Wednesday 18, June 2025
कृष्ण पक्ष सप्तमी, आषाढ़ 2025
पंचांग 18/06/2025 • June 18, 2025
आषाढ़ कृष्ण पक्ष सप्तमी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), ज्येष्ठ | सप्तमी तिथि 01:35 PM तक उपरांत अष्टमी | नक्षत्र पूर्वभाद्रपदा 12:23 AM तक उपरांत उत्तरभाद्रपदा | प्रीति योग 07:40 AM तक, उसके बाद आयुष्मान योग | करण बव 01:35 PM तक, बाद बालव 12:49 AM तक, बाद कौलव |
जून 18 बुधवार को राहु 12:18 PM से 02:02 PM तक है | 06:35 PM तक चन्द्रमा कुंभ उपरांत मीन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:21 AM सूर्यास्त 7:16 PM चन्द्रोदय 12:20 AM चन्द्रास्त 12:48 PM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - आषाढ़
- अमांत - ज्येष्ठ
तिथि
- कृष्ण पक्ष सप्तमी
- Jun 17 02:46 PM – Jun 18 01:35 PM
- कृष्ण पक्ष अष्टमी
- Jun 18 01:35 PM – Jun 19 11:55 AM
नक्षत्र
- पूर्वभाद्रपदा - Jun 18 01:01 AM – Jun 19 12:23 AM
- उत्तरभाद्रपदा - Jun 19 12:23 AM – Jun 19 11:16 PM

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
रामचंद्र जी थे अकेले ही थे, लड़ने के लिए गए थे। बेचारे किससे गए थे? रावण के, जिसके ढेरों के ढेरों आदमी थे, जो इतनी बड़ी ताकत थी, बड़े हथियार थे, उससे लड़ने गए थे। हमको भी लड़ने के लिए इन सब मुसीबतों से लड़ना है, नहीं तो फिर इंसानियत जिंदा नहीं रहेगी। इंसानियत जिंदा नहीं रहेगी, यह जमीन भी जिंदा नहीं रहेगी।
कहीं ऐसा भी हो सकता है कि एटम बमों की लड़ाई शुरू हो और जमीन का मट्टी धूल हो जाए और धूल कहीं आसमान में उड़ी उड़ी फिरे, फिर आपको तलाश करना पड़े कि यह जमीन थी। कोई मालूम नहीं साहब, सुना तो हमने भी है कि जमीन भी थी, सुई की नोक के बराबर भी जमीन नहीं थी। ऐसी ही मुसीबत आ सकती है।
ऐसी मुसीबत के वक्त पर हमको अपना जद्दोजहद करनी है, हमको कुछ बनाना भी है। बनाना का मतलब क्या है? रामचंद्र जी ने केवल रावण को मारा ही नहीं था, रामराज्य भी स्थापित किया था। और श्री कृष्ण भगवान ने महाभारत में मारकाट ही नहीं मचाई थी, बल्कि महाभारत, महान भारत जो कि ग्रेट इन इंडिया, बहुत बड़ा भारत वर्ष बना करके रख दिया था।
बहुत छोटा रह गया था, तब हमको बनाना भी है, बिगाड़ना भी है। बनाना भी है, बिगाड़ना भी है। बिगाड़ना है और बनाना है, दोनों कामों के लिए हमारे ऊपर बहुत अधिक दबाव आ गया है। इसलिए आप लोगों से क्षमा मांगनी पड़ी और बड़ा छाती पर पत्थर रखना पड़ा।
आप लोगों से बातचीत न भी हम कर सकें, तो भी हम आप सब के साथ तो रहेंगे, पर अलग रहना पड़ेगा। आप यह मत ख्याल कीजिए कि हम आपके साथ-साथ रहते हैं, बातचीत करते हैं और अपनी बात कहते हैं तो अच्छे लगते हैं। न उससे क्या बनता-बिगड़ता है?
जुएं होते हैं न, सिर में बैठ जाते हैं और खाते रहते हैं और खून पीते रहते हैं। आपके लिए कुछ फायदेमंद है? खटमल चारपाई में बने रहते हैं और रात भर काटते रहते हैं। पास रहने से कोई फायदा है? चूहे घर में रहते हैं, ढेरों के ढेरों अनाज खा जाते हैं। कोई फायदा है? छिपकलियाँ घर में रहती हैं, नमक पर पेशाब कर जाती हैं, जहरीला बना जाती हैं।
कुछ फायदा है नजदीक रहने से? कोई खास फायदा हो, ऐसी बात नहीं है। और दूर रहने से कोई आदमी नुकसान में रहता हो, आप यह भी मत सोचिए।
अखण्ड-ज्योति से
उस रात विन्दुमती को एकाएक ज्वर हो गया। चौलिया उनकी देख-भाल के लिए नियुक्त की गई। एक दिन-दो दिन और क्रमशः कई दिन बीत गए, ज्वर सन्निपात में परिवर्तित हो गया। चिकित्सकों ने ज्यों-ज्यों चिकित्सा की स्थिति त्यों-त्यों बिगड़ती गयी। इस बीच घर के सब लोगों ने अपनी दैनिक क्रियाएँ यथावत् निबटाए। किन्तु चौलिया को किसी ने न स्नान करते देखा न शयन करते।
अपनी सगी माँ की कोई क्या सेवा करेगा, चौलिया ने जैसी सेवा विन्दुमती की की। लेकिन दैवयोग भला किसके टाले टलता है। एक रात विन्दुमती की स्थिति में थोड़ा सुधार हुआ उसने आँखें खोली-सामने चौलिया खड़ी थी। अनंग को बुलाया बिन्दु की आँखें छलक पड़ी, कुछ कहना चाहा पर निकले कुल दो शब्द -”बेटी चौलिया ......और उसके प्राण पखेरू उड़ गए। विन्दुमती का देहावसान हो गया।
इधर अर्थी जा रही थी श्मशान को उधर चौलिया किसी नए आश्रय की खोज में। अनंगपाल ने समझाया-बेटी! यह घर तेरा घर है तू कहाँ जा रही हैं? तो चौलिया बोली- “माँ थी जब तक, तब उसकी सेवा के लिए मेरी आवश्यकता थी और मुझे भी अपनी सहनशीलता का अभ्यास करने के लिए उनकी आवश्यकता थी। अब वे नहीं रही तो मुझे अन्यत्र वैसी ही परिस्थिति ढूँढ़ने के लिए जाना चाहिए। जहाँ मेरा रहना सार्थक हो सके।”
अनंगपाल देखते ही रह गए और चौलिया वैसी ही स्थिति वाला कोई और दूसरा स्थान ढूँढ़ने के लिए आगे बढ़ गई।
समाप्त
अखण्ड ज्योति 1995 अगस्त पृष्ठ 2
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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