Monday 26, May 2025
कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, जेष्ठ 2025
पंचांग 26/05/2025 • May 26, 2025
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्दशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | चतुर्दशी तिथि 12:12 PM तक उपरांत अमावस्या | नक्षत्र भरणी 08:23 AM तक उपरांत कृत्तिका | शोभन योग 07:01 AM तक, उसके बाद अतिगण्ड योग 02:54 AM तक, उसके बाद सुकर्मा योग | करण शकुनि 12:12 PM तक, बाद चतुष्पद 10:21 PM तक, बाद नाग |
मई 26 सोमवार को राहु 07:05 AM से 08:48 AM तक है | 01:40 PM तक चन्द्रमा मेष उपरांत वृषभ राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:23 AM सूर्यास्त 7:05 PM चन्द्रोदय 4:09 AM चन्द्रास्त 6:34 PM अयनउ त्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - ज्येष्ठ
- अमांत - बैशाख
तिथि
- कृष्ण पक्ष चतुर्दशी
- May 25 03:51 PM – May 26 12:12 PM
- कृष्ण पक्ष अमावस्या
- May 26 12:12 PM – May 27 08:32 AM
नक्षत्र
- भरणी - May 25 11:12 AM – May 26 08:23 AM
- कृत्तिका - May 26 08:23 AM – May 27 05:32 AM

गुरु की विरासत और जिम्मेदारी | Guru Ki Virasat Aur Jimmedari

दिव्य तीर्थ गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज हरिद्वर | Divya Tirth Gayatri Tirth Shantikunj |
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 26 May 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: श्रद्धा से विज्ञान तक ब्रह्मविद्या के नए आयाम पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
अब हमको सारी दुनिया के हिसाब से विचार करना पड़ेगा. ब्रह्मविद्या को नए आधार, नए बेस हम देंगे. इसलिए नवीनतम, नवीनतम कह सकते हैं. आप प्राचीनतम कह सकते हैं, अपना प्राचीनतम और इसका स्वरूप नवीनतम, नवीनतम है.
पुराने समय में विद्या काफी थी. वेद में लिखा हुआ है और वेद कहते हैं और आप ऋषि हैं. भगवान ने कहा है, हर आदमी ने मान लिया — साहब, वेद की बात है, फिर और कौन क्या कह सकता है. श्रीकृष्ण भगवान ने कहा है, भला इससे आगे की भी क्या बात हो सकती है? रामचंद्र जी ने कहा — अरे भाई, यह तो खीर हो गई. रामचंद्र जी ने सही कहा है और क्या चाहिए अब तो?
अब तो बेटे, नया जमाना आ गया है. इस नए जमाने के हिसाब से हमारे दिमागों में यह शंका पैदा कर दी गई है कि रामचंद्र जी कोई हुए भी थे कि नहीं हुए थे.
गांधी जी ने अपनी 'विरासत के योग' की भूमिका में लिखा है — श्रीकृष्ण भगवान को हम ऐतिहासिक पुरुष नहीं मानते. इतिहास में श्रीकृष्ण कोई नहीं हुए हैं. श्रीकृष्ण एक कहानी थे, श्रीकृष्ण एक गप्प थे, श्रीकृष्ण कोई ऐसा पात्र था, कल्पना थी.
अब तो बेटे, यह बड़ी मुश्किल आ गई है. रोज हम अखबारों में पढ़ते हैं कि अयोध्या कहाँ थी और वह थी? अरे, कोई अयोध्या नहीं थी! अरे साहब, वह तो एक कहानी है, गप्प है.
अ तेरे कि... और महाभारत कभी नहीं हुआ था? अरे बेटे, यह क्या बात कह रहा है तू? अरे साहब, श्रीकृष्ण भगवान तो किसी पंडित की कल्पना थे. गीता तो किसी पंडित की लिखी हुई है. व्यास जी? अरे साहब, ये कैसे व्यास जी हुए हैं? कब व्यास जी हुए हैं?
ठीक से आप देखिए — कहाँ हैं, कौन व्यास हैं? व्यास एक किताब था, कोई ऋषि नहीं था. अरे बेटे, ऐसे ही मेरा दिमाग चक्कर में आ गया.
तो अगर हम 'फेथ' के आधार पर, 'श्रद्धा' के आधार पर, सारी दुनिया को, सारे मानव जाति को, सारे समाज का समाधान नहीं कर सकते — इसलिए ब्रह्मवर्चस, जिसको हम प्रारंभ करते हैं, इसके हमने नए आधार और नए ग्राउंड दिए हैं.
हमने सारी मनुष्य जाति को चुनौती दी है — आइए, हम आपका समाधान करेंगे. और आप क्या चाहते हैं?
"हम तो दलील चाहते हैं बेटे."
हम दलील देंगे आपको. तो आप क्या चाहते हैं? "प्रत्यक्ष चाहते हैं."
चलिए, हम प्रत्यक्ष ही बताएंगे. प्रत्यक्ष अब हमारा कमजोर नहीं है. हम भागने वाले नहीं हैं. हम विज्ञान में बहुत आगे हैं. कोई जमाना था जब हमारे हथियार बड़े कमजोर थे और हम भाग खड़े होते थे. कहते थे — हमारा आधार जो है, शिवाय श्रद्धा के और कुछ नहीं है.
अखण्ड-ज्योति से
मित्रो! सरकारी स्कूलों-कॉलेजों में आपने देखा होगा कि वहाँ बोर्डिंग फीस अलग देनी पड़ती है। पढ़ाई की फीस अलग देनी पड़ती है, लाइब्रेरी फीस अलग व ट्यूशन फीस अलग। लेकिन हमने यह हिम्मत की है कि कानी कौड़ी की भी फीस किसी के ऊपर लागू नहीं की जाएगी। यही विशेषता नालन्दा-तक्षशिला विश्वविद्यालय में भी थी। वही हमने भी की है, लेकिन बुलाया केवल उन्हीं को है, जो समर्थ हों, शरीर या मन से बूढ़े न हो गए हों, जिनमें क्षमता हो, जो पढ़े-लिखे हों।
इस तरह के लोग आयेंगे तो ठीक है, नहीं तो अपनी नानी को, दादी को, मौसी को, पड़ोसन को लेकर के यहाँ कबाड़खाना इकट्ठा कर देंगे तो यह विश्वविद्यालय नहीं रहेगा? फिर तो यह धर्मशाला हो जाएगी साक्षात् नरक हो जाएगा। इसे नरक मत बनाइए आप। जो लायक हों वे यहाँ की ट्रेनिंग प्राप्त करने आएँ और हमारे प्राण, हमारे जीवट से लाभ उठाना चाहें, चाहे हम रहें या न रहें, वे लोग आएँ।
प्रतिभावानों के लिए निमन्त्रण है, बुड्ढों, अशिक्षितों, उजड्डों के लिए निमन्त्रण नहीं है। आप कबाड़खाने को लेकर आएँगे तो हम आपको दूसरे तरीके से रखेंगे, दूसरे दिन विदा कर देंगे। आप हमारी व्यवस्था बिगाड़ेंगे? हमने न जाने क्या-क्या विचार किया है और आप अपनी सुविधा के लिए धर्मशाला का लाभ उठाना चाहते हैं? नहीं, यह धर्मशाला नहीं है। यह कॉलेज है, विश्वविद्यालय है। कायाकल्प के लिए बनी एक अकादमी है। हमारे सतयुगी सपनों का महल है। आपमें से जिन्हें आदमी बनना हो, इस विद्यालय की संजीवनी विद्या सीखने के लिए आमन्त्रण है। कैसे जीवन को ऊँचा उठाया जाता है, समाज की समस्याओं का कैसे हल किया जाता है? यह आप लोगों को सिखाया जाएगा। दावत है आप सबको। आप सबमें जो विचारशील हों, भावनाशील हों, हमारे इस कार्यक्रम का लाभ उठाएँ। अपने को धन्य बनाएँ और हमको भी।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
वाङमय-नं-६८-पेज-१.४१
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