• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • यह शरीर ही ईश्वर नहीं है
    • अखंड ज्योति के नियम
    • मनुष्य को देवता बनाने वाली पुस्तकें!
    • धन्यवाद
    • यदि आप
    • श्री तीर्था अंक
    • आत्म बुद्धि
    • आत्म बुद्धि
    • धर्म की रक्षा करो
    • वेदों का अमर संदेश
    • प्रार्थना का गुप्त रहस्य
    • Quotation
    • आत्म-तिरस्कार का फल
    • बोझ-ईश्वर पर डालो
    • तुच्छ स्वार्थों को छोड़िये
    • ‘प्रेम-दर्द’
    • Quotation
    • ईश्वर भक्ति का मार्ग
    • विचारों का प्रचंड बल
    • पुरुषों ! पुरुषार्थ करो !
    • शिखा के लाभ
    • Quotation
    • इन्सान पर शैतान की छाया
    • प्रसन्न रहने के उपाय
    • दुःखों का बाप-ममत्व
    • Quotation
    • पूरी साँस
    • Quotation
    • जप-योग
    • कुसुम-चयन
    • क्या यह सच है?
    • कर्त्तव्य-पालन
    • पवित्रता
    • समय का मूल्य
    • माँ और बेटा
    • माया
    • माया
    • मन से
    • मन से
    • समालोचना
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • यह शरीर ही ईश्वर नहीं है
    • अखंड ज्योति के नियम
    • मनुष्य को देवता बनाने वाली पुस्तकें!
    • धन्यवाद
    • यदि आप
    • श्री तीर्था अंक
    • आत्म बुद्धि
    • आत्म बुद्धि
    • धर्म की रक्षा करो
    • वेदों का अमर संदेश
    • प्रार्थना का गुप्त रहस्य
    • Quotation
    • आत्म-तिरस्कार का फल
    • बोझ-ईश्वर पर डालो
    • तुच्छ स्वार्थों को छोड़िये
    • ‘प्रेम-दर्द’
    • Quotation
    • ईश्वर भक्ति का मार्ग
    • विचारों का प्रचंड बल
    • पुरुषों ! पुरुषार्थ करो !
    • शिखा के लाभ
    • Quotation
    • इन्सान पर शैतान की छाया
    • प्रसन्न रहने के उपाय
    • दुःखों का बाप-ममत्व
    • Quotation
    • पूरी साँस
    • Quotation
    • जप-योग
    • कुसुम-चयन
    • क्या यह सच है?
    • कर्त्तव्य-पालन
    • पवित्रता
    • समय का मूल्य
    • माँ और बेटा
    • माया
    • माया
    • मन से
    • मन से
    • समालोचना
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1941 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


विचारों का प्रचंड बल

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 18 20 Last
(डा. भगवान स्वरूप वर्मा ‘शूल’ आन्तरी )

मोटे तौर पर ‘विचार’ शब्द का अर्थ ‘सोचने की क्रिया किया जाता है। किन्तु आध्यात्मिक पथ पर अग्रसर होने वालों के लिए इसका अर्थ दूसरा ही है, उन्हें विचार कर अर्थ सृष्टि करना या रचना करने की क्रिया करना चाहिए। यह विशाल भूमण्डल किसी समय विधाता का विचार मात्र रहा होगा।

संसार में सब से शक्तिशाली वस्तु विचार है। कोई भी विचार अपने अच्छे या बुरे प्रभाव से खाली नहीं है। हृदय में घृणा के विचारों का उदय होने से देह में से एक प्रकार का विष निकलने लगता है। जो चारों ओर फैलता है और पास रहने वालों को हानि पहुँचाता है। इसी भाँति जब प्रेम कृपा या उदारता के विचारों का उदय होता है तो वे अपने निकटवर्ती प्राणियों में सन्तोष और शान्ति फैलाते हैं। सम्माननीय श्री बर्टरेण्ड रसल का मत है कि- विचारों में जैसी फलदात्री शक्ति है, वैसी किसी भी वस्तु में नहीं है। जो व्यक्ति उपकार और उन्नति के संबन्ध में कल्पना या मनन करते रहते हैं, वे अदृश्य रूप से संसार की बड़ी सेवा करते हैं।

विश्व में अनेक सूक्ष्म शक्तियाँ हैं। यद्यपि हम उन्हें आँखों से नहीं देख सकते तथापि उनको स्वीकार करते हैं। हवा आँखों से नहीं दिखाई पड़ती परन्तु उसका होना असिद्ध नहीं है। गर्मी से पानी भाप बन कर आकाश की ओर जाते हुए दिखाई नहीं देता परन्तु फिर भी इस बात को सब जानते है इसी तरह विचारों को खुली हुई आँखों से नहीं देखा जा सकता परन्तु उनकी भी पानी और हवा के समान तरंगें बहती हैं। विचारों की लहरों में एक बड़े गजब की ताकत यह है कि वह अपने समान अन्य विचारों को बड़ी शीघ्रता से खींच कर इकट्ठा कर लेती है। यदि तुम्हारे आंखों में विचारों की लहरों को उड़ते हुए देखने की शक्ति होती तो देखते कि हरे एक मनुष्य के मस्तिष्क में से बिजली या वायु की जैसी अगणित लहरें छूट- छूट कर आकाश में फैलती जा रही हैं। जब मनुष्य का विचार बदलता है, तभी इन लहरों का रंग रूप भी बदल जाता है। दया की लहरें एक तरह की होंगी तो छल की बिलकुल दूसरी तरह की। हाँ, एक ही प्रकार के विचार चाहें वे अलग अलग मनुष्यों द्वारा ही भले किये गये हों, उनका रंग रूप बिलकुल एक सा होगा । यह लहरें एक सी होने के कारण आकाश में आगे जाकर आपस में उसी तरह मिल भी जाती है। बहुत सी भाप इधर-उधर से इकट्ठी होकर बादल बन जाती है।

ऊपर बताया जा चुका है कि विचारों में आकर्षण शक्ति होती है और वह अपने सदृश लहरों को तुरन्त ही आकर्षित कर लेती हैं। हजारों मील दूर उड़ते हुए विचारों को हमारे पास तक आने में शायद ही एक दो सेकिंड लगें, इतनी तेज इनकी चाल होती है। जब तुम्हारे मन में क्रोध के विचार उदय होते हैं। तो उसी तरह के विचार, चाहे वे किसी द्वारा इसी समय या हजारों वर्ष पूर्व किये हों, आकाश में से तुम्हारी ओर दौड़ पड़ते हैं और तुम्हारे मस्तिष्क में आकर्षण होने के कारण आकर चिपक जाते हैं। फलस्वरूप क्रोध उत्तरोत्तर बढ़ता जाता है। जो लोग बुरे विचार करते है, वो सचमुच कुछ ही समय में बहुत बुरे बन जाते हैं। एक महापुरुष का कथन है कि- “जब तुम कहते हो कि मैं जीव हूं, तब जीव हो और जब कहते हो कि मैं शिव हूँ तो शिव हो।” उसके कथन का तात्पर्य यही है कि जैसा तुम अपने को समझते हो, जैसे विचार करते हो, वैसे ही बन जाते हो।

सम्मिलित रूप से विचार करने पर तो यह शक्ति ओर भी प्रवाल हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति रोज-रोज आपस में बीमारी, मौत, गरीबी, तकलीफ की ही चर्चा करते रहें तो वे वैसे ही बन जायेंगे। अमुक मर गया, अमुक बीमारी से छटपटा रहा है। अमुक एक एक पैसे को तबाह है। अमुक का शरीर बीमारी से जर्जर हो रहा है । यदि इस प्रकार की कहानियाँ ही बार-बार कही सुनी जाय तो वैसे ही मानस चित्र बनेंगे और वे बीमारी तथा दुख की जीवन घातिनी लहरें अपनी ओर खींचेंगे। फलस्वरूप वैसी ही परिस्थितियाँ इकट्ठा हो जाएगी और कहने- सुनने वाले किसी भयंकर रोग या शोक में फँस जायेंगे। यदि ऐसे लोगों के बीच में रहो जो दुख दरिद्र के ही सोच विचार करते रहते हों, तो उनके विचार तुम्हारा भी अनिष्ट किये बिना न रहेंगे।

अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ञ्जद्धद्ग द्यद्बद्धद्ग द्गक्द्गह् द्यड्डह्यह्लद्बठ्ठद्द (अनन्त जीवन) में श्रीमती मेरी कोरेली (रुड्डह्द्बद्ग ष्टशह्द्गद्यद्यद्ब) ने उदासीनता, निराशा और कायरता के विचारों का भली-भाँति दिग्दर्शन कराया है। उसकी कथा के अनुसार कुमारी हरलेण्ड समुद्र-तट पर स्वास्थ्य लाभ के निर्मित गई हैं और अपने रोग का कारण अपने ही श्रीमुख से एक व्यक्ति से संवाद करती हुई कहती हैं। “मुझे यह बड़ा अच्छा लगता है कि कोई हमेशा मेरे लिये दुख की सहानुभूति प्रकट करता रहे, दुख दर्शाता रहे, मुझसे धीरज बंधाने वाली बातें कहता रहे । मेरे हृदय में सदा चिन्ता और दुख के विचार उठा करते हैं। दूसरे मनुष्यों के संबन्ध में मुझे यही प्रतीत होता रहता है। कि संसार में दुखी मनुष्यों का ही निवास है। वे असहाय पड़े-पड़े दुख भोग करते हैं। जेल खाने में सड़ते हुए कैदी, अस्पतालों में पड़े हुए बीमार, भूख से तड़पते हुए भिखारी, रोते हुए विरही, इन्हीं के चित्र मेरे सम्मुख आते रहते हैं और उन्हीं को देख-देख कर मैं रोती रहती हूँ। मुझे प्रतीत होता है कि जीवन में दुखों का ही सागर लहरा रहा है। सुख तो कहीं है ही नहीं।” पाठको! क्या तुम सोचते हो कि इस प्रकार के विचारों में ही लीन रहने वाला व्यक्ति क्या सुखी रह सकता है। उपरोक्त विचार प्रकट करने वाली कुमारी हेरलेण्ड यद्यपि स्वयं नहीं जानतीं कि मेरी बीमारी का असली कारण क्या है परन्तु असल में यही कारण था जो उसने अपने आप कह डाला । विचार अपना एक स्वरूप बनाते हैं और वह अपना असर पहले-पहले अपने बनाने वाले पर करते हैं। कहते है कि बिच्छू जब अपनी माँ के पेट में होता है तो वहाँ का माँस खाना आरंभ करता है और जब उसे पूरी तरह खा लेता है, तो पेट फाड़ कर बाहर दूसरों को खाने निकलता है। यही दशा बुरे विचारों की है।

एक समय राल्फ बोल्डो ट्राइन के साथ एक बड़ा ही मनोरंजन वार्तालाप हुआ । उनके एक मित्र ने उनसे बातचीत करते हुए कहा मेरे-पिता जी हमेशा चिन्ता ग्रस्त रहते हैं। मि. राल्फ ने उत्तर में कहा-”हाँ मुझे मालूम है कि उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं है । वे निर्बल, आलसी और दुखी रहते हैं।” यह उत्तर सुनकर मित्र को आश्चर्य हुआ । उसने पूछा “आपने कभी मेरे पिता जी को न तो देखा है न सुना है फिर कैसे जान लिया कि वे बीमार रहते हैं?” “राल्फ ने हँसते हुए कहा अभी तुमने ही तो कहा था कि वे चिंतित रहते हैं। मैं जानता हूँ कि जो चिन्तित रहता है उसे अवश्य ही बीमार और दुखी होना चाहिए ।”

पाप, द्वेष, घृणा, ईर्ष्या और निराशा की विचार तरंगों में एक प्रकार के प्राणघातक सूक्ष्म जन्तु (Germs) होते हैं। जो मनुष्य की जीवनी शक्ति को खा डालते हैं। फलस्वरूप मनुष्य बीमार पड़ते हैं, दुखी होते हैं। और अल्पायु में ही मर जाते हैं। इसके विपरीत प्रेम, उदारता, परोपकार और प्रसन्नता में बिल्कुल दूसरी ही बात है। वे न केवल निरोग रखते है वरन् दूसरे सद्गुणों की वृद्धि करके दीर्घ जीवन प्रदान करते हैं। उत्तम विचार करने वाले मनुष्य का रक्त शुद्ध रहेगा और उसकी बुद्धि ऐसी निर्मल रहेगी कि स्वल्प परिश्रम से ही बहुत ज्ञान संपादन कर लेगी।

आध्यात्मिक चिकित्सक अपने विचारों द्वारा ही दूसरों के रोग दूर कर देते हैं। वे रोगी के हृदय में पवित्रता, उत्साह और प्रसन्नता के भाव उत्पन्न करते हैं। जिससे उनके रक्त के विषैले कीटाणु नष्ट होने लगते हैं और निर्बल अंग फिर से जागृत होकर अपनी क्रियायें करने में समर्थ हो जाते हैं।

First 18 20 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • यह शरीर ही ईश्वर नहीं है
  • अखंड ज्योति के नियम
  • मनुष्य को देवता बनाने वाली पुस्तकें!
  • धन्यवाद
  • यदि आप
  • श्री तीर्था अंक
  • आत्म बुद्धि
  • आत्म बुद्धि
  • धर्म की रक्षा करो
  • वेदों का अमर संदेश
  • प्रार्थना का गुप्त रहस्य
  • Quotation
  • आत्म-तिरस्कार का फल
  • बोझ-ईश्वर पर डालो
  • तुच्छ स्वार्थों को छोड़िये
  • ‘प्रेम-दर्द’
  • Quotation
  • ईश्वर भक्ति का मार्ग
  • विचारों का प्रचंड बल
  • पुरुषों ! पुरुषार्थ करो !
  • शिखा के लाभ
  • Quotation
  • इन्सान पर शैतान की छाया
  • प्रसन्न रहने के उपाय
  • दुःखों का बाप-ममत्व
  • Quotation
  • पूरी साँस
  • Quotation
  • जप-योग
  • कुसुम-चयन
  • क्या यह सच है?
  • कर्त्तव्य-पालन
  • पवित्रता
  • समय का मूल्य
  • माँ और बेटा
  • माया
  • माया
  • मन से
  • मन से
  • समालोचना
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj