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Magazine - Year 1940 - Version 2

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सादा जीवन उच्च विचार

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(श्री. रामनिवास शर्मा, अम्बाह)

हम चाहते हैं कि अपने जीवन को महान् बना सकें। महापुरुषों के जीवन चरित्र पढ़कर सब का जी ललचाता है और भीतर एक इच्छा उठती है कि हमें भी ऐसे ही महत्व प्राप्त हुए होते। क्योंकि जीवन का सच्चा लाभ आराम की जिन्दगी बिताने में नहीं, बल्कि महान बनने में है। उन्नतिशील महापुरुषों के जीवन पर बारीक दृष्टि डालने से उन्हें उठाने वाला एक ही मन्त्र मालूम पड़ता है। वह है—”सादा जीवन, उच्च विचार।”

संसार के पूजनीय महापुरुषों ने इन्हीं दो सिद्धान्तों को अपने जीवन में पूरी तरह उतारा होता है। इसी ध्रुव तारे के सहारे वे निश्चित कार्य से सफलता की ओर चले गए होते हैं। लोग विभिन्न प्रकार के ऐसे नियमोपनियम तलाशते रहते हैं जिनके सहारे वे उच्च बन सकें उन्हें चाहिए कि सारा जीवन उच्च विचार के महामन्त्र को अपनावें।

संसार के प्रमुख दार्शनिकों का मत है कि जीव की स्वाभाविक इच्छा और अभिलाषा सात्विक उन्नति की है। भौतिक सुविधाओं को लोग इकट्ठा करते हैं, इन्द्रियों के विषय भोगते हैं पर बारीक दृष्टि से देखने पर पता चलता है कि यह सब कार्य भी आत्मिक तृप्ति के लिए किए होते हैं। यह दूसरी बात है कि धुँधली दृष्टि होने के कारण लोग नकल की ही असल समझ बैठें। आपने बड़े परिश्रम से धन इकट्ठा किया है किन्तु विवाह में उसे बड़ी उदारता के साथ खर्च कर देते हैं। उस दिन एक पैसे के लिए प्राण दिए जाते थे आज आप अशर्फियां क्यों लूटा रहे हैं? इसलिए कि आज आप धन संचित रखने की अपेक्षा उसे खर्च कर डालने में अधिक सुख का अनुभव करते हैं डाकू जिस धन को जान हथेली पर रख कर लाया था, उसे मदिरा पीने में इस तरह क्या उड़ा रहा है? इसलिए कि वह मदिरा पीने के आनन्द को धन जोड़ने की अपेक्षा अधिक महत्व देता है? बीमारी में, धर्म कार्यों में, या अन्य बातों में काफी पैसा खर्च हो जाता है किन्तु वह कुछ भी रंज नहीं करता। यही पैसा यदि चोरी में चला गया होता तो उसे बड़ा दुख होता। इन उदाहरणों में आप देखते हैं कि जिनका अमूल्य जीवन धन संचय की चाह में खर्च हुआ जा रहा है वे अपने उस जीवन रस को भी एक समय बड़ी लापरवाही के साथ उड़ा देते हैं। ऐसा इस लिए होता है कि उन खर्चीले कामों में आदमी अधिक आनन्द का अनुभव करता है। स्पष्ट है कि कंजूस से कंजूस भी पैसों से प्रेम नहीं करता। उनके संचय होने वाली आत्म तृप्ति का मजा लेता है। इससे अधिक आत्म तृप्ति दूसरे काम में हुई तो उसे छोड़कर उसे कर लेता है। एक कंजूस ने तीस वर्ष का कड़ा परिश्रम करके चार हजार रुपये कमाये थे। कुल रुपये खर्च करके शादी कर लेने का प्रस्ताव उसके सम्मुख आया तो तमाम रुपया उसने दे डाला और विवाह कर लिया। जो आदमी रोटी के साथ दाल भी नहीं खाता था कपड़े न पहनकर नंगे बदन घूमता था वह अपनी उस प्राण प्रिय संपत्ति को तुरंत ही त्यागने के लिए तैयार हो गया। इसका अर्थ यह है कि धन संचय उद्देश्य नहीं है, आत्मतृप्ति का भूला भटका साधन है। यही बात इन्द्रिय भोगों के बारे में है। अच्छे भोग के लिए खराब भोग को त्याग देते हैं। पूरी छोड़कर मिठाई खाने, फूल छोड़कर इत्र सूँघने, रास रसिया छोड़कर सरकस थियेटर देखने के लिए हम तैयार हो जाते हैं। नाच देखने में मस्त हैं किन्तु कोई आकर ये कहे कि चलो अभी तुम्हें बहुत सा धन मिलेगा तो क्षणभर में नाच से विरक्ति हो जायगी और धन प्राप्ति के लिए चल देंगे। तात्पर्य यह है कि भौतिक वस्तुओं के संग्रह अथवा इन्द्रियों के भोगों में मनुष्य लिप्त नहीं है। आत्मतृप्ति की आराधना के लिए ही उसके सारे प्रयत्न होते हैं।

यह आत्म तृप्ति बाहरी, स्थूल वस्तुओं में नहीं है। परन्तु भ्रमवश हम उन्हीं में समझते हैं। मिठाई खाने में यदि तृप्ति है, स्त्री संभोग में यदि तृप्ति है तो वह बीमार हो जाने पर क्यों बुरी लगती है? वास्तव में आत्मा दैवी गुणों से सम्पन्न है और उसे अपने अनुकूल वस्तुएं प्राप्त होने पर ही वास्तविक शान्ति और तृप्ति उपलब्ध होती है। यह अनुकूल विचार, अनुकूल वस्तुएं अनुकूल ज्ञान वह है जो उस आध्यात्मिक जगत में प्राप्त होता है। उसकी प्राप्ति उच्च विचारों द्वारा ही हो सकती है।

कहावत है कि जैसे विचार करेंगे वैसे हो जायेंगे। दुनिया में विचार बल मुख्य माना गया है। संकल्प से सिद्ध होती है। आप उच्च कार्य करना चाहते हैं, उच्च बनना चाहते हैं, उच्च पद को प्राप्त करना चाहते हैं तो उच्च विचार कीजिए। हर समय ऊँचे दृष्टि कोण से वस्तुओं को देखिए और उनका स्वरूप निर्णय कीजिए। हीन विचार आदमी को नीच बना देते हैं उसके कार्य भी नीच ही होने लगते हैं। जो आदमी स्वार्थ की भावना से विचार करता है उसे तुच्छ वस्तुएँ नजर आवेंगी और उन्हीं में उलझा रहेगा। जिसे सुदूर स्थान को देखना है, नक्षत्रों का ज्ञान करना है उसे एक अच्छी दूरबीन जरूर रखनी पड़ेगी इसके बिना सफलता मिलना मुश्किल है। महान पुरुष बनने के लिए जिन गुणों की, जिस योग्यता की, जिस चेतना की आवश्यकता है वह उच्च विचारों के बिना नहीं आ सकती है। मनुष्य शरीर के हाड़माँस की कोई कीमत नहीं है। करोड़ों मनुष्य खाते खेलते और मरते रहते हैं। महत्व केवल विचारों का है। सुन्दर विचारों के ग्रहण करने के लिए आप महात्माओं के पास जंगलों में पहुँचते हैं। तत्व ज्ञानियों के पास साँसारिक वस्तुएं नहीं होती विचारों का अमृतपान करने के लिए ही दुनिया उन्हें घेरे रहती है। नेताओं के पास विचार ही तो होते हैं जिनके कारण असंख्य जनता उन पर अपना सर्वस्व चढ़ा देती है। विचार ही आदमी को उच्च बनाते हैं और वे ही वास्तविक उद्देश्य तक ले पहुँचते हैं।

इसलिए आपके दृष्टिकोण ऊंचा रहना चाहिए। हर बात पर निस्वार्थ, निष्पक्ष और उदारतापूर्वक विचार कीजिए। इसी ध्रुव तारे के आधार पर आप महान पुरुषों के महान पथ पर चले जायेंगे। परिस्थितिओं के कारण कुछ लोग ख्याति के विशेष अवसर पाते हैं, आपको ऐसे अवसर भले ही प्राप्त न हों पर वह गुणों को अपने अन्दर भर लेंगे जो मनुष्य को देवता बनाते हैं और उसे विकास के सर्वोच्च स्थान तक पहुँचा देते हैं।

उच्च विचार सादा जीवन में ही रह सकते हैं। तड़क भड़क वाले बनावटी जीवन में इतनी कृत्रिमताएं और अस्वाभाविकताएं घुस पड़ती हैं कि आदमी के लिए इस आडम्बर को संभाल रखना कठिन हो जाता है। बनावटी जीवन असत्य है। ऐसा असत्य जिसमें आदमी खुद भ्रम में पड़ जाते हैं और दूसरों को भ्रम में डाल देते हैं। उस भ्रम की रक्षा भी उन्हें करनी पड़ती है। इस सच का एक ऐसा विषय बन जाता है जो मस्तिष्क को बड़ी अशाँति में डाल देता है। दूसरे बनावटी जीवन के कारण झूठे अभिमान तथा ऐसे स्वभाव की उत्पत्ति होती है जिसके कारण बुरी बाते की ओर झुक पड़ने का भय रहता है। एक दार्शनिक का कथन है कि जितना ही तड़क भड़क को ग्रहण किया जा रहा है दुनिया उतनी ही लक्ष्य से दूर और दुखों के समीप पहुँच रही है।

सादा जीवन अल्प व्यय-साध्य है। उसके चलाने के लिए किसी विशेष कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता। सादगी में सौंदर्य होता है और वह शरीर की नहीं मन को भी सुन्दर बना देता है। सुन्दर शरीर और शान्त मन ही उच्च विचार कर सकता है। इसलिए इन दोनों का आपस में घना संबंध है। यदि आप महान बनना चाहते हैं, जीवन का फल प्राप्त करना चाहते हैं तो “सादा जीवन उच्च विचार” के सिद्धान्त को अपनाइये।

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