
गौ माता के प्राण बचाओ
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(श्री खुशहालंचन्द्रजी ‘आनन्द’)
आज से लगभग 8 सौ वर्ष पूर्व भारतवर्ष में निस्सन्देह दूध की नदियाँ बहती थी। मनुष्यों से अधिक गाएं थी। न इतने रोग थे, न इतनी अकाल मृत्यु। परन्तु दुर्दिन जो आये तो गौ वध होने लगा और गौ तथा अन्य पशुओं का इतना ह्रास हुआ कि आज न शुद्ध दूध मिलता है न शुद्ध घी। वेद भगवान ने गौ पालन का बड़ा महत्व बतलाया है। वेद में जितनी भी बातें लिखी हैं वह मनुष्य मात्र ही नहीं, अपितु प्राणिमात्र के कल्याण के लिए हैं, क्योंकि आदि सृष्टि में सब के हित के लिए परमात्मा ने सूर्य की भाँति वेद का ज्ञान भी दिया।
वेद का आदेश है--
“धेनुरनडवान वयोवय आयदेव
पौरुषेयतमप मृत्युँ नुदन्तु।”
अथर्व 12-3-49।
दुधारू गाय, हल खींचने वाले बैल और इन्हीं के कारण आते हुए नाना प्रकार के अन्न रस मनुष्यों को अकाल मृत्यु से बचाते हैं।
दूध से अमृत, वीर्य बनता है जो अकाल मृत्यु से छुड़ा कर सन्तानोत्पत्ति का हेतु है।
इम् सहस्र् शत धारमुत्स व्यच्यमानं सरिरस्यमध्ये। घृत दुहानामदिति जनायाग्ने मा हिंसीः । -यजु 13-49
मनुष्यादि सब प्राणियों के लिए इस असंख्य सुखों का साधन असंख्य दूध की धाराओं के निमित्त अनेक प्रकार से पालन के योग्य बैल और घी से भरपूर कर देने वाली न मारने योग्य गौ को मत मारो।
यूयं गावोमेद यथा कृशं चिदश्रीरंचित्कृणुथा सुप्रतीकम्। भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो वृहद्वोवय उच्यते सभासु।।
ऋ0 मण्डल 6 स॰ 28 म॰ 6।
गाय का दूध कृष (कमजोर ) जनों को मोटा कर देता है और शोभारहित, कांतिहीन दुबले पतले को सुन्दर मुख वाला रूपवान बना देता है। गौओं! तुम घर को सुख युक्त बनाती हो, तुम्हारे बल और गुणों के गीत सभास्थलों में गाए जाते हैं।
वेद के इस आदेश को संसार ने भुला दिया और इस से भी बढ़कर खेद यह है कि भारत ने तथ्य से सर्वथा मुख मोड़ लिया। आज से 80 वर्ष पूर्व जब महर्षि स्वामी दयानन्द जी महाराज ने देश की अवस्था को देखा तो उन्होंने जहाँ सुधार तथा उद्धार के दूसरे उत्तम कार्य किए, वहाँ गौ रक्षा को अत्यन्त आवश्यक समझ कर “गोकृष्यादिरक्षिणी सभा” बनाई और ‘गोकरुणानिधिः’ पुस्तक लिख कर गौ की महिमा का बखान किया। महारानी विक्टोरिया के पास गौ रक्षा के लिए मैमोरेएडम् भिजवाने की योजना की। जो भी गवर्नर अथवा फौजी अफसर स्वामी जी से मिला उसी को गौ वध बन्द करने के लिए कहा। उन्होंने ‘गोकरुणानिधिः’ में लिखा कि “गौ आदि पशुओं के नाश होने से राजा और प्रजा का भी नाश हो जाता है। ”
एक गाय ही कितना उपकार करती है इसका हिसाब स्वयं स्वामी जी ने लिखा है, गो करण निधि के आरंभ ही में स्वामी जी लिखते हैं:-
और फिर मार्मिक शब्दों में अपील करते हुए यह आदेश किया कि “सुनो बन्धुवर्गों! तुम्हारा तन, मन, धन गाय की रक्षा रूप परोपकार में न लगे तो किस काम का है?” शोक यही है कि ऋषि के आदेश पर बहुत कम ध्यान दिया और उसका परिणाम यह है कि अब नाना प्रकार के दुःखों की दलदल में हम फंस चुके हैं, हमारा देश रोगों का घर बन गया है। रोगों से बचाने और स्वस्थ बनाये रखने की शक्ति जितनी गाय के दूध में है, इतनी और किसी वस्तु में नहीं।
धन्वन्तरि के मत से गोदुग्ध-
“पथ्य रसायनं वल्य हृद्यं मेध्यंगर्वाश्यः”
महात्मा गाँधी ने भी इस महत्वपूर्ण समस्या की ओर ध्यान दिया है। उन्होंने लिखा है-
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