• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • यथार्थता को समझें—आग्रह न थोपें
    • गतिशीलता की संजीव सरसता
    • ईश्वर का अनन्त अनुदान और हमारा प्रतिदान
    • मरने के बाद हमारे अस्तित्व का अन्त नहीं हो जाता
    • ब्रह्मवेत्ता याज्ञवल्क्य (kahani)
    • जीवन के दो प्रमुख तत्व आशा और गति
    • हम अगले दिनों दिव्य−दृष्टि सम्पन्न होंगे
    • प्रेम का अमृत बनाम मोह का विष
    • स्वभाव−परिवर्तन कितना कठिन कार्य
    • गरुड़ देव (kahani)
    • पतित देवता या समुन्नत कृमि−कीटक
    • वर्चस्व प्राप्त करने का तरीका (kahani)
    • विभूति−रहित सम्पदा निरर्थक है
    • सार्थक और सारगर्भित उपासना की रीति−नीति
    • धर्म को जिह्वा से नहीं जीवन से व्यक्त करो (kahani)
    • मृदुलता की तलाश बाहर नहीं भीतर करें
    • क्या हम मनुष्यों के स्थानापन्न यन्त्र मानव होंगे?
    • ऐसा बड़प्पन किस काम का?
    • देवी प्रतिशोध
    • कुकर्मों की सर्वनाशी विभीषिका
    • उसने प्रेत बनकर बदला लिया
    • साहसी चोर (kahani)
    • क्या हम वृक्ष वनस्पतियों से भी पिछड़े रहेंगे?
    • अब्राहम लिंकन की उदारता (kahani)
    • वैभव खोकर भी सत्यनिष्ठ बनें रहें
    • पवित्रात्मा और पिशाचात्मा की आकृति
    • समृद्धि का श्रेय (kahani)
    • अपनों से अपनी बात - हम महिला जागरण अभियान में सक्रिय योगदान करें
    • सबके कल्याण में ही अपना कल्याण है
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • यथार्थता को समझें—आग्रह न थोपें
    • गतिशीलता की संजीव सरसता
    • ईश्वर का अनन्त अनुदान और हमारा प्रतिदान
    • मरने के बाद हमारे अस्तित्व का अन्त नहीं हो जाता
    • ब्रह्मवेत्ता याज्ञवल्क्य (kahani)
    • जीवन के दो प्रमुख तत्व आशा और गति
    • हम अगले दिनों दिव्य−दृष्टि सम्पन्न होंगे
    • प्रेम का अमृत बनाम मोह का विष
    • स्वभाव−परिवर्तन कितना कठिन कार्य
    • गरुड़ देव (kahani)
    • पतित देवता या समुन्नत कृमि−कीटक
    • वर्चस्व प्राप्त करने का तरीका (kahani)
    • विभूति−रहित सम्पदा निरर्थक है
    • सार्थक और सारगर्भित उपासना की रीति−नीति
    • धर्म को जिह्वा से नहीं जीवन से व्यक्त करो (kahani)
    • मृदुलता की तलाश बाहर नहीं भीतर करें
    • क्या हम मनुष्यों के स्थानापन्न यन्त्र मानव होंगे?
    • ऐसा बड़प्पन किस काम का?
    • देवी प्रतिशोध
    • कुकर्मों की सर्वनाशी विभीषिका
    • उसने प्रेत बनकर बदला लिया
    • साहसी चोर (kahani)
    • क्या हम वृक्ष वनस्पतियों से भी पिछड़े रहेंगे?
    • अब्राहम लिंकन की उदारता (kahani)
    • वैभव खोकर भी सत्यनिष्ठ बनें रहें
    • पवित्रात्मा और पिशाचात्मा की आकृति
    • समृद्धि का श्रेय (kahani)
    • अपनों से अपनी बात - हम महिला जागरण अभियान में सक्रिय योगदान करें
    • सबके कल्याण में ही अपना कल्याण है
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1974 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


क्या हम मनुष्यों के स्थानापन्न यन्त्र मानव होंगे?

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 16 18 Last
यन्त्र− मानवों का निर्माण बहुत दिन पहले से ही विज्ञान क्षेत्र में विकसित देशों द्वारा आरम्भ कर दिया गया था। अव उसमें काफी प्रगति हो चुकी है। साधारण मशीनें मनुष्य द्वारा चलाई और नियन्त्रित की जाती हैं। उनसे जो कराना हो उसका नियन्त्रण संचालन नियुक्त संचालक को स्वयं ही करना पड़ता है। मोटर, रेल, जहाज, रेडियो, टेलीफोन,कारखानों के संयंत्र छोटी−बड़ी अगणित मशीनें मनुष्य के लिए—उसकी इच्छानुसार निर्धारित कार्य करती हैं पर संचालन उसका किसी बुद्धिमान और प्रशिक्षित व्यक्ति को ही करना पड़ता है। स्वसंचालित—आटोमेटिक कही जाने वाली मशीनें भी चलाने, बन्द करने, तीव्र या मन्द गति से काम करने की क्रियाएँ तभी करती हैं जब संचालक अपने हाथ से निर्धारित बटन या चाबी को स्वयं दबाये घुमाये।

यन्त्र−मानव इन झंझटों से मुक्त है। उनमें रेडियो संचार पद्धति से काम करने वाले यन्त्र लगे होते है। अमुक वाक्य कह देने पर वे शब्द ध्वनि को पकड़ लेते हैं और निर्धारित शब्दावली के आधार पर निर्धारित कार्य करना आरंभ कर देते हैं। जितने शब्द समझने और जितने कार्य करने के उपयुक्त उन्हें बनाया गया है उन सबको वे ठीक प्रकार कर लेते हैं। आज्ञापालन में वे न तो हीलाहुज्जत करते है और न भूलचूक। स्वामिभक्त, आज्ञाकारी, अनुशासित और कर्मनिष्ठ सेवक के सभी गुण उनमें होते हैं। सबसे बड़ी बात है कि वे शक्ति प्रयोजन में खर्च होने वाली बिजली तथा टूट−फूट की मरम्मत के अतिरिक्त और किसी प्रकार का खर्च नहीं कराते। भोजन, वस्त्र, निवास, शिक्षा, दवादारू,प्रजनन, मनोरंजन आदि की उनकी कोई माँग नहीं। वेतन, बोनस, पेन्शन−फण्ड आदि के लिए भी उनकी कोई आग्रह नहीं। मानापमान की उन्हें चिन्ता नहीं, मूड़ भी उनका कभी नहीं बिगड़ता। निद्रा थकान का भी कोई बहाना नहीं। मौत की तलवार भी उनके सिर पर नहीं टँगी रहती। कुशल मालिक उन्हें चिरकाल तक जीवित रख सकता है।

यंत्र−मानवों की आकृति मनुष्य जैसी बनाई गई है। हाथ, पैर आदि सभी कर्मेन्द्रियाँ उनमें मौजूद हैं। ज्ञानेन्द्रियाँ उनके खोखले के भीतर रेडियो विज्ञान के आधार पर बनी मशीनों से बनाकर फिट कर दी गई हैं जो बाहर से दीखती नहीं। शक्ति शाली बैटरी भीतर रहती है आज्ञा सुनना और कार्य आरम्भ कर देना उनके लिए सरल स्वाभाविक रहता है। अभी ये यन्त्र भारी और महंगे हैं पर आशा की जाती है कि वे निकट भविष्य में सस्ते और हलके भी बनने लगेंगे।

अब से चालीस वर्ष पूर्व जर्मनी ने कृत्रिम मनुष्य बनाये थे। उनमें जटिल संरचना का मस्तिष्कीय संस्थान लगाया था जो निर्देशकर्त्ता के आदेशों की ग्रहण करता था और उस आधार पर शरीर के विभिन्न अवयवों को काम करने के लिए प्रवृत्त करता था। निर्देशक के मुख से निकले हुए शब्द उस कृत्रिम मनुष्य के मस्तिष्क में प्रवेश करके रेडियो धारी कम्पन उत्पन्न करते थे और उनकी हलचल स्वचालित प्रक्रिया के अनुसार अपना निर्धारित कार्य आरम्भ कर देते थे। वस्तुतः इनका निर्माण कम्प्यूटर प्रक्रिया के सिद्धान्त पर हुआ था। देखने दिखाने के लिए उनका बाहरी ढाँचा मनुष्य जैसा बना दिया गया था पर भीतर उनके सारी मशीन कम्प्यूटर जैसी थी। उस रेडियो धर्मी कलपुर्जों की भरमार थी। इनमें इतने अधिक कलपुर्जे थे कि उन्हें हलके और बारीक बनाने का पूरा पूरा ध्यान रखते हुए भी वजन डेढ़ टन का हो गया था यह मानव यन्त्र समस्त प्रकार की तो नहीं पर कुछ निर्धारित स्तर की क्रिया-प्रक्रियाएँ पूरी करता था। यह उच्चारण स्पष्ट है तो अपनी सीमा के अंतर्गत आने डडडड क्रिया-कलापों को अनुशासित रीति से पूरा करता था बर्लिन की वैज्ञानिक अनुसंधानशाला ने सन् 1931 में ऐसे दो कृत्रिम मनुष्य सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए प्रस्तुत किये थे।

इसके बाद अमेरिका ने इस दिशा में अधिक प्रगति की। वहाँ ऐसे यान्त्रिक मनुष्य बनाये गये जो बिना निर्देश के केवल परिस्थिति उत्पन्न कर देने से तदनुकूल आचरण करने लगते थे। जैसे अमुक तापमान उत्पन्न कर देने पर कपड़े पहन लेना और अमुक तापमान पर उन्हें उतार देना। रात्रि होने पर सो जाना और सवेरा होते ही काम करने लगना। अमुक प्रकार के वस्त्रों वाले का स्वागत करना और अन्य वेषभूषा वालों को अपने पहरे की परिधि में न वुसने देना आदि।

इन यन्त्र−मानवों की संरचना में अधिक परिष्कृत प्रक्रिया काम में लाई गई थी अस्तु वे अपेक्षाकृत अधिक स्वसंचालित और स्वावलम्बी थे। उन पर सूझ−बूझ के कई उत्तरदायित्व सौंपे जा सकते थे और निर्धारित कार्य करते रहने के लिए बिना किसी बाहरी देखभाल के भी उपयुक्त माना जा सकता था।

इतना सब होते हुए भी मनुष्य की भौतिक विशेषता उनमें पैदा न की जा सकीं। वे यन्त्र−मानव भावनाशील नहीं हैं, और न उनमें अपनी निज की सूझ−बूझ थी। जिस निमित्त उन्हें बनाया गया था उतना ही कार्य वे कर पाते थे। वह सारा क्रिया−कलाप यान्त्रिक ही होता था।

यह प्रगति अपने ढंग से चल रही है। रूस ने गत दो दशाब्दियों में इस संदर्भ में और भी अधिक उल्लेखनीय प्रगति की है। कीव के सर्जन तथा ‘साइवेरनेटिकी’ विज्ञान धारा को विशेषज्ञ निकोलाई ऐमोसोव ने कृत्रिम मस्तिष्क की एक अतिरिक्त संरचना की है। उसमें कृत्रिम बुद्धि उत्पन्न की गई है और सम्वेदनाओं की अनुभूति भी जोड़ी गई है। जिस प्रकार प्रिय−अप्रिय की−लाभ−हानि की अनुभूति सुख और दुख के रूप में सामान्य मनुष्यों को होती है उसी आधार पर यह कृत्रिम मस्तिष्क भी अपनी अनुभूति व्यक्त करता है उस मस्तिष्क के साथ जुड़े हुए अवयव अपनी प्रतिक्रिया उसी प्रकार व्यक्त करते हैं जैसे कि जीवन्त मनुष्य किया करते हैं। संयोग−वियोग की अभिव्यक्तियाँ वह मनुष्यों जैसी ही उत्पन्न करता है। भय, क्रोध, दुख, प्रसन्नता, उत्सुकता, अनुकरण, आत्म−रक्षा, सन्तोष, आशा; उत्साह, थकान, रूठना जैसे कुछ भावावेश भी उस कृत्रिम मस्तिष्क को आते हैं और उस कृत्रिम मानव की मुखाकृति भली प्रकार उस प्रकार के भाव प्रदर्शित करती है।

इस सफलता से यह आशा बँधती जाती है कि अमुक प्रयोजनों के लिए इन कृत्रिम मानवों का कृत्रिम मस्तिष्कों का उपयोग किया जा सकेगा। वे युद्ध में वीरता और कौशल का प्रदर्शन कर सकेंगे। लड़ाई के मोर्चे पर जीवित मनुष्यों को भेजने का जोखिम न उठाना पड़ेगा। वे−यन्त्र मानव ही घमासान लड़ाई लड़ लिया करेंगे और वैज्ञानिक कुशलता के आधार पर भयंकर युद्ध लड़े और जीते जा सकेंगे। अध्यापकों—डाक्टरों, इंजीनियरों मुनीमों, टाइपिस्टों, ड्राइवरों, मशीनें चलाने वालों आदि की विशिष्ट कार्य−पद्धति इन्हें भली प्रकार सिखाई जा सकेगी।

स्टेनफर्ड अनुसंधान संस्थान ने पिछले दिनों ऐसा यन्त्र मानव बनाया है जो मनुष्य जैसा सुन्दर तो नहीं है पर वे सभी काम कर सकता है जो अनुशासन प्रिय श्रमशील किन्तु मन्द बुद्धि व्यक्ति से कराये जा सकते हैं। इस यन्त्र मानव का नाम ‘शेकी’ रखा गया है, वह प्रसन्नता पूर्वक ठीक समय पर ठीक प्रकार उन सभी कामों को करके रख देता है जिन्हें करने की उसमें सामर्थ्य भरी गई है।

अनुसंधान संस्थान के निर्देशक चार्ल्स रोजेन का कहना है कि कारखानों में स्वसंचालित यन्त्रों को चलाने के शेकी के नव निर्मित भाई−बहिन सामान्य मनुष्यों की अपेक्षा कहीं अधिक दक्ष−सफल और सस्ते सिद्ध होंगे।

यन्त्र मानव के निर्माण में दिलचस्पी इसलिए और भी अधिक बढ़ गई है कि सजीव मनुष्यों ने अपने मानवोचित गुणों एवं उत्तरदायित्वों को बुरी तरह गंवा दिया है और वे दिन−दिन अधिक उच्छृंखल, हरामखोर तथा अपराधी मनोवृत्ति के बनते जा रहे हैं। जितना काम करते हैं उससे अधिक षड़यन्त्र रचते हैं और दुरभिसंधियाँ खड़ी करते हैं। इसलिए उन पर खर्च किया जाने वाला पैसा एक प्रकार से बेकार ही चला जाता है। ईमानदारी और जिम्मेदारी से काम करने पर वे जितना सहज उत्पादन कर सकते हैं उसकी अपेक्षा पाँच गुनी लागत पड़ती है और वस्तुएँ दिन−दिन महंगी होती जाने से उसकी कठिनाई सर्वसाधारण के गले पड़ती है।

समाज शास्त्रियों को इन यन्त्र मानवों के निर्माण में इसलिये दिलचस्पी है कि हेय मनोवृत्तियों और निकृष्ट मनोवृत्तियों की ओर तेजी से बढ़ता चलने वाला मनुष्य स्वयं अगणित कष्ट सहता है और समाज में इतनी विकृतियों उत्पन्न करता है जिन्हें सम्भालने में उससे कहीं अधिक शक्ति खर्च होती है जितनी कि वह जीवन भर में उत्पन्न करता है। इस प्रकार हर नये मनुष्य का जन्म समाज के लिए एक नया सिर दर्द और नया संकट उत्पन्न करने वाला भार ही बनता है। ऐसी दशा में यदि कृत्रिम मनुष्यों से संसार के सामान्य कार्य चल सकते हैं तो फिर असली मनुष्यों की उपेक्षा क्यों न की जाय? दर्द करने वाले दाँत उखाड़ कर उनकी जगह नकली दाँत लगाने से भी तो लोग अधिक सुविधा अनुभव करते हैं।

जनसंख्या वृद्धि की विभीषिका भी सजीव मनुष्य ही करते हैं। अस्पताल, स्कूल, जेलखाने भी उन्हीं के लिए बनाने पड़ते हैं। यन्त्र मानव बनने लगें तो फिर यह झंझट भी समाप्त ही हो जायगा जितनी जनसंख्या की जरूरत होगी उतने ही कारखाने से बनकर आजाया करेंगे। जन्म के अगले दिन से ही वे जवानों जैसा काम करने लगेंगे, बचपन का लालन−पालन और बुढ़ापे का सेवा सहयोग भी उनके लिए आवश्यक नहीं होगा। मरने पर उन्हें जलाना, गाढ़ना भी नहीं पड़ेगा। जीर्ण होने पर उन धातुओं का गला कर फिर नये ढाल लेने का क्रम चलता रहेगा तो वे एक प्रकार से अजर−अमर भी कहे जा सकेंगे।

कृत्रिम मानव बनाने की कल्पना कितनी मधुर है। एक चक्रवर्ती शासक अपने कुछ साथी वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और श्रमिकों को साथ रखकर समस्त संसार का मनमर्जी से संचालन करेगा। तब वह चक्रवर्ती शासक आज के ईश्वर जितना ही सर्व शक्ति मान होगा। उसी के इशारे पर दुनिया की गतिविधियाँ चलेंगी। जैसे ईश्वर के लोगों में कुछ देवी−देवता उनकी सहायता के लिए रहते हैं वैसे ही थोड़े से वैज्ञानिक, इंजीनियर, श्रमिक मिलकर इस धरती की सारी सत्ता सम्पदा अपनी मुट्ठी में रखे रह सकेंगे। यह सब बातें इतनी आकर्षक हैं कि यन्त्र मानवों के निर्माण का उत्साह दिन−दिन बढ़ता ही जा रहा है। जिस प्रयोजन में आज का बुद्धिमान मनुष्य हाथ डालेगा वह पूरा होकर ही रहेगा इसमें सन्देह भी क्या है? उसके हाथों प्रकृति के शक्ति स्त्रोतों की चाबी जो लग गई है।

सुदूर भविष्य में कभी इस धरती पर यन्त्र मानव ही कार्य कर रहे होंगे और उन्हीं का साम्राज्य होगा यह संभावना यद्यपि सामने प्रस्तुत है तो भी गले नहीं उतरती। विचारशील, भावनाशील और आदर्शवादी मनुष्य की चेतना से हो तो इस संसार में सौंदर्य,कला और सम्वेदनाओं को उत्पन्न करके इस जड़ जगत को सरस और मधुर बनाया है। यदि यह तत्व संसार से नष्ट हो गया तो फिर चाहे यंत्र मानव रहे अथवा आदिम काल के सरीसृप। यहाँ मरघट जैसी वीभत्स, नीरसता ही शेष रह जायगी। तब आत्मा को उल्लास प्रदान कर सकने वाला कोई तत्व यहाँ शेष न रहेगा।

वर्तमान स्तर के मनुष्य से खीजकर भौतिक विज्ञानी और समाज शास्त्री यन्त्र−मानव को महत्व दे रहे हैं और उसकी उपयोगिता बता रहे हैं। खीज मिटाने का क्या यही एकमात्र तरीका है कि प्रस्तुत नर−पशु के अस्तित्व का अन्त करके उसके स्थान पर यन्त्र मानव को प्रतिष्ठापित कर दिया जाय? यह विकल्प भी तो हो सकता है कि जितना धन, श्रम और मनोयोग उन यन्त्रों के निर्माण और संचालन में खर्च किया जाने वाला है उतना ही जीवित मनुष्य के चिन्तन में घुस पड़ी निकृष्टता को हटा में किया जाय। वातावरण और परिस्थितियों के प्रभाव मनुष्य ने निकृष्टता अपनाई है यदि साहस पूर्वक समाज का ढाँचा बदल देने के लिए कटिबद्ध हुआ जाय जो फिर भूतकाल की तरह भविष्य में भी इस धरती पर स्वर्ग वातावरण और नर−देवों का निवास सम्भव हो सकता है। निराशा और खीज के वातावरण में यन्त्र मात्र बनाने की झंझट भरी और अति दुस्तर प्रक्रिया अपनाने की अपेक्षा बुद्धिमानी इसमें है कि वर्तमान मनुष्यों को परिष्कृत बनाने का प्रयत्न किया जाय। इस प्रयत्न फलस्वरूप सजीव मानवों की जो फसल पैदा होगी यंत्र मानवों की अपेक्षा कहीं अधिक उपयोगी सिद्ध होगी

First 16 18 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • यथार्थता को समझें—आग्रह न थोपें
  • गतिशीलता की संजीव सरसता
  • ईश्वर का अनन्त अनुदान और हमारा प्रतिदान
  • मरने के बाद हमारे अस्तित्व का अन्त नहीं हो जाता
  • ब्रह्मवेत्ता याज्ञवल्क्य (kahani)
  • जीवन के दो प्रमुख तत्व आशा और गति
  • हम अगले दिनों दिव्य−दृष्टि सम्पन्न होंगे
  • प्रेम का अमृत बनाम मोह का विष
  • स्वभाव−परिवर्तन कितना कठिन कार्य
  • गरुड़ देव (kahani)
  • पतित देवता या समुन्नत कृमि−कीटक
  • वर्चस्व प्राप्त करने का तरीका (kahani)
  • विभूति−रहित सम्पदा निरर्थक है
  • सार्थक और सारगर्भित उपासना की रीति−नीति
  • धर्म को जिह्वा से नहीं जीवन से व्यक्त करो (kahani)
  • मृदुलता की तलाश बाहर नहीं भीतर करें
  • क्या हम मनुष्यों के स्थानापन्न यन्त्र मानव होंगे?
  • ऐसा बड़प्पन किस काम का?
  • देवी प्रतिशोध
  • कुकर्मों की सर्वनाशी विभीषिका
  • उसने प्रेत बनकर बदला लिया
  • साहसी चोर (kahani)
  • क्या हम वृक्ष वनस्पतियों से भी पिछड़े रहेंगे?
  • अब्राहम लिंकन की उदारता (kahani)
  • वैभव खोकर भी सत्यनिष्ठ बनें रहें
  • पवित्रात्मा और पिशाचात्मा की आकृति
  • समृद्धि का श्रेय (kahani)
  • अपनों से अपनी बात - हम महिला जागरण अभियान में सक्रिय योगदान करें
  • सबके कल्याण में ही अपना कल्याण है
  • VigyapanSuchana
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj