Monday 10, November 2025
कृष्ण पक्ष षष्ठी, मार्गशीर्ष 2025
पंचांग 10/11/2025 • November 10, 2025
मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष षष्ठी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), कार्तिक | षष्ठी तिथि 12:08 AM तक उपरांत सप्तमी | नक्षत्र पुनर्वसु 06:48 PM तक उपरांत पुष्य | साध्य योग 12:04 PM तक, उसके बाद शुभ योग | करण गर 12:56 PM तक, बाद वणिज 12:08 AM तक, बाद विष्टि |
नवम्बर 10 सोमवार को राहु 08:02 AM से 09:21 AM तक है | 01:03 PM तक चन्द्रमा मिथुन उपरांत कर्क राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 6:42 AM सूर्यास्त 5:19 PM चन्द्रोदय10:08 PM चन्द्रास्त12:30 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु हेमंत
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - मार्गशीर्ष
- अमांत - कार्तिक
तिथि
- कृष्ण पक्ष षष्ठी
- Nov 10 01:55 AM – Nov 11 12:08 AM - कृष्ण पक्ष सप्तमी
- Nov 11 12:08 AM – Nov 11 11:09 PM
नक्षत्र
- पुनर्वसु - Nov 09 08:04 PM – Nov 10 06:48 PM
- पुष्य - Nov 10 06:48 PM – Nov 11 06:18 PM
एक ही आधार गुरुवर, एक ही विश्वास है
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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आप लोगों के दरवाज़े-दरवाज़े पर स्वामी प्रज्ञानंद की मारफ़त हम बार-बार आपकी सेवा में हाज़िर होते हैं, और आपको जगाते हैं, और आपसे अनुरोध करते हैं, और आपको झकझोरते हैं, और आपको उठाकर खड़ा करते हैं, और आपको कभी नाराज़ करते हैं, कभी आपकी मिन्नतें करते हैं कि आप इस समय के मौके को समझिए और समय पर अपनी ज़िम्मेदारियाँ और फ़र्ज़ पूरा करने के लिए जी-जान से कोशिश कीजिए।
फिर आपको क्या करना चाहिए? करने को तो ढेरों के ढेरों काम थे जो आपको करने ही करने थे। एक बार हमने प्रवासी भारतीयों के लिए कई किताबें लिखकर छाप कर भेजी थीं, आपने शायद पढ़ी होंगी। उनमें कितनी बहुत सारी बातें बताई हैं। वह सारी की सारी बातें इसी मक़सद से लिखी गई थीं कि आपको स्वयं में अपने आपको शानदार बनाना है, और जहाँ जिस मुल्क में रहते हैं, भारतीयों को, भारतीय संस्कृति के अनुयायियों को एक संगठित इकाई के रूप में रहना है।
न केवल संगठित इकाई के रूप में रहना है, बल्कि भारतीय संस्कृति की नुमाइंदगी करते हुए वहाँ उस मुल्क में जो भी लोग रहते हैं, उन सबको वह संदेश देना है, जिसको इंसानियत का संदेश कह सकते हैं, भारत माता का संदेश कह सकते हैं, भारतीय संस्कृति का संदेश कह सकते हैं, वसुधैव कुटुंबकम की परंपरा का संदेश कह सकते हैं। वह सब काम आपको पूरा करना चाहिए।
कैसे करेंगे? क्या काम करना चाहिए? कल हमने कहा ना, हमने बहुत-सी बातें बताई थीं। पर इस समय, फ़िलहाल तुरंत जिसको बिना एक समय गँवाए आपको करना है, वह तीन काम ऐसे हैं जिनको आप अभी-अभी कीजिए। यह तुरंत कीजिए, एक दिन मत गँवाइए।
क्या काम करने हैं? एक काम हम सब लोगों की आपसे बहुत-बहुत प्रार्थना है कि आप एक बार भारत मूल के निवासियों का जितना बड़ा सम्मेलन कर सकते हों, अपने-अपने क्षेत्र में ज़रूर करें। युग निर्माण सम्मेलन उसका नाम रखें, गायत्री परिवार सम्मेलन उसका नाम रखें, प्रज्ञा अभियान उसका नाम रखें। नाम से कोई बहस नहीं है, बस आपको वहाँ के भारत मूल के निवासियों का एक सम्मेलन बनाना चाहिए।
आपके मुल्क में सारे के सारे मुल्क का एक सम्मेलन बनने में कोई मुश्किल मालूम पड़ती हो, तो आप खंडों में कर सकते हैं। लेकिन करना ज़रूर चाहिए। एक बार सबको बुलाइए, और हमारी प्रार्थना है, इस टेप के माध्यम से आपको और प्रत्येक भारत मूल के निवासी के सामने प्रस्तुत की जा रही हैं, ज़रूर सुनाइए, ज़रूर सुनाइए।
एक सम्मेलन कीजिए और इस बात की, इस बात की ज़रूरत, इस बात की हिम्मत, उत्साह की उमंग पैदा कीजिए कि हम भारत मूल के लोग न केवल मिलजुलकर रहेंगे, न केवल एक-दूसरे की सहायता करेंगे, न केवल अपनी भारतीय प्राचीन परंपराओं को अपने व्यक्तिगत जीवन में और अपने परिवार की पीढ़ियों में समाविष्ट रखेंगे, बल्कि साथ-साथ यह भी करेंगे कि जहाँ भी हम रहें, उस-उस मुल्क में भारतीय धर्म और संस्कृति की नवयुग की परंपराओं की जानकारी लोगों को दें। इस कार्य के लिए एक सम्मेलन होना बहुत ज़रूरी है।
परम पूज्य गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
जिसके अधिक मित्र हैं, अधिक सहयोगी और स्वजन हैं, उसके प्रारब्ध भोग भी इसके हो जाते हैं और सुनिश्चित भवितव्यता का जो कष्ट होना चाहिए, उससे कहीं कम होता है। कल्पना कीजिए कि दो व्यक्तियों को प्रारब्ध वश एक साथ रोग होता है, इनमें से एक को सब घृणा और द्वेष करते हैं। बीमारी की हालत में उसे कोई सहायता नहीं मिलती। यह भूखा, प्यासा, मल मूत्र से सना हुआ, सर्दी-गर्मी के दुःख सहता हुआ, बिना दवादारु अकेला पड़ा रहता है। ऐसी दशा में उसका शारीरिक और मानसिक कष्ट अनेक गुना बढ़ जायेगा। प्रारब्धवश उसे एक सप्ताह रोगी रहना था तो एक सप्ताह में ही उसे रौरव नरक के दर्शन हो जाते हैं। इसके विपरीत दूसरा वह रोगी, जिसे प्रारब्धवश इतना ही रोगी रहना था, अपने स्वजन सहयोगियों से घिरा हुआ है।
उसे उचित परिचर्या, चिकित्सा, सेवा, मनोरंजन आदि मिलता रहता है। उसका दुख हँसते बोलते बातों ही बातों में कट जाता है। दूसरों की सेवा और सहानुभूति में अपने कष्टों को भूला रहता हैं। अब इन दोनों रोगियों के एक समान प्रारब्ध की तुलना की जाय तो पता चलता है एक ने बहुत अधिक और दूसरे ने बहुत कम कष्ट सहकर अपना भोग पूरा किया। दैवी आपत्तियाँ, जो अनिवार्य है, आती हैं, परन्तु गायत्री के प्रथम चरण में अपने उच्च स्वभाव के कारण वे भी कम कष्ट देकर भुगत जाती हैं।
आत्मीयता को एक विशेष स्थान पर केन्द्रित कर देने से प्रेम का लोप होकर मोह उत्पन्न हो जाता है। मोह ही शोक का कारण है। जिस मनुष्य के हृदय में सच के प्रति व्यापक एवं विस्तृत सहानुभूति होती है। सब की आत्माओं में से अपनेपन की आत्मीयता परिलक्षित होती है, ऐसी दशा में अपने बच्चे की मृत्यु का उतना ही शोक हो सकता है, जितना कि पड़ौसी के बच्चे के मरने का। यदि उस व्यापक आत्मीयता को दूसरों पर से हटा कर किसी एक ही व्यक्ति तक सीमित कर लिया जाय तो ही ऐसा हो सकता है कि दूसरों के मरने पर जरा भी दुख न हो और अपने सम्बन्धियों के मरने पर शोक विह्रल हो जाया जाय।
गायत्री का प्रथम चरण हमें व्यापक आत्मीयता प्रदान करता है और बताता है कि कोई भी प्राणी किसी दूसरे की सम्पत्ति नहीं, सब ईश्वर के अंश हैं और अपने स्वतन्त्र कर्म भोग के आधार पर जन्म मरण के चक्र में घूम रहे हैं।
गायत्री का प्रथम चरण जब हृदय में आता है, तो मनुष्य इस प्रकार की अनेक कुबुद्धियों से बच जाता है, जो समय-समय पर दुःखों के पर्वत सिर पर पटकती है। आस्तिकता और आत्मीयता के कारण वह पाप करने से बच जाता है। जो पापों से बचा होगा वह दुःखों से भी बचा रहेगा। माता का प्रथम आशीर्वाद वह सद्बुद्धि देता है, जिससे हमारे सामाजिक दुःख दूर होते हैं। दूसरे व्यक्तियों के संपर्क से उत्पन्न होने वाले व्यवहार की भूल से मिलने वाले, दुःखों की जड़ गायत्री के प्रथम प्रकाश से ही कट जाती है।
समाप्त
अखण्ड ज्योति 1951 अगस्त
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