• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • शास्त्र मंथन का नवनीत।
    • आत्म अनुभूति।
    • आत्म अनुभूति
    • मृत्यु से डरने की कोई आवश्यकता नहीं।
    • भक्तियोग का तत्वज्ञान।
    • ईश्वर को अनुभव किया जा सकता है।
    • Quotation
    • सत्यनारायण व्रत कथा का रहस्य।
    • क्या आप जीवन से अधिकतम लाभ उठा रहे हैं?
    • सद्विचारों द्वारा जीवन लक्ष्य की प्राप्ति।
    • वैदर्भ जातक की कथा।
    • उपवास द्वारा स्वास्थ्य रक्षा और देशभक्ति।
    • नकसीर फूटना।
    • Quotation
    • तपस्वी राजा राम।
    • मैं कौन हूँ और मेरा क्या कर्तव्य है?
    • दाम्पत्य जीवन की सफलता का मार्ग।
    • Quotation
    • गायत्री द्वारा वाममार्गी ताँत्रिक साधनाएं।
    • Quotation
    • अविचल बटोही।
    • अविचल बटोही
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • शास्त्र मंथन का नवनीत।
    • आत्म अनुभूति।
    • आत्म अनुभूति
    • मृत्यु से डरने की कोई आवश्यकता नहीं।
    • भक्तियोग का तत्वज्ञान।
    • ईश्वर को अनुभव किया जा सकता है।
    • Quotation
    • सत्यनारायण व्रत कथा का रहस्य।
    • क्या आप जीवन से अधिकतम लाभ उठा रहे हैं?
    • सद्विचारों द्वारा जीवन लक्ष्य की प्राप्ति।
    • वैदर्भ जातक की कथा।
    • उपवास द्वारा स्वास्थ्य रक्षा और देशभक्ति।
    • नकसीर फूटना।
    • Quotation
    • तपस्वी राजा राम।
    • मैं कौन हूँ और मेरा क्या कर्तव्य है?
    • दाम्पत्य जीवन की सफलता का मार्ग।
    • Quotation
    • गायत्री द्वारा वाममार्गी ताँत्रिक साधनाएं।
    • Quotation
    • अविचल बटोही।
    • अविचल बटोही
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1950 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


तपस्वी राजा राम।

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 14 16 Last
(श्रीमती रत्नेशकुमारी जी नीराँजना, मैनपुरी)

महाकवि तुलसीदास ने महाभक्त हनुमान की स्तुति करते हुए एक स्थान पर लिखा है ‘सब पर राम तपस्वी राजा। तिनके काज सकल तुम साजा’ इसमें ये गौर करने की बात है कि “तपस्वी” और “राजा” ये एक दूसरे के विरोधी से प्रतीत होने वाले विशेषण क्यों राम की प्रशंसा को रखे गये हैं?

“राजा” शब्द का उच्चारण करते ही कल्पना क्षितिज पर एक ऐसी मूर्ति उदित होती है जो कि जीवन के प्रभाव में ऐश्वर्य वैभव के बीच ही उत्पन्न होती है उसमें पलती है और सुख की खोज तथा चिर अतृप्त लालसाओं की पूर्ति में ही संलग्न रह कर उत्तरदायित्वहीन जीवन व्यतीत करके एक दिन न जाने किस अन्धकार में विलीन हो जाती है। पर ये तो हमारी कल्पना पर वातावरण का कुप्रभाव तथा बुरे वातावरण में ही पले हुए कुछ पथ भ्रान्त व्यक्तियों के चित्र मात्र है। “राजा” शब्द की ये परिभाषा तो है नहीं यह तो उपरोक्त चित्र से बहुत ऊँची है। “प्रजा अनेती राजा” अर्थात् जो प्रजा को आनन्द दे वही राजा। प्राचीन राजाओं के चरित्र चित्रों को यदि हम स्मरण करें तो हमें ये स्वाभाविक सा प्रतीत होगा। हम स्वयं ही मुक्त कण्ठ से स्वीकार करेंगे कि यथार्थ राजा के साथ तपस्वी शब्द सहज रूप से ही जुड़ जाता है।

क्या संपूर्ण राज्य-निवासियों को सुखी रखने का व्रत ग्रहण करना सरल है? सद् उद्देश्य हेतु कष्ट सहन करना ही तो तप है देखिए राजा रन्तिदेव को दुर्भिक्ष के दिनों में अनेक दिनों बाद अन्न प्राप्त हुआ नन्हें बच्चों तक के भूख के मारे प्राण निकले जा रहे थे। पर उसी समय कुछ क्षुधा-पीड़ित प्रजाजन आ गये। भला वह कैसा मनुष्य होगा जो दूसरों को भूख से दम तोड़ते देखकर भी स्वयं पेट भरने बैठ जाये। ऐसा व्यक्ति तो मनुष्य-भक्षी राक्षसों के ही समान होगा। राजा रन्तिदेव ने सारा अन्न बाँट दिया, कथा तो यहाँ तक है कि पात्र का धोवन तक भी न पास के वह भी उन्होंने एक क्षुधार्त व्यक्ति को दे दिया। भला कौन मननशील व्यक्ति ऐसा होगा जो उनको तपस्वी नहीं स्वीकार करे।

अब हम “तपस्वी राजा” जिनकी प्रशंसा में व्यवहृत हुआ है उन राम का भी जरा रस कसौटी पर कस देखें। कहावत है “होनहार बिरबान के होत चीकने पात” पहिले युवराज राम का ही एक चित्र लीजिए राज्याभिषेक होते-होते चौदह वर्ष का वनवास मिलता है पर वे पूर्ववत ही प्रसन्न हैं। सारी अयोध्या शोक से अभिभूत तथा आश्चर्य-चकित एवं किंकर्तव्यविमूढ़ तथा अधीर है पर इस क्षुब्ध वातावरण में भी वे हिमालय की भाँति अडिग हैं। क्या ये तप साधारण हैं? महाकवि तुलसी के शब्दों में ही जरा तपस्वी युवराज के पुण्य चित्र को क्षण भर के लिए अपने हृदय पटल पर खींच कर पवित्र कर लीजिए-

“प्रसन्नकताँ या न गताभिषेकस्तथा न मस्ले वनवास दुःत्रतः। मुखाम्बुजं श्री रघुनन्दम्य से सदाऽस्तु मंजुल मंगल प्रद।”

जब राम राजा हुए तो उनके सम्मुख और भी कठिन परीक्षा आई जिस जीवन संगिनी ने वनवास में भी साथ नहीं छोड़ा जिसने चलते समय साफ-साफ कह दिया था--

“राखिय अवधि जो अवधि लनि रहत जानिये प्रान,

प्राणनाथ करुणायतन शील सनेह निधान।”

ये कोरी धमकी ही नहीं थी जैसी कि बहुत सी स्त्रियाँ बात-बात में दिया करती हैं ये तो एक आकुल हृदय के अंतरतम् के उद्गार थे जिनकी कि सत्यता पर राम को पूर्ण विश्वास था। जिसके लिए राम के हृदय में इतना अभिन्नता का भाव था कि प्रेम संदेश में वे कहलाते हैं-

तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा।

आनत प्रिया एक मन मोरा॥

सो मन रहत सदा तोहि पाही।

जानु प्रीति रस इतनेहि माहीं॥

उसी सीता का प्रजा की प्रसन्नता हेतु परित्याग करना अपने हृदय को ही निकाल फेंकने के समान है। फिर भी राजा राम इस मर्म पीड़ा को दबाये हुए प्रजा के सुखी करने के व्रत का तन-मन-धन से पालन करते रहे। आज भी हम जब एक आदर्श शासन की कल्पना करते हैं तो हमें ‘राम राज्य’ की उपमा देने को विवश होना पड़ता है, ऐसी थी उस सर्वस त्यागी की आदर्श की उपासना। क्या ये तप नहीं है?

उनके मन का वह ज्वालामुखी कदाचित मन में ही दबा चला जाता संसार को उसका आभास तक नहीं मिलता पर जब कुलगुरु ने कहा कि अश्वमेध यज्ञ की पूर्ति सहधर्मिणी के बिना नहीं हो सकती। तब राम का धैर्य जो बड़ी-बड़ी विपत्तियों में भी अडिग रहा था वह भी साथ न दे सका। उन्होंने कहा-भगवन् ! भले ही अश्वमेध यज्ञ अपूर्ण रह जाये आमन्त्रित-जन निन्दा करते हुए फिर आर्य और मुझको अनन्त काल तक नर्क में निवास करना पड़े फिर अब इस जीवन में मेरा दूसरा विवाह नहीं हो सकता है। देव ! मैंने कभी भी आपकी आज्ञा नहीं टाली है पर आप ये आदेश न करें नहीं तो मुझे टालने के लिए विवश होना पड़ेगा।

देखिये इन शब्दों से सीता के प्रति राम का कितना गहन अनुराग झलक रहा है। पर सीता जब राज सभा में आती है तो राजा प्रजा के संतोष के लिए आज्ञा देते हैं कि अपने निष्कलंक पतिव्रत का प्रमाण देवे। राम ‘तपस्वी राजा’ न होते तो इन दोनों वृतों को (प्रजा-रञ्जन और एक पत्नी वृत) कदापि भी इतनी दृढ़ता से नहीं निभा पाते।

अब उन्हीं तपस्वी राजा राम के चरणों सभक्ति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए इस लेख को समाप्त करती हूँ। हम सब को चाहिए कि हम व्यक्तिगत जीवन में राम के आदर्शों को अपनाएं। साँसारिक उत्तरदायित्वों को वहन करते हुए तपस्वी रहें। साथ ही हमारी सामाजिक व राजनैतिक व्यवस्था भी इन्हीं आदर्शों से ओत-प्रोत होनी चाहिए। महात्मा गाँधी राम-राम की स्थापना के लिए जीवन भर साधना करते रहे, जनता ने रामराज्य के लिए अभित बलिदान करके स्वराज प्राप्त किया। हमारे शासकों में उचित है कि वे राम का आदर्श अपनावें रामराज्य के आदर्श उपस्थित करें।

First 14 16 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • शास्त्र मंथन का नवनीत।
  • आत्म अनुभूति।
  • आत्म अनुभूति
  • मृत्यु से डरने की कोई आवश्यकता नहीं।
  • भक्तियोग का तत्वज्ञान।
  • ईश्वर को अनुभव किया जा सकता है।
  • Quotation
  • सत्यनारायण व्रत कथा का रहस्य।
  • क्या आप जीवन से अधिकतम लाभ उठा रहे हैं?
  • सद्विचारों द्वारा जीवन लक्ष्य की प्राप्ति।
  • वैदर्भ जातक की कथा।
  • उपवास द्वारा स्वास्थ्य रक्षा और देशभक्ति।
  • नकसीर फूटना।
  • Quotation
  • तपस्वी राजा राम।
  • मैं कौन हूँ और मेरा क्या कर्तव्य है?
  • दाम्पत्य जीवन की सफलता का मार्ग।
  • Quotation
  • गायत्री द्वारा वाममार्गी ताँत्रिक साधनाएं।
  • Quotation
  • अविचल बटोही।
  • अविचल बटोही
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj