Magazine - Year 1966 - Version 2
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Language: HINDI
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फूल लगाइये, फल उगाइये
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भारत एक धार्मिक देश है। यहाँ की जीवन-पद्धति में फूलों और फलों का अत्यधिक महत्व रहा है। मनुष्य जीवन की भावनात्मक सुन्दरताओं के प्रतीक के रूप में ही नहीं, मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इसका मुख्य स्थान रहा है। ऋग्-वेद में फल-फूल संवर्धन का अनेक स्थानों पर वर्णन है। ऋषियों के आश्रम फूलों और फलों से आच्छादित निकुँज कहलाते थे। उन्हें परमात्मा की अनुपम कृति के रूप में इनसे अद्भुत प्यार था। परमात्मा को समर्पित करने वाली वस्तुओं में इन्हें सर्वोत्तम समझा जाता था।
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की साँस्कृतिक विशेषताओं में फूलों और फलों का प्रमुख स्थान है। मथुरा, कुषाण तथा भरहुत की मूर्ति कलाओं में अनेक प्रकार के पुष्पों, वृक्षों और लताओं का दिग्दर्शन है। बौद्ध-मठ उद्यानों में स्थापित किये जाते थे। प्राचीन-काल में माली आदि जातियों का यह मुख्य व्यवसाय ही समझा जाता था। राजपूतों और मुगलों के शासन काल में भी बागवानी का बड़ा महत्व रहा है।
संसार के प्रत्येक धर्म और संस्कृति में फूलों के प्रति गहन प्यार प्रदर्शित किया गया है। आज के युग में भी फूल मनुष्य को मानसिक शान्ति और आरोग्य प्रदान करने में वही महत्व रखते हैं। हिन्दू धर्म में एक बाग लगाने का पुण्य फल सौ यज्ञों के फल के बराबर माना गया है। इस कथन में आध्यात्मिक अलंकार चाहे कुछ भी हो पर मनुष्य-जीवन में फूल और फलों के पौधे जो प्रतिक्रिया उत्पन्न करते हैं उसे देखते हुये इस कथन को अतिशयोक्ति नहीं मान सकते।
बागवानी जीविकोपार्जन का एक बड़ा सुन्दर साधन है। इसे सहायक व्यवसाय या प्रमुख धन्धे के रूप में भी अपनाया जा सकता है। नियमित बागवानी से कमाई हुई आमदनी अच्छी खेती से कहीं बढ़कर होती है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनसे यह बात पूर्णतया सिद्ध भी हो जाती है। बेंगलूर शहर को अकेले ‘कट फ्लावर’ बेचने से प्रतिवर्ष एक करोड़ रुपये की आमदनी हो जाती है। भारतवर्ष प्रतिवर्ष आम और दूसरे फलों का निर्यात करता है और करोड़ों रुपये की विदेशी मुद्रा पैदा करता है विदेशों की यह रकम अप्रत्यक्ष रूप से फलोत्पादकों तक पहुँचती है। कृषि-विशेषज्ञों का अनुमान है कि एक एक नारंगी के बाग से प्रतिवर्ष 4 हजार की बचत और अमरूद-पपीते आदि से एक हजार से लेकर 2 हजार रुपये तक की वार्षिक बचत हो सकती है। यह आमदनी अन्य जिन्स उपजाने की अपेक्षा बहुत अधिक है।
इस महत्व को दरअसल विदेशों ने हमसे ग्रहण किया और उसका प्रचुर लाभ उठाया, जब कि हमारे देश में बागवानी का निरन्तर ह्रास हो रहा है। जंगलों और वृक्षों का यहाँ तेजी से सफाया किया जा रहा है जिससे फूलों और फलों का अभाव बढ़ता जा रहा है।
वृक्षों का प्राकृतिक जलवायु से भी गहन सम्बन्ध है। वृक्ष वातावरण में मनुष्यों और पशुओं द्वारा पैदा की हुई कार्बनडाइ-आक्साइड स्वयं पीकर उनके लिये स्वास्थ्यवर्धक प्राणवायु निष्कासित करते रहते हैं। भारतवर्ष में नीम एक ऐसा वृक्ष है जो रात में भी आक्सीजन छोड़ता है और दिन की तरह रात में भी समीप रहने वालों को प्राणवायु प्रदान करता है। फूलों में चम्पा, अम्लता, कचनार, गेंदा, गुलमुहर, सोनमुखी, गुलाब, मोंगरे आदि की सुगन्धि और मादकता मनुष्य में एक नई स्फूर्ति, नई ताजगी और नवजीवन भरते रहते हैं। फूलों के बीच पहुँचकर दुःखी मनुष्य के जीवन में भी उत्साह आ जाता है। फूलों और फलों का आध्यात्मिक महत्व इतना अधिक है जिसका वर्णन भी नहीं किया जा सकता।
जलवृष्टि में जंगलों को सर्वोपरि महत्व दिया जाता है। जहाँ प्रकृति की सघनता होती है, वहाँ वर्षा भी नियमित होती है, इसके विपरीत वीरान प्रदेश जहाँ पेड़-पौधों का अभाव होता है अनियमित वर्षा होती है जिससे न तो फसलों का ही लाभ होता है और न सिंचाई के अन्य साधनों के लिये वर्षभर के लिये पर्याप्त जल की व्यवस्था हो पाती है।
सब्जियाँ, विटामिन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, चर्बी और खनिज तत्वों का महत्वपूर्ण स्रोत होती हैं। संतुलित आहार और अच्छे स्वास्थ्य के लिये इनका जितना अधिक उपयोग किया जाय, उतना अच्छा है। पेट को साफ रखने में सब्जियाँ तथा फल अद्वितीय स्थान रखते हैं। वर्तमान खाद्य संकट को दूर करने के लिये भी इनका जितना अधिक से अधिक उपयोग हो सके उतना ही अच्छा। सब्जी और फलों का उत्पादन जितना बढ़ेगा, अन्न का दबाव और खपत उतनी ही कम होगी, फलस्वरूप विदेशों से निर्यात होने वाला गेहूँ बन्द हो जायगा और राष्ट्रीय आमदनी की बचत होगी जिससे विकास आयोजनों के लिये पैसा बचेगा।
एक या अधिक बीघे जमीन में 10 गज की दूरी पर एक सीध में गड्ढे खोद लेने चाहिये। यह कार्य बरसात के दिनों करना चाहिये। पौधों की प्रारम्भिक सुरक्षा और आवश्यकताओं की दृष्टि से तथा कम परिश्रम में अधिक काम की दृष्टि से भी यह ऋतु बागवानी के बहुत उपयुक्त पड़ती है। इन थहलों में खाद डालकर नीचे की मिट्टी की कई बार गोड़ाई करके उन्हें पौध लगाने के उपयुक्त बना लेना चाहिये।
खेत के चारों ओर मिट्टी या काँटेदार झाड़ियां जैसे नागफनी आदि से घेर देना चाहिये और पहली पंक्ति में चारों ओर घने केले तथा पपीते के पौधे लगा देने चाहिये, फिर बीच के थहलों में सन्तरे, नीबू, नासपाती, मौसमी, अमरूद तथा आम की पौध मँगाकर लगा देनी चाहिये। बरसात के दिनों में यह पौध जड़ पकड़ लेती है, इसके बाद केवल सिंचाई गौड़ाई और सामान्य सुरक्षा की आवश्यकता रह जाती है इसे बहुत आसानी से अवकाश के समय में बच्चे तथा स्त्रियाँ भी कर सकती हैं। बच्चों में यह शौक पैदा कर दिया जाय तो वे बड़ी रुचि लेते हैं।
बीच के खाली स्थानों में तुलसी और विभिन्न फूलों के पौधे लगा देना चाहिये, जिससे वहाँ के वातावरण में चारुता उत्पन्न होती है। फूलों में स्वास्थ्य संवर्धन एवं मानसिक प्रसन्नता देने की प्रचुर शक्ति होती है इसलिये यह कार्य कष्टकर भी नहीं हो सकता।
यह बात तो उनके लिये रही जिनको पर्याप्त जमीन उपलब्ध हो पर जिनके पास जमीन अधिक न हो या शहरों में रहते हों, उन्हें घर के आसपास पड़ी बेकार जमीन, कुयें के आसपास के स्थान तथा गमलों का प्रयोग करना चाहिये। घर के आसपास फूल लगाये जा सकते हैं। बरसात के दिनों में जहाँ छप्परों से वर्षा का जल टपकता है उन ओरोतियों के पास छोटे-छोटे गड्ढे खोदकर उनमें लौकी, तोरई, कद्दू, चचींडे, टमाटर आदि सब्जियाँ लगा देनी चाहिये और इनकी बेलों को बाँस की लकड़ियों या दीवार के सहारे से छत पर चढ़ा देना चाहिये। वहाँ वे बेलें अपना पूरा फैलाव भी ले लेती हैं, धूप भी लगती है और सब्जियाँ भी सुरक्षित रह सकती हैं इस प्रकार बहुत सी सब्जी का उत्पादन कर सहायक धन्धा या खाद्य की कमी को दूर किया जा सकता है।
घरेलू उद्यानों में खर्च की लागत भी नहीं आती। सिंचाई भी श्रमसाध्य नहीं होती और आसपास का कूड़ा-करकट खाद का काम कर देता है। प्रत्येक फसल में बीज के लिये एक दो फल छोड़ रखे जायँ तो उसकी भी परेशानी नहीं रहती। धनिया, मेथी, अरुई, गोभी, बैंगन टमाटर आदि प्रत्येक व्यक्ति घर के आस-पास बड़ी आसानी से उगा सकते हैं। मनोरंजन, स्वास्थ्य, वातावरण की सुन्दरता, शुद्ध वायु आदि सभी दृष्टियों से इस में लाभ ही लाभ है।
शहरों में जहाँ स्थान की नितान्त कमी होती है वहाँ भी गमलों में सुन्दर-सुन्दर फूल उगाकर रखे जा सकते हैं। कुछ हलकी सब्जियाँ तथा तुलसी के पौधे वहाँ भी उगाकर वायु-शुद्धि, कड़ी धूप, लू तथा ठंडक से बचाव के लिये वायु-अवरोधक के रूप में लाभ उठाया जा सकता है।
आध्यात्मिक, धार्मिक, आर्थिक तथा नैतिक सभी दृष्टियों से बागवानी करना सभी के लिये अति लाभदायक है। लोग इसे शौक में, सहायक व्यवसाय या प्रमुख व्यवसाय के रूप में भी अपना सकते हैं इसमें व्यक्तिगत, समाज और राष्ट्र सभी का भला है।
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