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Magazine - Year 1945 - Version 2

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पायरिया रोग-उसका कारण और निवारण

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(ले.- डॉ. बिट्ठलदास मोदी, आरोग्य मंदिर, गोरखपुर)

पायरिया आज तक बहुत ही प्रचलित रोग है। स्टेशन, गाड़ी, बाजार जहाँ कहीं भी देखिए इस रोग की दवा बिकती दिखाई देगी। आप जरा भी ध्यान दें, तो इसकी दवा बेचने वाला इस रोग के सारे लक्षण गिना जायगा- “अगर सवेरे उठने पर मुँह खारा लगता हो, मुँह में बदबू आती हो, पानी दाँतों में लगता हो, मसूड़े फूल गये हों, उनसे पीव निकलती हो, दाँत हिलते हों तो यह मंजन मिनटों में आराम करता है।” रोगी लक्षणों को सुनते हैं, अपने कष्टों से मिलाते हैं और जब लक्षण मिल रहे हैं तो दवाई ठीक होगी यह समझ कर अपनी गाँठ कटाते हैं।

यह तो हाल है उनका जो चार पैसे खर्च कर सकते हैं। जो दो चार रुपये खर्च कर सकते हैं वे बड़े केमिस्ट की दुकान पर जाते हैं और सुन्दर पैकिंग बन्द गला-सड़ा पेस्ट-पाउडर खुशी खरीद लाते हैं। ऊपर से रुपये आठ आने का (अब दो रुपये का) ब्रुश जल्द ही गन्दगी का घर बन जाता है और यदि दाँत रोगी न भी हों तो करके ही छोड़ते हैं।

यह रोग आज की सभ्यता की देन है। ज्यों-ज्यों हमारा आकर्षण डिब्बा में बन्द खाद्य, सफेद चीनी, सफेद मैदा, पालिश वाले चावलों की ओर बढ़ता जा रहा है त्यों-त्यों इस रोग से आक्राँत लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।

भोजन का खास कारण-

शरीर जिन तत्वों से बना है उनमें बहुत से क्षार भी हैं। वे हमारे भोजन में होने ही चाहिये। इन क्षारों की खान हैं चोकरदार आटा, कन समेत चावल, भूसी समेत दाल, कच्चा दूध और सभी ताजे फल एवं हरी कच्ची तरकारियाँ। यदि इनका समुचित व्यवहार किया जाय तो कभी यह रोग न हो।

कैल्शियम की कमी-

लोग अक्सर कहा करते हैं कि चीनी खाने से दाँत खराब हो जाते हैं। बहुत अंश में सही है। गन्ने के रस अथवा गुड़ से जब चीनी बना दिया जाता है तब उसमें कैल्शियम का अंश नहीं रह जाता है और चीनी कैल्शियम साथ के बिना पचती नहीं। अतः चीनी के पाचन के लिए कैल्शियम हड्डियों से खिंच कर आता है और हड्डियों को कमजोर बना देता है। इसका प्रभाव शरीर के अंदर की हड्डियों के पूरे ढांचे पर पड़ता है। पर दाँत बाहर होने के कारण उसके प्रभाव उन पर प्रत्यक्ष दिखाई देता है।

अतः दाँत के रोग खोने हैं तो सबसे पहिले भोजन में कैल्शियम की मात्रा समुचित करना चाहिये। एक समय के भोजन में दस ग्रेन कैल्शियम की जरूरत होती है। यह दस ग्रेन कैल्शियम साधारण तथा खाये जाने वाले खाद्य पदार्थ चोकर रहित आटे की छोटी रोटी, छंटे चावल, केले, मूंगफली, नारियल, हरी मटर आदि में करीब ढाई सेर में मिलता है और बादाम, अंजीर, खजूर में करीब एक सेर में और फूल गोभी, टमाटर, लौकी, गाजर, खीरा, पालक में आधा सेर में दस ग्रेन कैल्शियम मिल जाता है और यही दस ग्रेन कैल्शियम नौ छटाँक दूध, सात नारियलों तथा पौन छटाँक तिल में मिल जाता है।

दाँतों के रोगी को इस तालिका से लाभ उठाकर अपने भोजन में कैल्शियम प्रधान भोजन की मात्रा अधिक करने की ओर ध्यान देना चाहिए।

कसरत आवश्यक-

और अंगों की तरह दाँतों की कसरत भी आवश्यक है। वह उन्हें हलुआ-पूड़ी खाने से नहीं वरन् सूखी मेटी, कच्ची तरकारियाँ पक्के कड़े फल चबाने से ही मिलती है। अगर दिन में किसी वक्त मुट्ठीभर भिगोया हुआ गेहूँ अंकुरित कर लिया जाय तो और भी लाभ होगा। अंकुरित गेहूँ में विटामिन ‘ई’ भी पैदा हो जाता है जो बाँझपन, नपुँसकता, जच्चा का दूध कम होना, गर्भपात होते रहना तथा जख्म जल्दी न भरना आदि की मानी हुई दवा है। गेहूँ का प्रयोग कब्ज तोड़ने की भी एक अचूक औषधि है।

दाँतों की तकलीफ के साथ जिनके मसूड़ों में भी तकलीफ रहती हो वे अपने भोजन में विटामिन सी प्रधान खाद्य के व्यवहार का भी ध्यान रखें। विटामिन सी संतरा, नीबू, टमाटर, पत्तागोभी, प्याज, लहसुन, अनानास और अंगूर में अधिकता से होता है। मसूड़ों से कसरत होनी चाहिये। इसके लिए उन्हें दातुन करने के बाद अंगुली की पोर के सहारे बाहर भीतर हल्के हल्के रगड़ना चाहिए।

विशेष प्रयोग-

जिनका रोग बढ़ गया है उन्हें अपने मसूड़ों पर दस पन्द्रह मिनट तक भाप भी नित्य कुछ दिनों तक लगानी चाहिए। एक लोटे में थोड़ा पानी डालकर आग पर चढ़ा दीजिये, भाप निकलने लगे तो लोटे के मुँह पर एक चिलम उलटी रख दीजिए। चिलम की नली से भाप निकलने पर इच्छित स्थान पर भाप मजे में ली जा सकती है। भाप लेने के बीच में दो तीन बार ठण्डे पानी का एक दो कुल्ला भी करना चाहिए। यदि चेहरे पर भी भाप लगे तो परवाह न कीजिए। चेहरे पर भाप लगने के बाद सरसों का तेल अथवा गिरी का तेल और नींबू का रस मिलाकर रात को लगाने से त्वचा पर रंगत आती है। जिसे लाने की शक्ति किसी क्रीम, पाउडर, पोमेड या लोशन में नहीं है।

दो बात दाँतों की सफाई के बारे में भी जानिये। दाँतों को रोज सबेरे उठने पर और सोने के पहले नीम, बबूल या किसी चीज के दातुन से अच्छी तरह साफ कीजिये। रात को सोते समय दातुन करना सवेरे दातुन करने से ज्यादा आवश्यक है। दाँतों में फँसी चीज दिन को मुँह खुला रहने से तो कम सड़ती है, पर रात को जब मुँह बन्द हो जाता है तो उसे बन्द जगह में सड़ने का अधिक मौका मिलता है। दाँतों को कभी सींक, नाखून या सुई से न खोदिए। जब कभी साफ करने की जरूरत मालूम पड़े तो एक छोटा सा रेशम का डोरा लेकर उसे साफ कर लीजिये। दाँतों में कोई भी बाजारू दवा लगा कर उन्हें निकम्मा न बनाइये। दवा लगानी हो सेंधा नमक मिलाकर सरसों का तेल अथवा नीबू का रस लगाना काफी होगा।

भोजन के बाद मूली, गाजर, खीरा, ककड़ी, सेब, अमरूद सी कोई कड़ी चीज खाना न भूलिये। इनको चबाकर खाने से दाँत साफ होंगे। फल और तरकारियों का क्षार, दाँतों को साफ करता है। इनका कोई अंश दाँतों में रह भी जाय तो उतनी जल्दी नहीं सड़ता जितनी पकी चीज का।

इन्हीं नियमों पर चलाकर मैंने कितने ही दाँतों के रोगियों की अपने आप स्वस्थ होने में सहायता दी है। आप इन्हें आजमाइये और फिर दाँत की शिकायत करने की आपकी आदत छूट जायगी।

इन्हीं नियमों पर चलाकर मैंने कितने ही दाँतों के रोगियों की अपने आप स्वस्थ होने में सहायता दी है। आप इन्हें आजमाइये और फिर दाँत की शिकायत करने की आपकी आदत छूट जायगी।

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