec 10 01:46 PM – Dec 11 01:57 PM - कृष्ण पक्ष अष्टमी
- Dec 11 01:57 PM – Dec 12 02:57 PM
नक्षत्र
- पूर्व फाल्गुनी - Dec 11 02:44 AM – Dec 12 03:55 AM
- उत्तर फाल्गुनी - Dec 12 03:55 AM – Dec 13 05:50 AM
मन लग जाए तो हर कार्य सरल। मातृशक्ति के अमृतवचन। Matrishakti ke Amritvachan
स्वस्थ रहें—मजबूत बनें भाग - 01
युग परिवर्तन का उद्घोष | Yug Parivartan Ka Udghosh | आद डॉ. चिन्मय पण्ड्या जी
दुःख का कारण पाप ही नहीं है Dukh Ka Karan Pap Hi Nahin Hai, Gahana Karmano Gati
IN आस्तिकता और सज्जनता की रीति नीति | Aastikata Aur Sajjanata Ki Riti Niti | Pt Shriram Sharma Acharya
अमृत सन्देश:- निरंतर प्रयास की ताकत। Nirantar Prayas ki Taqat
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन
आज का सद्चिंतन (बोर्ड)
आज का सद्वाक्य
नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन
!! शांतिकुंज दर्शन 11 December 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!
!! अखण्ड दीपक #Akhand_Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 11 December 2025 !!
!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 11 December 2025 !!
अमृतवाणी:- अपना सुधार कैसे करें परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
सुधार कैसे करें? सुधार में क्या बात करनी होती है? सुधार में रोकथाम करनी पड़ती है।
मसलन, आप चाय पीते हैं तो आप बंद कीजिए। नहीं साहब, अब हम नहीं पिएँगे। आप बीड़ी पीते हैं, सिगरेट पीते हैं, अपना कलेजा जलाते हैं, तो आप विचार कीजिए कि हम कलेजा नहीं जलाएँगे। यह आत्म-परिशोधन इसी का नाम है कि जो गलतियाँ हुई हैं, उनके विरुद्ध आप बगावत खड़ी कर दें। रोकथाम के लिए आमादा हो जाएँ। संकल्पबल से यह इस्तेमाल करें कि जो भूल होती रही हैं, अब हमसे न हो। हमारी तरफ़ से न हो — इसकी स्कीम बनाइए। गलतियाँ न होने देने का तरीका क्या है? क्या हम करेंगे?
अपने आप में जब कच्चाइयाँ आईं और जब आपको कच्चाइयाँ यह मजबूर करेंगी कि जो करते रहे वही ढर्रा चलने देना चाहिए — अपने साथ में पक्षपात और रियायत करने का जब आपका मन उठे, तब आप उसके मन के विरोधी हो जाइए। मन को नियंत्रण में रखिए। मन को तोड़िए। मन से लड़ाई कीजिए। मन भला आदमी है, कोई कहने से मानता है क्या? न! किसी का मन कहने से माना नहीं है।
मन नहीं लगता तो मन को लगाइए न। फिर मन नहीं लगता तो मन मेरा ऐसा भला आदमी है, ऐसे कामों में लग जाएगा — नहीं। मन के ऊपर कितने कुसंस्कार जमा हुए हैं। आप यह उम्मीद करते हैं कि आपका मन अच्छे काम में, ध्यान में, भजन में लगेगा? नहीं। उसको लगाना पड़ता है।
बैल को जिस तरीके से हल में चलाना सिखाना पड़ता है, घोड़े को जिस तरह जबरदस्ती तांगे में चलाना पड़ता है, जैसे सर्कस के जानवरों को मार-मार कर अभ्यास कराना पड़ता है — ठीक उसी तरीके से आपको अपने मन के बारे में भी यही करना पड़ेगा। मन को मारना पड़ेगा। मन को तोड़ना पड़ेगा। मन की प्रतिद्वंदिता करना पड़ेगी। मन की बगावत को દबाना पड़ेगा।
अगर मन फिर घूमकर उसी में आ जाए तो उसको सज़ा देने की भी तैयारी रखिए। इसे आप सज़ा भी देते रहिए। मन न माने तब न माने — तब आप खाने और सोने में किफायत कर डालिए। क्या किया? मन नहीं माना और जहाँ आप नहीं सोचना चाहते थे, जो नहीं करना चाहते थे, किया। तो आप एक समय का खाना बंद कर सकते हैं। पूरा खाना न बंद करना हो तो उसमें कटौती कर सकते हैं। चार रोटी खाते हैं और आपका मन गड़बड़ा फैला दिया है, तो आप दो रोटी खाइए — आधा बंद कर दीजिए।
कहने का अर्थ यह है — खाने और सोने के साथ में, सोने का सज़ा दीजिए। रोज आप 9:00 बजे सोते हैं, आज हम 11:00 बजे सोएँगे। दो घंटे हम इसलिए जागेंगे और टहलेंगे। जिस तरीके से मिलिट्री के सिपाही गलती करते हैं तो उनको दलील बोल दी जाती है, मिट्टी ढोते हैं — आप जागने की दलील बोल दीजिए। दो घंटे हम जागेंगे। 9:00 बजे सोते हैं, आज 9:00 बजे नहीं सोएँगे, 11:00 सोएँगे। बाहर टहलते रहेंगे, चुपचाप बैठे रहेंगे, रामायण पढ़ते रहेंगे।
बहरहाल, हम नींद से लड़ेंगे। क्यों? यह दंड है। अपने आप को दंड देने की पद्धति भी आवश्यक है। इसके बिना सुधार होना संभव नहीं है। दंड की प्रक्रिया भी जरूरी है। समझाने से ही कहाँ मान जाता है — खासतौर से दुराग्रही लोग, दुराग्रही जानवर, खासतौर से मन जैसा दुराग्रही। आप यह उम्मीद मत कीजिए कि आपको कह देने से, कर देने से और सुन लेने से, समझाने से बात बन जाएगी।
परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
राशन की दुकान है। खरीददारों की लम्बी भीड़ खड़ी है, “पहले मैं, पहले मैं” की चिल्लाहट सुन पड़ती है। धींगा मुश्ती चल रही है। लोग एक दूसरे के ऊपर गिरे पड़ते हैं, भीड़ में श्वास तक नहीं आता है। किसी की गठरी बिखरती है, तो किसी को कम तोल माल मिलता है। इसमें किसका दोष है? कम तोलना, वाक्-युद्ध होने तथा गालियों, गठरी बिखरने, घंटों बैठने का उत्तरदायित्व किस पर है? यह हमारे राष्ट्रीय चरित्र की कमजोरियाँ ही हैं। व्यवहार की छोटी-छोटी भूलें हमें नीचे लाती हैं। हमारे राष्ट्रीय चरित्र को कमजोर करती हैं। कोई भी राष्ट्र अपने बड़े आदमियों के चरित्र पर नहीं, अपनी साधारण जनता के व्यवहार में बड़प्पन पाता है आचरण सभ्य है, सहृदय है, सज्जनता पूर्ण है, तो वह राष्ट्र उन्नत है। भारत में राष्ट्रीय चरित्र की निम्न कमजोरियाँ विशेष रूप से हटाने योग्य हैं :—
समय सम्बन्धी भूलें :- समय की पाबन्दी को पालन न करना। स्कूल, कालेजों, ऑफिसों रेल के स्टेशनों, गाड़ियों का समय पर न पहुँचना। विद्यार्थियों को समय की पाबन्दी का जरा भी ध्यान नहीं रहता। क्लर्क ऑफिसों में देर से पहुँचते हैं, डाकिया देर से डाक बाँटता हैं। यहाँ तक कि सिनेमा का मनोरंजन देखने वाले दर्शक भी समय की परवाह नहीं करते चाहे आधी फिल्म निकल जाय।
वायदे का पालन न करना :- जिस समय पर आने का वायदा किया जाय, उस समय पर न पहुँचना बड़ी अशिष्टता है। या तो वायदा ही न किया जाय, अन्यथा चाहे कुछ हो नियत समय पर, नियत स्थान पर अवश्य पहुँचा जाय।
पुलिस का निर्देश न मानना :- जब सड़क पर पुलिस मैन आपको एक ओर जाने को कहता है, तो उस ओर न बचकर दूसरी ओर बचना, फुटपाथ पर छोड़कर बीच सड़क पर चलना, सड़क पर छिलके कूड़ा करकट, गन्दी वस्तुओं को एकत्रित करना, सड़क या नालियों पर बच्चों को टट्टी बिठाना, अपने घर का पाखाना गन्दा रखना अशिष्टताएँ हैं। पुलिस की आज्ञा का उल्लंघन करना नागरिकता के नियम की अवहेलना करना है।
मनोरंजन के स्थानों में शोर—स्कूल, कालेज, सिनेमा, या खेल के मैदान हमारी सामाजिक आदतों तथा चरित्रों के प्रतिबिम्ब हैं। इनमें हम अनुशासन और शिष्टाचार की अनेक भद्दी भूलें करते हैं। सबसे पहली बात शोर मचाना है। न जाने लोगों के पास कितनी बातें और विषय व्यर्थ की टीका-टिप्पणी करने के लिए आ जाते हैं। विद्यार्थी समुदाय कक्षाओं तक में इतना शोर करता है कि कुछ कहना कठिन हो जाता है। सिनेमा हाल की गन्दी गालियाँ, गन्दे गाने, अशिष्ट आचरण तो सर्वत्र आलोचना का विषय बन गये हैं।
पंक्तियों में खड़े न होना :- स्टेशनों पर टिकट घर की खिड़कियों पर जो धक्का मुक्की चलती है, उसे कौन नहीं जानता। सिनेमा घरों में लोगों के चोटें तक आती हैं, पर कोई पंक्ति में खड़ा नहीं होना चाहता यह नागरिकता का अभिशाप है।
स्त्रियों का मान अपमान :-सम्पूर्ण पाश्चात्य संसार में नारी जाति श्रद्धा और आदर की वस्तु समझी जाती है। प्रायः उन्हें उचित स्थान देने के लिए बस या रेल के डिब्बे में बैठे हुए व्यक्ति को उठकर अपनी सीट उन्हें दे देनी पड़ती है। इसे गर्व का विषय माना जाता है। हमारे यहाँ यह परवाह नहीं की जाती कि कौन स्त्री कितनी देर से कहाँ खड़ी है? क्या चाहती है? उसे किस वस्तु की आवश्यकता है? या लज्जावश वह क्या नहीं कह पाती है। न जाने कब हम यह प्रतिष्ठा सीखेंगे?
दूसरों की सीट पर अधिकार :- बस, या रेल के डिब्बे से आप पानी पीने या किसी जरूरी वस्तु को लेने के लिए उतरते हैं, जब वापस आते हैं; तो क्या देखते हैं कि कोई दूसरा व्यक्ति उस स्थान पर जमा बैठा है। इसे अपने कृत्य पर जरा भी ग्लानि विक्षोभ नहीं है। आप उससे अपने स्थान के विषय में इंगित करते हैं, वह कुछ नहीं सुनता, यह है हमारे राष्ट्रीय चरित्र की नीचाई, असत्यता, चोरी, हठधर्मी।
गुप्त अंगों को खुले रखना :- सभ्य समाज मैं बैठकर जाँघें खोलना, गले के बटन खोल कर नंगा गला दिखाना, या छाती उघाड़े रखना, गुप्त अंगों का स्पर्श करते रहना भारी असभ्यता है इसी प्रकार नेत्रों का संचालन, विभिन्न अभिनयों की भूषा, अनुकरण हमारी असभ्यता की छाया है।
गालियाँ हमारा कलंक :- बात बात में अनेक भारतीय तकियाकलाम के रूप में अशिष्ट शब्दों, अश्लील अंगों, गालियों का प्रयोग करते रहते हैं। अनेक गन्दे शब्द तो समाज में निरन्तर व्यवहार में आ रहे हैं जब कि जनता उनका अभिप्राय नहीं समझती। आवश्यकता इस बात की है कि माँ बाप बच्चों को इन गालियों से बचावें। कुसंगति में रहकर प्रायः यह गन्दी आदत लगती है।
स्वतन्त्रता प्राप्त हो जाने के पश्चात् हमारा यह कर्त्तव्य हो जाता है कि अपने भाई बहिनों को सुसंस्कृत और सभ्य बनावें, जिससे हमारी नागरिकता का स्तर उच्च हो सके। यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने आचरण का ध्यान रखे, तो आने वाली पीढ़ी सुसंस्कृत हो सकती है।
अखण्ड ज्योति 1952 जनवरी, पृष्ठ 22
| Newer Post | Home | Older Post |
