• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • विपत्ति की आशंका से घबराइये नहीं
    • पहले इस पृष्ठ को पढ़ लीजिए।
    • उत्पातों की जड़ को काटिए।
    • स्वयं विचार करना सीखो।
    • कर्म-योग का सन्देश!
    • Quotation
    • आदतें बनाई जाती हैं।
    • Quotation
    • केवल मंगल के लिए ही बोलिये।
    • सच्ची सौन्दर्योपासना
    • बुज़दिली से हिंसा अच्छी
    • Quotation
    • अपना सम्मान करो।
    • Quotation
    • विचार शक्ति का महत्व
    • चाय मत पीजिए!
    • सुख की प्राप्ति के साधन
    • अर्थ-उपार्जन
    • Quotation
    • अच्छाइयाँ देखिये।
    • सती किसे कहते हैं?
    • शरीर और मन की निरोगता
    • Quotation
    • शरीर को स्वस्थ रखिए।
    • “अखण्ड-ज्योति” द्वारा प्रकाशित अमूल्य पुस्तकें।
    • Kavita
    • (श्री महावीर प्रसाद विद्यार्थी, साहित्यरत्न)
    • श्री महावीर प्रसाद विद्यार्थी, साहित्यरत्न
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • विपत्ति की आशंका से घबराइये नहीं
    • पहले इस पृष्ठ को पढ़ लीजिए।
    • उत्पातों की जड़ को काटिए।
    • स्वयं विचार करना सीखो।
    • कर्म-योग का सन्देश!
    • Quotation
    • आदतें बनाई जाती हैं।
    • Quotation
    • केवल मंगल के लिए ही बोलिये।
    • सच्ची सौन्दर्योपासना
    • बुज़दिली से हिंसा अच्छी
    • Quotation
    • अपना सम्मान करो।
    • Quotation
    • विचार शक्ति का महत्व
    • चाय मत पीजिए!
    • सुख की प्राप्ति के साधन
    • अर्थ-उपार्जन
    • Quotation
    • अच्छाइयाँ देखिये।
    • सती किसे कहते हैं?
    • शरीर और मन की निरोगता
    • Quotation
    • शरीर को स्वस्थ रखिए।
    • “अखण्ड-ज्योति” द्वारा प्रकाशित अमूल्य पुस्तकें।
    • Kavita
    • (श्री महावीर प्रसाद विद्यार्थी, साहित्यरत्न)
    • श्री महावीर प्रसाद विद्यार्थी, साहित्यरत्न
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1946 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


स्वयं विचार करना सीखो।

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 3 5 Last
(दोलतराम जी कटरहा, बी. ए. दमोह)

अंगरेज कवि मिल्टन ने अपनी एक रचना में फापिंगटन नामक एक वैचित्र्य पूर्ण तथा हास्य-रस प्रधान चरित्र का उल्लेख किया है। लार्ड साहिब कभी किसी पुस्तक का अनुशीलन न करते और वे सदा अपनी ही बुद्धि की उपज तथा उर्वरा-पन पर निर्भर रहना पसन्द करते थे। उनका यह भी कहना था कि पुस्तकों को पढ़ने से हमारी मौलिकता नष्ट तथा विचार शक्ति क्षीण हो जाती है। लार्ड फापिंगटन ने विचार और कार्य भले ही हास्यास्पद और वैचित्र्य-पूर्ण रहे हों किंतु केवल इसी कारण ही उनका यह कथन उपहासास्पद तथा हेय नहीं हो सकता।

एक विषय पर आज हमारे सामने अनेकों की पुस्तकों उपस्थित हैं। यदि सत्समालोचना का विकास इस युग में न हुआ होता तो हम में से अनेकों के सामने यह समस्या उठ खड़ी होती कि संघर्ष-मय जीवन के इस कठिनता से बचाए हुए समय में हम किन पुस्तकों को पढ़े और किन्हें छोड़े।

समालोचकों ने हमारी इस कठिनाई को बहुत अंशों में हल कर दिया है फिर भी पठनीय पुस्तकों की इतनी अधिक बहुमूल्यता है कि उन्हें देख कर हमें विद्वान न्यूटन की भाँति ही अभिमान त्याग कर कहना पड़ता है कि हमने अभी तक विशाल समुद्र के किनारे पड़े हुए कुछ ही कंकड़ों को बीना है। अतएव हम देखते हैं कि ज्ञान का भंडार हमारे सामने विद्वानों ने बिखेर सा दिया है। प्रत्येक विषय के सम्बन्ध में हम उनकी सम्मति ले सकते हैं। किन्तु जब हम उनकी पुस्तकों को पढ़ते है तब उनके बहुत से विचारों और विश्वासों को भी बहुधा चुपचाप ग्रहण कर लेते हैं और इस तरह बौद्धिक क्षेत्र में हम अधिकतर परतंत्र हो जाते हैं। जिस तरह अनपढ़ लोगों के सहायतार्थ उनके पत्र आदि हम लिख दिया करते हैं उसी तरह ये विद्वान भी हमारे सोचने की बातों को हमारे लिए स्वयं सोच दिया करते हैं। इस तरह ये हमारे कार्य को हल्का कर देते हैं किंतु यह भी अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि इस तरह वे हमें जो योभन देते हैं। उसके कारण हम अपने सोचने की बातों के स्वयं सोचने के अवसर को खो बैठते हैं और बहुधा इनके झूठे अथवा सच्चे विश्वासों को भी अपने ऊपर लाद लेते हैं। इस प्रकार जीवन सम्बन्धी अनेकों प्रश्नों के संबंध में हमारी विचार धारा हमारे पठित ग्रन्थों के ही अनुरूप हो जाती है और उस विचार प्रणाली में हमारे व्यक्तित्व की छाप नहीं रहती। उन विचारों से हमारा व्यक्तित्व ढंक-सा जाता है और हम केवल ग्रामोफोन के रिकार्ड की नाई ही दूसरों के विचारों को उगलते रहते हैं। इस तरह हमारे विचारों में कोई व्यक्तिगत विशेषता नहीं रह जाती। यही व्यक्तिगत विशेषता तो हमारे बौद्धिक जीवन का प्राण तथा जीवन है जिसको कि खो देने पर हमारा व्यक्तित्व भी खो जाता है। व्यक्तित्व का आधार व्यक्तिगत विशेषता ही है। फिर भी हम बहुधा यही पाते हैं कि जिन विषयों पर हम विचार करना चाहते हैं उन पर पहले से ही अनेक लोग भिन्न-2 दृष्टि कोणों से विचार कर गए हैं, अतएव हमें उन्हीं के विचारों को स्वीकार करने में ही सरलता होती है और उन प्रश्नों पर हम स्वयं विचार नहीं करते। इस तरह हमारी विचार शीलता तथा मौलिकता का विकास अच्छी तरह नहीं होने पाता।

विद्यार्थी जीवन का मेरा अनुभव है कि जब हम लोगों को गणित के प्रश्न घर पर हल करने के लिए दिए जाते थे तब हम लोगों में से बहुतेरे कुँजियों से उन्हें उतार लेते थे और जब कभी किसी विद्यार्थी के पास स्कूल में ही कुँजी निकल आती थी तो गुरुजी क्रोध करते थे। क्रोध करने का कारण उस समय मैं नहीं समझता था किन्तु आज यह स्पष्ट है। कुँजियाँ विद्यार्थी की सहायता तो अवश्य करती है किंतु साथ-साथ उसमें अनुद्यम शीलता की भी वृद्धि करती हैं और उसमें स्वावलम्बन की भावनाओं का ह्रास होता है। अतः हम देखते है कि लार्ड फापिंगटन की विचार प्रणाली में कुछ न कुछ सत्यता अवश्य विद्यमान है।

अब यहाँ यह प्रश्न भी उठ सकता है कि क्या गिरा गोतीत आत्मा के सम्बन्ध में भी हम स्वतंत्र रूप से विचार किया करें। इन पर विचार करते समय हमें पता चलेगा कि हम न उनका उत्तर उसी तरह दे सकते हैं जिस तरह कि गणित और विज्ञान के प्रश्नों के उत्तर और न हम उनके सम्बन्ध में वैज्ञानिक प्रणाली पर ही सोच सकते हैं। ऐसी अवस्था में हमें बहुत-सी बातों पर विश्वास ही करना होगा, उन पर ईमान ही लाना होगा। भगवान मुहम्मद साहिब ने इसी लिए तो अपने अनुयायियों से, यह समझ कर ही कि ये विषय इन्द्रियातीत हैं, यह कहा था कि ईश्वर पर ईमान लाओ क्योंकि ईमान ही इस्लाम का मूल तत्व है। किन्तु दुर्भाग्य वश लोग उन्हें ठीक ठीक न समझ सके। अतएव हमें प्राप्त वाक्यों के प्रति श्रद्धा और ईमान रखते हुए यह भी स्मरण रखना होगा कि जब तक किसी विश्वास चाहे वह धार्मिक हो अथवा सामाजिक, की सत्यता के हमें पूर्ण प्रमाण नहीं मिलते तब तक वे विश्वास मात्र ही हैं ध्रुव सत्य नहीं। ज्ञानार्जन का हमारा तरीका है कि हम अपने प्रत्येक विश्वास को अस्वीकार करना सीखें उसे चुनौती दे और जब तक उसके सत्य होने के प्रमाण हमें न मिले तब तब उसे हम विश्वास और सत्य की दो श्रेणियों में विभक्त कर उस असहिष्णुता से बचे रहेंगे जो कि विभिन्न मतावलम्बियों में एक दूसरे के प्रति रहा करती हैं।

अपने विद्यार्थी जीवन में, मैं सोचा करता था कि ईश्वर सत्ता को अस्वीकार करने वाला कोई भी व्यक्ति चरित्रवान नहीं हो सकता। किंतु आज यह बात स्पष्ट तथा गलत मालूम होती है। कपिल का साँख्य शास्त्र कहता है “प्रमाणाभावान्न तत्सिद्धिः” (प्रमाण के अभाव में उसका अस्तित्व नहीं सिद्ध होता।) पतंजलि भी ईश्वर के सृष्टा पन को स्वीकार नहीं करते और भगवान बुद्ध ने भी अपने पट्ट-शिष्य आनंद से कह रखा था कि आनन्द ईश्वर के अस्तित्व को किसी ने सिद्ध नहीं किया, इस झमेले में मत पड़ो। फिर भी हम जानते हैं कि भगवान बुद्ध आध्यात्मिक जीवन के जिस उच्चतम शिखर तक पहुँचे हैं उस तक पहुँचना दूर रहा, उसके पास तक शायद ही कोई पहुँचा हो और अपनी विचार तथा उपदेश पद्धति में ईश्वर का सहारा न लेते हुए उन्होंने जिस उच्च आध्यात्मिक जीवन का उपदेश किया वह बेजोड़ है तथा विश्व की अमूल्य निधि है। अतः चरित्रवान बनने के लिए ईश्वर नाम के आश्रय की अनिवार्यता सिद्ध नहीं होती। सद्गुणों का आधार समाज शास्त्र है।

हमारा इस बात पर जोर देना कि हम जैसा सोचते हैं वैसा दूसरे भी सोचे असहिष्णुता तथा संकीर्णता है। हम मानते हैं कि यदि सब लोग अपनी धारणाओं को एक-सा बना लें तो हमारे विचारों में समानता आ जावेगी किंतु न तो यह सम्भव ही है और न जीवन में उसकी हमें उतनी आवश्यकता ही है जितनी कि सामंजस्य शीलता सहिष्णुता का हमें अपना सारे का सारा समय, दूसरों के विचारों को ही पढ़ने में व्यतीत न कर देना चाहिये। हमारे हृदय में नवीन बातें जानने के लिये उत्साह हो किंतु शास्त्र वासना जन्य यह उत्साह उस उतावली का रूप न धारण कर ले जिससे कि हम स्वयं विचार करने की आदत को ही तिलाँजलि दे दे। अनेक विचारों के परस्पर विरोधी विचारों को पढ़ने से सदा होने वाली उलझन से छुटकारा पाने का एक यही उपाय रह जाता है कि उन बातों पर स्वतंत्रता और निष्पक्षता के साथ हम स्वयं सोचें। पढ़ें कम किंतु मनन करें अधिक। हमें यह स्मरण रखना चाहिये कि स्वयं विचारक एवं मनन शील बनने पर ही हम उस वस्तु को ढूँढ़ने की योग्यता संपादित कर सकेंगे।

First 3 5 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • विपत्ति की आशंका से घबराइये नहीं
  • पहले इस पृष्ठ को पढ़ लीजिए।
  • उत्पातों की जड़ को काटिए।
  • स्वयं विचार करना सीखो।
  • कर्म-योग का सन्देश!
  • Quotation
  • आदतें बनाई जाती हैं।
  • Quotation
  • केवल मंगल के लिए ही बोलिये।
  • सच्ची सौन्दर्योपासना
  • बुज़दिली से हिंसा अच्छी
  • Quotation
  • अपना सम्मान करो।
  • Quotation
  • विचार शक्ति का महत्व
  • चाय मत पीजिए!
  • सुख की प्राप्ति के साधन
  • अर्थ-उपार्जन
  • Quotation
  • अच्छाइयाँ देखिये।
  • सती किसे कहते हैं?
  • शरीर और मन की निरोगता
  • Quotation
  • शरीर को स्वस्थ रखिए।
  • “अखण्ड-ज्योति” द्वारा प्रकाशित अमूल्य पुस्तकें।
  • Kavita
  • (श्री महावीर प्रसाद विद्यार्थी, साहित्यरत्न)
  • श्री महावीर प्रसाद विद्यार्थी, साहित्यरत्न
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj