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Magazine - Year 1947 - Version 2

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ब्राह्मणत्व और साधुता का जागरण

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अज्ञान मनुष्य जाति का सबसे बड़ा शत्रु है उसके कारण पग-पग पर अगणित कष्ट एवं क्लेशों का सामना करना पड़ता है। इस आपत्ति से संसार को बचाने के लिए, ज्ञान जन्य सुख समृद्धियों को बढ़ाने के लिए हमारे देश में कुछ उदारमना व्यक्ति अपना जीवन अर्पण करते थे। कार्य महान था, उसकी महत्ता इतना बड़ी थी कि समस्त भूलोक की सुख शान्ति उस पर निर्भर है। इस गुरुतर उत्तरदायित्व को अपने कंधे पर लेने वालों को पूरी सावधानी, दिलचस्पी, लगन, मेहनत तथा ईमानदारी से जुटना पड़ता था। वे लोग अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं को अत्यंत सीमित करते थे ताकि निजी उलझनों में उनकी शक्तियाँ कम से कम खर्च हों। जो आवश्यकताएं अनिवार्य थीं उनको वे समाज के ऊपर छोड़ देते थे। जनता उनके भोजन, वस्त्र आदि की व्यवस्था धर्म बुद्धि के साथ करती थी। ज्ञान विज्ञान के स्तम्भ यह महापुरुष ब्राह्मण नाम से पुकारे जाते थे। ब्राह्मणों को भूसुर पृथ्वी के देवता कहा गया है। उनका ज्ञान वर्धन कार्य, त्याग, सेवा भाव सचमुच इसी योग्य था कि उन्हें भूसूर की गौरवमयी उपाधि से अलंकृत किया जाय और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जो कुछ दिया जाय वह अत्यंत सम्मान पूर्वक दिया जाए। यह ब्राह्मण-जातीय जीवन के मस्तिष्क कहे जाते थे, उनसे राजा और प्रजा सभी को प्रेरणा मिलती थी। वे धर्म, अध्यात्म, नैतिकता, सदाचार एकता एवं प्रेम का प्रचार करते थे साथ ही चिकित्सा, रसायन, खगोल विज्ञान कृषि विज्ञान आदि के नये-नये आविष्कार करते थे। उनके समस्त जीवन का एक-एक क्षण लोक हित के लिए लगता था।

ऐसे उपकारी तपोपूत, ब्रह्म परायण ब्राह्मणों के चरणों में सबके मस्तक नवते थे। उनको दान देते देने वाले का अन्तःकरण आनन्द से भर जाता था। पर आज तो सब कुछ उलटा हो रहा है। ब्रह्म परायण, लोकसेवी तपोपूत ब्राह्मण, पुरोहित, गुरु उपदेशक साधु संन्यासी महात्माओं के दर्शन दुर्लभ हो रहे हैं, उनके स्थान पर साठ लाख भिक्षुकों की एक ऐसी सेना विराजमान हो गई है जो संसार को देती कुछ नहीं परन्तु लेने के लिए अनेकों उचित-अनुचित आडम्बर बनाये बैठी है। अपना व्यक्ति गत लाभ उनका उद्देश्य है। स्वयं स्वधर्म लाभ करने मुक्ति पाने के लिए तथाकथित कर्मकाण्डों की चिन्ह पूजा करते हैं पर अपने चारों ओर हो रहा चीत्कार उनके कानों तक नहीं पहुँचता। अपने पूर्वजों के पवित्र नाम पर उनके उत्तराधिकारी के नाम पर दान और प्रतिष्ठा तो प्राप्त करते हैं पर पूर्वजों के महान उत्तरदायित्वों को, कर्तव्यों को, आदेशों को पूरा करने से दूर रहते हैं। शरीर में मस्तिष्क का पतन हो जाय तो जो कुछ दुर्दशा न हो थोड़ी है। जिस जाति के जातीय मस्तिष्क ब्राह्मण का अधः पतन हो जाय उसका ईश्वर ही रक्षक है

नव जागरण की इस बेला में अपने जातीय गौरव को पुनः प्राप्त करने के लिए हमें अग्रसर होना है। इस कार्य के लिए मस्तिष्क को सब से आगे आना होगा, सबसे प्रमुख भाग लेना होगा। प्रात स्मरणीय ऋषियों की वंशज ब्राह्मण, मुनि महात्माओं के अनुदायी साधु-संन्यासी आजकल करीब साठ लाख हैं, यह विशाल सेना यदि जनता का उद्बोधन करने के लिए उठ खड़ी हो, जिन्होंने पीड़ितों से दान पाकर पाला-पोसा है उनके आड़े वक्त में काम आकर अपनी कुछ नमक हलाली दिखावे और अपने कर्तव्य को पालन करे तो चंद दिनों में हमारा देश कुछ से कुछ हो सकता है। गृहस्थी का झंझट पीछे न होने से और दान के निर्धारित स्रोतों से जीविका की समुचित व्यवस्था होने से उस वर्ग को कार्य करने में बड़ी भारी सुविधा है। प्रति पचास गृहस्थी के पीछे एक भिक्षाजीवी की औसत है। वे पचास-पचास व्यक्तियों के छोटे-छोटे समूहों की सेवा करने के लिए हैं। उन्हें चाहे जिधर प्रेरित कर सकते हैं। वे जिस बात का प्रचार करने उत्तर पड़े उसे बच्चे-बच्चे के मस्तिष्क में भर सकते हैं जिस कार्य को करने खड़े जायं उसे एक-एक उंगली लगा कर पूरा कर सकते हैं। किसी काम के लिए धन एकत्रित करना हो तो हफ्तों के अन्दर अरबों रुपया जमा कर सकते हैं, किसी शासन से बिगड़ हो तो उसकी नींव हिला सकते हैं। बलिदान करने को शीशदान करने का खड़े हो जायं तो गंगा और यमुना को रक्त से लाल कर सकते हैं। यह जिस दिशा को मुड़ पड़े उसी को धूलधूसरित कर सकते हैं। पाकिस्तान के पीड़ित हिन्दुओं की प्राण रक्षा के लिए चल पड़े तो उनका बाल बाँका होने से भी रोक सकते हैं

इस सेना की अपार शक्ति है बिना नौकरी के सेवक, बिना वर्दी के सैनिक, यह साठ लाख ब्रह्म वंशजों की सेना अपने कर्तव्य और धर्म की प्रचंड प्रेरणा के साथ जिधर भी बढ़ेगी उधर मोर्चा फतेह करेगी, इसे कप्तानों की जरूरत है, न रसद की, न गोला बारूद की, सब चीजें उसके साथ हैं। पीछे के लिए कोई चिन्ता उन्हें नहीं। हमारी यह धर्म सेना आज आलस्य, प्रमाद और भ्राँति के फेर में पड़ी हुई हैं। इसे जब जगाया जायगा और अपने स्वरूप को पहचान कर उठ खड़ी होगी, तो जो कार्य, सरकार और संस्थाएं अथक परिश्रम द्वारा भी नहीं कर पार ही हैं उसे यह सेना स्वल्प काल में बड़ी आसानी से करके दिखा सकती है।

जरूरत सेना बनाने की नहीं, बनी हुई सेना को जगाने की है। यह जागरण कार्य कठिन है पर अखण्ड ज्योति अपने को इस सेवा के लिए स्वयं समर्पित करती है। हम लोग देश भर में भ्रमण करके साधु संस्थाओं से, मठाधीशों से, महन्तों से, जमातों और अखाड़ों के गद्दीधारी गुरुओं से तीर्थ पुरोहितों से पंडित मंडलियों से संत महात्माओं से, आश्रम संचालकों से, संस्कृत पाठशालाओं के अध्यापकों से व्यक्तिगत, रूप से सामूहिक रूप से मिलेंगे और उन्हें लेखनी एवं वाणी से इसके लिए प्रेरित करेंगे कि जातीय जीवन की जागरण बेला में वे रचनात्मक कार्य करें। हिन्दुत्व को पुनः प्राचीन पद तक पहुँचाने के लिए वे समस्त शक्ति के साथ जुट जावें। स्वर्ग या मुक्ति की प्राप्ति में यदि एक जन्म की देरी हो जावे तो यह थोड़ी देर सबेर अनन्त जीवन में कुछ विशेष महत्व नहीं रखती। पर यह जन्म तो लोक जागरण के लिए लगना चाहिए अखण्ड ज्योति ने देश के धर्म क्षेत्र और अध्यात्म क्षेत्र में जितना प्रवेश पा लिया है उसका दृढ़ता और विस्तृतता के आधार पर पाठक यह आशा कर सकते हैं कि आगामी एक वर्ष में समस्त भिक्षा संस्था का सौवाँ भाग-साठ हजार का एक समूह देशोत्थान के कार्य में अवश्यमेव प्रवृत्त होगा। इस समुदाय के सामने प्रधान उद्देश्य मनुष्य मात्र के हृदय में हिन्दू संस्कृति के प्रति अगाध प्रेम विश्वास और तदनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करना होगा। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए संगठन, गोष्ठियाँ, पंचायतें, व्यायामशालाएं, पाठशालाएं एवं ज्ञान मन्दिर स्थापित करने की जहाँ जैसी आवश्यकता अनुभव होगी वहाँ वैसा करेगा। कार्य बिल्कुल रचनात्मक होगा। कार्यकर्ता भिक्षा द्वारा अपने निर्वाह के लिए अन्न, वस्त्र प्राप्त करेंगे। धन को वे स्वयं स्पर्श न करेंगे। यात्रा पैदल करेंगे।

इस समुदाय में से कम से कम एक हजार साधु पंजाब एवं बंगाल जायेंगे और वहाँ बस जायेंगे, वहाँ उनका कार्य शान्ति स्थापना का होगा। राजनैतिक हलचलों एवं उत्तेजनाओं से सर्वथा दूर रहकर वे अपने क्षेत्र के लोगों को सद्ज्ञानामृत का पान करावेंगे।

हमारे मंदिरों में ईश्वर भक्ति के साथ-साथ ईश्वर के आदेशों को पालन करने की प्रेरणाओं का भी केन्द्र बनना चाहिए। जो लोग ब्राह्मणत्व के नाम पर जीविका प्राप्त करते हैं। उनका अनिवार्य कर्तव्य होना चाहिए कि जाति को ऊँचा उठाने में अपने समय का क्रियात्मक उपयोग करें। ब्राह्मण एवं साधु समाज का इन कर्त्तव्यों को सुझाने, मनवाने और कार्यारुढ़ करने के लिए यदि विशेष रूप से प्रेरणा दी जायगी तो जो सच्चे होगे वे आगे बढ़ेंगे ओर जो झूठे होंगे वे आडम्बर की चादर फेंक कर भाग जायेंगे। हम जनता को जागृत करेंगे। जब ब्राह्मण और साधुत्व कसौटी पर कसा जायगा, अग्नि में तपाया जायगा तो खोटे माल की अपने आप छाँट हो जायगी। दूध पीने मंजदू, कटोरा फेंक कर भाग खड़े होंगे।

वर्तमान ब्राह्मण संस्था और साधु संस्था में से जितना भी अधिक से अधिक उपयोगी अंश निकाला जा सकेगा, उसे निकालने के लिए हम हर संभव प्रयत्न को काम में लावेंगे। फिर भी केवल इतने मात्र से काम से न चलेगा। आग लगती है तो सब को पानी लेकर दौड़ना पड़ता है, चाहे कोई किसी भी पेशे वाला क्यों न हो। आपत्ति काल में, निर्माण में विशेष अवसरों पर सभी को एक कार्य करना पड़ता है। आज भी वैसा ही अवसर है। राष्ट्र की आत्मा को जगाने के लिए गिरे हुए हिन्दुत्व को ऊपर उठाने के लिए आज सभी को प्रयत्न करना है। हर मनुष्य में रहने वाले ब्राह्मणत्व से साधुता से हम गंभीर अपील करते हैं कि वह जागृत हो और पुनरुत्थान के कार्य में सहयोग प्रदान करे।

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