Sunday 25, May 2025
कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, जेष्ठ 2025
पंचांग 25/05/2025 • May 25, 2025
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष त्रयोदशी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | त्रयोदशी तिथि 03:51 PM तक उपरांत चतुर्दशी | नक्षत्र अश्विनी 11:12 AM तक उपरांत भरणी | सौभाग्य योग 11:06 AM तक, उसके बाद शोभन योग | करण गर 05:38 AM तक, बाद वणिज 03:51 PM तक, बाद विष्टि 02:02 AM तक, बाद शकुनि |
मई 25 रविवार को राहु 05:22 PM से 07:05 PM तक है | चन्द्रमा मेष राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:23 AM सूर्यास्त 7:05 PM चन्द्रोदय 3:28 AM चन्द्रास्त 5:19 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - ज्येष्ठ
- अमांत - बैशाख
तिथि
- कृष्ण पक्ष त्रयोदशी
- May 24 07:20 PM – May 25 03:51 PM
- कृष्ण पक्ष चतुर्दशी
- May 25 03:51 PM – May 26 12:12 PM
नक्षत्र
- अश्विनी - May 24 01:48 PM – May 25 11:12 AM
- भरणी - May 25 11:12 AM – May 26 08:23 AM

तपस्वी परंपरा की पुनर्प्रतिष्ठा | Tapsavi Parampara Ki Punarpratistha

आत्मिक प्रगति का अवलम्बन सेवा साधना, Atmika Pragati Ka Avalambana Seva | श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन












आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! परम पूज्य गुरुदेव का कक्ष 25 May 2025 गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! देवात्मा हिमालय मंदिर Devatma Himalaya Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 25 May 2025 !!

!! शांतिकुंज दर्शन 25 May 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

!! गायत्री माता मंदिर Gayatri Mata Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 25 May 2025

!! अखण्ड दीपक Akhand_Deepak (1926 से प्रज्ज्वलित) चरण पादुका गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 25 May 2025 !!

!! सप्त ऋषि मंदिर गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 25 May 2025 !!

!! महाकाल महादेव मंदिर Mahadev_Mandir गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार 25 May 2025

!! प्रज्ञेश्वर महादेव मंदिर Prageshwar Mahadev 25 May 2025 !!

अमृतवाणी: हम हर इन्शान को ब्रह्मविद्या सिखायेंगे पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
नए युग के बारे में जो कल्पना हमने की है, उसमें हमने एक कल्पना यह की है कि मनुष्यों के शरीर को तो हम बदल नहीं पाएंगे. ज़मीन को भी नए तरह का हम नहीं बना पाएंगे. नए युग में हम गेहूं भी दूसरे तरीके से नहीं बना सकते और कपड़े भी कपास के ही बनेंगे. लोग चारपाई पर पड़े सोया करेंगे और दाहिने हाथ से रोटी खाया करेंगे. रात में ही सोएंगे, दिन में ही जगेंगे.
तो युग क्या बदल जाएगा? युग का क्या परिवर्तन हुआ बेटे? युग का परिवर्तन एक ही हुआ कि आदमी को प्रेरणा देने वाली, प्रकाश देने वाली, दिशा देने वाली जो मान्यताएं और आस्थाएं और निष्ठाएं हैं — वह मैं ब्रह्मविद्या के आधार पर कहता हूँ.
फिर मैं कहूं, भौतिकवाद के आधार पर नहीं. भौतिकवाद को मैं गाली देता हूँ? नहीं बेटे, भौतिकवाद को गाली मैं कैसे दे सकता हूँ?
मैं भौतिकवाद के बारे में इसलिए नाराज़गी प्रकट करता हूँ कि आदमी अपने आप को मिट्टी समझता है और मिट्टी में ही खुशी तलाश करता है. और मिट्टी को ही आसमान समझता है, मिट्टी को ही भगवान समझता है और मिट्टी में ही खुशी तलाश करता है. मैं इसे भौतिकवाद कहता हूँ — यह गलत बात है.
शरीर हमारा मिट्टी का है, इसको मिट्टी चाहिए. अनाज हमको चाहिए, नहीं तो हम ज़िंदा नहीं रह सकेंगे. ठीक है, जहाँ तक उपयोगिता का ताल्लुक है, हमको उसकी बात कम नहीं है.
पर अपने आप को हम मिट्टी मान लें, मिट्टी में ही मिलें, मिट्टी के ही लिए जिएं, मिट्टी को ही खाएं, मिट्टी ही हमारे लिए कल्पना हो — यह बेटे बुरी बात है.
इस तरीके से हम अज्ञान में से ज्ञान की तरफ निकलने के लिए जो कदम बढ़ाते हैं, उसका नाम ब्रह्मविद्या है.
हमारे शिक्षण का तरीका, नया वाला शिक्षण का तरीका, जिसको हम एक नई हिम्मत को लेकर के और नया जोश और नया जीवन लेकर के चले हैं — कि हम ब्रह्मविद्या मनुष्य को सिखाएंगे.
हिंदू को? हाँ बेटे, हिंदू को भी सिखाएंगे. मुसलमान को भी सिखाएंगे. हिंदुस्तान को सिखाएंगे? हाँ बेटे, हिंदुस्तान को भी सिखाएंगे और दूसरे मुल्कों को भी सिखाएंगे.
क्योंकि हमारे लिए इंसान एक है. इंसान एक है. हम हर इंसान को ब्रह्मविद्या सिखाएंगे.
तो महाराज जी, किस तरीके से सिखाएंगे? बेस क्या होगा? बेस बेटा हमारा विज्ञान होगा.
नया युग जो आ रहा है, तर्क का युग आ रहा है. विचारणा का युग आ रहा है. दलील का युग आ रहा है. अब हम किसी को श्रद्धा के आधार पर प्रभावित कर सकें — ऐसा हमको दिखाई नहीं पड़ता.
आप मुसलमान हैं, अपनी जगह पर रहिए. क्या मानते हैं साहब? मोहम्मद साहब बहुत बड़े थे. आप कौन हैं साहब? हम हिंदू हैं. आप क्या मानते हैं? श्रीकृष्ण भगवान हैं. श्रीकृष्ण भगवान ने...? मुसलमान ने कहा, क्यों साहब, क्या ख्याल है आपका? श्रीकृष्ण भगवान तो गलत थे. आप क्या कहते हैं? वह मोहम्मद साहब गलत थे.
कुरान गलत है कि गीता गलत है? नहीं साहब, कुरान गलत है. आप बताइए — गीता गलत है? बेटे, मैं क्या कह सकता हूँ?
इस लड़ाई का कैसे अंत हो सकता है? इस लड़ाई का कोई अंत नहीं होगा.
देश अगर नए युग में आ जाएगा तो हम और आप विवाद कर सकते हैं और बहस कर सकते हैं, और दलील दे सकते हैं कि बताइए — कुरान के कौन से हिस्से अच्छे हैं और गीता के कौन से अच्छे हैं.
हम बताएंगे — देखिए, यह आपकी बात कुरान में नहीं है, यह हमारी गीता में है. आप बताइए — देखिए साहब, यह आपकी गीता में नहीं है, कुरान में है.
ठीक बात है, यह भी मजेदार और वह भी मजेदार है. यह गीता की बात तो गलत मालूम पड़ती है? हाँ, संभव है. ग़लतियाँ पुराने ज़माने की जैसी रही होंगी. कुरान में भी गलतियाँ रही होंगी. बेटे, हम सार बात ले लेंगे.
यह कैसे हो सकता है? यह केवल विचारणा से हो सकता है, विवेक से हो सकता है, ज्ञान से हो सकता है.
अखण्ड-ज्योति से
व्यक्ति लगता तो अपने में स्वतन्त्र है, पर वस्तुतः वह समष्टि का एक अवयव मात्र है। व्यक्ति के स्तर और कर्म से समूचा समाज प्रभावित होता है। इसी प्रकार समाज का वातावरण हर व्यक्ति को प्रभावित होता है इसी प्रकार समाज का वातावरण हर व्यक्ति को प्रभावित करके रहता है। दानों का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध है। दोनों का उत्थान और पतन एक दूसरे के सहयोग पर निर्भर रहता है।
व्यक्ति अपनी सुविधा और प्रगति की बात सोचे-इसमें हर्ज नहीं, पर जब वह समाज गत उर्त्कष एवं सामूहिक नियम अनुशासन का उल्लंन करता हे तो अनपे और समाज के लिए दूहरी विपत्ति खड़ी करने का कारण बनता है।
प्रकृति एक नियम है। विपत्ति एक अनुशासन है। इनमें व्यतिक्रम की छूट किसी को भी नहीं है। उच्छ्रंखलता यह असह्स हैं उद्धत आचरण अपनाने वाले आँतक उत्पन्न करते और अपरहण का प्रयास तो कई करते है, पर उसमें सफल नहीं होतें। उद्दण्डी की सफलता फुलझड़ी की तरह है, जो तनिक-सा कौतुत अपना अस्तितव गवाँ बैठने के मुल्य पर ही दिखा पाती है।
व्यक्ति का परस्पर सम्बन्ध है-शरीरगत कोश घटकों की तरह एक ही उद्दण्डतर सभी को कष्ट देती है, उसके लिए सबका प्रयत्न होना चाहिए कि किसी को एक को स्वेच्छाचार न बरतने दें। समूह जब अने इस उत्तदायित्व की उपेक्षा करता है और उच्छ्रंखलों का नियन्त्रण नहीं करता है तो प्रकृति उस समूचे क्लीव समाज को प्रताड़ना करती है। वैसी जैसी कि इन दिनों विपत्तियों, समस्याओं, विग्रहों एवं विभीषिकाओं के रुप में सर्वत्र सहन करनी पड़ रही है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, जनवरी 1980 पृष्ठ 01
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