Magazine - Year 1945 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
दुःखों को देखकर डरिये या घबराइए नहीं।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
आप दुःखों को देखकर डरिये मत, घबराइये मत, काँपिये मत, उन्हें देखकर चिंतित या व्याकुल मत हूजिए, वरन् उन्हें सहन करने के लिए तैयार रहिए। जब दुख आपके सामने आवें तो छाती खोलकर खड़े हो जाइए और मुस्कराते हुए साहस के साथ कहिए-
“ऐ आने वाले दुःखों! आओ!! ऐ मेरे बालकों, चलो आओ! अपनी भूलों द्वारा मैंने ही तुम्हें उत्पन्न किया है, मैं ही तुम्हें अपनी छाती से लगाऊंगा। दुराचारिणी वेश्या की तरह तुम्हें ‘जार-पुत्र’ समझ कर छिपाना या-भगाना नहीं चाहता, तुम सती साध्वी के धर्म पुत्र की तरह आओ, मेरे अँचल में क्रीड़ा करो। मैं काया नहीं हूँ जो तुम्हें देखकर रोऊं, मैं नपुँसक नहीं हूँ जो तुम्हारा भार उठाने से गिड़गिड़ाऊं। मैं मिथ्याचारी नहीं हूँ जो अपने किये हुए कर्म का फल भोगने से मुँह छिपाता फिरूं। ऐ कष्टों! ऐ मेरे अज्ञान के कुरूप मानस पुत्रों!! चले आओ, मेरी कुटी में तुम्हारा स्वागत है। मैं तुम्हें देखकर घबराता नहीं, डरता नहीं, तुमसे बचने के लिए किसी की सहायता नहीं चाहता वरन् एक कर्त्तव्य-निष्ठ, बहादुर मनुष्य की तरह तुम्हें स्वीकार करता हूँ।”
दुःख एक दयालु डॉक्टर की तरह है जो एक बार फोड़े की चीर कर चिर संचित मलों की दुःखद वेदनाओं को सदा के लिए दूर कर देता है। ऐसा डॉक्टर हमारे आदर का पात्र होना चाहिए यदि दुःख आवे तो हमारे घर में उसका सुख की भाँति स्वागत होना चाहिए। दुख और सुख को समान समझने वाला ही विवेकवान कहा जाता है।