
असीम शक्ति का स्वामित्व कहीं सर्वनाश का कारण न बने
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
यह विश्व शक्ति रूप है। उसके कण−कण में शक्ति का अजस्र भण्डार भरा पड़ा है। उक नगण्य से परमाणु का जब विस्फोट किया जाता है तो पता चलता है कि उसके गर्भ में कितनी प्रचण्ड सामर्थ्य भरी पड़ी थी। फिर इन अणु−परमाणुओं के संगठन से बने पदार्थों की क्षमता का तो कहना ही क्या?
हमें शक्ति की तलाश है वह अवश्य मिल जायगी। जो वस्तु प्रचुर परिमाण में सर्वत्र बिखरी पड़ी है, उसके मिलने में किसी को क्या और क्यों कठिनाई होगी। नित नये आविष्कार हो रहे हैं और उनसे विभिन्न स्तर का सुविधाएं उत्पन्न करने वाली क्षमताएँ हस्तगत की जा रही हैं यह प्रसन्नता की बात है। यह खोज जितनी अधिक की जायगी—जितनी ही हमारी इच्छा शक्ति और संकल्प शक्ति का नियोजन इन शोध प्रयत्नों में होगा, उतने ही प्रकृति के रहस्यमय परत खुलते चले जायेंगे। मनुष्य जितने स्तर की— जितनी अधिक मात्रा में शक्ति की आवश्यकता अनुभव करेगा उसे सहज ही मिल जायगी। जो मौजूद ही है− सर्वत्र बिखरा ही पड़ा है उसके ऊपर से पर्दा उठा देना कुछ कठिन भी नहीं था। जो कठिनाई थी वह प्रबल आकाँक्षा और प्रबल पुरुषार्थ के साथ तीव्र मनोयोग लगाने से सहज ही दूर भी हो जायगी। ईश्वर का राजकुमार अपने को सर्वशक्ति मान अनुभव करने लगे तो यह उसके लिए सरल स्वाभाविक ही है।
सूर्य की सप्तरंगी किरणों में से लाल रंग की किरणों से एक विशिष्ट धारा उत्पन्न की गई है ‘लेसर’ यह इतनी प्रचण्ड है कि उसकी सशक्त ता अपने स्तर की अनोखी एवं अभूतपूर्व ही कही जा सकती है। अणु विस्फोट से उत्पन्न विकिरण और लेसर प्रवाह का स्वरूप एवं प्रवाह भिन्न स्तर का है पर जहाँ तक मारक एवं दाहक शक्ति का सम्बन्ध है लेसर को ही प्रधान मानना पड़ेगा। दूषित विकिरण उत्पन्न न करने के कारण उसके उपयोग को और भी अधिक प्रमुखता दी गई है।
सामान्य स्थिति में प्रकाश किरणों मेले−ठेले में चलने वाली अनियन्त्रित भीड़ की तरह होती है जबकि ‘लेसर’ उत्पादन युक्त समान दिशा में— समान गति से चलने वाले सैनिकों की तरह कहा जा सकता है। भीड़ और सैनिकों शक्ति में जो अन्तर रहता है वही सामान्य प्रकाश किरणों और लेसर किरणों के बीच समझा जा सकता है।
लेसर किरणों का क्रिया−कलाप अद्भुत है। इनके द्वारा इस्पात की एक मोटी चादर में बहुत ही बारीक छेद कराना था जो उसने एक सेकेंड के हजारवें भाग जितने नगण्य समय में बड़ी फुर्ती से पूरा कर दिया। वे किरणें 6000 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान की थीं। छेद के स्थान के बुरादे को उन्होंने हवा में भाप बना कर उड़ा दिया। इसी प्रकार एक मजबूत हीरे में भी उनके द्वारा बहुत पतला छेद बात की बात में कर दिया। अमेरिकी डाक्टरों ने इन किरणों के द्वारा आँख जैसे नाजुक अंग के ट्यूमर को एक सेकेंड के दस लाख वे भाग में जलाकर नष्ट कर दिया। जबकि उसकी आपरेशन प्रक्रिया बड़ी कठिन मालूम पड़ती थी। निकट भविष्य में लेसर की एक किरण के सहारे टेलीफोन की एक साथ एक करोड़ वार्ताऐं की जा सकेंगी और टेलीविजन के एक हजार कार्यक्रम एक साथ प्रसारित किये जा सकेंगे। अंतर्ग्रही खोज−बीन के लिए अब खर्चीले राकेट भेजने न पड़ेंगे इन किरणों के द्वारा सौर−मण्डल के ही नहीं उससे बाहर के ग्रह नक्षत्रों में खोजा, परखा जा सकेगा।
खतरनाक लेसर किरणों को पालतू और सरल बनाकर विद्युत उत्पादन जैसे सामान्य उपयोग के योग्य बनाने के प्रयत्न किये गये हैं। अब तक प्रयुक्त हुए ‘लाल दण्ड’ उपकरण के स्थान पर एक नया माध्यम अर्ध चालक गैलियम आसनाइड विनिर्मित किया गया है जो शक्ति की उतनी ही सीमित मात्रा उत्पन्न करेगा जिसे लोकोपयोगी कार्या में प्रयुक्त किया जा सके।
लेसर उत्पादन का प्रमुख माध्यम ‘लालमणि’ है। यह एल्युमीनियम और आक्सीजन का योगिक मात्र है। एल्युमीनियम के पाँच हजार परमाणुओं में एक क्रोमियम का होता है, यही है लेसर उत्पादन की भूमिका का प्रमुख नट−नायक। यह अणु समुदाय संसार के अनन्त अंतरिक्ष में असीम मात्रा में बिखरा पड़ा है, उसके अस्तित्व का मान तक नहीं होता। जब उनके विशिष्ट वर्ग को विशिष्ट रीति से विशिष्ट प्रयोजन के लिए प्रयुक्त किया जाता है तो साधारण से असाधारणों के विकास उत्पादन का आश्चर्यचकित करने वाला प्रतिफल लेसर किरणों की तरह सामने आ खड़ा होता है।
एकता और एक रूपता की शक्ति का मूर्तिमान रूप ‘लेसर’ किरणों के रूप में सामने आया है। सामान्य प्रकाश के अंतर्गत सात रंग होते हैं और उन रंगों की किरणों छोटी−बड़ी ही नहीं होतीं वरन् बिखरी बिखरी रहती हैं। अपनी चाल तथा कलाएँ भी अलग−अलग रखने की विश्रृंखलता में उलझी हुई वे अपनी ढपली अपना राग बनाती और डेढ़ चावल की खिचड़ी अलग−अलग हांडियों में पकाती रहती हैं फलतः उनसे गर्मी और रोशनी भर का नगण्य-सा प्रयोजन पूरा हो पाता है।
‘लेसर विज्ञान में पदार्थ की ऊर्जा का एक स्तर, एक लक्ष्य, एक स्वरूप, निर्धारित करने में सफलता प्राप्त की है फलतः उसके हाथ में अप्रत्याशित शक्ति स्रोत लग गया है इन किरणों का ताप 18000 सेंटीग्रेड है जिसकी तुलना में सूर्य भी ठण्डा प्रतीत होता है। इसका पूरा प्रयोग जहाँ भी किया जायगा वहाँ की हर वस्तु भाप बनकर हवा में उड़ जायगी।
चार इंच मोटा लाल रंग का एक यन्त्र सज्जित उपकरण लेजर किरण उत्पादन का प्रधान माध्यम है। उसमें क्रोमियम परमाणु प्रकाश के हरे अथवा पीले वर्ण को उत्तेजित किया जाता है। इसके लिए डिस्चार्ज लैंप द्वारा एक सेकेंड के हजारवें भाग जितने समय में प्रकाश उत्पन्न करके शुद्ध लाल रंग का प्रकाश प्राप्त किया जाता है। अब तक जो लेसर किरणें प्राप्त की गई हैं उनकी अधिकतम मोटाई एक इंच के दस लाखवें भाग के बराबर है। भविष्य में इतनी अधिक समर्थ और बलिष्ठ धाराएँ प्राप्त करने की आशा की गई है।
सकता है उसे इन लेजर किरणों ने पलक झपकते जितने समय और श्रम से पूरा करके दिखा दिया। इसीसे अनुमान लगाया जा सकता है—इन किरणों की अप्रत्याशित और अकल्पनीय शक्ति का।
रचनात्मक एवं समृद्धि अभिवर्धन के कार्या में इसका सदुपयोग होने पर जितना लाभ मिलने की कल्पना की गई है उससे भी अधिक आशंका दुरुपयोग के कारण उत्पन्न होने वाले सर्वनाश की है। लेसर किरणों से अचूक निशाना साधा जा सकेगा और जहाँ अणुबम गिराना हो वहाँ निश्चित रूप से निराया जा सकेगा। आकाश में उड़ते वायुयान ही नहीं अन्तर्ग्रही खोज पर निकले हुए राकेट भी जलाकर भस्म किये जा
सकेंगे। मृत्यु किरण के रूप में जहाँ भी उसकी प्रचण्ड धाराएँ छोड़ी जायेंगी वह भूखण्ड, खण्डहर वीरान के रूप में भी अपना चिन्ह अवशेष नहीं छोड़ेगा वरन् वहाँ की सारी वस्तुएँ हवा में भाप बनकर उड़ जायेंगी और उनकी कोई अता−पता शेष न रहेगा।
सकेंगे। मृत्यु किरण के रूप में जहाँ भी उसकी प्रचण्ड धाराएँ छोड़ी जायेंगी वह भूखण्ड, खण्डहर वीरान के रूप में भी अपना चिन्ह अवशेष नहीं छोड़ेगा वरन् वहाँ की सारी वस्तुएँ हवा में भाप बनकर उड़ जायेंगी और उनकी कोई अता−पता शेष न रहेगा।