• News
  • Blogs
  • Gurukulam
English हिंदी
×

My Notes


  • TOC
    • कर्म का प्रतिफल अकाट्य है
    • ईश्वर का द्वार सबके लिए खुला है।
    • आत्मा को कैसे जानें? परमात्मा को कैसे देखें?
    • आत्मा मात्र मस्तिष्क नहीं है।
    • अदृश्य से दृश्य, दृश्य से अदृश्य
    • Quotation
    • ब्रह्माण्डीय प्राण-चेतना का मिलन अब निकट ही हैं
    • प्राण शक्ति का स्वरूप और अभिवर्धन
    • Quotation
    • विज्ञान और अध्यात्म को साथ-साथ चलना होगा
    • Quotation
    • हमारी दुर्दशा दुमुँहे साँप जैसी
    • मानसिक रोग कितने विचित्र, कितने भयावह
    • विचार शक्ति एक प्रत्यक्ष शक्ति ऊर्जा
    • सद्गुरु प्राप्त कर सकने की असाधारण सौभाग्य
    • आन्तरिक दरिद्रता से पीछा छुड़ायें
    • प्रशिक्षण हर प्राणी को बुद्धिमान हो सकते है।
    • पीड़ा ही कष्ट और चैन ही सुख नहीं हैं (kahani)
    • अन्य लोक वासियों की धरती पर हलचलें
    • वृक्ष न रहेंगे तो मनुष्य भी न रहेगा
    • Quotation
    • तूफान और बवंडर उत्पन्न करने वाली उथल-पुथल
    • उदास न रहें- सरसता न खोयें
    • आकांक्षाएं बनाम उपलब्धियाँ
    • कोलाहल के दुष्परिणाम से सतर्क रहें
    • राजनीतिज्ञ और साधू की सिख (kahani)
    • अग्निहोत्र से मानसिक रोगों का निवारण
    • एन्टीबायोटिक्स दवाओं के द्वारा होने वाला कत्लेआम
    • Quotation
    • माँसाहार मनुष्य के लिये नितान्त अवाँछनीय
    • इस असह्य स्थिति का अन्त होना चाहिये
    • बुढ़िया की सीख (kahani)
    • हमारी अधूरी जानकारियाँ और मूढ़ मान्यताएं
    • क्या बन्दर सचमुच हार गया
    • आत्मिक प्रगति के पाँच सोपान-पंच कोश
    • अपनों से अपनी बात - इस सब शृंखला में सम्मिलित होने का प्रयत्न करें
    • Quotation
    • मृदुल बयार प्रेम की बनकर तुम लहराओ
    • मृदुल बयार प्रेम की बनकर तुम लहराओ (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login
  • TOC
    • कर्म का प्रतिफल अकाट्य है
    • ईश्वर का द्वार सबके लिए खुला है।
    • आत्मा को कैसे जानें? परमात्मा को कैसे देखें?
    • आत्मा मात्र मस्तिष्क नहीं है।
    • अदृश्य से दृश्य, दृश्य से अदृश्य
    • Quotation
    • ब्रह्माण्डीय प्राण-चेतना का मिलन अब निकट ही हैं
    • प्राण शक्ति का स्वरूप और अभिवर्धन
    • Quotation
    • विज्ञान और अध्यात्म को साथ-साथ चलना होगा
    • Quotation
    • हमारी दुर्दशा दुमुँहे साँप जैसी
    • मानसिक रोग कितने विचित्र, कितने भयावह
    • विचार शक्ति एक प्रत्यक्ष शक्ति ऊर्जा
    • सद्गुरु प्राप्त कर सकने की असाधारण सौभाग्य
    • आन्तरिक दरिद्रता से पीछा छुड़ायें
    • प्रशिक्षण हर प्राणी को बुद्धिमान हो सकते है।
    • पीड़ा ही कष्ट और चैन ही सुख नहीं हैं (kahani)
    • अन्य लोक वासियों की धरती पर हलचलें
    • वृक्ष न रहेंगे तो मनुष्य भी न रहेगा
    • Quotation
    • तूफान और बवंडर उत्पन्न करने वाली उथल-पुथल
    • उदास न रहें- सरसता न खोयें
    • आकांक्षाएं बनाम उपलब्धियाँ
    • कोलाहल के दुष्परिणाम से सतर्क रहें
    • राजनीतिज्ञ और साधू की सिख (kahani)
    • अग्निहोत्र से मानसिक रोगों का निवारण
    • एन्टीबायोटिक्स दवाओं के द्वारा होने वाला कत्लेआम
    • Quotation
    • माँसाहार मनुष्य के लिये नितान्त अवाँछनीय
    • इस असह्य स्थिति का अन्त होना चाहिये
    • बुढ़िया की सीख (kahani)
    • हमारी अधूरी जानकारियाँ और मूढ़ मान्यताएं
    • क्या बन्दर सचमुच हार गया
    • आत्मिक प्रगति के पाँच सोपान-पंच कोश
    • अपनों से अपनी बात - इस सब शृंखला में सम्मिलित होने का प्रयत्न करें
    • Quotation
    • मृदुल बयार प्रेम की बनकर तुम लहराओ
    • मृदुल बयार प्रेम की बनकर तुम लहराओ (kavita)
  • My Note
  • Books
    • SPIRITUALITY
    • Meditation
    • EMOTIONS
    • AMRITVANI
    • PERSONAL TRANSFORMATION
    • SOCIAL IMPROVEMENT
    • SELF HELP
    • INDIAN CULTURE
    • SCIENCE AND SPIRITUALITY
    • GAYATRI
    • LIFE MANAGEMENT
    • PERSONALITY REFINEMENT
    • UPASANA SADHANA
    • CONSTRUCTING ERA
    • STRESS MANAGEMENT
    • HEALTH AND FITNESS
    • FAMILY RELATIONSHIPS
    • TEEN AND STUDENTS
    • ART OF LIVING
    • INDIAN CULTURE PHILOSOPHY
    • THOUGHT REVOLUTION
    • TRANSFORMING ERA
    • PEACE AND HAPPINESS
    • INNER POTENTIALS
    • STUDENT LIFE
    • SCIENTIFIC SPIRITUALITY
    • HUMAN DIGNITY
    • WILL POWER MIND POWER
    • SCIENCE AND RELIGION
    • WOMEN EMPOWERMENT
  • Akhandjyoti
  • Login




Magazine - Year 1975 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
TEXT SCAN


वृक्ष न रहेंगे तो मनुष्य भी न रहेगा

Listen online

View page note

Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
×

Add Note


First 19 21 Last
कुछ समय पूर्व इण्डोनेशिया में यूनेस्को के तत्वावधान में 150 वन विशेषज्ञों की एक अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी हुई थीं, जिसमें विश्व की घटती हुई वन संपदा पर चिंता प्रकट की गई थी। आमतौर से लोग वृक्षों का महत्व नहीं समझते। लकड़ी का लोभ और खेती के लिये अधिक जगह मिलने के लालच का लोभ और खेती के लिये अधिक जगह मिलने के लालच में पेड़ों को काटते चले जाते हैं वे यह भूल जाते हैं कि इन तुच्छ लाभों की तुलना में वृक्ष विनाश से होने वाली हानि कितनी अधिक भयंकर हैं। उपरोक्त प्री पैसिफिक साइन्स कान्फ्रैन्स ने संसार को चेतावनी दी कि वृक्ष सम्पदा विनाश का वर्तमान क्रम चलता रहा तो उसके भयानक परिणाम भुगतने पड़ेंगे।

उपरोक्त गोष्ठी में जापान, आस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका, जर्मनी, फ्राँस, इंग्लैण्ड, नीदरलैण्ड, भारत आदि 20 देशों के वन विज्ञानी उपस्थित थे। गोष्ठी में कनाडा के प्रतिनिधि डा0 ब्लादीमीर क्रजीना ने कहा-मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता साँस लेने के लिये शुद्ध वायु मिलना है। वृक्ष हमारी इस आवश्यकता को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करते हैं। संसार में बढ़ते हुए वायु प्रदूषण का समाधान करने के लिये वृक्षों की रक्षा की जानी चाहिये। यदि हम वन संपदा को गंवा बैठेंगे तो फिर शुद्ध साँस का अभाव इतना जटिल हो जायेगा कि उसका समाधान अन्य किसी उपाय से संभव न हो सकेगा।

अन्य देशों के प्रतिनिधियों ने भी जो विचार व्यक्त किये उनसे स्पष्ट था कि वृक्ष रक्षा एवं अभिवर्धन का प्रश्न उतना उपेक्षणीय नहीं है जितना कि उसे समझा जा रहा हैं। उसे पशु पालन के स्तर पर रखा जाना चाहिए। सच तो यह है कि इससे भी अधिक महत्व उसे दिया जाना चाहिए। पशुओं को गंवाकर उनके द्वारा मिलने वाले श्रम, दूध, माँस, चमड़े से एवं गोबर से वंचित होना पड़ता है। वृक्षों को गंवाने की हानि उनसे भी अधिक है। वायु शोधन-वर्षा का संतुलन और पत्तों से मिलने वाली खाद, धरती के कटाव का बचाव, कीड़े खाकर फसल की रक्षा करने वाले पक्षियों के आश्रय के अभाव में सफाया आदि कितने ही ऐसे संकट हैं जो वृक्षों के घटने के साथ-साथ बढ़ते ही चले जायेंगे।

पिछले दिनों कल कारखानों की वृद्धि को-विकास का आधार माना जाता रहा है। खाद्य उत्पादन के लिये कृषि तथा सिंचाई पर भी जोर दिया जाता रहा है। बहुत हुआ तो यातायात के साधनों को बढ़ाने की बात भी आर्थिक प्रगति के लिये जोड़ दी गई। वन संपदा की महत्ता समझने की ओर जितना ध्यान देना आवश्यक था उतना दिया ही नहीं। सच तो यह है वनों को जमीन घेरने वाला माना जाता रहा और उन्हें काटकर कृषि करने की बात सोची जाती रही। जलाऊ लकड़ी तथा इमारती आवश्यकता के लिये भी वृक्षों की अन्धाधुन्ध काटा जाता रहा और उनके स्थान पर नये लगाने की ओर अपेक्षा बरती जाती रही। आज हम वन संपदा की दृष्टि से निर्धन होते चले जा रहे है और उसके कितने ही परोक्ष दुष्परिणामों को प्रत्यक्ष हानि के रूप में सामने खड़ा देख रहे हैं।

‘सहारा कान्क्वेस्ट’ ग्रन्थ के लेखक सेन्टवार्व बेकर ने सहारा रेगिस्तान की 20 लाख वर्ग मील भूमि के संबंध में लंबा और गहरा सर्वेक्षण करके लिखा है यह क्षेत्र किसी समय बहुत ही हरा-भरा था, पर लोगों ने ना समझी से उसे उजाड़ दिया। इससे क्रुद्ध हुई प्रकृति ने पूरा प्रतिशोध चुकाया। तेज हवा, सूर्य की सीधी धूप और पाले ने अच्छी-खासी उपजाऊ मिट्टी को रेत बना दिया। तेज हवाएं उस धूल को भी इधर से उधर उड़ाने लगीं, सिर्फ ऊसर और पथरीली जमीन ही टिकी हुई हैं। यह रेगिस्तानी विशाल भूखण्ड अब निकटवर्ती हरी-भरी जमीन को भी महासर्प की तरह निगलता चला जा रहा है। हर साल तीस वर्ग मील हरी-भरी जमीन उस रेगिस्तान की चपेट में आकर सदा−सर्वदा के लिये मृतक बन जाती हैं।

द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् एक बार अमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट हवाई जहाज से मिश्र की भूमि से गुजरे, उन्होंने लेबनान के इतिहास प्रसिद्ध सिडार वृक्षों के वन्य प्रवेश की बड़ी प्रशंसा पढ़ी थी। पर जब उन्होंने नीचे झाँक कर देखा कि वहाँ नंगे पहाड़ खड़े हैं और जहाँ-तहाँ दस-बीस वृक्ष दीख रहे हैं तब उन्हें इसका बड़ा दुख हुआ। संसार में अन्यत्र भी ऐसी ही मूर्खता बरती जा रही हैं इसकी विस्तृत जानकारी प्राप्त करके उन्हें और भी अधिक वेदना हुई। उनके आदेश पर राष्ट्रसंघ पर अमेरिकी प्रतिनिधियों ने दबाव डाला कि विश्व खाद्य और कृषि संगठन में वन संपदा के संरक्षण को भी महत्वपूर्ण स्थान मिलना चाहिये वैसा हुआ भी। राष्ट्रसंघ के तत्वावधान में संसार में वन संपदा बढ़ाने के लिये जो प्रयत्न चल रहे हैं उन्हीं के अंतर्गत एक बड़ी आर्थिक सहायता देकर लेबनान में नये सिरे से सिडार वन लगाये गये हैं और हजारों एकड़ जमीन फिर से हरी-भरी बनाई गई हैं। ऐसे ही प्रयास अन्यत्र भी हुए हैं।

इज़राइल में हरा-भरा क्षेत्र एक तिहाई और सूखा रेगिस्तानी दो तिहाई हैं। उन लोगों ने इस सूखे भूखण्ड को हरा-भरा बनाने का संकल्प किया है और इन दिनों इस दिशा में अथक परिश्रम किया जा रहा है। पिछले दिनों ही 10 करोड़ नये पौधे उन लोगों ने लगाये हैं।

आइसलैण्ड वाले बहुत दिनों से अपनी वन संपदा उजाड़ते चले आ रहे थे फलस्वरूप वे अपनी उपजाऊ भूमि से हाथ धो बैठे। सन् 1946 के बाद उनकी आंखें खुली और योजनाबद्ध रूप से 20 लाख नये पेड़ लगाये। टस्मानिया का भी यही हाल हुआ। उन लोगों ने वृक्ष संपदा गंवाई फलस्वरूप रेतीली आंधियों का सर्वनाशी सिलसिला आरम्भ हो गया। घास-पात तक को उनने अपने पेट में निगल लिया। जब जीवन-मरण का सवाल पैदा हुआ तो उन्होंने ऊँचे चीड़ और देवदारु के पेड़ लगाकर रेतीली हवाओं से रोकथाम की है और 1500 एकड़ जमीन रेगिस्तान के मुँह में से उगलवाई है। स्काटलैण्ड में कुल्विन सेन्डम नामक छह मील लंबा और दो मील चौड़ा एक छोटा-सा रेगिस्तान था। उन लोगों ने इस अजगर का मुँह कुचल कर रख दिया है और अब वहाँ हरे-भरे उद्यान लहलहा रहे हैं। लीविया ने अपने रेगिस्तानों को छोटी झाड़ियों से पाट देने का निश्चय किया है और वे उस प्रयास में भली प्रकार सफल हो रहे हैं। आस्ट्रेलिया ने अपने 7 इंच जितनी स्वल्प वर्षा वाले क्षेत्र में संसार भर से 83 जाति के ऐसे पौधे मंगाकर वहाँ रोपे हैं जो सूखी आव हवा में भी पनपा सकते हैं। आग की तरह तपने वाले बूमेटा रेगिस्तान का एक बड़ा भाग अब वृक्षारोपण के अभिनव प्रयासों से हरा-भरा बनाया जा चुका है। उसे क्षेत्र के एक किसान डेस्माड फाइलिस ने अपने एकाकी प्रयत्न से 6000 वृक्ष लगाये हैं जो अब 20 फुट से भी ऊंचे हो गये हैं। इन वृक्षों ने उस क्षेत्र की भयंकर खुश्की को मनुष्यों और पशुओं के रहने योग्य बना दिया है।

मोरक्को ने अपनी कुंभकरणी नींद त्यागकर अपनी नष्ट होती वन सम्पदा को संभाला हैं। इन्हीं दिनों उन लोगों में 65 हजार जैतून के 2700 बादाम के और 1,3100 सदा बहार के बड़े वृक्ष लगाये हैं। इस कार्य के लिये उन्हें राष्ट्रसंघ से भी अनुदान मिला है।

चीन अपनी उत्तरी पश्चिमी सीमा को सुरक्षित रखने के लिये फ्राँस की प्रसिद्ध लौह प्राचीर की तरह वृक्षों की हरी दीवार खड़ी कर रहा है यह दीवार 6000 मील लंबी और कई मील चौड़ी होगी। वहाँ बंजर प्रदेशों को वृक्षों से पाट देने का कार्यक्रम चल रहा है।

अब संसार का हर देश समझ गया है कि मनुष्य जीवन के लिये पशु संपदा से भी बढ़कर वन संपदा का महत्व है इसलिए उसे राष्ट्रीय सम्पत्ति में उच्च स्थान दिया जा रहा है और उसे बढ़ाने के प्रयास को खाद्य उत्पादन स्तर का महत्व दिया जा रहा है।

स्काटलैण्ड के वनस्पति विज्ञानी राबर्ट चेर्म्बस ने लिखा है-बन नष्ट होंगे तो पानी का अकाल पड़ेगा। भूमि की उर्वरा शक्ति घटेगी और फसलों की पैदावार कम होती चलेगी। पशु नष्ट होंगे। पक्षी घटेंगे और मछली प्राप्त करना कठिन हो जायगा। वन विनाश का अभिशाप जिन पाँच पुराने प्रेतों की भयंकर विभीषिका बनाकर सामने खड़ा कर देगा वे हैं बाढ़, सूखा, गर्मी, अकाल और बीमारी। हम जान और अनजान में वन सम्पदा नष्ट करते हैं और उससे जो पाते हैं उसकी तुलना में कहीं अधिक गँवाते हैं।

धर्म शास्त्रों में वट, पीपल, आँवला आदि वृक्षों को देव संज्ञा में गिना है। उनके प्रति किसी समय कितनी गहरी श्रद्धा रही है इसका परिचय इस बात से मिलता है कि अभी भी वृक्षों के साथ लड़कियों का विवाह होने की प्रथा जहाँ-तहाँ पाई जाती है।

तिरहुत में मंगली लड़की का विवाह पीपल के पेड़ के साथ कर दिया जाता है। ताकि नक्षत्र दोष का अनिष्ट पीपल पर पड़े और मनुष्य वर को किसी विपत्ति का सामना न करना पड़े।

आन्ध्र के कुडप वंशी ग्रामीणों में कन्या का विवाह बारह वर्ष तक कर देने का रिवाज था, पर यदि किसी कारणवश विवाह न हो सका तो किसी फलदार पेड़ से उसका विवाह कर देते हैं और उसे सुहाग के सभी प्रतीक धारण करा देती है। इसके पश्चात् उसका ‘पुनर्विवाह’ किसी भी आयु में हो सकता है। यदि विवाह न हो तो भी उसे सुहागिन के सभी सामाजिक अधिकार मिल जाते हैं और बिरादरी के लोग विवाह न होने का लांछन नहीं लगाते।

नेपाल की नेवार जाति के लोग अपनी लड़कियों का विवाह विल्व वृक्ष के साथ करते हैं। इसके पश्चात् जब किसी पुरुष के साथ विवाह होता है तो वह उपपति कहलाता है। उपपति को कोई स्त्री कभी भी बहिष्कृत कर देती है, उसे नृत्य जितने ही अधिकार प्राप्त होते हैं।

हिसार जिले की धुमकूड बावरिया जाति में और सरगुजा के भीलों में यह प्रथा है कि विवाह की अनिच्छुक लड़कियों का विवाह पीपल के वृक्ष से कर देते हैं और यह मान लेते हैं कि उसका कुमारी रहने का ‘दोष’ निपट गया।

हरियाली को मनुष्य जीवन सहचरी का स्थान मिलना चाहिए और उसके परिपोषण के लिए प्रत्येक नागरिक में व्यक्तिगत रूप से दिलचस्पी उत्पन्न की जानी चाहिए।

महाकवि अलेक्जेन्डर स्मिथ प्रकृति को असीम प्यार करते थे और विचारशील लोगों को सम्बोधन करके कहते थे-अपनी स्मृति पीछे के लिए छोड़ जाना चाहते हो तो भवन बनाने और पदक प्राप्त करने की अपेक्षा वृक्ष लगाने पर ध्यान दो वे इन दोनों की अपेक्षा अधिक चिरस्थायी होते हैं।

संसार में सबसे पुराना वट वृक्ष ताइवान में ढूंढ़ निकाला गया है। ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर अब उसकी आयु 4128 वर्ष है। वह 48 मीटर ऊँचा है तने की मोटाई का व्यास 80 फीट से अधिक हैं चिजायी प्रान्त के मिएन युएह ग्राम के पास की पहाड़ी पर यह उगा हुआ है। वहाँ के निवासियों ने उस महावृक्ष का नाम ‘चेनी पौरिस’ रखा है। यह वृक्ष होने पर भी अभी सैंकड़ों वर्षों तक मजे में अपना अस्तित्व बनाये रहने योग्य सुदृढ़ है।

इसके अधिक सस्ता, अच्छा, ऊँचा, चिरस्थायी एवं अतीव उपयोगी स्मारक और क्या हो सकता है। मनुष्य अपना नाम चाहने की दृष्टि से ही सही वृक्षारोपण को महत्व दे तो भी उससे बहुत हित साधन हो सकता है। बिहार के हजारी बाग जिले का नामकरण इसी आधार पर हुआ है कि उस क्षेत्र के हजारी किसान ने अनवरत श्रम करके उस क्षेत्र में हजार बाग लगवाने में सफलता प्राप्त की थी।

इसके अधिक सस्ता, अच्छा, ऊँचा, चिरस्थायी एवं अतीव उपयोगी स्मारक और क्या हो सकता है। मनुष्य अपना नाम चाहने की दृष्टि से ही सही वृक्षारोपण को महत्व दे तो भी उससे बहुत हित साधन हो सकता है। बिहार के हजारी बाग जिले का नामकरण इसी आधार पर हुआ है कि उस क्षेत्र के हजारी किसान ने अनवरत श्रम करके उस क्षेत्र में हजार बाग लगवाने में सफलता प्राप्त की थी।

First 19 21 Last


Other Version of this book



Version 2
Type: TEXT
Language: HINDI
...

Version 1
Type: SCAN
Language: HINDI
...


Releted Books


Articles of Books

  • कर्म का प्रतिफल अकाट्य है
  • ईश्वर का द्वार सबके लिए खुला है।
  • आत्मा को कैसे जानें? परमात्मा को कैसे देखें?
  • आत्मा मात्र मस्तिष्क नहीं है।
  • अदृश्य से दृश्य, दृश्य से अदृश्य
  • Quotation
  • ब्रह्माण्डीय प्राण-चेतना का मिलन अब निकट ही हैं
  • प्राण शक्ति का स्वरूप और अभिवर्धन
  • Quotation
  • विज्ञान और अध्यात्म को साथ-साथ चलना होगा
  • Quotation
  • हमारी दुर्दशा दुमुँहे साँप जैसी
  • मानसिक रोग कितने विचित्र, कितने भयावह
  • विचार शक्ति एक प्रत्यक्ष शक्ति ऊर्जा
  • सद्गुरु प्राप्त कर सकने की असाधारण सौभाग्य
  • आन्तरिक दरिद्रता से पीछा छुड़ायें
  • प्रशिक्षण हर प्राणी को बुद्धिमान हो सकते है।
  • पीड़ा ही कष्ट और चैन ही सुख नहीं हैं (kahani)
  • अन्य लोक वासियों की धरती पर हलचलें
  • वृक्ष न रहेंगे तो मनुष्य भी न रहेगा
  • Quotation
  • तूफान और बवंडर उत्पन्न करने वाली उथल-पुथल
  • उदास न रहें- सरसता न खोयें
  • आकांक्षाएं बनाम उपलब्धियाँ
  • कोलाहल के दुष्परिणाम से सतर्क रहें
  • राजनीतिज्ञ और साधू की सिख (kahani)
  • अग्निहोत्र से मानसिक रोगों का निवारण
  • एन्टीबायोटिक्स दवाओं के द्वारा होने वाला कत्लेआम
  • Quotation
  • माँसाहार मनुष्य के लिये नितान्त अवाँछनीय
  • इस असह्य स्थिति का अन्त होना चाहिये
  • बुढ़िया की सीख (kahani)
  • हमारी अधूरी जानकारियाँ और मूढ़ मान्यताएं
  • क्या बन्दर सचमुच हार गया
  • आत्मिक प्रगति के पाँच सोपान-पंच कोश
  • अपनों से अपनी बात - इस सब शृंखला में सम्मिलित होने का प्रयत्न करें
  • Quotation
  • मृदुल बयार प्रेम की बनकर तुम लहराओ
  • मृदुल बयार प्रेम की बनकर तुम लहराओ (kavita)
Your browser does not support the video tag.
About Shantikunj

Shantikunj has emerged over the years as a unique center and fountain-head of a global movement of Yug Nirman Yojna (Movement for the Reconstruction of the Era) for moral-spiritual regeneration in the light of hoary Indian heritage.

Navigation Links
  • Home
  • Literature
  • News and Activities
  • Quotes and Thoughts
  • Videos and more
  • Audio
  • Join Us
  • Contact
Write to us

Click below and write to us your commenct and input.

Go

Copyright © SRI VEDMATA GAYATRI TRUST (TMD). All rights reserved. | Design by IT Cell Shantikunj