• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • धर्म और धार्मिकता की कसौटी
    • आस्तिकता का सच्चा स्वरूप
    • चरित्र ही संसार की सर्वोत्तम उपलब्धि है।
    • धीर, वीर और नेमीः
    • भारत संसार का भावनात्मक नेतृत्व करे
    • सच्ची लोक-प्रियता इस तरह मिलती है।
    • Quotation
    • समय के सदुपयोग की महत्ता समझिये
    • परिवार को सुसंस्कृत बनायें
    • मित्रता अच्छी हैः—पर करें समझ-बूझकर
    • मनुष्य जीवन में वृक्षों का आध्यात्मिक महत्व
    • पं. नेहरू का पुस्तक प्रेम
    • अन्न-संकट दूर करने के लिए हम यह करें
    • हरि कथा का मूल्य
    • फूल लगाइये, फल उगाइये
    • हमारा छटनी-कार्यक्रम और उसका प्रयोजन
    • VigyapanSuchana
    • प्रतिज्ञा-पालन तत्काल आरम्भ किया जाय
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • धर्म और धार्मिकता की कसौटी
    • आस्तिकता का सच्चा स्वरूप
    • चरित्र ही संसार की सर्वोत्तम उपलब्धि है।
    • धीर, वीर और नेमीः
    • भारत संसार का भावनात्मक नेतृत्व करे
    • सच्ची लोक-प्रियता इस तरह मिलती है।
    • Quotation
    • समय के सदुपयोग की महत्ता समझिये
    • परिवार को सुसंस्कृत बनायें
    • मित्रता अच्छी हैः—पर करें समझ-बूझकर
    • मनुष्य जीवन में वृक्षों का आध्यात्मिक महत्व
    • पं. नेहरू का पुस्तक प्रेम
    • अन्न-संकट दूर करने के लिए हम यह करें
    • हरि कथा का मूल्य
    • फूल लगाइये, फल उगाइये
    • हमारा छटनी-कार्यक्रम और उसका प्रयोजन
    • VigyapanSuchana
    • प्रतिज्ञा-पालन तत्काल आरम्भ किया जाय
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1966 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
SCAN TEXT


सच्ची लोक-प्रियता इस तरह मिलती है।

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 5 7 Last
लोकप्रियता जीवन की सफलता का एक प्रामाणिक मानदण्ड है। अनेक लोग धन-दौलत, परिवार प्रतिष्ठा आदि अनेक अन्य बातों को जीवन की सफलता का चिन्ह मानते हैं। किन्तु यह सब बातें प्रभाव एवं अपने में एक सामान्य संतोष पैदा करने वाली तो हो सकती हैं किन्तु इन्हें जीवन की सफलता का प्रामाणिक लक्षण नहीं कहा जा सकता।

धनवान लोग समाज में अपनी पूछ तथा प्रभाव देखकर लोकप्रियता के भ्रम में पड़ जाते हैं। यह बात सही है कि लोग उन्हें देखते ही नमस्कार करते, गोष्ठियों अथवा आयोजनों में विशेष स्थान देते हैं। अनेक दानों अनुदानों के लिये उनकी दहलीज पर सिर झुकाते और कोशिश करते हैं कि उनको प्रसन्न किया जाये। किन्तु इस घेराघारी को लोकप्रियता समझना भारी भूल होगी। लोगों द्वारा दी जाने वाली यह सारी विशेषता वास्तव में उस व्यक्ति के लिये नहीं बल्कि उसके उस धन के लिये होती है जिसे लोग प्राप्त करना चाहते हैं। कल को यदि ऐसे आदमियों के पास से धन अथवा अधिकार चला जाये तो कोई उसका समाचार तक पूछने न जायेगा। जब तक उनके पास धन अथवा अन्य प्रकार के साधन, जिनसे किसी का स्वार्थ सिद्ध हो सकता है, बने रहते हैं लोग उसे हाथों-हाथ लेने और चाटुकारी करने का प्रयत्न किया करते हैं। स्वार्थ निकल जाने अथवा निराश हो जाने या उक्त व्यक्ति का वैभव नष्ट हो जाने पर लोग उसे ऐसे भूल जाते हैं मानों वह इस धरती पर है ही नहीं और यह उपेक्षा यहाँ तक बढ़ जाती है कि लोग उसे पहचान कर भी अनजान जैसा भाव व्यक्त करते हैं। किसी आधार पर निर्भर प्रभाव लोकप्रियता नहीं कहा जा सकता। इस प्रकार के साधनावलम्बी व्यक्ति कभी-कभी अविकल वैभव रहने पर भी लोगों द्वारा उपेक्षित कर दिये जाते हैं। उनकी अपेक्षा अधिक दाता, अधिकारी अथवा वैभव वान व्यक्ति मिल जाने पर उसे छोड़कर लोग उस आधिक्य वाले व्यक्ति की ओर उन्मुख हो जाते हैं। सवा सौ देने के मुकाबले में लोग सौ देने वाले को बात की बात में भुला देते हैं। पहले वाले की ओर से अपनी सारी प्रियता पसन्दगी तथा चाटुकारी हटाकर दूसरों की ओर बढ़ा देते हैं। कभी-कभी तो प्रियता क्या परिचय तक छीनकर नये उपयोगी व्यक्ति को दे दिया जाता है। कम दे सकने वाला पूर्व परिचित अपरिचित तथा अधिक देने वाला नवागन्तुक अधिक परिचित हो जाता है। इस प्रकार अपने साधनों, धन तथा अधिकारों के बल पर पाये बहु परिचय को लोकप्रियता समझने की भूल करने वाले एक दिन भ्रम दूर हो जाने पर मानसिक कष्ट पाया करते हैं।

अनेक लोग-प्रियता पाने के लिए दान-दक्षिणा का कार्यक्रम चलाया करते हैं। वे लोगों की श्रद्धा-भक्ति अथवा आकर्षण पाने के लिये गरीबों को भोजन कराते हैं अवसर उपस्थित कर ब्राह्मणों अथवा साधु-सन्तों को दान दक्षिणा दिया करते हैं, तीर्थों पर सदावर्त लगाया करते हैं। संस्थाओं की सहायता करके अपना नाम खुदवाया करते हैं। कोई लोग निस्पृहता का आडम्बर करने के लिये गुप्तदान देकर अन्य लोगों से जिक्र किया करते हैं। इससे वे कुछ सामयिक प्रशंसा अथवा प्रतिष्ठा तो अवश्य पा लेते हैं किन्तु इसे यदि वे लोक-प्रियता समझते हैं तो भूल ही करते हैं।

दान-दक्षिण देना अथवा अन्य प्रकार के उदारता के काम करना निःसन्देह अच्छी बात है। किन्तु यही परमार्थ अथवा परोपकार तब एक व्यापार बन जाता है जब लोग लोक-प्रियता के रूप में इसका लाभ उठाना चाहते हैं। इस प्रकार की मन्तव्य पूर्ण उदारता लोकप्रियता का कारण तो नहीं ही बनती है, परमार्थ एवं परोपकार के पुण्य से भी वंचित रह जाती है। दान दिया जाये, सदावर्त लगाया जाये, भूखे-नंगों को अन्न वस्त्र दिया जाये, लेकिन केवल उनकी आत्मा अथवा उनकी आत्मा के ब्याज से परमात्मा को प्रसन्न करने के लिये। इस प्रकार का निस्पृह परोपकार तथा परमार्थ ही सार्थक हो सकता है। व्यावसायिक उदारता के कृत्य निष्फल ही चले जाते हैं।

बहुधा लोग धन-दौलत तथा परिवार अधिकार की उपलब्धि ही जीवन की सफलता समझ लेते हैं। उनका जीवन उनके अपने संतोष के लिये तो सफल हो सकता है किन्तु समाज अथवा संसार की दृष्टि से वह सफल नहीं माना जा सकता। किसी का जीवन ठीक रूप में तभी माना जा सकता। जब उसका जीवन औरों के लिए भी उसी प्रकार सहानुभूति एवं संवेदना का विषय हो, जिस प्रकार स्वयं उनके लिए। जीवन की यह सफलता लोक-प्रियता के अतिरिक्त किसी प्रकार नहीं मिल सकती।

लोग समझते हैं कि उनके पास एक बड़ा परिवार है, धन-दौलत तथा अन्य अनेक प्रकार के अधिकार एवं साधन सुविधायें हैं। वे मनमाने आराम से अपना जीवनयापन कर रहे हैं इसलिए उनका जीवन सफल है। यह विचार भ्रामक है। केवल वैभव, विभूति पा लेने और सुख सुविधापूर्वक जीवन बिताने की परिस्थिति मिल जाने से ही किसी का जीवन सफल नहीं कहा जा सकता।

धनवान, शक्तिवान एवं जन वान हो जाने से, जिसे लोग जीवन की सफलता समझते हैं , प्रायः लोगों में घमंड, दम्भ, प्रदर्शन, क्रोध, रोष, स्पर्धा एवं ईर्ष्या की बुराई आ जाती है। धन, जन अथवा बल के मद में चूर होकर लोग दूसरों को सताने, दबाने तथा नीचा दिखाने में ही अपनी विशेषता समझने लगते हैं। साधन सम्पन्न व्यक्ति यही चाहता रहता है कि उसके सिवाय संसार में न तो कोई उन्नति कर पाये और न आगे बढ़ पाये। संसार का हर व्यक्ति उससे नीचे तथा आतंक में रहे। इसीलिए यदि उनकी दृष्टि किसी उठते हुये आदमी पर पड़ती है तो वे उससे ईर्ष्या करने और द्वेष मानने लगते हैं। इस बात की कोशिश करते हैं कि किसी प्रकार यह उठने न पाये। वे उसके मार्ग में अवरोध उत्पन्न करते, रोड़े अटकाते और काँटे बिछाते हैं। दूसरे को नीचे गिराने में अपनी शक्ति एवं साधन का दुरुपयोग करते हैं। जिस धन-दौलत तथा अधिकार शक्ति से इस प्रकार दोष उत्पन्न हो सकते हैं उसे जीवन की सफलता का लक्षण मानना भूल नहीं तो क्या कहा जा सकता है?

जीवन की वास्तविक सफलता लोक-प्रियता पाने के लिये धन-दौलत अथवा शक्ति सम्बल की आवश्यकता नहीं, उसके लिये आवश्यकता है गुण, कर्म स्वभाव की श्रेष्ठता की। जब तक गुण, कर्म, स्वभाव में श्रेष्ठता का समावेश नहीं होगा, बहुत कुछ धन-दौलत एवं शक्ति सम्पन्नता होने पर भी मनुष्य वास्तविक लोकप्रियता नहीं पा सकता।

जो गुणी है उसका आदर क्या धनवान और क्या निर्धन, दोनों ही करते हैं। उसकी पूजा प्रतिष्ठा किसी बाह्य आधार पर नहीं होती, आन्तरिक गुणों के कारण ही होती है। सहानुभूति , संवेदना, सहयोग, सेवा के गुण मनुष्य को सहज ही लोक-प्रिय बना देते हैं। गुणी मनुष्य की एक सद्भावना ही उसे इतनी लोकप्रियता प्राप्त करा सकती है जो एक धनवान लाखों हजारों खर्च करके भी नहीं पा सकता। सहानुभूति का एक शब्द, सम्वेदना का एक आँसू और सेवा का एक कार्य सौ भार स्वर्ण से भी अधिक मूल्यवान है। शोक के समय किसी को दिया हुआ सान्त्वना का एक शब्द , दीन दुखी अथवा आपत्ति पीड़ित व्यक्ति की सेवा आर्थिक सहायता से कहीं अधिक सन्तोषदायक होती है। एक निर्धन, एक धनाढ्य की अपेक्षा कहीं अधिक लोक-प्रियता पा सकता है यदि वह अपने में वास्तविक गुणों का विकास कर लेता है। धनवान का धन समाज में लोक-प्रियता का सम्पादन सच्ची सहानुभूति अथवा सम्वेदना का गुण न होगा। लोक-प्रियता यथार्थ में धन के दान से नहीं मिलती बल्कि वह मिलती है उस सद्भावना के गुण के कारण जो उस दान के पीछे दमकती रहती है। बिना सद्भावना का दान एक दम्भ होता है जो लोक-प्रियता लाने के स्थान पर अधिकतर लोकापवाद ही लाया करता है।

जो सदाचारी है, सुकर्मवान् है, उसका आचरण ही उसको लोक-प्रिय बना देगा। लोग उस पर विश्वास करेंगे, उसे आदर की दृष्टि से देखेंगे और उसकी चर्चा करेंगे। कर्मों की श्रेष्ठता एवं निष्कलंकता में आस्था रखने वाला मनुष्य बड़े से बड़ा कष्ट उठाकर किसी को धोखा नहीं देगा, मिथ्याचरण अथवा आडम्बर का अवलम्बन न लेगा। कोई भी ऐसा काम न करेगा जिससे वह, उसका परिवार, समाज, राष्ट्र अथवा मानवता लाँछित होती हो। सुकृती के हृदय में छल-कपट, ईर्ष्या-द्वेष, काम-क्रोध आदि विकारों का वेग नहीं रहता। ऐसे चारु-चरितं लोग अपने कर्तव्यों, अधिकारों अथवा शक्तियों का प्रयोग ऐसी दिशा में नहीं करते जिससे उनकी नागरिकता एवं नैतिकता पर आँच आए। ऐसे श्रेष्ठ लोगों की तरफ लोक चित आकर्षित होने लगता है।

जिसका स्वभाव मधुर है, जो क्रोध के कारण पर भी शाँत एवं संतुलित रहता है, छोटे-बड़े सभी व्यक्तियों से समान प्रसन्नता से मिलता और बात करता है, किसी की निन्दा अथवा छिद्रान्वेषण करना जिसके स्वभाव का अंग नहीं होता, जो परदोष-दर्शी न होकर पर गुण गायक होता है, वह व्यक्ति सहज ही अपने श्रेष्ठ स्वभाव के कारण लोक-प्रियता पा लेता है। पावन स्वभाव के लोग निश्चय ही परमार्थ कर्मों में विश्वास रखते हैं। परमार्थ अथवा परोपकार का छोटा-सा भी अवसर आने पर सुकृत स्वभाव का व्यक्ति बिना किसी प्रोत्साहन के स्वतः उसमें लग जाता है। किसी का दुःख देख आँसू भर लाना और हर्ष देखकर पुलकित हो उठना श्रेष्ठ स्वभाव व्यक्तियों की एक प्राकृतिक विशेषता होती है। ऐसे पुनीत पुरुषों को भला कौन न जानेगा और कौन न याद करेगा। धन-वैभव एवं सुविधा, साधनों से रहित होने पर भी गुण, कर्म,स्वभाव से श्रेष्ठ व्यक्तियों को लोग सभा, समाजों में प्रमुख स्थान ही देते हैं।

गुण, कर्म, स्वभाव तीनों की श्रेष्ठता से ही वास्तविक लोक-प्रियता मिलती है। कोई यदि बहुत कुछ गुणी है, बड़ा दयालु तथा दर्दीला है, उसकी सहानुभूति एवं संवेदना जागृत होने में देर नहीं लगती, किन्तु उसके कर्म गुणों के अनुरूप नहीं है तो उसके गुण मिथ्यात्व के दोष भागी होंगे। किसी के आँसू देखकर आँसू तो भर लिए किन्तु उन्हें दूर करने, पोंछने अथवा बन्द करने के योग्य कोई छोटा-सा भी करणीय कार्य नहीं किया तो वह सहानुभूति उसकी अपनी मानसिक दुर्बलता जन्य भावुकता ही मानी जायेगी। ऐसी निष्क्रिय भावुकता सच्ची लोक-प्रियता प्राप्त नहीं कर सकती। जो गुणी भी है तो लोग उसे भी पसन्द न करना चाहेंगे। किसी से सहानुभूति रखकर उसकी सक्रिय सहायता करने वाला यदि भावावेश में उससे कोई कठोर बात या व्यवहार कर बैठेगा तो उसके सारे किये कराये पर पानी फिर जायेगा। परूप, कठोर, कर्कश अथवा निराश एवं निरुत्साही व्यक्ति से कोई किसी प्रकार का संपर्क रखना पसन्द नहीं करेगा। अस्तु वास्तविक लोक-प्रियता प्राप्त करने के लिए गुण, कर्म, स्वभाव तीनों का श्रेष्ठ होना आवश्यक है।

जीवन की सफलता यह नहीं है कि किसी ने कितना धन, कितना वैभव, कितनी शक्ति तथा कितना अधिकार प्राप्त कर लिया, बल्कि जीवन की सफलता यह है कि उसने कितने लोगों का हृदय जीत लिया है, कितनों के हृदय पर मनुष्यत्व की अमिट छाप छोड़ी है, कितने लोगों का विश्वास किस सीमा तक जीता है? उसने अपने आचरण से कितने लोगों को याद करने के लिये विवश कर लिया है आदि अहैतुक लोक-प्रियता ही जीवन की वास्तविक सफलता है और यह लोक-प्रियता गुण, कर्म, स्वभाव तीनों की श्रेष्ठता से ही प्राप्त हो सकती है।

First 5 7 Last


Other Version of this book



Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...

Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • धर्म और धार्मिकता की कसौटी
  • आस्तिकता का सच्चा स्वरूप
  • चरित्र ही संसार की सर्वोत्तम उपलब्धि है।
  • धीर, वीर और नेमीः
  • भारत संसार का भावनात्मक नेतृत्व करे
  • सच्ची लोक-प्रियता इस तरह मिलती है।
  • Quotation
  • समय के सदुपयोग की महत्ता समझिये
  • परिवार को सुसंस्कृत बनायें
  • मित्रता अच्छी हैः—पर करें समझ-बूझकर
  • मनुष्य जीवन में वृक्षों का आध्यात्मिक महत्व
  • पं. नेहरू का पुस्तक प्रेम
  • अन्न-संकट दूर करने के लिए हम यह करें
  • हरि कथा का मूल्य
  • फूल लगाइये, फल उगाइये
  • हमारा छटनी-कार्यक्रम और उसका प्रयोजन
  • VigyapanSuchana
  • प्रतिज्ञा-पालन तत्काल आरम्भ किया जाय
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj