
गायत्री महिमा (Kavita)
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अगर चाहते हो निज रक्षा, गायत्री गुण गान करो।
नित्य शुद्ध एकाँत भूमि में, जगजननी का ध्यान करो॥
दुःख काट कर निज भक्तों की माता रक्षा करती है।
सुख सौभाग्य बढ़ा देती है, शाँति सुधारस भरती है॥
नहीं समुद्र सरोवर के तट, शाँत भाव से खड़े-खड़े।
गायत्री का जप करते थे, जब द्विज पुँगव बड़े-बड़े॥
बढ़ता था श्री मार्तण्ड का, उनमें तेजस् दिव्य प्रचण्ड।
स्वर्ग भूमि से अधिक सुखी था, मित्र तभी यह भारतखण्ड॥
सूर्य ब्रह्म के ग्रन्थि बंध से, हो जाती है निर्मल बुद्धि।
पाप ताप सब कट जाते हैं, आ जाती है सच्ची शुद्धि॥
वाल्य काल ही जिनको यह मन्त्र सुनाया जाता है।
आलस दम्भ प्रमाद न उनकी संतानों में आता है।
द्विजो उठो! तप से प्रवृत्त हो गायत्री का जाप करो।
पार करो भारत की नैया, दूर सकल अभिशाप करो॥
शक्ति पुँज है साधन पथ, यौं शास्त्र सदा से गाता है।
आर्य जाति की रक्षा करती, श्री गायत्री माता है॥
गायत्री को नहीं जानता, संध्या कभी न करता है।
ऐसा कर्महीन ब्राह्मण अपने को फिर क्यों ब्राह्मण कहता है॥
इधर-उधर बाबा लोगों से कान फुकाता फिरता है।
छोड़ वेदमाता को अंधा नर्क गर्त में गिरता है॥
पूज्य हो रही जब भारत के घर-घर श्री गायत्री थी।
विश्वामित्र, वशिष्ठ, अत्रि थे, सती सिया सावित्री थी॥
जब से वैदिक धर्म भूल कर, गायत्री से हीन हुए।
कपटी कायर क्रूर कुटिल, तब से नर पामर दीन हुए॥
यद्यपि वैदिक यज्ञ बहुत हैं, जिनमें बड़े-बड़े हों दान।
तो भी मनु कथनानुसार है, गायत्री जप यज्ञ प्रधान॥
श्रद्धा भक्ति सहित विश्वासी निश्चित जप जो करते हैं।
पाप राशि को छिन्न-भिन्न कर भवसागर से तरते हैं॥
*समाप्त*
(पं. नन्द किशोर जी शुक्ल)
(पं. नन्द किशोर जी शुक्ल)