अब स्वाध्याय ही एकमात्र विकल्प
मनुष्य का मन कोरे कागज या फोटोग्राफी की प्लेट की तरह है जो परिस्थितियॉं, घटनाएँ एवं विचारणाएँ सामने आती रहती हैं उन्हीं का प्रभाव अंकित होता चला जाता है और मनोभूमि वैसी ही बन जाती है। व्यक्ति स्वभावत: न तो बुद्धिमान है और न मूर्ख, न भला है, न बुरा। वस्तुत: वह बहुत ही संवेदनशील प्राणी है। समीपवर्ती प्रभाव को ग्रहण करता है और जैसा कुछ वातावरण मस्तिष्क के सामने छाया रहता है उसी ढाँचे में ढलने लगता है। उसकी यह विशेषता परिस्थितियों की चपेट में आकर कभी अध:पतन का कारण बनती है। कभी उत्थान का। व्यक्तित्व की उत्कृष्टता के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता उस विचारणा की है जो आदर्शवादिता से ओत-प्रोत होने के साथ-साथ हमारी रुचि और श्रद्धा के साथ जुड़ जाये। यह प्रयोजन दो प्रकार से पूरा हो सकता है। एक तो आदर्शवादी उच्च चरित्र महामानवों का दीर्घकालिन सान्निघ्य, दूसरा उनके विचारों का आवगाहन व स्वाध्याय।
वर्तमान परिस्थितियों में पहला तरीका कठिन है। एक तो तत्वदर्शी महामानवों का एक प्रकार से सर्वनाश हो चला है। श्रेष्ठता का लबादा ओढ़े कुटिल, दिग्भ्रान्त, उलझे हुए लोग ही श्रद्धा की वेदी हथियाये बैठे हैं। उनके सानिघ्य में व्यक्ति कोई दिशा पाना तो दूर, उल्टा भटक जाता है। जो उपयुक्त हैं वे समाज की वर्तमान परिस्थितियों को सुधारने के लिए इतनी तत्परता एवं व्यस्तता के साथ लगे हुए हैं कि सुविधापूर्वक लम्बा सत्संग दे सकना उनके लिए भी संभव नहीं, फिर जो सुनना चाहता है वही कहाँ खाली बैठा है। इसलिए जिन सौभाग्यशालियों को प्रमाणिक महापुरूषों का सान्निघ्य जब कभी मिल जाये तब उतने में ही संतोष कर लेना पड़ेगा। दीर्घकालिन सत्संग की संभावनाएँ आज की स्थिति में कम ही हैं।
दूसरा मार्ग ही इन दिनों सुलभ है। स्वाध्याय के माघ्यम से मस्तिष्क के सम्मुख वह वातावरण देर तक आच्छादित रखा जा सकता है जो हमें प्रखर और उत्कृष्ट जीवन जी सकने के लिए उपयुक्त प्रकाश दे सके। स्वाध्याय में बौद्धिक भूख और आध्यात्मिक आवश्यकता की पूर्ति के लिए हमें पेट को रोटी और तन को कपड़ा जुटाने से भी अधिक तत्परता के साथ प्रयत्नशील होना चाहिए। स्वाध्याय दैनिक नित्य कर्मों में शामिल रखा जाये। क्योंकि चारों ओर की परिस्थितियॉं जो निष्कर्ष निकालती हैं उनमें हमें निकृष्ट मान्यताएँ और गतिविधियॉं अपनाने का ही प्रोत्साहन मिलता है। यदि इस दुष्प्रभाव की काट न की गई तो सामान्य मनोबल का व्यक्ति दुर्बुद्धि अपनाने और दुष्कर्म करने में ही लाभ देखने लगेगा। इसी प्रकार मन के चारों ओर के गर्हित वातावरण का प्रभाव पड़ते रहने से जो मलीनता जमती है उसके परिष्कार का एकमात्र उपाय स्वाध्याय ही रह जाता है।
जीवित या मृत महामानवों के विचारों, चरित्रों का प्रभाव जब चाहे तब, जितनी देर तक चाहें उतनी देर तक उनके साथ सामीप्य-सान्निघ्य का लाभ ले सकते हैं। उनका साहित्य हमें हर समय उपलब्ध रह सकता है और अपनी सुविधानुसार चाहे जितना सम्बन्ध उसके साथ जोड़ा रखा जा सकता है। पुस्तकों का मूल्य स्वल्प होता है पर उनके द्वारा जो प्रभाव उपलब्ध किया जा सकता है उसे बहुमूल्य या अमूल्य ही मानना पड़ेगा। कहना न होगा कि युग-निर्माण योजना ने प्राचीनतम और नवीनतम का अनुपम सम्मिश्रण किया है। सृष्टि के आदिकाल से लेकर चले आ रहे सनातन धर्म सिद्धांतों के आधुनिक बुद्धिवाद और विज्ञानवाद के साथ जोडक़र वर्तमान परिस्थितियों के उपयुक्त ऐसे समाधान प्रस्तुत किये हैं, जिन्हें विवेकवानों ने अद्भुत और अनुपम कहा है। उचित यही होगा कि हर दिग्भ्रान्त करने वाली विभिन्न पुस्तकें पढऩे की अपेक्षा स्वाघ्याय के लिए युग-निर्माण साहित्य चुनें और उसे पढऩे का क्रम नित्यकर्म की तरह अपने दिनचर्या में सम्मिलित कर लें।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
युग निर्माण योजना - दर्शन, स्वरूप व कार्यक्रम-वांग्मय 66 पृष्ठ 6.28
Recent Post
सादा जीवन-उच्च विचार
मानवी सत्ता शरीर और आत्मा का सम्मिश्रण है। शरीर प्रकृति पदार्थ है। उसका निर्वाह स्वास्थ्य, सौन्दर्य, अन्न-जल जैसे प्रकृति पदार्थों पर निर्भर है। आत्मा चेतन है। परमात्मा चेतना का भाण्डागार है। आत्मा...
अपने आप का निर्माण
मित्रो ! आत्मा को, अपने आप का निर्माण कर लेना-नम्बर एक। अपने परिवार का निर्माण कर लेना-नम्बर दो। अपने समाज को प्रगतिशील बनाने के लिए, उन्नतिशील बनाने के लिए कुछ-न-कुछ योगदान देना-नम्बर तीन। त...
कहिए कम-करिये ज्यादा (भाग 1)
मानव स्वभाव की एक बड़ी कमजोरी प्रदर्शन प्रियता है। बाहरी दिखावे को वह बहुत ज्यादा पसन्द करता है। यद्यपि वह जानता और मानता है कि मनुष्य की वास्तविक कीमत उसकी कर्मशीलता, कर्मठता है। ठोस और रचनात्मक क...
कहिए कम-करिये ज्यादा (अन्तिम भाग)
इसे हम बराबर देखते हैं कि केवल बातें बनाने वाला व्यक्ति जनता की नजरों से गिर जाता है। पहले तो उसकी बात का कुछ असर ही नहीं होता। कदाचित उसकी ललित एवं आकर्षक कथन शैली से कोई प्रभावित भी हो जाय तो बाद...
दुष्कर्मों के दण्ड से प्रायश्चित्त ही छुड़ा सकेगा
यह ठीक है कि जिस व्यक्ति के साथ अनाचार बरता गया अब उस घटना को बिना हुई नहीं बनाया जा सकता। सम्भव है कि वह व्यक्ति अन्यत्र चला गया हो। ऐसी दशा में उसी आहत व्यक्ति की उसी रूप में क्षति पूर्ति करना सम...
प्राप्त का दुरूपयोग न होने दें
जन्मा, कुछ दिन खेला-कूदा, किशोरावस्था आने पर कल्पना की रंगीली उड़ानें भरना, युवा होते-होते विवाह बंधनों में बंधना, जो बोझ लादा उसे वहन करते रहने के लिए दिन-रात कमाने के लिए खटते रहना, बढाए हुए परिवा...
विचारणीय
मुफ्त में अनुदान-वरदान पाने की अपेक्षा, किसी को भी, किसी से भी नहीं करनी चाहिए। देवताओं से वरदान और धन-कुबेरों से अनुदान प्राप्त करने के लिए अपनी पात्रता का परिचय देना पड़ता है। मुफ्तखोरों के लिए तो...
महान कैसे बनें?
मित्रो ! तुम्हें ऐसे व्यक्तियों का प्रेमपात्र बनने का सदैव प्रयत्न करते रहना चाहिए जो कष्ट पडऩे पर तुम्हारी सहायता कर सकते हैं और बुराइयों से बचाने की एवं निराशा में आशा का संचार करने की क्षमता रख्...
संघर्षों की विजयादशमी (Kavita)
संघर्षों की विजयादशमी चढ़ आई है,
तज कर तन्द्रा, आ पंचशील के राम, उठो!
तुम भटक चुके हो नाथ, बहुत दण्डक वन में,
तुम बिलख चुके हो हृदय-विदारक क्रन्दन में,
नीरव आँसू से ...
साहस और संकल्प का महापर्व : विजयादशमी
शहरों, कस्बों और गाँवों में रावण के पुतलों को जलाने की तैयारियाँ देखकर दशहरा के आगमन का अनुमान होने लगा है। 12 अक्टूबर 2024 को विजयादशमी के मनाए जाने की खबर सभी को लग गयी है। इस दिन बाँसों की खपच्च...