• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • दुःखों को देखकर डरिये या घबराइए नहीं।
    • शठे शाठ्यं समाचरेत्
    • जड़, अपने अन्दर है।
    • Quotation
    • सब अनर्थों की जड़-मानसिक दासता।
    • धर्म और विज्ञान में विरोध नहीं
    • मित्रता किससे करनी चाहिये?
    • सूर्य स्नान की विधि
    • Quotation
    • मैं अन्धा हूँ, पर-आपको तो दीखता है।
    • मानसिक दुर्बलताएँ ही, शारीरिक दुर्बलताओं का कारण हैं।
    • Quotation
    • मन की समता पर दृष्टि रखिए।
    • पायरिया रोग-उसका कारण और निवारण
    • VigyapanSuchana
    • आपका आध्यात्मिक गुरु कौन है?
    • धर्म व्यावहारिक होना चाहिए।
    • एकान्त में तुम क्या सोचते हो?
    • ज्ञान की उपासना कीजिए।
    • अन्तःकरण की चिकित्सा
    • सद्गुणों से विश्व विजय
    • प्रेम-ही जीवन है।
    • काया में हमने क्या पाया
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • दुःखों को देखकर डरिये या घबराइए नहीं।
    • शठे शाठ्यं समाचरेत्
    • जड़, अपने अन्दर है।
    • Quotation
    • सब अनर्थों की जड़-मानसिक दासता।
    • धर्म और विज्ञान में विरोध नहीं
    • मित्रता किससे करनी चाहिये?
    • सूर्य स्नान की विधि
    • Quotation
    • मैं अन्धा हूँ, पर-आपको तो दीखता है।
    • मानसिक दुर्बलताएँ ही, शारीरिक दुर्बलताओं का कारण हैं।
    • Quotation
    • मन की समता पर दृष्टि रखिए।
    • पायरिया रोग-उसका कारण और निवारण
    • VigyapanSuchana
    • आपका आध्यात्मिक गुरु कौन है?
    • धर्म व्यावहारिक होना चाहिए।
    • एकान्त में तुम क्या सोचते हो?
    • ज्ञान की उपासना कीजिए।
    • अन्तःकरण की चिकित्सा
    • सद्गुणों से विश्व विजय
    • प्रेम-ही जीवन है।
    • काया में हमने क्या पाया
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1945 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


प्रेम-ही जीवन है।

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 21 23 Last
(ले.-विद्याभूषण पं. श्री मोहनजी शर्मा)

प्रेम जीवन की शक्ति है। इसकी छाया में आत्मा विकास को प्राप्त होकर अनन्त सुख का अनुभव करती है। व्यावहारिक दृष्टि से विनय प्रेम का पिता और मधुर वाणी माता है। जो इस तत्व को हृदयंगम कर तदनुसार आचरण करते हैं-उन पर प्रेम की प्रसन्नता हुये बिना नहीं रहती। प्रेम परम-धर्म है-इसकी श्रेष्ठता लोक पूजित है। इसके विधिवत पालन से मनुष्यत्व की इति-पूर्णता मानी जाती है। इसका उद्गम केन्द्र प्राकृतिक संसार है। यह अन्तस्तल से निसृत होने वाली पवित्र वस्तु है। आत्मोत्सर्ग या आत्मसमर्पण की पुनीत भावना का ही नाम प्रेम है। दूसरों की सेवा-सहायता से तल्लीन हो जाना प्रेम है। विश्व-कल्याण के नाम पर विश्व सेवी होने का भाव पोषण करना और समस्त प्राणियों को आत्मवृत्त समझना यह प्रेम का सर्वोच्च भाव है। प्रेम एकदम स्वाधीन पदार्थ है, पराधीन नहीं। प्रेम के मार्ग पर प्रेमी अपने आपको बलि दे बैठता है-यही सर्वोत्कृष्ट प्रेम धर्म है। इसके विपरीत जहाँ स्वार्थ की साधना है वहाँ पावन प्रेम की गुजर नहीं हो सकती। इसके सम्पादन से मनुष्य अलौकिक कार्यों का सम्पादन कर सकता है? इसीलिए यह आत्मा की और जीवन की सर्वोच्च शक्ति है।

प्रेम की अमल साधना से दुर्जन, सज्जन सबको वशीभूत किया जा सकता है। यहाँ तक कि भवभय-भंजन भगवान् भी प्रेम के आधीन हैं। जिस हृदय मन्दिर में प्रेम-गंगा नहीं लहराती-उसे मरघट और मसान तुल्य ही समझना चाहिये। प्रेम इस सृष्टि का सारभूत पदार्थ है। इसे अभ्यास पूर्वक सम्पादन कर लेना ही जीवन की सीमा है। प्रेम से प्राप्त आनन्द का अनुभव गूँगे के गुड़ जैसा अनिर्वचनीय और अद्भुत होता है। ऐसे प्रेमोपासक धरित्री के क्रीड़ा को सुख की सेज और अन्तरिक्ष को ओढ़ने की चादर मानकर भी अपने को धन्य अनुभव करते हैं। जिसे प्रेम पदार्थ प्राप्त नहीं हुआ- इस अवनीतल पर उसका जीवन व्यर्थ है। अतः मानव के लिए प्रेम की साधना अपरिहार्य है। योग या भोग ये सब प्रेम बिना नहीं हो सकते। सर्व प्रकार सुखों की उपलब्धि व सफलता के लिये प्रेम की खोज व प्रेमोपासना आवश्यक है। प्रेम रस में वह अपूर्व प्रभाव है कि उससे समस्त मल विदूरित हो जाते हैं। जीवन का लोभ, धन का मोह आदि सब नष्ट हो जाता है। प्रेम का प्रभाव तीव्र है, जिसमें इसकी स्थिति हो जाती है फिर वह इसे परित्याग नहीं कर सकता।

प्रेम विद्युत प्रवाह के समान है और यह प्रत्येक प्राणी के हृदय में अवस्थित है। जहाँ मनुष्यों में परस्पर विचार साम्य होता है वहाँ इसका विकास बिना प्रयास ही निस्वार्थ भाव से हो जाता है। अर्थात् जहाँ भावों में समानता है वहीं प्रेम है। जो स्वभाव से उदार व निस्वार्थ हैं और शान्तिपूर्ण वातावरण में विहार करने के अभ्यासी हैं, वही प्रेम की साधना को पूर्ण कर सकते हैं। प्रेम इष्ट वियोग और अनिष्ट योग में परीक्षा की कसौटी पर चढ़ता है किन्तु सच्चे साधक इन दुर्निवार अवस्थाओं में प्रेम से विचलित नहीं होते। प्रेम का तत्व यही है कि प्राणी मात्र को प्रेम की दृष्टि से देखा जाय। यह समग्र संसार जगत कर्त्ता के सौंदर्य प्रेम का ही प्रतीक है। प्रेम के साधक के लिये कहा है कि प्रेममय शब्दों के अतिरिक्त और कुछ न कहो। उसी की मधुर प्रतिध्वनि तुम्हें मिलेगी।”

“Speak nothing but kind words and you will have nothing but kind echoes.”

प्रेम मनुष्य हृदय की सर्वोत्कृष्ट वृत्ति है। यह प्रेम जब ऊर्ध्व जगत में कार्य करने लगता है तब यह वास्तविक प्रेम नाम से अभिहित होता है इसलिये आत्म विद्या के विद्यार्थी के लिए अपने हृदय को प्रेम प्रवृत्ति विकसित कर उसे समस्त विश्व में सम्प्रसादित करने का विधान है। इसे केवल अपने माता-पिता, स्त्री पुत्रादि परिवार तक ही सीमित रखने से इसका श्रेष्ठ फल प्राप्त नहीं होता। बल्कि ईश्वर प्रेम सर्वथा सार्थक पूर्ण तथा असीम फलदायक है।

प्रेम में उस दैवी परम ज्योति का पुण्य प्रकाश है, प्रेम भक्ति योग, राज योग, ज्ञान योग और ब्रह्म योग का आधार है। प्रेम में ही सब धर्मों का विस्तार है। प्रेम में दिव्य सौम्यता, और प्रचण्ड शौर्य तेज विद्यमान है। प्रेम इष्टदेव है, प्रेम साधना है, प्रेम अखण्ड ध्यान है, अखण्ड-ज्योति है, अनन्त मूर्ति है आनन्द का लहराता हुआ समुद्र है, प्रेम सिद्ध मन्त्र है, सिद्ध तन्त्र है, प्रेम की भावना सिद्धि दाता है।

(लेखक-श्री शिवस्वरूप शर्मा ‘अचल’)

First 21 23 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • दुःखों को देखकर डरिये या घबराइए नहीं।
  • शठे शाठ्यं समाचरेत्
  • जड़, अपने अन्दर है।
  • Quotation
  • सब अनर्थों की जड़-मानसिक दासता।
  • धर्म और विज्ञान में विरोध नहीं
  • मित्रता किससे करनी चाहिये?
  • सूर्य स्नान की विधि
  • Quotation
  • मैं अन्धा हूँ, पर-आपको तो दीखता है।
  • मानसिक दुर्बलताएँ ही, शारीरिक दुर्बलताओं का कारण हैं।
  • Quotation
  • मन की समता पर दृष्टि रखिए।
  • पायरिया रोग-उसका कारण और निवारण
  • VigyapanSuchana
  • आपका आध्यात्मिक गुरु कौन है?
  • धर्म व्यावहारिक होना चाहिए।
  • एकान्त में तुम क्या सोचते हो?
  • ज्ञान की उपासना कीजिए।
  • अन्तःकरण की चिकित्सा
  • सद्गुणों से विश्व विजय
  • प्रेम-ही जीवन है।
  • काया में हमने क्या पाया
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj