• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • यथार्थता को समझें—आग्रह न थोपें
    • गतिशीलता की संजीव सरसता
    • ईश्वर का अनन्त अनुदान और हमारा प्रतिदान
    • मरने के बाद हमारे अस्तित्व का अन्त नहीं हो जाता
    • ब्रह्मवेत्ता याज्ञवल्क्य (kahani)
    • जीवन के दो प्रमुख तत्व आशा और गति
    • हम अगले दिनों दिव्य−दृष्टि सम्पन्न होंगे
    • प्रेम का अमृत बनाम मोह का विष
    • स्वभाव−परिवर्तन कितना कठिन कार्य
    • गरुड़ देव (kahani)
    • पतित देवता या समुन्नत कृमि−कीटक
    • वर्चस्व प्राप्त करने का तरीका (kahani)
    • विभूति−रहित सम्पदा निरर्थक है
    • सार्थक और सारगर्भित उपासना की रीति−नीति
    • धर्म को जिह्वा से नहीं जीवन से व्यक्त करो (kahani)
    • मृदुलता की तलाश बाहर नहीं भीतर करें
    • क्या हम मनुष्यों के स्थानापन्न यन्त्र मानव होंगे?
    • ऐसा बड़प्पन किस काम का?
    • देवी प्रतिशोध
    • कुकर्मों की सर्वनाशी विभीषिका
    • उसने प्रेत बनकर बदला लिया
    • साहसी चोर (kahani)
    • क्या हम वृक्ष वनस्पतियों से भी पिछड़े रहेंगे?
    • अब्राहम लिंकन की उदारता (kahani)
    • वैभव खोकर भी सत्यनिष्ठ बनें रहें
    • पवित्रात्मा और पिशाचात्मा की आकृति
    • समृद्धि का श्रेय (kahani)
    • अपनों से अपनी बात - हम महिला जागरण अभियान में सक्रिय योगदान करें
    • सबके कल्याण में ही अपना कल्याण है
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • यथार्थता को समझें—आग्रह न थोपें
    • गतिशीलता की संजीव सरसता
    • ईश्वर का अनन्त अनुदान और हमारा प्रतिदान
    • मरने के बाद हमारे अस्तित्व का अन्त नहीं हो जाता
    • ब्रह्मवेत्ता याज्ञवल्क्य (kahani)
    • जीवन के दो प्रमुख तत्व आशा और गति
    • हम अगले दिनों दिव्य−दृष्टि सम्पन्न होंगे
    • प्रेम का अमृत बनाम मोह का विष
    • स्वभाव−परिवर्तन कितना कठिन कार्य
    • गरुड़ देव (kahani)
    • पतित देवता या समुन्नत कृमि−कीटक
    • वर्चस्व प्राप्त करने का तरीका (kahani)
    • विभूति−रहित सम्पदा निरर्थक है
    • सार्थक और सारगर्भित उपासना की रीति−नीति
    • धर्म को जिह्वा से नहीं जीवन से व्यक्त करो (kahani)
    • मृदुलता की तलाश बाहर नहीं भीतर करें
    • क्या हम मनुष्यों के स्थानापन्न यन्त्र मानव होंगे?
    • ऐसा बड़प्पन किस काम का?
    • देवी प्रतिशोध
    • कुकर्मों की सर्वनाशी विभीषिका
    • उसने प्रेत बनकर बदला लिया
    • साहसी चोर (kahani)
    • क्या हम वृक्ष वनस्पतियों से भी पिछड़े रहेंगे?
    • अब्राहम लिंकन की उदारता (kahani)
    • वैभव खोकर भी सत्यनिष्ठ बनें रहें
    • पवित्रात्मा और पिशाचात्मा की आकृति
    • समृद्धि का श्रेय (kahani)
    • अपनों से अपनी बात - हम महिला जागरण अभियान में सक्रिय योगदान करें
    • सबके कल्याण में ही अपना कल्याण है
    • VigyapanSuchana
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1974 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


सबके कल्याण में ही अपना कल्याण है

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 28 30 Last
चेतना कटिअविष्ठाता विश्वात्मा है। बिखरी हुई आत्माएँ उसी के छोटे−छोटे घटक हैं। जब तक यह इकाइयाँ परस्पर मिलकर रहती हैं और एक−दूसरे के साथ अविछिन्न रूप से जुड़ी हैं तभी तक दृश्यमान सौंदर्य का अस्तित्व है। यदि इनका विघटन होने लगे तो केवल धूलि मात्र ही इस संसार में शेष रह जायगी। विश्व−मानव की विश्वात्मा यदि अपनी समग्र चेतना से विघटित होकर संकीर्ण स्वार्थपरता में बिखरने लगे तो समझना चाहिए विश्व−सौंदर्य की समाप्ति का समय निकट आ गया।

शरीर एक है। उसमें उँगलियाँ, उनके पोरुवे, जोड़, हड्डियाँ, माँस पेशियाँ आदि अनेक हैं। उन सबका मिला−जुला स्वरूप ही शरीर है। इन सभी का समन्वय जीवनक्रम को चलाता है। वे सभी बिखरने लगें। अपनी अलग इकाई को ही सब कुछ मानें दूसरे अंगों को सहयोग करने की बात सोचना छोड़ दें तो फिर समझना चाहिए उन्हें भी दूसरों के सहयोग से वंचित होना पड़ेगा। ऐसी दशा में जिस स्वार्थ को साधने की उनकी इच्छा थी वह भी न सध सके गा।

हाथ तभी तक सक्रिय रहेगा जब तक वह अपनी कमाई मुँह को देगा—मुँह पेट को देगा—पेट हृदय को और हृदय अपने उपार्जन रक्त का वितरण समस्त शरीर को। अपनी कमाई दूसरों को सौंपने का अर्थ प्रकारान्तर से अनेक गुना लाभ अपने लिए उपार्जित करना डडडड हाथ अपनी कमाई को अपनी मुट्ठी में रखे रहे—मुँह या पेट को देने से इनकार कर दें तो फिर भूखा शरीर सूखता जायगा और वे हाथ भी उस विपत्ति से संत्रस्त हुए बिना न रहेंगे। अपनी कमाई वे मुँह को देते हैं तो बदले में बहुमूल्य रक्त प्रवाह का लाभ हैं और जितनी शक्ति कमाने में खर्च की थी उसकी भरपाई कर लेते हैं।

उँगली यदि शरीर की क्रमबद्ध सत्ता व्यवस्था में भाग लेने से इनकार कर दें और अपने को अलग−थलग काट कर स्वतन्त्र रहने में विश्वास करे तो वह घाटे में रहेंगी। कटी हुई उँगली देखते−देखते निर्जीव हो जायगी और सड़ने लगेगी। कट जाने पर मनमर्जी करने का जो लाभ सोचा था वह इसलिए न मिल सकेगा कि रक्त प्रवाह के लिए उसे दूसरे अंगों पर निर्भर रहना पड़ता था। सहयोग देने से इनकार करने का अर्थ सहयोग पाने क द्वार बन्द कर देना भी है। हमारे एक के सहयोग न देने से भी समाज शरीर का क्रम चलता रहेगा पर अपने को स्वार्थी एवं असामाजिक सिद्ध करने के बाद समाज का सद्भाव खो देने की जो हानि उठानी पड़ेगी उससे अपनी ही क्षति अधिक होगी।

हम संकीर्ण न बनें। तुच्छ स्वार्थपरता की नीति अपनायें। अपने को अलग−अलग करके न सोचे। व्यक्ति वाद के कुचक्र में न फंसे। एकाकीपन स्पष्टतः एक संकट है। विश्वात्मा का उपयोगी अंग अपने को सिद्ध करने पश्चात् ही हमारा गौरव बढ़ता है और अपना ही न अन्य सबका भी भला कर सकें।

यहाँ कोई विराना नहीं। सब अपने ही हैं। ईश्वर के सभी पुत्र परस्पर सहोदर भाई की तरह हैं। मिल−जुलकर रहने, मिल−बाँटकर खाने और परस्पर सेवा सहायता की उदार नीति अपनाने में ही भलाई है। सबके कल्याण में ही अपना कल्याण समाया हुआ है।

First 28 30 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • यथार्थता को समझें—आग्रह न थोपें
  • गतिशीलता की संजीव सरसता
  • ईश्वर का अनन्त अनुदान और हमारा प्रतिदान
  • मरने के बाद हमारे अस्तित्व का अन्त नहीं हो जाता
  • ब्रह्मवेत्ता याज्ञवल्क्य (kahani)
  • जीवन के दो प्रमुख तत्व आशा और गति
  • हम अगले दिनों दिव्य−दृष्टि सम्पन्न होंगे
  • प्रेम का अमृत बनाम मोह का विष
  • स्वभाव−परिवर्तन कितना कठिन कार्य
  • गरुड़ देव (kahani)
  • पतित देवता या समुन्नत कृमि−कीटक
  • वर्चस्व प्राप्त करने का तरीका (kahani)
  • विभूति−रहित सम्पदा निरर्थक है
  • सार्थक और सारगर्भित उपासना की रीति−नीति
  • धर्म को जिह्वा से नहीं जीवन से व्यक्त करो (kahani)
  • मृदुलता की तलाश बाहर नहीं भीतर करें
  • क्या हम मनुष्यों के स्थानापन्न यन्त्र मानव होंगे?
  • ऐसा बड़प्पन किस काम का?
  • देवी प्रतिशोध
  • कुकर्मों की सर्वनाशी विभीषिका
  • उसने प्रेत बनकर बदला लिया
  • साहसी चोर (kahani)
  • क्या हम वृक्ष वनस्पतियों से भी पिछड़े रहेंगे?
  • अब्राहम लिंकन की उदारता (kahani)
  • वैभव खोकर भी सत्यनिष्ठ बनें रहें
  • पवित्रात्मा और पिशाचात्मा की आकृति
  • समृद्धि का श्रेय (kahani)
  • अपनों से अपनी बात - हम महिला जागरण अभियान में सक्रिय योगदान करें
  • सबके कल्याण में ही अपना कल्याण है
  • VigyapanSuchana
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj