
ब्रह्मा और उनकी पुत्री का वास्तविक स्वरूप
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(श्री गिरिजा सहाय व्यास)
पुराणों में कुछ ऐसी कथाएं देखने में आती हैं जिन पर ऊपरी दृष्टि डालने से पता चलता है कि उनमें कोई वास्तविकता और सार नहीं है बल्कि वह हमारे देवताओं और ऋषियों को भोगी, विलासी, असंयमी और नीच प्रकृति का बतलाती हैं। परन्तु यदि हम उन कथाओं पर गहराई से विचार करें तो पता चलेगा कि हमारे पूर्वजों ने पेचीदा और न समझ में आने वाले तथ्यों को कथाओं के रूप में, अलंकारिक भाषा में एक पहेली के रूप में हमारे बुद्धि कौशल को परखने के लिए व्यक्त किया है। यह उस समय की लेखन शैली थी। बाईबल को देखने से पता चलता है कि उसमें भी इस अलंकारिक शैली का प्रायः प्रयोग किया गया है। कुछ लोग, इन कथाओं की आलोचना करके पुराणों के महत्व को कम करना चाहते हैं परन्तु यदि हम उनको तर्क और विवेक की कसौटी पर परखें तो उनमें कुछ न कुछ सार अवश्य छुपा रहता है।
श्रीमद्भागवत में ब्रह्मा और उनकी पुत्री की कथा आती है कि काम के वशीभूत होकर स्वयम्भू ब्रह्मा ने ‘वाक्’ नाम वाली अपनी पुत्री से रमण की इच्छा की। चूँकि पुत्री के साथ पिता की कामवासना की इच्छा करना एक बहुत ही घृणित कार्य है इसलिए मरीच आदि पुत्रों ने जब देखा कि उनके पिता की बुद्धि धर्म की ओर से हट कर अधर्म की ओर जा रही है और कामेन्द्रिय के बस में होकर उन्होंने अपनी विवेक शक्ति को खो दिया है तो उन्होंने अपने पिता को समझाया कि आपको यह कार्य शोभा नहीं देता। ऐसा काम न आज तक किसी ने किया है और न आगे ही करने की आशा है। जब प्रजापति ब्रह्मा ने अपने पुत्रों से ऐसी बात सुनी तो वह बहुत लज्जित हुए और इसे अपना अपमान समझ कर शरीर त्याग दिया।
यह कथा केवल श्रीमद्भागवत में ही आई हो, ऐसी बात नहीं है। इसका संकेत वेदों और उपनिषदों तथा ब्राह्मण ग्रन्थों तक में मिलता है।
प्रजापतिः स्वाँदुहितरमधिठकन।
(ऋग्वेद 10। 61। 7)
अर्थात्—प्रजापति ने अपनी पुत्री का घर्षण किया।
प्रजापतिर्वै स्वाँ दुहितरमभ्यध्यायद्।
(ऐतरेय 3। 23)
अर्थात्—प्रजापति ने अपनी पुत्री का अनुगमन किया।
प्रजापतिः स्वाँ दुहितरमभिदध्यौ।
(शतपथ 1। 7। 4। 1)
अर्थात्—प्रजापति ने पुत्री को चाहा।
उपरोक्त पौराणिक कथा और वेद के वाक्यों के गूढ़ रहस्य को समझने के लिए प्रजापति शब्द पर विचार करना आवश्यक प्रतीत होता है। शतपथ और नाराड्य ब्राह्मण में सूर्य को ही प्रजापति कहा है। ब्रह्मा की पुत्री का अभिप्राय है सूर्य से उत्पन्न होने वाली ‘ऊषा’—प्रातः कालीन प्रकाश। प्रति दिन हम देखते हैं कि आगे-2 ऊषा और पीछे-पीछे सूर्य भगवान चलते हैं। इसी को इन ग्रन्थकारों ने पिता का पुत्री के पीछे जाना बताया है।
पुत्रों के समझाने पर जब ब्रह्मा जी ने लज्जित होकर अपना शरीर छोड़ दिया। इस कथा को स्पष्ट करने में इसी कथा के उपसंहार में आया है कि उसे दिशाओं ने ग्रहण कर लिया। हेमंत और शिशिर ऋतु में सूर्य की आकर्षण शक्ति से खिंचा हुआ जल प्रातः काल सूर्य के चारों तरफ भाप रूप में बादलों की तरह छा जाता है जिसे कुहरा का नाम दिया गया है। इस कुहरे के कारण कभी कभी तो घंटों तक यह बादल सूर्य को घेरे रहते हैं। उसी को लज्जित होकर शरीर त्याग करना कहा जाता है।
ब्रह्मा और उनकी पुत्री की कथा का ऊपर आधिभौतिक अर्थ बताया गया है। अब उसके आध्यात्मिक अर्थ पर विचार करना चाहिए। इस आध्यात्मिक व्याख्या का दिग्दर्शन “ब्राह्मवैवर्त पुराण” में कराया गया है जिसमें राधा जी के पूछने पर श्री कृष्ण भगवान कहते हैं कि मन ही ब्रह्मा है। ज्ञान को महादेव और वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती को समझना चाहिए। इस तथ्य की पुष्टि उपनिषदों और ब्राह्मण ग्रन्थों में भी की गई है।
मन एव ब्रह्मा (गोपथ ब्राह्मण)
अर्थात् मन को ही ब्रह्मा कहते हैं।
वाक् सरस्वती (शतपथ ब्राह्मण)
अर्थात् वाणी का नाम ही सरस्वती है।
इस कथा का आध्यात्मिक रूप यह है कि मन से ही विचार उत्पन्न होते हैं, जैसे मनुष्य के विचार होते हैं वैसे ही वह अपनी वाणी से बोलता है। इस से मन के होने से ही वाणी की सत्ता सिद्ध होती है। इसी तथ्य को पिता और पुत्री के रूपक में बताया गया है क्योंकि जब तक मन रूपी ब्रह्मा वाणी रूपी पुत्री में वीर्याधान अर्थात् प्रेरणा नहीं करता तब तक वाणी के शब्द रूप पुत्र उत्पन्न नहीं हो सकते।
ब्रह्मवैवर्त पुराण का प्रमाण देते हुए ऊपर हम ने संकेत किया है कि जब पुत्री के पीछे ब्रह्मा भाग रहे थे तो उन के पुत्र महादेव ने उन को बुरे काम से सावधान रहने के लिए कहा। इस का अर्थ यह है कि मन में जो विचार उत्पन्न होते हैं और वह वाणी द्वारा व्यक्त होने लगते हैं तो विवेक उसे उचित व अनुचित की जानकारी करा कर सावधान करता है।
इससे स्पष्ट है कि हमारी पौराणिक कथाओं में गूढ़ तथ्यों का अलंकारिक भाषा में वर्णन किया गया है। इस लिए इस से पहिले कि हम उन गाथाओं को बेसिर पैर की गप्पे कहना शुरू कर दें, हमें उन पर विवेक पूर्वक विचार करना चाहिए।