Tuesday 03, June 2025
शुक्ल पक्ष अष्टमी, जेष्ठ 2025
पंचांग 03/06/2025 • June 03, 2025
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष अष्टमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), ज्येष्ठ | अष्टमी तिथि 09:56 PM तक उपरांत नवमी | नक्षत्र पूर्व फाल्गुनी 12:58 AM तक उपरांत उत्तर फाल्गुनी | हर्षण योग 08:08 AM तक, उसके बाद वज्र योग | करण विष्टि 09:10 AM तक, बाद बव 09:56 PM तक, बाद बालव |
जून 03 मंगलवार को राहु 03:42 PM से 05:26 PM तक है | चन्द्रमा सिंह राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:20 AM सूर्यास्त 7:10 PM चन्द्रोदय 12:17 PM चन्द्रास्त 1:03 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - ज्येष्ठ
- अमांत - ज्येष्ठ
तिथि
- शुक्ल पक्ष अष्टमी
- Jun 02 08:35 PM – Jun 03 09:56 PM
- शुक्ल पक्ष नवमी
- Jun 03 09:56 PM – Jun 04 11:54 PM
नक्षत्र
- पूर्व फाल्गुनी - Jun 02 10:55 PM – Jun 04 12:58 AM
- उत्तर फाल्गुनी - Jun 04 12:58 AM – Jun 05 03:35 AM

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गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन







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आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 01 June 2025 !! !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

भारतीय संस्कृति शौर्य और साधना का संगम हें गुरुदेव पं श्रीराम शर्मा आचार्य
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
मित्रों, एकांगी शिक्षण — हमारी अध्यात्म में से अगर निकल गया होता, तो हमारा शौर्य, हमारा पराक्रम और हमारा तेज अक्षुण्ण बना रहता। हम ज्ञानवान रहते, लेकिन हम पराक्रमी भी रहते। पराक्रमी और ज्ञान की परंपरा — यह हमारे इतिहास में प्राचीन काल से, अनादि काल से अब तक चली आई थी। कल, परसों भी हमने देखा कि एक हाथ में माला और एक हाथ में भाला की नसीहत देने वाले कुछ लोग आए, कुछ संत आए। उन्होंने हमारे हाथ में माला थमाई और कहा कि बाण की भी ज़रूरत है, करछे की भी ज़रूरत है, केस की भी ज़रूरत है और अकड़ की भी ज़रूरत है। एक हाथ में माला लेकर चलिए और एक हाथ में भाला लेकर चलिए। शौर्य और पराक्रम की परंपरा — यह भारतीय धर्म और संस्कृति का प्राण है, और यही जीवन है। जीवन है — दोनों को मिलाए बिना हम जिंदा नहीं रह सकेंगे। दोनों को मिलाकर ही हम रक्षा कर सकेंगे।
खेत में बीज बोया जाना चाहिए, लेकिन रखवाली भी की जानी चाहिए। अगर आप रखवाली नहीं करेंगे, तो चिड़िया खा जाएंगी और आपका परिश्रम बेकार चला जाएगा। रखवाली का इंतजाम कीजिए, पानी का इंतजाम कीजिए। यदि कोई कहे, "हमने पेड़ में, बगीचे में पानी का इंतजाम किया," तो यह अच्छा है। फिर कहे, "हमने बगीचे में खाद डाला," तो यह और भी अच्छा है। लेकिन अगर वह यह नहीं बता सके कि उसने निराई-गुड़ाई की है या नहीं, तो समस्या है। क्योंकि नीचे से उगने वाले पौधे सारी खुराक खा जाएंगे और पेड़ बढ़ ही नहीं पाएगा। यदि वह निराई नहीं करता, तो उसका बगीचा नहीं चल सकता। और यदि उसने रखवाली का भी कोई इंतजाम नहीं किया है, तो जब मक्की पककर तैयार होगी, तब कौवे, तोते, सूअर, सियार, चमगादड़ सब आकर खेत को साफ कर देंगे। अंत में उसे कुछ भी नहीं मिलेगा। उसका परिश्रम, उसकी खाद, उसका पानी — सब बेकार चला जाएगा। अगर चिड़ियों की रखवाली नहीं की गई, तो नतीजा यही होगा।
इसलिए रखवाली का इंतजाम करना चाहिए। हमारे भीतर एक और माद्दा होना चाहिए, जिसका नाम है — तेज। यदि आपके भीतर तेज नहीं है, तो बेटे, फिर बात बनेगी नहीं।
मित्रों, एकांगी शिक्षण — हमारी अध्यात्म में से अगर निकल गया होता, तो हमारा शौर्य, हमारा पराक्रम और हमारा तेज अक्षुण्ण बना रहता। हम ज्ञानवान रहते, लेकिन हम पराक्रमी भी रहते। पराक्रमी और ज्ञान की परंपरा — यह हमारे इतिहास में प्राचीन काल से, अनादि काल से अब तक चली आई थी। कल, परसों भी हमने देखा कि एक हाथ में माला और एक हाथ में भाला की नसीहत देने वाले कुछ लोग आए, कुछ संत आए। उन्होंने हमारे हाथ में माला थमाई और कहा कि बाण की भी ज़रूरत है, करछे की भी ज़रूरत है, केस की भी ज़रूरत है और अकड़ की भी ज़रूरत है। एक हाथ में माला लेकर चलिए और एक हाथ में भाला लेकर चलिए। शौर्य और पराक्रम की परंपरा — यह भारतीय धर्म और संस्कृति का प्राण है, और यही जीवन है। जीवन है — दोनों को मिलाए बिना हम जिंदा नहीं रह सकेंगे। दोनों को मिलाकर ही हम रक्षा कर सकेंगे।
खेत में बीज बोया जाना चाहिए, लेकिन रखवाली भी की जानी चाहिए। अगर आप रखवाली नहीं करेंगे, तो चिड़िया खा जाएंगी और आपका परिश्रम बेकार चला जाएगा। रखवाली का इंतजाम कीजिए, पानी का इंतजाम कीजिए। यदि कोई कहे, "हमने पेड़ में, बगीचे में पानी का इंतजाम किया," तो यह अच्छा है। फिर कहे, "हमने बगीचे में खाद डाला," तो यह और भी अच्छा है। लेकिन अगर वह यह नहीं बता सके कि उसने निराई-गुड़ाई की है या नहीं, तो समस्या है। क्योंकि नीचे से उगने वाले पौधे सारी खुराक खा जाएंगे और पेड़ बढ़ ही नहीं पाएगा। यदि वह निराई नहीं करता, तो उसका बगीचा नहीं चल सकता। और यदि उसने रखवाली का भी कोई इंतजाम नहीं किया है, तो जब मक्की पककर तैयार होगी, तब कौवे, तोते, सूअर, सियार, चमगादड़ सब आकर खेत को साफ कर देंगे। अंत में उसे कुछ भी नहीं मिलेगा। उसका परिश्रम, उसकी खाद, उसका पानी — सब बेकार चला जाएगा। अगर चिड़ियों की रखवाली नहीं की गई, तो नतीजा यही होगा।
इसलिए रखवाली का इंतजाम करना चाहिए। हमारे भीतर एक और माद्दा होना चाहिए, जिसका नाम है — तेज। यदि आपके भीतर तेज नहीं है, तो बेटे, फिर बात बनेगी नहीं।
अखण्ड-ज्योति से
हम लोग प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा करके जो समय खो दिया करते हैं, वह पहले तो सामान्य ही जान पड़ता है, पर यदि हम अपने जीवन के अंतिम भाग में पहुँच कर इस प्रकार के खोये समय का हिसाब लगायें, तो उसका विशाल परिणाम देखकर आश्चर्य होगा। जिन क्षणों को छोटा समझकर हम व्यर्थ खो देते हैं उन्हीं छोटे क्षणों को काम में लाकर अनेक व्यक्तियों ने बड़े-बड़े महत्वपूर्ण कार्य कर दिखाए हैं।
संसार में अनेक विद्वान ऐसे हुए हैं जिन्होंने इसी प्रकार प्रतिदिन दस-दस, बीस-बीस मिनट का समय बचाकर नई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया है, महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिख डाले हैं, या कोई कार्य कर दिखलाया है। अगर हम यह कहें कि संसार में जितने महापुरुष हुये हैं उनकी सफलता की कुँजी वास्तव में उनके समय के सदुपयोग में ही है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं। संसार के अनेक प्रसिद्ध व्यक्ति ऐसे भी हुए हैं जिनमें कोई विशेष प्रतिभा अथवा असाधारण जन्मजात गुण नहीं था तो भी वे अविश्रान्त परिश्रम तथा समय के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करके ही इतिहास में अपना नाम स्थायी कर गये हैं।
जीवन में सिद्धि प्राप्त करनी हो तो एक क्षण भी व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए। समय का सदुपयोग करना हमारे हाथ में है। बाजार में जाकर हम रुपये देकर कोई चीज खरीदते हैं। इस तरह हम उन रुपयों को गँवाते नहीं हैं, बल्कि वस्तु के रूप में वे हमारे पास ही बने रहते हैं। समय की भी यही बात है। समय का का सदुपयोग करके हमने यदि शक्ति, सामर्थ्य और सद्गुणों की प्राप्ति की तो हमारा वह समय व्यर्थ नहीं गया, लेकिन शक्ति, सामर्थ्य और सद्गुणों के रूप में हमारे ही पास है।
जिन्होंने इस प्रकार समय का सदुपयोग किया है, उन्हें अपने जीवन में शान्ति, प्रसन्नता, धन्यता और कुतार्थता का अनुभव होता है। यही यथार्थ जीवन है। ऐसा जीवन बिताने वाले को मृत्यु का भय भी नहीं लगेगा। उस अवसर पर भी वह शान्त और स्थिर रह सकेगा। जिसने मानव-जीवन का महत्व समझकर संयम का पालन करके मानवता प्राप्त की है, वह कभी चिन्ताग्रस्त या बेचैन नहीं रहता।
मनुष्य को धन, विद्या, सत्ता, सामर्थ्य आदि का अनेक प्रकार का मद चढ़ता है। लेकिन उच्च तथा उदात्त जीवन की आकाँक्षा रखने वाला मनुष्य भिन्न प्रकार के आत्म गौरव का अनुभव करता है। वह कठिन प्रसंगों में, मृत्यु के समय भी शान्त रह सकता है। ऐसे प्रसंगों में उसका तेज बढ़ता है। यदि वह ऐसे अवसर पर निर्बल बनता है तो उसके आत्म-विश्वास में कमी समझी जायेगी। शूर का तेज रण में जाग्रत होता है, पक्षी को आकाश का भय नहीं होता, सिंह को जंगल का भय नहीं लगता। मछली पानी से नहीं डरती। इसी तरह सज्जन को संकट का भय नहीं होता। उसमें भी वह शांति का अनुभव करता है। मृत्यु के समय भी शान्ति और प्रसन्नता का भाव रह सके तभी जीवन सार्थक हुआ ऐसा कह सकते हैं।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति जनवरी 1965 पृष्ठ 18
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