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Magazine - Year 1940 - Version 2

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जीता जागता रेडियो

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(ले. मानस भ्रमर पं0 प्यारे लाल मिश्र, रामायणी व्यास, काशी निवासी)

रेडियो यन्त्र तुमने जरूर देखा होगा दिल्ली, कलकत्ता, बम्बई या लन्दन, बर्लिन आदि स्थानों पर उच्चारण किये हुए शब्द पलक मारते मारते तुम्हारे पास तक दौड़ आते हैं। रेडियो यन्त्र अपनी बिजली के कारण उन शब्दों को पकड़ लेता और उन्हें अपनी मशीन में ले जाकर ज्यों का त्यों सुना देता है। नाच, गाने, बातचीत, हँसी, रोना सब ध्वनियाँ ज्यों की त्यों सुनाई देती हैं। इतनी दूरी पर होने वाले शब्द क्षण भर में हमारे पास तक बिना किसी सहायता के दौड़ आवें यह कितने आश्चर्य की बात है।

बेतार के तार के निर्माता मारकोनी ने मालूम किया था कि अखिल ब्रह्माण्ड में ईथर नामक एक महातत्व व्याप्त है इसमें शब्दों की लहरें बहती रहती हैं। जैसे किसी तालाब में पत्थर फेंकने पर पानी उछलता है और फिर वह लहरों का रूप धारण करके वहाँ तक चलता है जहाँ पानी का छोर होता है। समस्त ब्रह्माण्ड में ईथर तत्व व्याप्त है। उस में शब्दों की लहरें चलती हैं और वह बड़ी तीव्र गति से एक सेकिण्ड में हजारों मील की चाल से बहती रहती हैं।

इतना जान लेने के बाद मारकोनी को एक आधार मिल पाया उसने दो प्रकार के यन्त्र बनाये एक तो ऐसा जो शब्द साथ में कुछ विशेष प्रकार के विद्युत परमाणु घोल देता या दूसरा वह जो उस प्रकार के विद्युत परमाणुओं को अपनी शक्ति से पकड़ लेता था। मारकोनी का कहना था कि इस कार्य में कोई बहुत बड़ा आश्चर्य नहीं है बेतार के तार का यन्त्र भी कोई बहुत कीमती चीज नहीं है। यह सब काम बहुत मामूली कल पुर्जों से होता है। आश्चर्य जनक खोज केवल ईथर तत्व और उसकी क्रियाशीलता के बारे में जानकारी प्राप्त करने की थी।

यह तो हुई जड़ रेडियो की बात। अब हम तुम्हें एक जीते जागते रेडियो की बात बताते हैं। यह मनुष्य का मस्तिष्क है। यह चैतन्य रेडियो, जड़ रेडियो की अपेक्षा कई दृष्टियों से उत्तम है। मामूली रेडियो दूसरी जगह के शब्दों को सुना सकता है पर उसके द्वारा दूसरी जगह खबर नहीं भेजी जा सकती। मगर मनुष्य का मस्तिष्क दोनों काम करता है उसके द्वारा टेलीफोन की तरह आवाज ग्रहण की जा सकती है। और भेजी जा सकती है। लकड़ी के फ्रेम वाले रेडियो की तरह मस्तिष्क द्वारा नाच गाने की आवाजें नहीं आतीं परन्तु जो कुछ भी आता है वह इन शब्दों से अधिक कीमती है।

मस्तिष्क विचारों का यन्त्र है। इसमें अनेक प्रकार के विचार उत्पन्न होते हैं। क्या वे विचार जो हर घड़ी बनते हैं बन बन कर किसी कोठरी में इकट्ठे होते रहते हैं? नहीं उत्पन्न होते हैं और शब्दों वाले ईथर से भी सूक्ष्म ईथर से लहरों के रूप में अपने चारों ओर फैल जाते हैं। वैज्ञानिकों ने विचारों की लहरों को भी ग्रहण करने का यन्त्र निकाल लिया है यह एक फोटो खींचने के कैमरे की तरह है। एक नवयुवक किसी सुन्दरी के चिन्तन में डूबा हुआ था उसके मस्तिष्क के पास यन्त्र को रख कर फोटो लिया गया तो उसी सुन्दरी की तस्वीर खिंच गई। इसी प्रकार क्रोध, क्षोभ शान्ति, प्रेम, विरह, खुशी, निराशादि भावनाओं के फोटो खिंचने लगें हैं इस यन्त्र की सहायता से जाना कर सकता है कि अमुक व्यक्ति क्या सोच रहा है।

विचारों की इन लहरों के बारे में बहुत कुछ बातें मालूम की गई हैं। यह भाप की तरह हवा में इधर-उधर उड़ते हैं और अपने ही सदृश और विचारों को पाकर उनसे मिल जाते हैं और जिस तरह भाप के छोटे-छोटे बुलबुले आपस में मिलकर एक बादल का रूप धारण कर लेते हैं उसी प्रकार विभिन्न मनुष्यों द्वारा सोचे गये एक प्रकार के विचार आपस में इकट्ठे होते रहते हैं और घनीभूत बन जाते हैं। यह तो हुई विचारों को फेंकने की बात, अब ग्रहण करने की सुनिये जिस तरह की बात कोई सोचना आरम्भ करता है और तरह की अनेक विचार बदलियाँ घुमड़ घुमड़ कर मस्तिष्क के पास दौड़ी आती हैं। मस्तिष्क में जो विचार फेंकने की शक्ति है वहाँ ऐसी भी शक्ति पर्याप्त मात्रा में मौजूद है जो अपनी इच्छित विचार सामग्री को इसमें से खींच भी सके। कोई आदमी किसी बात को सोच रहा है तो उसे उस सम्बन्ध में अनेक नई बातें मालूम हो जाती हैं। जितना गहरा सोच विचार किसी बात पर किया जाता है उतना ही ज्ञान अपने आप मिलता जाता है। यह नई बातें कैसे मालूम हुईं? बात यह है कि मस्तिष्क को अपने अधिक आकर्षक बनाया तो उसके पास बहुत से उसी प्रकार के विचार खिंच आये, जिन्हें उसने अपना लिया। सोचने पर जो नई नई बातें मालूम होती हैं वह कितने ही मनुष्यों के अनेक समयों पर सोची हुई चीज होती है मस्तिष्क उन्हें पकड़ लेता है और ख्याल करता है कि मेरी समझ में यह नई बात आ गई। अब इस बात में रत्ती भर भी सन्देह करने की गुंजाइश नहीं रह गई है कि मनुष्य का मस्तिष्क एक जीता जागता रेडियो है और वह विचारों को ग्रहण करने एवं छोड़ने के दोनों काम कर सकता है।

रेडियो एक सावधानी से काम में लेने की वस्तु है। कानून के अनुसार सावधानी से रखने की चीजों का लाइसेंस लेना पड़ता है। जहर, बन्दूक, बारूद, हथियार, नशीली चीजें रेडियो इन सब का लाइसेन्स लेना पड़ता है और सरकार को विश्वास दिलाना पड़ता है कि इन वस्तुओं का सदुपयोग करेंगे जो इन चीजों का दुरुपयोग करता है उसका लाइसेन्स जब्त कर लिया जाता है और सजा भुगतनी पड़ती है। जर्मनी से भेजे हुए खराब समाचारों को फैलाने में रेडियो का उपयोग करो तो सरकार तुम्हारा लाइसेन्स जब्त कर लेगी और दण्ड देगी। इसी प्रकार मस्तिष्क रूपी बहुमूल्य और अपार शक्ति वाले रेडियो का लाइसेन्स हमें प्राप्त करना चाहिये। उसका ठीक उपयोग करने के लिए पूरी सावधानी रखनी चाहिये अन्यथा अनर्थ हो जाएगा और भारी हानि उठानी पड़ेगी।

तुम्हारा मस्तिष्क एक ब्रॉडकास्ट स्टेशन है इसलिए सार्वजनिक सम्पत्ति है इसका दुरुपयोग मत करो प्रेम, दया, उदारता, मातृभाव और आनन्द के शुभ विचार इसके द्वारा प्रेरित करो। जिनसे दूसरों को सहायता एवं सुख शान्ति प्राप्त हो। अच्छे विचार अपनी लहरों को दूसरों के मानस तन्तुओं पर टकरायेंगे तो उनमें से मधुर संगीत पैदा होगा किन्तु यदि दुराचार, पाप, दुख, क्रोध, और भय के विचार फैलाओगे तो संसार को उनसे क्षति पहुँचेगी और लोगों को तुम्हारे कृत्य से कष्ट उठाना पड़ेगा। वे संन्यासी जो दूर जंगलों में रहते हैं किन्तु इस विज्ञान का गुप्त रहस्य समझते हैं। संसार की बड़ी भारी सेवा कर रहे हैं क्योंकि उनकी बलपूर्वक प्रेरित की गई उच्चकोटि की पवित्र विचारधारा जनता की मौन रूप से बड़ी भारी सेवा और सहायता करती है। तुम यदि अच्छे विचार करते हो तो चाहे हाथ पाँव से कुछ भी न करो तब भी संसार की सेवा करते हो। इसके विपरीत धर्मात्मा का वेष बनाकर भी नीच विचार करोगे तो परमात्मा के दरबार में पापी ठहराये जाओगे।

शुभ विचारों का आकर्षण भी अपने ही समान होगा। प्रेम और आनन्द के विचार करोगे तो संसार की सद्भावनाएं उमड़-उमड़ कर तुम्हारे ऊपर आवेंगी प्रसन्नता की छाया से चारों ओर ढक देंगी। कोई तुम्हारे साथ बुराई कर रहा हो उसको क्षमा करो और प्रेम से उसके हृदय की आग भुजाओं। कोई कठिनाई आवे तो न तो रोओ और न घबराओ। सुख दुखों की नश्वरता पर एक बार विचार करो और हंसते हुए उसका सामना करो। पीड़ितों को देखो तो उन पर दया और सहानुभूति भरी एक दृष्टि फेंक दी, पराई सम्पदा को देख कर ललचाओ मत। पाप बुद्धि से किसी भी पुरुष को मत देखो। संसार में सर्वत्र आत्मस्वरूप को देखो और प्रेम तथा प्रसन्नता के विचार फैलाओ।

तुम्हारा यह कार्य संसार की अद्भुत सेवा करेगा। तुम्हारा ब्रॉडकास्ट हर हृदय के रेडियो पर बड़ी शान्ति के साथ सुना जायेगा और तुम्हारा रेडियो दुनिया के अत्यन्त सुन्दर फूलों से सजा हुआ होगा।

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