पारस पत्थर कहाँ है?
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्री डॉ. शिवरतन लाल त्रिपाठी, गोला गोकरनाथ)
दुनिया में एक ऐसे पत्थर की कल्पना चली आती है जिसे छूने से लोहा सोना बन जाता है इस पत्थर को ‘पारस’ कहते हैं। अनेक किम्वदन्तियाँ इसके सम्बन्ध में चली आती हैं। कोई कहते हैं कि यह पहाड़ों पर कहीं होता है पहाड़ी चरवाहे बकरियों के खुरों में लोहे के नाल ठोक देते हैं वे कभी पारस के ऊपर होकर निकल जाती हैं तो लोहे के नाल सोने के हो जाते हैं। कोई कहते हैं कि सुअरिया का दूध यदि ईंटों पर पड़ जाय तो वह सोने की हो जाती हैं। कथाकारों ने भी इस सम्बन्ध में कई कहानियाँ गढ़ी हैं। राजा चन्देल के यहाँ पारस था ऐसा कहा जाता है। इन सब बातों में कितना सत्य है यह जानना कठिन है पर इतना निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि इस युग के विज्ञान खोजियों को अभी तक इस प्रकार की किसी वस्तु का संसार भर में पता नहीं लगा है जिसे छूने से लोहा सोना हो जाता हो।
बहुत से लोग पारस पत्थर या इसी प्रकार की किसी वस्तु की तलाश में रहते हैं। जिसके द्वारा वे आसानी से पर्याप्त सुख सामग्री पा सकें। असल में ऐसा पत्थर परमात्मा ने सबको दे रखा है इसका उपयोग करना न करना अपनी कुशलता पर निर्भर है। दृढ़ विचार, आत्म संयम, कर्म निष्ठा और जिज्ञासा ऐसे गुण हैं जिनके मिलने पर पारस पत्थर बन जाता है। इन चारों गुणों के मिलने से जो बुद्धि बनती है वह ऐसी होती है कि जो उसे छू ले वही सोने का हो जाय।
अमेरिका का धनकुबेर जानएस्टर एक गरीब आदमी था। उसने थोड़े से रुपयों से चमड़े का व्यापार शुरू किया। इसी सिलसिले में वह अपनी नाव को उत्तर ध्रुव तक ले पहुँचा और अपनी कर्म निष्ठा के बल पर कुछ ही दिनों में विपुल सम्पत्ति का स्वामी बन गया।
फोर्ड मोटरों का संसार प्रसिद्ध निर्माता हैनरी फोर्ड बड़ी कठिनाई से मोटरों का कारखाना खोल सका था किन्तु अपनी दूरदर्शिता और अध्यवसाय से उस कारोबार को इतना ऊंचा बढ़ा लिया कि वह संसार का सर्वोच्च धनपति समझा जाता है। हैटीक्रीन नामक एक महिला का पति उसे कई बच्चों की माँ बनाकर भिखारिन की दशा में छोड़ मरा था। किन्तु वह हताश नहीं हुई और सस्ती चीजें खरीद कर उन्हें महंगी बनाकर बेचने का व्यापार शुरू किया कुछ ही दिनों में वह अमेरिका की लक्ष्मी बन गई टेम्सा प्रान्त की रेलवे कम्पनी तक उसकी हो चुकी थी। प्रसिद्ध तेली जान राम केलर बचपन में एक तेली के यहाँ नौकर था और तेल बेचकर अपना पेट भरता था। उसका मन इसी तेल के व्यापार की तह तक घुसा और इस सम्बन्ध के गूढ़ रहस्यों को उसने जाना। जो कुछ पैसे उसके बचाये थे उन्हीं को लेकर उसने तेल की तिजारत आरम्भ कर दी। अन्तिम समय में उसके पास इतनी सम्पत्ति थी कि अगर सृष्टि के आरम्भ से लेकर अब तक उस सम्पत्ति में से 1400 रोज खर्च किये जाए तो सिर्फ उसकी आधी दौलत खर्च हो पाती। यह तेली अपनी विपुल सम्पत्ति में से 26 करोड़ रुपया हर साल तो धर्म पुण्य में खर्च करता रहता था। क्या आप समझते हैं कि इतनी सम्पदा बिना पारस पत्थर के कमाई जा सकती है।
घुमक्कड़ रोबिन्सन क्रूसो और कोलम्बस ने जिन कठिनाइयों का सामना करके स्वप्नतुल्य स्थानों को जाना क्या वे बिना पारस की मदद के जान लिये गये थे? ग्रामोफोन के आविष्कारक मिट एडीसन, रेलगाड़ी के निर्माता सर जेम्सवाट बेतार के तार को खोज निकालने वाले मार्कोनी जिस वस्तु की सहायता से उन अलभ्य वस्तुओं को बना सकने में समर्थ हुए थे वह पारस पत्थर ही था। अन्यथा वह हैरत में डालने वाली वस्तुएं कैसे बन जातीं।
एक जुलाहे को कबीर, घसखोदे को कालिदास, डाकू को बाल्मीकि, मोची को मुसोलिनी, एक आवारा को हिटलर, गड़रिये को ईसा के रूप में देखते हैं तो विश्वास करना पड़ता है कि इन्हें पारस पत्थर जरूर मिला होगा, वरना इतना अद्भुत परिवर्तन कैसे हो जाता?
निश्चय ही पारस का बीज हर एक आदमी के अन्दर रहता है और अगर वह चाहे तो उसे खोज कर निकाल सकता है। हम लोग बहुत होशियार और चालाक बनते हैं अपने को सुखी और कमाऊ पूत समझते हैं परन्तु यह होशियारी उस बन्दर जैसी है जो चने के दाने देखकर हाथ में रखी हुई रुपयों की थैली को एक ओर पटक देता है और चने खाने के लिए दौड़ पड़ता हैं।
आराम से पड़े रहना, अच्छा खा पहन लेना, मौज शौक की चीजों में मन बहलाना इन्हें पाकर हम समझते हैं कि जीवन धन्य हो गया और सब कुछ पा लिया आगे के लिए उनकी कोई इच्छा और आकाँक्षा ही नहीं होती। जितना जानते हैं उसी पर घमण्ड करते हैं और आगे की बात जानने की कोई जरूरत नहीं समझते। अपने आस-पास के किसी थोड़े से जानकार को देखिये वह अपनी योग्यता पर बहुत ऐंठा हुआ मिलेगा, इससे ज्यादा सीखने की उसे जरूरत महसूस न होती होगी। हर आदमी चाहता है कि कम परिश्रम में ज्यादा नफा हो जाय। बिना जोखिम में पड़े छप्पर फाड़ कर खजाना टपक पड़े। भला कहीं ऐसा हो सकता है? जो लोग थोड़ा सा उत्साह दिखाते हैं वह जरा सी कठिनाई आने पर उसे छोड़ देते हैं और एक चीज से दूसरी पर भटकते हैं फलस्वरूप उन्हें किसी भी काम में सफलता नहीं मिलती और वे अपने भाग्य को कोस कर रह जाते हैं।
जो अपने लोहे को सोना बनाना चाहते हों, जिन्हें पारस पत्थर की तलाश हो, वह उन 4 वस्तुओं को प्रचुर मात्रा में इकट्ठा करें जिनके मिलने से पारस सिद्ध बन जाती है। स्मरण रखो- दृढ़ विचार, आत्म संयम, कर्म निष्ठा और जिज्ञासा चार वस्तुओं के मिल जाने से सोना बनाने वाली पारस बुद्धि बनती है वह जिधर भी झुक पड़ती है उधर ही सोने के पहाड़ खड़े कर देती है।
जितना जानते हो उससे अधिक जानने को हर घड़ी कोशिश करते रहो, इन्द्रियों के गुलाम मत बनो और न आलस्य को ही अपने पास फटकने दो। काम को देखकर घबराओ मत, उसे पूरा करने के लिए मशीन की तरह जुट जाओ जितना अधिक काम करो उतनी ही अधिक प्रसन्नता का अनुभव करो। काम का तरीका ठीक रखो। ऐसा न हो कि जाना है पूर्व और पश्चिम को दौड़ पड़ो। अपनी बात पर मजबूत रहो, अपने काम पर श्रद्धा और विश्वास रखो, बार-बार विचारों को मत बदलो, यदि अपनी कार्यपद्धति सच्ची मालूम पड़ती है तो उस पर दृढ़ रहो किसी भी कठिनाई के आने पर मत डिगो। यह गुण तुम्हारे अन्दर जैसे जैसे बढ़ते जाएंगे वैसे ही वैसे भाग्य निर्माण होता जायगा। बाहम को सहायता, उपयुक्त साधन, पथप्रदर्शन और कठिनाइयों का हल अपने आप प्राप्त होता जायेगा। भीतर के यह गुण बाहर की सुविधाएं तुम्हारे सामने इकट्ठी करते चलेंगे। मोटी और स्थूल बुद्धि खराब भाग्य, ऐसी तेजी और सुन्दरता के साथ बदलने लगेंगे मानो किसी ने जादू कर दिया हो। कुछ ही दिनों में अनुभव करोगे कि तुम खुद पारस पत्थर हो, जिसे छूते हो उसे ही सोना बना देते हो।

