
चाय मत पीजिए!
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(डा. वीर भरती सिंह राणा)
चाय एक मादक अहितकर पेय है। मनुष्य शरीर को जिन चौदह द्रव्यों की आवश्यकता होती है उनमें से एक भी इसमें नहीं है। यह सम्पूर्ण विजातीय पेय है संसार के प्रसिद्ध विश्लेषकों का कथन है कि चाय में निम्न पदार्थों के भी अंश पाए जाते हैं।
(1) टैनीन (Tannin) 16-40 प्र. श. से 27-14 प्र. श. तक (2) दाइन (Thine) 2-24, 3-42 प्रतिशत (3) सुगन्धित तेल (Essential-oil) 0-79 से 2-॰ प्रतिशत तक।
प्रथम तथा द्वितीय पदार्थ एक प्रकार के विष और तृतीय पदार्थ एक प्रकार का सुगन्धित तेल जो नींद को उड़ा देने का कार्य करता है इसमें पाये जाते हैं। इस के बाद भी वैज्ञानिकों ने इसकी अधिक खोज की है और बतलाया है, कि चाय की पत्ती हरी या सूखी लेकर एक प्लेटिनम तार में लपेट कर बनसन फ्लेम में जलाया जाय तो उसमें से पीली लपटें निकलेंगी। उसे नीले रंग के चश्मे (शीशे) से देखने से बैंगनी (Violet) रंग की लपटें दिखाई देंगी। वे पोटेशियम साल्ट के लक्षण हैं। थोड़ी सी बनी हुई चाय (बिना दूध शक्कर के) लें उसमें फैरिक क्लोराइड 5 ग्रेन मिलाने से काली स्याही की भाँति रंग हो जायेगा। जिससे ज्ञात होता है कि इसमें टेनिक एसिड विष है। इसी प्रकार बनी हुई चाय में तग हाइड्रो क्लोरिक एसिड चन्द बिन्दु तथा एक टुकड़ा पोटेशियम क्लोरेट को मिलाए उसमें से क्लोरिन गैस की गंध निकलेगी जो इसमें कैफीन विष का भी होना सिद्ध करता है। यह है संक्षेप में इसका रासायनिक विश्लेषण।
अनेक प्रसिद्ध डाक्टरों ने बतलाया है कि चाय पीने, प्रत्यक्ष विष पीने में कोई अन्तर नहीं। फिर भी आप प्रति दिन चाय पीते हुए स्वयं अपने स्वास्थ्य और अमूल्य जीवन को नष्ट कर रहें हैं। हानि के विचार से शराब और चाय एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं, अन्तर इतना है कि एक महंगी और दूसरी सस्ती है। शराब, मदहोश बनाकर थोड़े समय के लिए दुःख हरती है, किन्तु चाय नींद को उड़ा देती है, अमूल्य जीवन तथा शरीर के स्वास्थ्य को नष्ट करने में यह शराब से अधिक भयंकर है क्योंकि यह उससे सस्ती है इसका प्रचार स्थान-स्थान पर है।
प्रायः जो महानुभाव चाय के अभ्यासी होते हैं उनकी क्षुधा नष्ट हो जाती है। चाय के अतिरिक्त और किसी पदार्थ की इच्छा नहीं रह जाती, उन व्यक्तियों को जब तक चाय का प्याला नहीं मिल जाता, वे अपनी वास्तविक स्थिति में नहीं आ पाते है। इसका मुख्य कारण यह है कि चाय पीने से उनकी इन्द्रियाँ चाय के विष के वशीभूत हो हृदय की गति को निर्बल कर देती हैं, इसके बिना मन खिन्न, चिड़चिड़ा और मस्तिष्क कार्य रहित सा रहता है। इसका नशा लगभग शराब की भाँति ही है, क्योंकि जब चाय का प्रभाव शरीर पर नहीं रहता तो फिर चाय पीने की इच्छा उत्पन्न हो जाती है। इसी प्रकार चाय का विष इन्द्रियों पर अप्रभावित प्रभाव डालकर स्फूर्ति पैदा करता है। परिणाम यह होता है कि शरीर की इन्द्रियाँ समय से पूर्व ही नष्ट हो जाती हैं। भारत के प्रसिद्ध डा. गोपाल भास्कर गडबुल लिखते हैं कि कर्ण इन्द्रिय और अन्य ज्ञान इन्द्रियों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव होकर कुछ दिनों में पक्षाघात (लकवा), बहरापन आदि रोग होते दिमाग पाये जाते हैं और इसके प्रमाण भी हैं। फ्राँस के प्रसिद्ध चिकित्सक ने कहा है कि जो व्यक्ति चाय पीते हैं उनके दिमाग की नशे निर्बल पड़ जाती हैं और कानों में साँय की ध्वनि आने लगती हैं। स्त्रियाँ जो मनुष्यों की अपेक्षा निर्बल होती है वे चाय की अभ्यासी होकर प्रायः ऐसे रोगों से अधिक ग्रस्त हो जाती हैं।
डाक्टरों की सम्मति है कि चाय के सेवन करने से एक नवीन रोग यह उत्पन्न हुआ है कि पहले मस्तिष्क में एक प्रकार का वेग उठता है चेहरे का रंग पीत वर्ण होता चला जाता है किन्तु चाय का पीने वाला उसकी चिन्ता नहीं करता है। कुछ समय के पश्चात अतिरिक्त तथा बाह्य कष्ट प्रकट होने लग जाते हैं। चित्त (मिजाज) शुष्क और मुखाकृति अधिक पीत-वर्ण हो जाती है। एक अन्य रोग जिसे चाहरम कहते हैं। जिसमें एक प्रकार की कठिन मूर्छा आँतरिक इन्द्रियों के कार्य शिथिल, हाथ में कंपन जिसका फल यह होता है कि स्वाभाविक शिथिलता प्रकट होने लगती है। चाय का विष मूत्राशय (Bladder) पर अप्राकृतिक प्रभाव डालकर उसकी मूत्र रोक रखने की शक्ति कम कर देता है। जिससे उन्हें अधिक काम करते हुये बार-बार मूत्र त्याग करना पड़ता है और आग जलकर मूत्र में मूत्राम्ल (ric Acid), कैल्शियम आरजैलेट तथा अंडलाल (Albumen) आदि जाने लग जाते हैं जिससे अनेक मूत्र सम्बन्धी पीड़ायें उत्पन्न हो जाती हैं।
मद सेवियों के भाँति चाय पीने वाले अपने कष्ट की चिकित्सा चाय को ही समझा करते हैं। परिणाम यह होता है कि रोग वृद्धि होती जाती है। डा. वेमार्ड ने बहुत से रोगियों की परीक्षा करके ये बातें सिद्ध की हैं कि चाय का विष शरीर में एकत्रित होता रहता है और नवयुवकों तथा दुर्बल शरीर वालों पर इसका बहुत हानिकर प्रभाव होता है। इसके सेवन से इसके विष युक्त प्रभाव के अनेक लक्षण-जैसे क्षुधा का नष्ट होना, पाचन विकार, कोष्ठबद्धता, हृदय धड़कन, हृदय स्थान पर पीड़ा, जी मचलाना, कै, मूर्छा, दर्द, गठिया, वाय आदि रोग हो जाते हैं। चाय का जो प्रचार भारत में किया जा रहा है, यह उसी प्रकार है जैसे चीन में अफीम का किया गया था। स्वास्थ्य का महत्व समझने वाले हर एक विचार शील व्यक्ति को इस हानिकारक पेय से बचने के लिए सावधान रहना चाहिए। जिन्हें आदत पड़ गई है और नहीं छोड़ सकते वे तुलसी, बनफसा, अदरक, मुनक्का, ब्राह्मी, चकन, जैसी लाभदायक औषधियों को पानी में उबाल कर चाय का काम ले सकते हैं।