Wednesday 13, August 2025
कृष्ण पक्ष चतुर्थी, भाद्रपद 2025
पंचांग 13/08/2025 • August 13, 2025
भाद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्थी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), श्रावण | चतुर्थी तिथि 06:36 AM तक उपरांत पंचमी तिथि 04:23 AM तक उपरांत षष्ठी | नक्षत्र उत्तरभाद्रपदा 10:32 AM तक उपरांत रेवती | धृति योग 04:05 PM तक, उसके बाद शूल योग | करण बालव 06:36 AM तक, बाद कौलव 05:31 PM तक, बाद तैतिल 04:24 AM तक, बाद गर |
अगस्त 13 बुधवार को राहु 12:22 PM से 02:00 PM तक है | चन्द्रमा मीन राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:48 AM सूर्यास्त 6:56 PM चन्द्रोदय 9:27 PM चन्द्रास्त 10:43 AM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु वर्षा
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - भाद्रपद
- अमांत - श्रावण
तिथि
- कृष्ण पक्ष चतुर्थी
- Aug 12 08:41 AM – Aug 13 06:36 AM
- कृष्ण पक्ष पंचमी [ क्षय तिथि ]
- Aug 13 06:36 AM – Aug 14 04:23 AM
- कृष्ण पक्ष षष्ठी
- Aug 14 04:23 AM – Aug 15 02:07 AM
नक्षत्र
- उत्तरभाद्रपदा - Aug 12 11:52 AM – Aug 13 10:32 AM
- रेवती - Aug 13 10:32 AM – Aug 14 09:05 AM

कर्मों का हिसाब चुकाना ही पड़ता है | Karmon Ka Hisab Chukana Hi Padta Hai | Dr Chinmay Pandya

अमृतवाणी:- हिलेरी की गंगा की खोज | Hileri Ki Ganga Ki Khoj पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज, नित्य दर्शन






आज का सद्चिंतन (बोर्ड)




आज का सद्वाक्य




नित्य शांतिकुंज वीडियो दर्शन

!! शांतिकुंज दर्शन 13 August 2025 !! गायत्री तीर्थ शांतिकुञ्ज हरिद्वार !!

अमृतवाणी: आदमी की बढ़ती उद्दंडता और खतरा पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
बेटे, आपके हाथ में एक बड़ा सौभाग्य है। आप चाहें तो सौभाग्य का फायदा उठा सकते हैं। क्या?
आगे वाली लाइन में जो कोई भी चला करते हैं, स्त्री उन्हीं के हिस्से में आ आती है। भीड़ में अगर आप कभी शामिल हो और फोटो अगर कभी खिंचे, तो सबसे पहले चूंकि आप आगे हैं, तो फोटो आपका ही खिंचेगा। आपका ही खिंचेगा।
इसलिए पीछे चलने की भलिस्बत, जहाँ आपको यह मालूम पड़ता हो कि यहाँ कुछ नफे का काम है और कोई अच्छा काम है, आपको आगे-आगे चलना चाहिए।
कांग्रेस के आंदोलन में जो लोग शुरू-शुरू में गए थे, शुरू-शुरू में गए थे, मज़ा आ गया और वो क्या से क्या बन गए। और पीछे गए, तब पीछे तो बहुत सारे आदमी गए और बहुत सारे चलते गए।
जिनके नाम आते हैं — पहले कौन गए थे, पहले कौन गए थे, उनके नाम पहले आते हैं।
गांधी जी जिन दिनों में नमक सत्याग्रह के लिए चले गए थे, अभी-अभी यहाँ फिल्म आया था हमारे यहाँ। हमने लड़कियों को दिखाया, उसमें गांधी जी की नमक यात्रा, दांडी यात्रा दिखाई गई थी।
और वो आदमी, वो आदमी थे जिनकी 79 की तादाद थी और गांधी जी के साथ-साथ नमक बनाने के लिए गए थे। महादेव भाई देसाई भी थे, प्यारेलाल जी भी थे, दूसरे-तीसरे भी आदमी थे।
मन आया — काश हम भी उन लोगों में से रहे होते, तो हमारा भी फोटो खिंच जाता, हमारी भी फिल्म बन जाती। पर हम रह नहीं सके।
आगे-आगे की लाइन में, आगे-आगे की लाइन में, अच्छे कामों की लाइन में जो आदमी चलते हैं, बेटे, उनका नाम बहुत रहता है।
अंगद आगे की लाइन में, आगे की लाइन में, यह बताने के लिए कि अब राम-रावण युद्ध होने वाला है और अब कुछ नया हेरफेर होने वाला है — लंका में गए थे। और रावण की सभा में पैर जमा कर खड़े हो गए थे।
बेटे, अंगद का नाम रामायण में लिखा हुआ है। और अंगद की बात सुनकर के हमको बहुत उत्साह आता है।
क्यों साहब, अंगद अकेले थे?
नहीं बेटे, अंगद अकेले नहीं थे। बहुत सारे थे। बहुत सारे थे — एक का नाम नल था, एक का नाम नील था, एक का नाम सुग्रीव था, एक का नाम... बहुत सारे ढेरों आदमी, बंदर थे, ढेरों आदमी थे।
तो फिर अंगद की बात क्यों कहते हैं?
अंगद की बात, बेटे, मैं इसलिए कहता हूँ कि वो सबसे आगे वाली लाइन में, जब राम और रावण का युद्ध होने वाला था, तो उसने पहली वाली भूमिका में आगे-आगे जाकर खड़े हो गए थे। और अगली वाली भूमिका का उन्होंने उत्तरदायित्व अपने कंधे पर लिया था।
अब ठीक उसी तरह का समय आ गया है। अब उसी तरह का समय आ गया है कि सवेरे के निकलने वाले सूरज के तरीके से आप चाहें तो श्रेय लें।
अखण्ड-ज्योति से
संसार में ऐसा कोई नहीं है जिसमें कोई दोष न हो अथवा जिससे कभी गलती न हुई हो। अतएव किसी की गलती देखकर बौखलाओ मत और न उसका बुरा चाहो।
दूसरों को सीख देना मत सीखो। अपनी सीख मान कर उसके अनुसार बन जाना सीखो। जो सिखाते हैं, खुद नहीं सीखते, सीख के अनुसार नहीं चलते, वे अपने आप को और जगत को भी धोखा देते हैं।
सच्ची कमाई है, उत्तम से उत्तम सद्गुणों का संग्रह। संसार का प्रत्येक प्राणी किसी न किसी सद्गुण से संपन्न है, परन्तु आत्मगौरव का गुण मनुष्यों के लिए प्रभु की सबसे बड़ी देन है। इस गुण से विभूषित प्रत्येक प्राणी को, संसार के समस्त जीवों को अपनी आत्मा की भाँति ही देखना चाहिए। सदैव उसकी ऐसी धारणा रहे कि उसके मन, वचन एवं कर्म किसी से भी जगत के किसी जीव को क्लेश न हो। ऐसी प्रकृति वाला अंत में परब्रह्म को पाता है।
यह विचार छोड़ दो कि धमकाए बिना अथवा बिना छल-कपट के तुम्हारे मित्र, साथी, स्त्री-बच्चे या नौकर-चाकर बिगड़ जाएँगे। सच्ची बात तो इससे बिलकुल उलटी है। प्रेम, सहानुभूति, सम्मान, मधुर वचन, त्याग और निश्छल सत्य के व्यवहार से ही तुम किसी को अपना बना सकते हो।
प्रेम, सहानुभूति, सम्मान, मधुर वचन, सक्रिय हित, त्याग और निश्छल सत्य के व्यवहार से ही तुम किसी को अपना बना सकते हो। तुम्हारा ऐसा व्यवहार होगा तो लोगों के हृदय में बड़ा मधुर और प्रिय स्थान तुम्हारे लिये सुरक्षित हो जायगा। तुम भी सुखी होओगे और तुम्हारे संपर्क में जो आ जावेंगे, उनको भी सुख शाँति मिलेगी।
~अखण्ड ज्योति-जुलाई 1947 पृष्ठ 4
Newer Post | Home | Older Post |