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Magazine - Year 1974 - Version 2

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अपनों से अपनी बात - शान्तिकुंज के तीन महत्वपूर्ण प्रयास

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नैष्ठिक साधकों को अनवरत मार्ग−दर्शन

अखण्ड−ज्योति परिवार के सदस्यों को यह प्रेरणा निरन्तर दी जाती रहती है कि वे अपनी रुझान आत्मज्ञान एवं आत्मबल बढ़ाते के लिए मोड़े। भौतिक समृद्धि की तरह ही आत्मिक प्रगति की बातें सोचें। इसके लिए उपासनात्मक क्रिया−प्रक्रिया और जीवन निर्माण साधना पर भी उसकी उपेक्षा नहीं की है और उनमें से अधिकाँश ने अपने आत्मिक जीवन को समुन्नत बनाने के लिए यथासम्भव प्रयत्न किया है। अपनी प्रेरणा परक चेष्टा भी निरन्तर चलती रही है और स्वजनों को इस संदर्भ में समय−समय पर आवश्यक उत्साह एवं प्रकाश दिया जाता रहा है।

अब इस दिशा में अधिक सुव्यवस्थित रीति से क्रमबद्ध प्रयत्न करने का निश्चय किया गया है। जिन्हें आत्मिक प्रगति के लिए उपासना एवं साधना में सुस्थिर उत्साह है उन्हें क्रमिक विकास के लिए नियमित मार्ग−दर्शन करने की व्यवस्था बनाई गई है। गत दो अंकों में इस संदर्भ में कुछ लिखा जाता रहा है। साधना मार्ग में समुचित अभिरुचि रखने वालों की अलग से सूची बनाई जा रही है। वर्ष में दो बार उनके कार्या का लेखा−जोखा लेने और तदनुरूप भविष्य के लिए आवश्यक परामर्श देते रहने का निश्चय किया गया है।

इसके लिए बसन्त पञ्चमी (माघ शुक्ल पञ्चमी) गुरुपूर्णिमा (आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा) दो पर्व निर्धारित किये गये हैं। धार्मिक परम्परा के अनुसार इन दो पर्वों का महत्व हर दृष्टि से अति उच्चकोटि का है। इन पर्वों पर परिवार के लाखों परिजनों से व्यक्ति गत मिलना तो नहीं हो सकता,पर पत्रों का आदान−प्रदान तो सम्भव ही है। इससे भी काम चल सकता है। परिजनो को हर साल इतना किराया भाड़ा खर्च करके समय निकालकर र वर्ष में दो बार हरिद्वार आ सकना कठिन है और अपने लिए भी इतने अधिक लोगों को ठहराने का—भेंट परामर्श का प्रबन्ध कर सकना असम्भव है। अस्तु पत्र व्यवहार को ही सुविधाजनक एवं पर्याप्त माना गया है।

जून, जुलाई के अंकों में इसी संभव के अंतर्गत कुछ प्रश्न गये हैं और कुछ निर्देश दिये गये हैं।

जून के अंग में उपासना एवं साधना प्रक्रिया किस प्रकार चल रही है? भौतिक एवं आध्यात्मिक जीवन−क्रम किस स्थिति में रह रहा है? यह पूछा गया है और जुलाई के अंग में ऐसे दस सूखकर निर्देश दिये गये हैं जिनके आधार पर वैयक्तिक, पारिवारिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्वों का उच्चस्तरीय निर्वाह कर सकने की दिशा में अधिक तेजी से कदम बढ़ाये जा सकें।

वर्तमान स्थिति क्या है? तथा निर्देशों को अपनाने के लिए प्रयास क्या है? इन दोनों बातों की आवश्यक जानकारी जिनकी मिलेगी उनके सम्बन्ध में अधिक गहराई से विचार कर सकना और व्यक्ति गत परामर्श अधिक मनोयोग पूर्वक दे सकना भी अपने लिए सम्भव हो जायगा। यदि वह आदान−प्रदान क्रमबद्ध रूप से चल पड़ा तो निश्चित रूप से अधिकाँश परिजनों को अपनी आध्यात्मिक प्रगति का पथ अधिक व्यवस्थित रीति से और अधिक तीव्रगति से प्रशस्त हुआ अनुभव होता रहेगा।

जून अंक में पूछे गये प्रश्नों और जुलाई अंक में दिये गये निर्देशों को कार्यान्वित किये जाने संबंधी जान−कारियाँ परिजन उत्साह पूर्वक भेज रहे हैं। जिनके पत्र अभी नहीं आये हैं उनके इस महीने में अवश्य आ जायेंगे ऐसी आशा की गई है। इन उत्तरों के आधार पर अखण्ड ज्योति परिवार के नैष्ठिक उपासकों की सूची बन जायगी और उनके साथ आदान−प्रदान का एक व्यवस्थित क्रम चल पड़ेगा। यह प्रक्रिया निश्चित रूप से अधिक श्रेयस्कर सिद्ध होगी, ऐसी आशा है। इस सूची में पिछले प्राण—प्रत्यावर्तन सत्रों में आये हुए— आगे आने वाले—वानप्रस्थ तथा आय शान्ति−कुञ्ज में आये शिक्षार्थी तो होंगे ही जो अन्य होंगे उन्हें भी अगले दिनों एकबार हरिद्वार बुलाने के लिए प्रयत्न किया जायगा। ताकि कुछ समय साथ−साथ रह सकने का अवसर भविष्य के लिए अधिक घनिष्ठ आत्मीयता का सृजन कर सके और आदान−प्रदान की श्रृंखला को अधिक सुदृढ़ बना सके।

पत्रों का उत्तर तो यहाँ से दिया ही जाता है। आमतौर से सभी स्वजन जवाबी पत्र भेजने की आवश्यकता अनुभव करते हैं और इससे उत्तर भेजने में पड़ने वाले एक बहुत बड़े आर्थिक दबाव से संस्था को बहुत हदतक राहत मिल जाती है और उत्तर देना अधिक सुविधाजनक हो जाता है। यों उत्तर किसी के भी नहीं रोके जाते विशेषतया उनके, जो आत्मिक प्रगति की दिशा में बढ़ चलने के लिए प्रयत्नशील हैं।

पत्रों में संक्षिप्त बात ही लिखी जा सकती है। अनेकानेक जिज्ञासाओं का समाधान विस्तारपूर्वक कर सकना उसमें सम्भव नहीं होता। संक्षिप्त में लिखे गये प्रश्न और संक्षिप्त उत्तर एक सीमा तक ही समाधान करते है। बहुत प्रयत्न करने पर भी वार्ता अधूरी रह जाती है। इस कठिनाई का समाधान करने के लिए इस वर्ष से एक नई व्यवस्था यह सोची गई है कि शान्तिकुंज का एक प्रतिनिधि नैष्ठिक अध्यात्म पथ के पथिकों के यहाँ जाया करे और उनकी आत्मिक जिज्ञासाओं का समाधान एवं आवश्यक मार्ग−दर्शन किया करे। हमारा प्रतिनिधि कब पहुँचेगा इसकी पूर्व सूचना स्थानीय किसी एक व्यक्ति को देदी जाया करेगी। वह अन्य सब साधकों को सूचना देकर उन्हें एकत्रित कर लिया करेंगे और सामूहिक एवं व्यक्ति गत परामर्श के आधार पर वह सब वैचारिक आदान−प्रदान कर लिया जाया करेगा जो हरिद्वार आने पर ही सम्भव हो सकता है। पत्र−व्यवहार में अपूर्णता रह जाती है—स्थिति का सही रूप में मूल्याँकन नहीं हो पाता उस कमी को प्रतिनिधि द्वारा विवरण जानकर अथवा परामर्श करके बहुत कुछ जाना जा सकता है। इस प्रकार वह प्रतिनिधि हमारे और साधकों के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की आवश्यकता पूरी करता रह सकेगा। जानकारियों का अच्छा आदान प्रदान इस माध्यम से सम्भव हो सकेगा।

भजनोपदेशकों के लिए संगीत सत्र

शान्ति−कुञ्ज में तीन−तीन महीने के संगीत सत्र आरम्भ होने की सूचना कुछ समय पूर्व छपी थी। वे अब 1 अक्टूबर से आरम्भ होने जा रहे हैं।

इस संदर्भ में कुछ स्पष्टीकरण आवश्यक है। यह सब केवल इस दृष्टि से आरम्भ किये जा रहे हैं कि जन−जागरण की आवश्यकता पूरी करने के लिए उत्साही भजनोपदेशक तैयार किये जा सकें। विचार क्रान्ति इस युग की महती आवश्यकता है। जन−मानस का भावनात्मक नव−निर्माण करने के लिए अपने देश में प्रवचनों से अधिक गायन के अधिक सफल होने की संभावना सुनिश्चित है इस दृष्टि से यह आवश्यकता वर्षों से अनुभव की जा रही थी कि विचार गोष्ठियों, सम्मेलनों में प्रवचन करने के लिए वक्त तैयार करने के अतिरिक्त लोक−मानस को झंकृत कर सकने योग्य गायक—भजनोपदेशक भी उत्पन्न किये जाँय। उनके समुचित किन्तु स्वल्पकालीन प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाय। संगीत सत्रों के आरम्भ करने की योजना इसी दृष्टि से बनाई गई थी।

कुछ समय पूर्व संगीत सत्रों सम्बन्धी सूचना अखण्ड−ज्योति में छपी थी। उसमें सम्भवतः उपरोक्त स्पष्टीकरण अच्छी तरह नहीं हो पाया। अस्तु आवेदन कर्ताओं में से कई थे जिनका उद्देश्य व्यक्ति गत शौक की पूर्ति तक सीमित था। जिस तरह कई अन्य कलाएँ लोग अपनी निजी योग्यता बढ़ाने अथवा विनोद की दृष्टि से सीखते हैं उसी तरह उनने इसे भी ‘समझा’ है और यह ध्यान में नहीं रखा है कि मिशन का उद्देश्य मात्र जन−जागरण है और उसी प्रयोजन की पूर्ति के लिए शान्ति−कुञ्ज में विविध प्रकार के प्रशिक्षण आरम्भ किये गये हैं। वानप्रस्थ शिक्षण—महिला जागरण सभी शिक्षण उनके लिए हैं जिनके अन्तःकरणों में युग की महती आवश्यकता पूरी करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण योगदान कर सकने की उमंग है। जिनकी इच्छाएँ व्यक्ति गत योग्यता बढ़ा कर निजी लाभ लेने तक सीमित हों उनके लिए उपरोक्त सभी सत्र निरर्थक हैं। ठीक यही बात संगीत सत्रों पर भी लागू होती है। जिनकी परिस्थिति एवं मनःस्थिति घर से बाहर जा सकने की—जन−जागरण की—विचार क्रान्ति की युग पुकार के लिए अपना कुछ योगदान कर सकने के उपयुक्त है उन्हीं के लिए संगीत सत्र शिक्षण में सम्मिलित होने की उपयोगिता है। ऐसे लोगों के लिए ही इतनी झंझट भरी व्यवस्था का उत्तरदायित्व मिशन अपने कन्धों पर उठाना चाहता है। शौकीनी की दृष्टि से गाना−बजाना सीखने भर में रुचि रखने वालों के लिए कोई साधन जुटाना अपने लिए प्रकार से असम्भव ही है।

गत वर्ष संगीत सत्र की छपी सूचना के आधार पर जिनने अपने आवेदन पत्र भेजे थे उनसे तथा नये आवेदन कर्ताओं से वस्तु स्थिति को समझ कर ही अपने प्रार्थना पत्र नये सिरे से भेजने का अनुरोध है।

शिक्षार्थी अपना प्रार्थना−पत्र निम्न सूचनाओं सहित भेजें (1)पूरा नाम पता (2) आयु (3) शिक्षा (4)व्यवसाय (5) शारीरिक और अनुशासन प्रिय एवं होने की सूचना (6) निर्व्यसन अनुशासन प्रिय एवं सौम्य स्वभाव होने की घोषणा (7) कण्ठ की मधुरता (8) अब तक के संगीत प्रयत्नों का विवरण (9) भजनोपदेशक की भूमिका निबाहने के लिए घर से बाहर जा सकने की स्थिति का विस्तारपूर्वक उल्लेख।

सत्र तीन−तीन महीने के हैं। प्रथम सत्र अक्टूबर, नवम्बर, दिसम्बर 74 में चलेगा। आगे भी वे इसी क्रम से चलते रहेंगे। छात्रों में इतनी योग्यता उत्पन्न करने का प्रयत्न किया जायगा कि वे गायन एवं वाद्ययन्त्रों की सहायता से कुशल भजनोपदेशक की—युग गायक की भूमिका का निर्वाह कर सकें।

शान्तिकुंज में चल रहे प्रत्येक प्रशिक्षण के सम्बन्ध में एक ही परम्परा चलती रही है कि शिक्षार्थियों के निवास, भोजन, शिक्षा उपकरण आदि की व्यवस्था बनाई गई है और आशा रखी गई है कि शिक्षार्थी अपना भोजन व्यय भार स्वयं उठायेंगे। किन्तु यह अनिवार्य शर्त नहीं है। जो शिक्षार्थी पूरा खर्च उठा सकने में असमर्थ हैं वे कम भी दे सकते हैं, या बिना दिये भी शिक्षा पा सकते हैं। आर्थिक असमर्थता के कारण किसी को भी शिक्षा से वञ्चित न होना पड़े इसकी व्यवस्था यहाँ आरम्भ से ही चली आ रही है। यों दो बार भोजन करने दो बार चाय का प्रबन्ध रहने में 60) मासिक से अधिक ही लागत खर्च आता है कम नहीं। अक्टूबर से आरम्भ होने वाले प्रथम सत्र में मात्र 25 छात्र लिए जाने हैं। इसलिए जिन्हें आना ही जल्दी आवेदन भेजें ताकि यथा समय स्वीकृति प्राप्त करके आवश्यक तैयारी का अवसर उन्हें मिल सकें।

टैप रिकार्डरों द्वारा प्रचार की अभिनव योजना

गुरुदेव अब साधारणतया शांतिकुंज ही रहते हैं। अपनी मार्ग−दर्शक का बुलावा आने पर हिमाच्छादित तपोवन में जाते हैं। कभी विदेशों में भी जाना पड़ता है, इसके अतिरिक्त वे भारत में हरिद्वार छोड़कर अन्यत्र कहीं नहीं जाते।

कहने की आवश्यकता नहीं कि उनके प्रवचनों में आग होती है। सुनने वालों के अन्तस्तलों को उनकी वाणी स्पर्श करती है और मृतकों में भी अभिनव जीवन संचार होता है। पर अब तो वह वाणी केवल शान्ति− कुंज में ही सुनने को मिल सकती है। अखण्ड−ज्योति पत्रिका तथा पुस्तकों से ही उनका सत्संग हो सकता है। वे लोग जो हरिद्वार नहीं पहुँच सकते उनकी वाणी से निकलने वाली मर्मस्पर्शी प्रेरणाओं का लाभ लेने से वञ्चित ही रह जाते हैं। यह एक ऐसा अभाव गत तीन वर्षों से उत्पन्न हो गया है जिससे सारा युग−निर्माण परिवार खिन्न हैं।

इस अभाव की पूर्ति के लिए एक मध्यवर्ती मांग निकाला गया है। गुरुदेव के विभिन्न मार्मिक विषयों पर पौन−पौन घण्टे के प्रवचन टैप कराये जा रहे हैं। उन्हें प्राप्त किया जा सकेगा और व्यक्ति गत रूप से तथा सामूहिक रूप से उन्हें सुविधानुसार सुना या सुनाया जा सकेगा। गायत्री यज्ञों में, विचार गोष्ठियों में, युग−निर्माण सम्मेलनों में निश्चित रूप से यह प्रवचन बड़े उत्साह पूर्वक सुने जायेंगे। पर्व त्यौहारों के समारोहों एवं षोडश संस्कारों—जन्म दिनों के अवसरों पर तद्नुकूल प्रेरणा देने वाले यह टैप निश्चित रूप से बड़े चाव के साथ सुने जायेंगे।

छात्रों, अध्यापकों, किसानों, मजदूरों महिलाओं, व्यापारियों, कलाकारों, राजनेताओं, साधु−ब्राह्मणों, युवकों, वृद्धों, धनियों, निर्धनों धर्म−प्रेमियों, लोकसेवियों आदि विभिन्न वर्गों से बहुत कुछ कहना गुरुदेव को हैं। इन विभिन्न वर्गों के लिए, विभिन्न प्रेरणाओं से युक्त टैप तैयार किये जा रहे हैं। उन्हें जाना कितना प्रेरक हो सकता है यह बात कहने से नहीं अनुभव करने से ही समझी जा सकती है।

जनता से गुरुदेव का वाणी जन्य संपर्क एक प्रकार से टूट ही चुका है उसे पुनर्जीवित करने के लिए यह टैप रिकार्डरों के माध्यम से उनका सन्देश जन−साधारण तक पहुँचाने की प्रक्रिया निश्चय ही एक प्रकार से नव−जीवन का संचार करेगी—अभिनव उत्साह उत्पन्न करेगी। इस टैप योजना का युग−निर्माण परिवार की शाखाओं द्वारा भरपूर स्वागत किया जायगा।

कुछ समय पूर्व युग−निर्माण योजना द्वारा 10 ग्रामोफोन रिकार्ड बनाये गये थे। उनका उत्साह पूर्वक स्वागत हुआ। पर वह योजना अधिक लोकप्रिय एवं उपयोगी सिद्ध न हो सकी। क्योंकि कोई भी गीत कितना ही उत्तम क्यों न हो दस−पाँच बार सुन लेने के बाद फीका लगने लगता है और बार−बार पुराने क्षेत्र में वह उपेक्षित बन जाता है। जो उत्साह उन रिकार्डों को खरीदते समय था वह एक दो महीने में ही समाप्त हो जाता है।

हर महीने नये−नये रिकार्ड बनाते रहने की योजना है तो अच्छी पर है बहुत खर्चीली। उस योजना को नियमित रूप से चलाने—रिकार्ड डीलरों को बेचने की व्यवस्था बनाने के लिए कई लाख रुपये की पूँजी चाहिए। शाखाऐं हर महीने नये−नये रिकार्ड खरीदती पिछले दिनों की अपेक्षा रिकार्डों की लागत भी ड्यौढ़ी दूनी हो गई है।

गायनों की रिकार्ड व्यवस्था कम खर्च में चालू रखने की सरल विधि यह ढूँढ़ निकाली गई है कि—’टेप रिकार्डर यन्त्र पर बजाये सुनाये जा सकने की विधि अपनाई जाय। एक साधारण टैप पर प्रायः गाने टैप हो जाते हैं। उन्हें लाउडस्पीकरों की सहायता से ठीक उसी प्रकार सुनाया जा सकता है जिस प्रकार ग्रामोफोन के रिकार्ड सुनाये जाते हैं। पुरानी आवाज को मिटाकर उसकी जगह पर नये गाने रिकार्ड किये जा सकते हैं। उसी पुरानी टैप की पूँजी में वर्षों तक नये−नये गाने बदले और सुने जा सकते हैं।

इस व्यवस्था को नियमित रूप से चलाते रहने के लिए शांति–कुंज में प्रबन्ध कर दिया गया है। इसका स्वरूप टैप लाइब्रेरी जैसा है। यहाँ युग−मिशन के अनुरूप अत्यन्त प्रेरक नये−नये गायनों के टेप बहुत ही मधुर एवं आकर्षक वाद्य यन्त्र सहित विनिर्मित होते रहेंगे। इनकी एक क्रमबद्ध श्रृंखला रहेगी। इसमें अनावश्यक प्रतीक्षा भी नहीं करनी पड़ेंगी, आते−ज्ञाते व्यक्तियों के हाथों अथवा प्रवचन टेप करवा कर मँगाने की व्यवस्था चाहे जब हो सकती है। स्टॉक में किन−किन गायनों के टैप तैयार रखे हैं इनकी सूची मँगाई जा सकेगी और अपनी पसन्द के टैप किये जा सकेंगे।

टैप यदि डाक पार्सल से मँगाने हों तो उसका खर्च भी मँगाने वालों को देना होना। यह खर्च आसानी से सहन किये जा सकने जितना है। हरिद्वार शिक्षण शिविरों के लिए लोग आते ही रहते हैं। उनके हाथों बदलवाना अधि सुविधाजनक है, उसमें पोस्ट पार्सलों के—आने−जाने के खर्चे की भी बचत हो जाती है।

चूँकि बाजार में विभिन्न प्रकार के टैप रिकार्डर बिकते हैं। उनमें कठिनाई यह रहती है कि एक मेकर की मशीनों पर दूसरे मेकर द्वारा रहती है कि एक मेकर की मशीनों नर दूसरे मेकर द्वारा तैयार किये टैप बजने में बड़ी अड़चन उत्पन्न करते हैं। जिस यन्त्र पर टैप किया गया है उसी पर बजना ठीक पड़ता है इस दृष्टि से सबसे अधिक प्रचलित टिकाऊ और प्रयोग में सरल ‘कैसेट’ सिस्टम के टेप रिकार्डरों को चुना गया है। शांति–कुंज में उसी पर टैप कराये जा रहे हैं। अस्तु जिन्हें नियमित रूप से यहाँ के टैप प्राप्त करने हों उन्हें उसी मेकर के टेप रिकार्डर अपनी शाखाओं में मँगाने चाहिए। इनकी बाजारू कीमत इन दिनों प्रायः 700)से 1500) तक विभिन्न मेकरों की होगी।

जिनके पास ‘स्थूल’ सिस्टम के टैप रिकार्डर हैं वे अपने टेप रिकार्डर सहित शांति–कुंज पहुँचकर प्रवचन एवं संगीत टेप कर सकें ऐसी व्यवस्था भी की जायेगी। जिन परिजनों के पास अच्छे टेप रिकार्डर हैं और जो अपने निकटवर्ती क्षेत्र के सदस्यों को अपने टेप से उनके टेप रिकार्डरों पर प्रवचन आदि टेप कराने की व्यवस्था कर सकते हैं उन्हें विशेष रूप से प्रारम्भिक ‘टेपिंग‘ के अपनी स्थिति स्पष्ट करदें तो भाषण टेप कराने की तिथियाँ उन्हें सूचित की जा सकेंगी।

विचार गोष्ठियों में—सत्संगों में—सम्मेलन, आयोजनों में मिशन के अनुरूप गायनों की आवश्यकता पड़ती है। शाखाएँ अक्सर प्रातःकाल प्रभाती के रूप में लाउडस्पीकरों की सहायता से प्रेरक गीत अपने−अपने क्षेत्रों में सुनाने की व्यवस्था कर रही हैं। किसी ऊँचे स्थान पर लाउडस्पीकर के चोंगे लगा दिये जाँय। नीचे रिकार्ड बजते रहें तो उसकी ध्वनि प्रातःकाल की निस्तब्धता में दूर−दूर तक सुनाई पड़ती है। घर बैठे लोग उस प्रेरणा का आनन्द लेते हैं। विशेष अवसरों पर—उत्सव आयोजनों पर भी यह गायनों का ध्वनि प्रसारण बड़ा उपयोगी रहता है। अब इसके लिए बार−बार नये−नये रिकार्ड खरीदते रहने के खर्च से बचा जा सकता है और टैप रिकार्डरों के माध्यम से यह प्रयोजन सहज ही पूरा किया जा सकता है।

अगले दिनों यज्ञ आयोजन एवं युग−निर्माण सम्मेलन होने हैं इनमें अन्य खर्चो के साथ (1)स्लाइड प्रोजेक्टर खरीदने के लिए 700) की (2) लाउडस्पीकर खरीदने के लिए 400) की और टैप रिकार्डर तथा टेपों के लिए 900) की राशि भी जोड़कर रखनी चाहिए। यह 2000) की राशि हर शाखा को उपरोक्त तीनों प्रचार उपकरण खरीदने के लिए सम्मिलित करके रखनी चाहिए। चलते−फिरते पुस्तकालय—ज्ञान रथ−बना लेने के उपरांत इन प्रचार उपकरणों का खरीदना हर शाखा के लिए नितान्त आवश्यक कर्त्तव्य है। आशा की जानी चाहिए कि अगले वर्ष हर समर्थ शाखा के पास उपरोक्त उपकरण होंगे और वे अपने−अपने क्षेत्र में नवयुग विचारधारा का प्रचार सञ्चार उत्साह पूर्वक करने में समर्थ हो सकेगी। टैप रिकार्डर खरीदना भी इसी योजन का अति महत्वपूर्ण अंग माना जाना चाहिए।

उपरोक्त तीनों योजनाओं के सम्बन्ध में पत्र व्यवहार शांति–कुंज पो. सप्त सरोवर’ हरिद्वार के पते पर किया जाना चाहिए।

*समाप्त*

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