Friday 25, July 2025
शुक्ल पक्ष प्रथमा, श्रवण 2025
पंचांग 25/07/2025 • July 25, 2025
श्रावण शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), श्रावण | प्रतिपदा तिथि 11:23 PM तक उपरांत द्वितीया | नक्षत्र पुष्य 04:00 PM तक उपरांत आश्लेषा | वज्र योग 07:27 AM तक, उसके बाद सिद्धि योग 05:31 AM तक, उसके बाद व्यातीपात योग | करण किस्तुघन 11:58 AM तक, बाद बव 11:23 PM तक, बाद बालव |
जुलाई 25 शुक्रवार को राहु 10:42 AM से 12:23 PM तक है | चन्द्रमा कर्क राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:36 AM सूर्यास्त 7:10 PM चन्द्रोदय 5:44 AM चन्द्रास्त 7:56 PM अयन दक्षिणायन द्रिक ऋतु वर्षा
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - श्रावण
- अमांत - श्रावण
तिथि
- शुक्ल पक्ष प्रतिपदा
- Jul 25 12:41 AM – Jul 25 11:23 PM
- शुक्ल पक्ष द्वितीया
- Jul 25 11:23 PM – Jul 26 10:42 PM
नक्षत्र
- पुष्य - Jul 24 04:43 PM – Jul 25 04:00 PM
- आश्लेषा - Jul 25 04:00 PM – Jul 26 03:52 PM

प्रार्थना आत्मा का संबल | prarthana Aatma ka sambal hai

Sad Vichar
कुछ लोग धनी बनने की वासना रूपी अग्नि में अपनी समस्त शक्ति, समय, बुद्धि, शरीर यहाँ तक कि अपना सर्वस्व स्वाहा कर देते हैं। यह तुमने भी देखा होगा। उन्हें खाने-पीने तक की भी फुरसत नहीं मिलती। प्रातःकाल पक्षी चहकते और मुक्त जीवन का आनन्द लेते हैं तब वे काम में लग जाते हैं। इसी प्रकार उनमें से नब्बे प्रतिशत लोग काल के कराल गाल में प्रविष्ट हो जाते हैं। शेष को पैसा मिलता है पर वे उसका उपभोग नहीं कर पाते। कैसी विलक्षणता। धनवान् बनने के लिए प्रयत्न करना बुरा नहीं। इससे ज्ञात होता है कि हम मुक्ति के लिए उतना ही प्रयत्न कर सकते हैं, उतनी ही शक्ति लगा सकते हैं, जितना एक व्यक्ति धनोपार्जन के लिये।
मरने के बाद हमें सभी कुछ छोड़ जाना पड़ेगा, तिस पर भी देखो हम इनके लिए कितनी शक्ति व्यय कर देते हैं। अतः उन्हीं व्यक्तियों को, उस वस्तु की प्राप्ति के लिये जिसका कभी नाश नहीं होता, जो चिरकाल तक हमारे साथ रहती है, क्या सहस्त्रगुनी अधिक शक्ति नहीं लगानी चाहिए? क्योंकि हमारे अपने शुभ कर्म, अपनी आध्यात्मिक अनुभूतियाँ- यही सब हमारे साथी हैं, जो हमारी देह नाश के बाद भी साथ जाते हैं। शेष सब कुछ तो यही पड़ा रह जाता है।
यह आत्म-बोध ही हमारे जीवन का लक्ष्य है। जब उस अवस्था की उपलब्धि हो जाती है, तब यही मानव- देव-मानव बन जाता है और तब हम जन्म और मृत्यु की इस घाटी से उस ‘एक’ की ओर प्रयाण करते हैं जहाँ जन्म और मृत्यु- किसी का आस्तित्व नहीं है। तब हम सत्य को जान लेते हैं और सत्यस्वरूप बन जाते हैं।
स्वामी विवेकानन्द
अखण्ड ज्योति 1968 जून पृष्ठ 1

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परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
भगवान के अवतार दो उद्देश्यों को लेकर के हुए हैं एक अधर्म का नाश करने के लिए और धर्म की स्थापना करने के लिए आपको धर्म की स्थापना में बहुत ही प्यार होना चाहिए और सहकारी होना चाहिए और सहायक होना चाहिए और अच्छा होना चाहिए लेकिन जहां आपको अनीति दिखाई पड़ती हो वहां आपको बड़ा क्रोधी होना चाहिए और आपको वह क्रोध भी आध्यात्मिकता में शुमार है मन्यु रशी मन्यु भेदी हे भगवान आप मन्यु है और हमको मन्यु दीजिए आप क्रोध करने वाले हो और हमको आप क्रोध करना सिखाए आप रूद्र है और आप हमको रूद्रपन सिखाइए ताकि हम अनीति के विरुद्ध अवांछनीयता के विरुद्ध चाहे वह हमारे भीतर निवास करती हो चाहे हमारे व्यवहार में और हमारे वाणी में निवास करती हो अथवा हमारे पड़ोस में अथवा समाज में निवास करती हो कहीं भी हो हम अनीति से जरूर लड़ेगे अब हम मानेंगे नहीं किसी तरीके से नहीं मानेंगे भगवान राम ने भी जहां मर्यादाओं की स्थापना की भाई के लिए राज्य दे दिया सब कुछ किया जहां श्रेष्ठता ही श्रेष्ठता है वहां उन्होंने जब अस्थियों के समूह जमा किए हुए देखे तो दोनों हाथों से उठाकर के प्रतिज्ञा की भुज उठाय प्राण कीन्ह, निश्चर हीन करउँ महि भुज उठाय प्राण कीन्ह भुजा उठा करके तब रघुवीर नयन जल छाए, भगवान की आंखों में नयनों में जल आ गए उन्होंने यह प्रतिज्ञा की कि जिन लोगों ने ऋषियों की हड्डियों को ऋषियों की हड्डियों को जमा किया है और जिन्होंने ऋषियों की अस्थियों को खाया है उनको हम निश्चर हीन करउँ महि इस पृथ्वी पर नहीं रहने देंगे यह मन्यु भी जरूरी है यह आध्यात्मिकता का अंग है और यह आध्यात्मिकता का एक अंश है हम समग्र आध्यात्मिकता को विकसित देखना चाहते हैं और जीवंत देखना चाहते हैं देखना चाहते हैं इसीलिए बेटे हम आपको सिखाते हुए चले जा रहे थे तीन कोषों को अगर आपको भौतिक उन्नति की आवश्यकता हो तो आप अपना शरीर और मन और प्राण इनको सशक्त और समर्थ बनाना चाहिए अगर आध्यात्मिकता का लाभ प्राप्त करने का हो वह कोमलता के साथ में और करुणा के साथ में जुड़ा हुआ है उसको भी मैं तुझे बताऊंगा लेकिन मैं यह बताता हूं कि संसार संसार संसार तेरे ऊपर संसार छाया हुआ है संसार की सफलता तेरे ऊपर हावी है तो पहले अपने आप को ठीक कर अपने आप को ठीक कर फिर देख इसका कमाल |
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति से
मन का केन्द्र बदला जा सकता है। पशु प्रवृत्तियों की पगडण्डियाँ उसकी देखी-भाली हैं। पर मानवी गरिमा का स्वरूप समझने और उसके शानदार प्रतिफल का अनुमान लगाने का अवसर तो उसे इसी बार इसी शरीर में मिला है। इसलिए अजनबी मन की अड़चन होते हुए भी तर्क, तथ्य, प्रमाण उदाहरणों के सहारे उसे यह समझाया जताया जा सकता है कि पशु प्रवृत्तियों की तुलना में मानवी गरिमा की कितनी अधिक श्रेष्ठता है। दूरदर्शी विवेक के आधार पर यह निर्णय, निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि आदर्शवादिता और कर्तव्य परायणता अपनाने पर उसके कितने उच्चस्तरीय परिणाम प्रस्तुत हो सकते हैं।
पुराने ढंग की ईश्वर भक्ति में मन लगाने और साधनाओं में रुचि लेने के लिए परामर्श दिया जाता है किन्तु पुरातन तत्त्वज्ञान को हृदयंगम कराये बिना उस दिशा में न तो विश्वास जमता है और न मन टिकता है। बदली हुई परिस्थितियों में हम कर्मयोग को ईश्वर प्राप्ति का आधार मान सकते हैं। कर्तव्य को, संयम को, पुण्य परमार्थ को ईश्वर का निराकार रूप मान सकते हैं। कामों के साथ आदर्शवादिता का समावेश रखा जा सके तो वह सम्मिश्रण इतना मधुर एवं सरस बन जाता है कि उस पर मन टिक सके। बया अपने घोंसले को प्रतिष्ठा का प्रश्न मानकर तन्मयतापूर्वक बनाती है। हम भी अपने क्रिया–कलापों में मानवी गरिमा एवं सेवा भावना का समावेश रखें तो उस केन्द्र पर भी मन की तादात्म्यता स्थिर हो सकती है। मन को निश्चित ही निग्रहित किया जा सकता है।
समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति 1990 नवम्बर
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