Monday 19, May 2025
कृष्ण पक्ष षष्ठी, जेष्ठ 2025
पंचांग 19/05/2025 • May 19, 2025
ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष षष्ठी, कालयुक्त संवत्सर विक्रम संवत 2082, शक संवत 1947 (विश्वावसु संवत्सर), बैशाख | षष्ठी तिथि 06:11 AM तक उपरांत सप्तमी | नक्षत्र श्रवण 07:29 PM तक उपरांत धनिष्ठा | शुक्ल योग 05:52 AM तक, उसके बाद ब्रह्म योग 04:35 AM तक, उसके बाद इन्द्र योग | करण वणिज 06:12 AM तक, बाद विष्टि 06:06 PM तक, बाद बव |
मई 19 सोमवार को राहु 07:08 AM से 08:49 AM तक है | चन्द्रमा मकर राशि पर संचार करेगा |
सूर्योदय 5:26 AM सूर्यास्त 7:01 PM चन्द्रोदय 12:07 AM चन्द्रास्त 11:47 AM अयन उत्तरायण द्रिक ऋतु ग्रीष्म
- विक्रम संवत - 2082, कालयुक्त
- शक सम्वत - 1947, विश्वावसु
- पूर्णिमांत - ज्येष्ठ
- अमांत - बैशाख
तिथि
- कृष्ण पक्ष षष्ठी
- May 18 05:58 AM – May 19 06:11 AM
- कृष्ण पक्ष सप्तमी
- May 19 06:11 AM – May 20 05:52 AM
नक्षत्र
- श्रवण - May 18 06:52 PM – May 19 07:29 PM
- धनिष्ठा - May 19 07:29 PM – May 20 07:32 PM

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अमृतवाणी: सच्चा यज्ञ वही जिसमे समाज भी जागे | पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी
परम् पूज्य गुरुदेव का अमृत संदेश
आप नशे बाजी को छुड़ाइए, नहीं तो अगली पीढ़ियाँ घटते-घटते, गिरते-गिरते, गिरते-गिरते किसी काम की नहीं रहेंगी। नशे बाजी से आदमी को यह तो मालूम है कि शरीर भी मारा जाता है, बुद्धि भी मारी जाती है, पैसा भी बर्बाद हो जाता है, कुटुंब भी तबाह हो जाता है और बच्चों का भविष्य भी खराब हो जाता है। और आदमी ऐसा बन जाता है जिसका ना कोई विश्वास किया जाता है, ना कोई पास बैठने देता है। यह पीढ़ियों की गिरावट अगर बनी रही, तो पचास-चालीस वर्ष में एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी कमजोर होगी, फिर दूसरी के बाद तीसरी कमजोर होगी और हम वास्तव में इस लायक हो जाएंगे कि हमको अपने शरीर को धकेलना मुश्किल हो जाएगा।
इसलिए करना आपको यह चाहिए कि नशे बाजी के विरुद्ध भी जो कुछ भी आपके लिए संभव हो, उसे जरूर करना चाहिए। नशे बाजी के सिवाय, नशे बाजी के सिवाय एक और बात है कि आप साग-भाजी का तो हम कह नहीं सकते कि जब वर्षा का अभाव होगा, तो साग-भाजी आप कहां तक पूरा कर पाएंगे। साग-भाजी मनुष्य के जीवन के लिए उतनी ही आवश्यक है जितना अनाज। अनाज से कम आवश्यक नहीं है। आप साग-भाजी उगाने के लिए अपने घरों में इंतजाम कीजिए।
पीने का पानी, कुल्ला करते हैं, नहाते हैं, नहाने का पानी इकट्ठा कर लीजिए और अपने घरों में गमलों में, टोकरों में, पिटारों में, किसी में जो आपने रखी हुई है, उसी में उस पानी को डाल दीजिए, जो आपके स्नान से बचा हुआ है, जो आपके पानी पीने से बचा हुआ है, जो आपके हाथ धोने से बचा हुआ है। उस पानी को भी साग-भाजी में डाल दें, तो साग-भाजी पैदा हो सकती है। साग-भाजी का घर का पूरा खर्चा आप नहीं भी चला सकते हैं, मान लीजिए तो उससे कम से कम चटनी का काम तो चल सकता है।
रुखी रोटी खाने के बजाय आप चटनी से तो काम चला सकते हैं। चटनी भी एक ऐसी चीज है जिससे हमारे लिए कुपोषण नहीं बनने देती है। आपका यह धनिया है, पुदीना है, पालक है और यह अदरक है, मिर्च है, टमाटर है, यह चीजें तो आसानी से लगा सकते हैं। कोई और साग नहीं बो सकते तो आप चटनी के हिसाब का सामान तो आसानी से इकट्ठा कर सकते हैं।
बस यह साग-भाजी को लगाना है, एक नशे बाजी का विरोध करना, दो ब्याह-शादियों में खर्च ना होने देना, सादगी के साथ ब्याह करना, तीन और प्रौढ़ शिक्षा के बारे में जितना ज्यादा प्रचार करना। छोटे बच्चों को तो ये भी है कि गवर्नमेंट स्कूलों में पढ़ा देती है, लेकिन बड़ों की संख्या तो दो तिहाई है, दो तिहाई हमारे देश के बिना पढ़े लोग हैं। उनको शिक्षण करने की बात हमें लोगों को तैयारी करनी चाहिए।
और इन सब बातों को ध्यान में रखकर के इन यज्ञों की पूर्णता इन बातों में जोड़नी चाहिए कि आपके साथ आस्था की भावनाएं जुड़ी हुई हो, सेवाएं भी जुड़ी हुई हो, देश को उठाने का मनोवृत्ति भी जुड़ी हुई हो, यज्ञ भी जुड़ा हुआ हो, कीर्तन भी जुड़ा हुआ हो और भगवान का नाम भी इसमें जुड़ा हुआ हो और अपनी बुराइयों को छोड़ने और अच्छाइयों को बढ़ाने का प्रयत्न भी चलना चाहिए। यह सब मिला करके चलेंगे, तो आप यह मान लीजिए, यज्ञ में जो भी बड़े से बड़ा कार्यक्रम होता था, इन कार्यक्रमों के आधार पर यह पूरा हो जाएगा और वही फल मिलेगा आपको, जो कि बड़े यज्ञों से मिलना चाहिए।
अखण्ड-ज्योति से
थियोडर पारकर कहा करते थे कि सुकरात की कीमत दक्षिण कोरोलिना की रियासतों से बहुत अधिक है। यदि तुम सोच सकते हो तो बिना मूसा के मिश्र की, बिना डेनियल के बेबोलीन की और डेमास्थनीज, फीडीयस, सुकरात या प्लेटो रहित ऐथेन्स की कल्पना करो वे वीरान दिखाई पड़ेंगे। ईसा के दो सौ वर्ष पूर्व कारथेज क्या था? बिना सीजर, सिसरो और मारकस आरेलियर के रोम क्या था? नेपोलियन, ह्यूगो, और हाईसिन्थ बिना पैरिस क्या है? वर्क, ग्लैडस्टन, पिट मिल्टन और सेक्सपियर बिना इंग्लैंड क्या है? बिना राम, बुद्ध दयानन्द और गाँधी के भारत में क्या बचता है?
हावेज कहता है- ‘चरित्रबल एक शक्ति है एक प्रतिभा है। वह मित्र और सहायक उत्पन्न कर सकती है और सुख सम्पत्ति का सच्चा मार्ग खोल सकती है’। संसार को ऐसे व्यक्तियों की बड़ी आवश्यकता है जिनमें ईमानदारी कूट-कूट कर भरी हो, जो पैसे के लिये अपनी बुद्धि न बेचे, जो सत्य के लिए स्वर्ग के सुख को ठोकर मार दें और जो धर्म के लिये मृत्यु के मुख में अपनी गरदन डाल दें। वालटेयर कहता है- पैसे से कोई बड़ा नहीं बनता, महापुरुष वह है जिसका आचरण श्रेष्ठ है। एक नीतिकार का मत है- मनुष्य का महत्व उसकी विद्या, बुद्धि ताकत या सम्पत्ति में नहीं है, उसका बड़प्पन ईमानदारी और परोपकार में है। एक तत्वज्ञ का कथन है- जिसने अपने मस्तक पर कलंक का टीका नहीं लगाया और जिसकी गरदन किसी के सामने शर्म से नहीं झुकती वही सच्चा बहादुर है।’
चौदहवें लुई ने अपने मंत्री कालवर्ट से पूछा हमारा देश इतना बड़ा है और धन जन की हमारे पास कमी नहीं है फिर भी एक छोटे से देश हालेण्ड को हम क्यों नहीं जीत सके? मंत्री ने उत्तर दिया- श्रीमान, किसी देश की महानता उसकी लम्बाई, चौड़ाई पर नहीं, वरन वहाँ के निवासियों के चरित्र पर निर्भर है।
जब टर्की ने कोसूथ को इस शर्त पर अपने यहाँ आश्रय देना स्वीकार किया कि वह इस्लाम धर्म स्वीकार कर ले। तो उस बहादुर ने कहा- “मृत्यु और शर्म का जीवन इन दोनों में से मैं पहली को पसंद करूंगा। ईश्वर की इच्छा पूरी होने दो। मैं मरने को तैयार हूँ। मेरे यह हाथ खाली हैं परन्तु इन पर कलंक की कालिमा नहीं पुती है।” चाहे मनुष्य अशिक्षित हो, अयोग्य हो, गरीब हो या हीन कुल का हो फिर भी यदि उसमें सचाई और ईमानदारी है तो वह अपने लिये उच्च स्थान प्राप्त करेगा।
इमरसन कहते हैं- ‘चोरी करने से किसी के महल खड़े नहीं होते, दान करने से कोई दरिद्री नहीं होता। इसी प्रकार सत्य बोलने वाला न तो दुःखी रहता है और न ईमानदार भूखों मर जाता है।’ महान पुरुषों के चरित्र में यह एक विशेषता होती है कि वे चारों ओर से तूफान उठने और आघात पड़ने पर जरा भी विचलित नहीं होते वरन् ब्रज के समान सुदृढ़ बने रहते हैं। लिंकन वकील था। गरीबी से गुजर करता था। पर उसने कभी झूठे मुकदमे की पैरवी नहीं की।
मिश्र का प्राचीन कालीन एक राजा लिखता है- ‘मैंने किसी बालक या स्त्री को कष्ट नहीं दिया। किसी किसान के साथ असदव्यवहार नहीं किया। मेरे राज्य में विधवा को यह मालूम नहीं होता था कि वह अनाथ हो गई है।’ कितने आश्चर्य की बात है कि लोग इस बात को नहीं जानते कि दुनिया को उनकी योग्यता की अपेक्षा चरित्र अधिक पसंद है। उच्च आचरण के कारण ही लिंकन अमेरिका का राष्ट्रपति बना था।
क्या ईसा मर गया? शिव, दधीचि या हरिश्चन्द्र का अस्तित्व मिट गया? क्या वाशिंगटन और अब्राहम लिंकन नहीं रहे? क्या बन्दा बैरागी और वीर हकीकत दुनिया में नहीं हैं? रोज हजारों आदमी मरते हैं उन्हें कोई जानता तक नहीं, किन्तु श्रेष्ठ आचरण मनुष्य का सुनहला स्मारक खड़ा कर देता है जो युगों तक चमकता रहता है। ऐश्वर्य भोगी राजाओं की अपेक्षा, जंगल-जंगल खाक छानते फिरने वाले राणा प्रताप अधिक सुखी हैं। बैरिस्टर गाँधी की अपेक्षा साधु गाँधी का महत्व अधिक है।
अखण्ड ज्योति अक्टूबर 1941 पृष्ठ 13
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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