Sunday 27, July 2025
शुक्ल पक्ष तृतीया, श्रवण 2025
पंचांग 27/07/2025 • July 27, 2025
श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), श्रावण | तृतीया तिथि 10:42 PM तक उपरांत चतुर्थी | नक्षत्र मघा 04:23 PM तक उपरांत पूर्व फाल्गुनी | वरीयान योग 03:13 AM तक, उसके बाद परिघ योग | करण तैतिल 10:37 AM तक, बाद गर 10:42 PM तक, बाद वणिज |
जुलाई 27 रविवार को राहु 05:28 PM से 07:09 PM तक है | चन्द्रमा सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:38 AM सूर्यास्त 7:09 PM चन्द्रोदय 7:51 AM चन्द्रास्त9:02 PMअयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु वर्षा
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - श्रावण
- अमांत - श्रावण
तिथि
- शुक्ल पक्ष तृतीया
- Jul 26 10:42 PM – Jul 27 10:42 PM
- शुक्ल पक्ष चतुर्थी
- Jul 27 10:42 PM – Jul 28 11:24 PM
नक्षत्र
- मघा - Jul 26 03:52 PM – Jul 27 04:23 PM
- पूर्व फाल्गुनी - Jul 27 04:23 PM – Jul 28 05:35 PM

दाना पानी | Dana Pani | Life Changing Motivational Story, Rishi Chintan Youtube Channel

धर्म एक महासागर | Dharm Ek Mahasagar

सतोगुणी भोजन से ही मन की सात्विकता रहती है। श्रीराम शर्मा आचार्य जी

डॉ. चिन्मय पंड्या एवं श्रीमती शेफाली पंड्या का अमेरिका आगमन

वेशभूषा की शालीनता भाग - 01 | Veshbhusa Ki Shalinta Part 01| Safal Jivan Ki Disha

आत्म निर्माण सबसे बड़ा पुण्य-परमार्थ है | Aatm Nirman Sabse Bada Punya Parmarth |
यदि तुम्हें इस प्रकार प्रयत्न करने में प्रथम दिन सफलता न मिले तो हताश होकर छोड़ मत दो, प्रयत्न करते रहो। बहाना मत करो कि इतनी बारीकी से व्यवहार हमसे नहीं होता, कहाँ तक किस किसके साथ हरेक शब्द का खयाल रखें। एक एक व्यक्ति के सुधार से दुनिया धीरे धीरे सुधर जायगी, जल्दी नहीं होता। संसार का विकास क्रम सूक्ष्म गति से हो रहा है।
किसी रोज सन्ध्या समय विश्लेषण करने में जब मालूम हो जाय कि आज दिन भर हमने किसी की निन्दा नहीं की, कोई हीन बात नहीं बोले, किसी का तिरस्कार नहीं किया, चुगली नहीं की, तो समझ लो कि उस दिन तुम्हारा आध्यात्मिक विकास का बीजारोपण हो गया। शब्दों पर अधिकार रखकर अब तुम आगे उन्नति कर सकोगे।
यदि तुम किसी व्यक्ति द्वारा अन्य व्यक्ति की आलोचना, चुगली या तिरस्कार सुनो तो उस पर ध्यान मत दो, उसे मत मानो। वह निन्दक अपनी ही आत्महीनता का परिचय दे रहा है- उसमें स्वयं कितनी बुराइयाँ हैं उसे वह नहीं देखता और नहीं दूर करता। वह दूसरों के छिद्र देखता है- उसकी बात सुनकर उससे कहो, “मुझे आलोचना या चुगली मत सुनाओ। इससे तुम्हें या मुझे क्या लाभ ? मुझे यह बताओ कि उस व्यक्ति में अच्छे गुण क्या हैं, और वे अच्छे गुण तुम में हैं या नहीं ? तथा उसकी अपेक्षा तुम कितना अच्छा काम कर सकते हो यह सिद्ध करो।” तुम्हारी ऐसी बातें सुनकर उसकी दुबारा चुगली करने की हिम्मत नहीं होगी।
तुम भी यदि चुगली या वार्ता सुनो, दूसरों की चर्चा सुनो तो उसे दूसरों को मत सुनाओ- इससे व्यर्थ बकवाद बढ़ता है, व्यर्थ के विचार फैलते हैं, जूठा खाकर उसे उगलना कोई अच्छी बात नहीं है- यह तो कुत्तों से भी बुरा काम है। उस बात को छोड़ दो विचार करो कि क्या वह व्यक्ति सत्य कह रहा है? क्या ऐसा कह देना आवश्यक है? यदि मैं यह बात अमुक व्यक्ति को कह दूँ तो इसका क्या नतीजा होगा? इससे किसको लाभ होगा और न कह देने से किसको हानि? इन बातों में प्रेम कितना है? घृणा कितनी है? इत्यादि बातों पर विचार कर लो तब कोई सुनी हुई बात अपनी ओठों पर से दूसरे के कान में डालो फिर इसका क्या परिणाम होता है- तुम्हें पश्चाताप न होगा और दोष नहीं लगेगा, गवाही नहीं देनी होगी।
क्रमशः जारी
अखण्ड ज्योति -अगस्त 1948 पृष्ठ 24

आप हैं गुरु रूप भगवन् आप ही दिनमान हैं, Aap Hai Guru Roop Bhagwan Aap Hi Dinmaan Hai | Rishi Chintan

अमृतवाणी:- जीवन को सार्थक कैसे बनाएं ? | Jivan Ko Sarthak kaise Banaye पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन









आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




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अमृतवाणी: आश्रम में रहने का उद्देश्य पं श्रीराम शर्मा आचार्य
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
रामचंद्र जी से मुलाकात गोस्वामी तुलसीदास जी से कराने के लिए हनुमान जी से जरूरत पड़ी, और हनुमान जी के पहले भूत की जरूरत पड़ी। तो फिर आप तभी तो ऐसे मिलेंगे हमसे। क्या है? हमें कौन मिलने देगा गांधी जी से?
अच्छा, तो ठीक है, हम आपका इंतजाम किए देते हैं। कल आप गांधी जी के साथ-साथ टहलने के लिए चले जाएंगे। गांधी जी टहलने के लिए जाते थे, तो लोगों को अपने साथ ले जाते, जो-जो आश्रमवासी थे।
मेरा नंबर बाँध दिया गया। मैं फाटक पर खड़ा हो गया। पाँच बजे, ठीक गांधी जी टहलने के लिए चले। उन्होंने इशारा किया और मैं चलने लगा पीछे-पीछे।
थोड़ी दूर आगे जाकर के वो मेरी तरफ़ मुड़े और मेरी तरफ़ देखा — "तुम ही वो लड़के हो जो गांधी जी बनने आए थे, योगी महात्मा बनने आए थे?"
हमने कहा — "साहब, मैं ही आया था।"
"अच्छा, तुम ही आए थे, तो किसी ने तुमको महात्मा गांधी बनाया कि नहीं बनाया?"
बच्चा था, इसलिए वो भी मज़ाक करने लगे।
"नहीं साहब, किसी ने नहीं बनाया।"
"क्या-क्या सिखाया?"
हमने कहा कि — "साहब, सबसे पहले टट्टी साफ करना सिखाया, पेशाब की जगह झाड़ू लगाना सिखाया। यह सब सिखाया, और हमको कुछ भी नहीं सिखाया। कुछ भी नहीं सिखाया।"
"अच्छा, तो फिर हम बताते हैं — जो काम तुम सीखने को आए थे, वही काम सिखाने के लिए हमने यह आश्रम बनाया है। और जो कुछ भी हम कराते हैं, वो सब उसी का योगाभ्यास है जो तुम सीखना चाहते थे।"
"क्या मतलब?" उन्होंने मुझे एडिशन नाम के वैज्ञानिक की कथा सुनाई, जिसकी माँ यह चाहती थी कि लड़का हमारा वैज्ञानिक बन जाए। लेकिन वो इतनी ग़रीब थी कि अपने पैसे खर्च नहीं कर सकती थी। वो चाहती थी कोई नौकर रख ले, वैज्ञानिक उसको बना दे।
एक वैज्ञानिकों के पास गई, पर किसी ने मंज़ूर न किया। एक वैज्ञानिक के पास गई, और उसने यह कहा — "हम पहले यह देख लें, तुम्हारे लड़के में वो गट्स हैं कि नहीं। अगर होंगे, तो हम रख भी लेंगे और वैज्ञानिक ही बना देंगे।"
उन्होंने उनके हाथ में झाड़ू थमा दी। गांधी जी ने मुझे यह क़िस्सा सुनाया। झाड़ू थमा दी और लड़के से कहा — "तुम झाड़ू लगाकर के लाओ।"
वैज्ञानिक एक कोने पर बैठा देखता रहा।
लड़के ने ऐसी झाड़ू लगाई — कमरे की कोनों में जहाँ मकड़ी के जाले थे, वो सब साफ़ कर डाले। और जहाँ मेज के जो गुटके होते हैं, उनके ऊपर जो धूल जम गई थी, उसको बारीकी से साफ़ कर डाला। हर चीज़ को समझदारी से, सही तरीके से ठीक कर डाला कि बस।
झाड़ू जो थी, कमरा झाड़ू लगता था रोज, उस दिन का... उस दिन का कमरे में झाड़ू लगने से गज़ब दिखाई पड़ने लगा। ऐसा दिखाई पड़ने लगा। वैज्ञानिक ने कहा — "ठीक है, ठीक है। अब बस, इसके अंदर गट्स हैं और इसको हम ज़रूर वैज्ञानिक बना देंगे।"
यह विधि मैंने सीखी कि जो भी मुझे काम करना हो, उसी तरीके से करना चाहिए।
यह मेरे स्वभाव में हेरफेर, यह मेरे स्वभाव की नवीनता — यह मैंने गांधी जी के आश्रम में जाकर के सीखी।
अभी तक विद्यमान है। और बेटे, उस समय तो मैं गांधी नहीं हुआ, इस समय जो मेरी गांधी बनने की इच्छा थी, वो सौ फीसदी पूरी हुई।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
मन की शरीर पर क्रिया एवं शरीर की मन पर प्रतिक्रिया निरंतर होती रहती है। जैसा आप का मन, वैसा ही आप का शरीर, जैसा शरीर, वैसा ही मन का स्वरूप। यदि शरीर में किसी प्रकार की पीड़ा है, तो मन भी क्लांत, अस्वस्थ एवं पीड़ित हो जाता है। वेदांत में यह स्पष्ट किया गया है कि समस्त संसार की गतिविधि का निर्माण मन द्वारा ही हुआ है।
जैसा हमारी भावनाएँ, इच्छाएँ, वासनाएँ अथवा कल्पनाएँ हैं, तदनुसार ही हमें शरीर और अंग-प्रत्यंग की बनावट प्राप्त हुई है। मनुष्य के माता-पिता, परिस्थितियाँ, जन्मस्थान, आयु, स्वास्थ्य, विशेष प्रकार के भिन्न शरीर प्राप्त करना, स्वयं हमारे व्यक्तिगत मानसिक संस्कारों पर निर्भर है। हमारा बाह्य जगत हमारे प्रसुप्त संस्कारों की प्रतिच्छाया मात्र है।
संगम अपने आप में न निकृष्ट है, न उत्तम। सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन के पश्चात् हमें प्रतीत होता है कि यह वैसा ही है, जैसी प्रतिकृति हमारे अंतर्जगत में विद्यमान है। हमारी दुनियाँ वैसी ही है, जैसा हमारा अंत:करण का स्वरूप। भलाई, बुराई, उत्तमता, निकृष्टता, भव्यता, कुरूपता, मन की ऊँची नीची भूमिकाएँ मात्र हैं। हमारे अपने हाथ में है कि हम चाहे ईर्ष्या, द्वेष, स्वार्थ की भट्टी में भस्म होते रहें और अपना जीवन शूलमय बनाएँ अथवा सद्गुणों का समावेश कर अपने अंत:करण में शांति स्थापित करें।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति-फरवरी 1946 पृष्ठ 4
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