
सती किसे कहते हैं?
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(श्रीमती रत्नेश कुमारी जी नीराँजना)
जन साधारण का विश्वास है कि ‘सती उसको कहना चाहिये जो मृत पति के साथ जल जाये’ ये विश्वास ठीक भी है और नहीं भी। बिना सतीत्व के बल के जीवित जलाई नहीं जा सकती अस्तु जलने वाली निस्सन्देह ही सती है पर जिनको संयोग नहीं हुआ उनमें भी थोड़ी बहुत सती स्त्रियाँ अवश्य होंगी अतएव सती की परिभाषा ये समझनी चाहिये। जो तन, मन तथा वचन से सत्य को ही ग्रहण किये रहे कोई भी बड़ा भय अथवा प्रलोभन उसे सत्य से डिगा न सके।
सत्य का मन, वचन तथा कर्म से आचरण करने पर आत्म बल की ही प्राप्ति नहीं आत्म साक्षात्कार की भी शक्ति प्रभु कृपा से प्राप्त होती है और आत्म साक्षात्कार के पश्चात् संसार में किसी भी भय अथवा प्रलोभन का अस्तित्व ही नहीं रहता क्योंकि सारे भय अथवा लोभ शरीर को ही सुख-दुख दे सकते हैं। जिसने शरीर से पृथक अपने को जान लिया है सुख दुख उसे छू भी नहीं सकते वह तो अखण्ड आनन्द में मगन रहती है। संसार की कोई भी बड़ी से बड़ी शक्ति उसकी चिंत् वृन्ति को तिल-2 शरीर काट कर भी चंचल नहीं कर सकती।
सच्चा तो पति सारे संसार का एक प्रभु है क्योंकि वही शरण देने तथा रक्षा करने में पूर्ण समर्थ है अब रहा ये प्रश्न कि उसकी पूजा साँसारिक मनुष्य में ही क्यों करें? सो ये तो विवाद ग्रस्त प्रश्न है। जैसे साकार या निराकार किसी की उपासना क्यों न करो वह ईश्वरोपासना ही होगी वैसे ही जिसको विश्व पति का ज्ञान हो गया है और जो उसमें अपनी आत्मा को अभिन्न करने का ज्ञान हो गया है और जो उसमें अपनी आत्मा को अभिन्न करने के प्रयत्न में पूर्ण शक्ति से लगी हुई हैं वह किसी तरह भी अपने इस महान कार्य को क्यों न पूरा करे सतियों में उसकी गणना होगी।