
निद्रा विज्ञान की कुछ बातें।
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(ले—विद्याभूषण पं0 मोहन शर्म्मा, विशारद्, पूर्व संपादक “मोहिनी” इटारसी)
विज्ञान के सूक्ष्मधी आचार्यों ने अपनी विविध खोजों द्वारा यह स्पष्ट प्रगट किया है कि यदि कोई मनुष्य 60 वर्ष पर्यन्त अपनी जीवन यात्रा चलाने की सामर्थ्य पाता है तो उसकी आयु के प्रायः 20 वर्ष सम्पूर्ण होने से अचेतन अवस्था में अर्थात् निद्रा देवी की सुखमयी नींद में ही व्यतीत हो जाते हैं। अवस्था प्राप्त करने पर मनुष्य क्रमशः दिन में और रात में 6-7 घण्टा निद्रा लेने पर भी अपनी शैशवावस्था में 15-20 घण्टा तक का समय इसी निद्रा में व्यतीत कर देता है। प्रायः निद्रा की प्रयोजनीयता सीमाहीन होने के कारण हम निद्रा के संबंध में विशेष रूप से चिन्ता करने के आदी नहीं हैं और मानव जीवन के अमूल्य समय का जो एक बड़ा भाग निद्रा लेने में समाप्त हो जाता है, उस पर विचार करने की हमारी प्रवृत्ति नहीं है। स्वस्थ और निरोगी मनुष्य शैय्या का आश्रय लेने के 5-7 मिनट के बीच में ही निद्रा में डूब जाता है और शरीर व मन के अस्वस्थ रहने पर बिस्तर पर करवटें बदलते तथा जागते हुये नींद के आवाहन में समय की बलि दे देनी पड़ती है। आरोग्यता सम्पन्न मनुष्य को प्रायः स्वप्न कम दिखाई देते हैं। मनुष्य की चिंता धारा से स्वप्नों का संबंध बताया गया है। चिंता और अधीरता मनुष्य को दुर्बलता में जकड़ रखती है। अतः स्वप्न दर्शन में यथार्थ में मनुष्य के रोगग्रसित होने तथा अस्वस्थ रहने का ही ज्वलन्त प्रमाण है। निद्रावस्था में मानव हृदय की स्पन्दन क्रिया मृदु हो जाती है। आँखों की पलकें बन्द होते ही दृष्टि चेतना सम्पूर्ण रूप से लुप्त होती रहती है। तदुपरान्त घ्राण शक्ति का सद्यः लोप होता है और क्रमशः श्रवण तथा स्पर्शेंद्रियाँ भी शिथिलीभूत हो उठती हैं। निद्रावस्था में सदैव मानवीय इन्द्रियों की चेतना विलुप्त होने का यह सिलसिला सर्वथा सुनिर्दिष्ट और सुनिश्चित ही है।
अवस्था प्राप्त व्यक्ति के पक्ष में निद्रा भंग होते ही शैय्या त्याग कर एकदम भागदौड़ करना या एकाएक उठ जाना अनुचित और हानिकर बताया गया है। निद्रा की अवस्था में हृदय की क्रिया मृदु रहती है। यह हम ऊपर ही कह चुके हैं। अतएव, उस क्रिया को पूर्ववत सचल और वेगवान बनाने के लिए कुछ समय देन की आवश्यकता हुआ करती है।
एक वैज्ञानिक पत्रिका में निद्रा के संबंध में इस आशय का लेख प्रकाशित हुआ था कि साधारणतः स्वास्थ्य संपन्न मनुष्य यदि नींद के नशे में एकदम गर्क हो जाने का अभ्यासी नहीं है तो निद्रावस्था में कई बार करवटें बदलता हुआ देखा जाता है। प्रायः 100 मनुष्यों को लेकर परीक्षा पूर्वक देखा गया है कि अन्ततः निद्रावस्था में यह करवट बदलने का क्रम बीस-पच्चीस बार तक चलता है। यदि बिस्तर नरम वा कोमल हुआ तो उसपर सोये हुए व्यक्ति के आराम का परिमाण भी बढ़ जाता है। अन्य प्रकार के क्षेत्रों में यह पार्श्व परिवर्तन की संख्या भी बढ़ जाती है। यह देखा गया है कि कोई तो दाहिने करवट लेटकर निद्रा के सुख का उपभोग करते हैं, कोई बायें करवट लेटने में आराम पाते हैं और कोई-2 उलटे होकर व चित्त लेट कर सोने के अभ्यासी रहते हैं। कई तो धनुष के समान मुड़कर विचित्र रूप से निद्रा लेते हैं। किन्तु इस प्रकार से नींद लेना प्रायः खतरे से खाली नहीं होगा। स्वास्थ्य-विज्ञान के विद्वानों ने निद्रा लेने के इस अजीब तरीके की बड़ी ही निन्दा की है और इसे स्वास्थ्य के पक्ष में नितान्त हानिकार बतलाया है।
दाहिनी करवट लेटकर सोना हृदय की आरोग्यता के लिए बहुत ही लाभजनक बताया गया है। इसी भाँति बाई करवट लेकर सोने में हृदय की कोई हानि नहीं होती किन्तु पाकस्थली में परिपाक संबंधी दोषों के उत्पन्न हो जाने की सम्भावना रहती है। जो लोग बायें हाथ का सहारा लेकर सोते हैं वे अजीर्ण और कोष्टबद्धता जैसे भयंकर रोगों को अपने भविष्य की बात करने के लिये निमन्त्रण दे रहे हैं, कहावत है—”अल्प निद्रा भयंकरी” अर्थात् थोड़ी नींद स्वास्थ्य के लिये सदैव ही हानिकारक है चाहे कितना ही काम का बोझ और कार्य का भार क्यों न उठाना पड़े किन्तु, 6 घण्टा पर्यन्त निद्रा लेना मनुष्य के लिये नितान्त आवश्यक है। जहाँ इस नियम की अवहेलना हुई वहाँ शरीर और मन की अवस्थाओं में फेरफार हुए बिना नहीं रहता। कहते हैं नेपोलियन बोनापार्ट केवल चार घण्टे पर्यन्त सोने का अभ्यासी था। ऐसी एक किंवदंती फ्राँस के गाँवों और घरों में सार्वजनिक रूप से प्रचलित है। परन्तु, इसकी सत्यता स्वीकार नहीं की जा सकती। यथार्थ में नैपोलियन 6 घण्टे तक सोता था, कभी-2 उसने 8 घण्टे तक भी नींद ली थी और एक बार वह निरन्तर 36 घण्टे तक निश्चिन्तता पूर्वक सोया हुआ देखा गया था। नींद के गाढ़े या पतले होने में अथवा कम या अधिक आने में पार्थक्य घटित होता है। यदि 10 घंटा पर्यन्त बिस्तरे पर लेटे रहने से प्रगाढ़ निद्रा न आती हो और अधिक समय तन्द्रा में ही व्यतीत हो जाय तो उससे 5 घन्टे की निद्रा आना कहीं अधिक स्वास्थ्यकर और सुखदाई है। कितने भी समय तक नींद ली जाय यदि उसमें मिठास का अनुभव हो तो उससे स्वास्थ्य में कोई दोष उत्पन्न होने की सम्भावना नहीं रहती। दूसरी ओर अधिक समय पर्यन्त नींद लेना भी ठीक नहीं है उससे बुद्धि वृत्ति मलिन होकर वह मनुष्य को दुर्बलचेता बना देती है आलस्य रूपी शत्रु आठों पहर उसके चारों ओर घेरा डाल देता है संसार के शुभ कर्मों में प्रवृत्ति नहीं रह जाती और चित्त एक विचित्र प्रकार की उदासीनता में निमग्न हो जाता है।
अधिक निद्रा बुद्धि वृत्ति की जाग्रति का हनन करता है और माँसपेशियों की बनावट में कोमलता तथा शिथिलता पहुँचाता है। मनुष्य मात्र के लिये अल्पनिन्द्रा सर्वतो भावेन वर्जित है। अंग्रेजी में एक प्रवाद है कि—
पुरुष के लिए 6 घण्टा, स्त्री के लिये 10 घण्टा, बालक के लिये आठ घण्टा और किसी मूर्ख के लिए 9 घन्टा निद्रा है। यद्यपि विज्ञान इस मत की पुष्टि नहीं करता। शारीरिक स्वास्थ्य और समूचे दिन भर के परिश्रम के भेदानुसार निद्रा काल में भी तारतम्य घटित होता है। तथापि यह बात भी ठीक है कि शीतकाल में निद्रा का समय वृद्धि को प्राप्त हो जाता है। और उसमें मानवीय स्वास्थ्य के हानि की कोई आशंका नहीं रहती।
किसी-2 को ग्रीष्म ऋतु की अपेक्षा शीतकाल में नींद की अधिक आवश्यकता हुआ करती है। मानव जीवन तत्व से निद्रा का अत्यन्त घनिष्ठ संबंध है। निद्रा कब लेना चाहिए, क्यों लेनी चाहिए और कितनी लेनी चाहिये इन प्रश्नों पर जो लोग सम्यक् रूप से विचार नहीं करते और निद्रा विज्ञान के नियमों का उल्लंघन करते हैं, उनका स्वर्ण जैसा शरीर भविष्यत् में नाना रोगों का आवास स्थल बन जाता है और उनकी आयु मर्यादा भी क्षीण होने लगती है। मनुष्य मात्र के लिये विवेकमय, स्वास्थ्य पूर्ण और सुख का जीवन व्यतीत करने के लिए निद्रा के नियमों की जानकारी हासिल करना नितान्त आवश्यक है। पश्चिमीय देशों के वैज्ञानिक आये दिन निद्रा विज्ञान के संबंध में नयी खोजों द्वारा अपने देशों को अनुप्राणित कर रहे हैं। हमारे प्राचीन भारत के ऋषि मुनियों ने जहाँ जीवन तत्व को सम्पूर्ण रूप से जानने की सामर्थ्य प्राप्त की थी वहाँ इस निद्रा विज्ञान के संबंध में भी अपने आश्चर्यजनक अनुभवों को संसार के लाभार्थ सर्वसाधारण पर प्रगट करा दिया था। किन्तु, वर्तमान काल में जीवन की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता इस निद्रा के विषय में हम अनेक दृष्टियों से असावधानता का परिचय देते आ रहे हैं अथवा निद्रा विज्ञान को एक उपेक्षणीय विषय मानते हैं यह हमारी नितान्त भूल है, और इसी के फलस्वरूप अपना स्वास्थ्य-सुख और ऐश्वर्य भी बहुत कुछ नष्ट भ्रष्ट कर दिया है।