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Magazine - Year 1977 - Version 2

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प्रकृति के अनुदान अन्य प्राणियों को भी मिले है?

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मनुष्य को अन्य प्राणियों की तुलना में बुद्धि की मात्रा अधिक मिली है। फिर भी ऐसा नहीं समझना चाहिए कि अन्य जीव जन्तु सर्वथा असहाय हैं। उनमें से अनेकों को ऐसी विशेषताएँ प्राप्त हैं जिनके लिए मनुष्य को ईर्ष्या हो सकती है। निस्सन्देह कितनी ही विशेषताएँ अन्य प्राणियों को ऐसी उपलब्ध है कि यदि वे मनुष्य शरीर के अनुपात से उसे भी मिली होतीं तो वह कल्पित देव दानवों जैसा सामर्थ्यवान होता है।

विभाजन में मनुष्य के हिस्से में बुद्धि की मात्रा अधिक आई, यह ठीक ही हुआ, पर इतने भर से ईश्वर पर यह आक्षेप नहीं लगाया जा सकता कि उसने दूसरों को कुछ दिया ही नहीं है। अपनी स्थिति में सुविधापूर्ण जीवन यापन करने की दृष्टि से जो आवश्यक था, उसे उन्हें देने में भी सृष्टा ने कोई कमी नहीं रखी है।

रेगिस्तान का जहाज कहा जाने वाला ऊँट एक बार में 70 लीटर जल पी जाता है और तीन चार दिन तक मरुभूमि में बिना पानी के रह जाता है। सहारा रेगिस्तान जैसे शुष्क प्रदेश में ऊँट जैसे प्राणी को ही वाहन बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वहाँ पानी का इतना अभाव है कि मनुष्य को भी दुर्लभ है तो ऊँट को कहाँ से उपलब्ध करवाया जावे ? किन्तु ऊँट एक ही समय में 70 लीटर तक पानी पीकर अपने भीतर की थैली में सुरक्षित रखे रहता है। जिसका उपयोग वह कड़ी धूप में किया करता है। वनराज शेर यों तो किसी का भी शिकार कर लिया करता है। किन्तु जिराफ़ उसे 5 मील दूर भी दीख जावे तो वह पास के अन्य शिकार को छोड़ कर उसे पहले मारने का प्रयत्न करेगा, जिराफ़ शेर को गुलाब जामुन सा स्वादिष्ट और प्रिय है। किन्तु प्रकृति ने जिराफ़ की रक्षा के लिए उसकी खाल इस प्रकार की बनाई कि वे पेड़ों के बीच ऐसे छिप जाता है कि पास ही होने पर भी शेर उसे पहचान नहीं पाता।

सामान्यतः जीवों का आकार ही उनकी शक्ति का द्योतक माना जाता है। नेवला इसके कुछ अपवादों में से एक है। वह अपने आकार से बहुत अधिक शक्ति रखता है। सांभर जैसे बड़े जीव पर भी वह कभी कभी घातक आक्रमण कर बैठता है।

कुछ वर्गों के नेवले साँप के साथ युद्ध कर, उसे समाप्त कर डालते हैं। इसमें भी उनका कौशल अधिक काम आता है। सर्प के आक्रमण के समय नेवला सतर्कता से एक ओर हट जाता है। और फिर साँप के दुबारा आक्रमण करने पर भी ऐसा ही करता है। बार बार ऐसा कर साँप को थका डालता है। थके साँप की गर्दन पकड़ नेवला उसकी खोपड़ी कुचल देता है।

जुगनू की जगमगाहट सर्वविदित है। पर बहुत से सूक्ष्म जीवाणुओं में भी ऐसा ही प्रकाश पाया जाता है। अधिकांश स्वयं प्रकाशित जीवों के पास ऐसे विशेष अवयव हैं कि वे प्रकाश को आत्म नियन्त्रित रखते हैं, जैसे हम टार्च को इच्छानुसार जला बुझा सकते हैं, उसी तरह ऐसे प्राणियों में विशेष ग्रन्थियाँ होती हैं। जो लुसिफेरिन नामक प्रकाश रसायन में आक्सीजन के द्वारा जगमगाहट पैदा करते हैं। दक्षिणी अमेरिका में रेलगाड़ी नामक एक दो इंच लम्बा कीड़ा होता है, जिसके मुँह में लाल दीपक होता है और दोनों ओर 11-11 हरे दीपक होते हैं।

वेस्टइंडीज के मोटर कीड़ा के उदर से पीतवर्ण प्रकाश निकालता है। उसके मुँह में दो दीपक होते हैं।

सागरवासी अनेक जलचर स्वयं प्रकाशित होते हैं। इस प्रकाश का उपयोग वे खाद्य प्राप्ति एवं प्रणय व्यापार के लिए करते हैं।

अपने अण्डों के संरक्षण के लिए मछलियों द्वारा सरिताओं, सरोवरों या जल स्रोतों की सतह पर बनाए गए भवन उनकी वैज्ञानिक जानकारियों के प्रमाण होते हैं।

स्ट्रीकलबैक नामक मछलियों के नर मई जून में रस्सी के छोटे टुकड़ों तथा समुद्री सेवार लेकर अपने भीतर से निकले गए धागों से उन्हें बुनते हैं और घर बनाते हैं।

क्वीन्सलैंड की वरनेट नदी में इयिस नामक मछलियाँ 20 इंच व्यास वाला एक गहरा वृत बनाती हैं। वहीं अण्डे देती हैं। अभियाकाभा नामक मछलियाँ प्रजनन ऋतु में गहरे पानी से उथले में जाकर सेवार के कोमल पौधे ढूँढ़ती हैं तथा उन्हें ही तोड़कर घोंसले जैसा बनाकर वहीं अंडे देती हैं। अंडे घोंसले से चिपटे रहते हैं और जब तक अण्डों से बच्चे नहीं निकलते, नर अभियाकाभा उनके संरक्षण का दायित्व सम्भालते हैं। ट्राइनकोस्टर मछलियाँ छोटे पौधों को तोड़कर, हवा के बुलबुलों के साथ, एक तैरता हुआ टापू तैयार करती हैं। मादा इसी टापू में अण्डे देती है। यदि वजन से अण्डे नीचे जाने लगते हैं, तो नर नीचे से फूँक मारकर उन्हें टापू के भीतर कर देते हैं। भारतीय मछली गरई भी अपने घर छोटे पौधों , हवा के बुलबुलों तथा अपने मुँह की लार से बनाती हैं।

व्हेल एक भयानक मछली है। वह अपने प्रचण्ड प्रहार से बड़े बड़े जलयानों को भी हिला देती है। नौकाओं को उलटना तो मामूली बात है। मनुष्य उसके करीब पहुँचा कि वह उसे चिथड़े चिथड़े कर दे सकती है।

आक्टोपस आठ दस भुजाओं वाला विशालकाय जीव है। गहरे जल में चट्टान तले यह छिपा रहता है और शत्रु पर घात लगाकर आक्रमण करता है। दसों भुजाओं से एक साथ प्रबल प्रहार कर वह अपने शिकार को नीचे गहरे में खींच ले जाता है।

शार्क मछली भयानक होती है। उसके दाँत तीक्ष्ण तलवार की धार जैसे होते हैं। लेकिन कछुए के खोल पर उन दाँतों का कोई असर नहीं होता।

समुद्र में दस मुँह वाला एक घोंघा होता है। यह अपने शरीर में हवा भर लेता है। फिर दौड़ लगाता है, तो पानी को जेट इंजन की सी तेजी से चीरता जाता है।

गाएँ, बैल, भैंसें आदि घास पात चरने वाले जीव किसी घास के पौधे या कि किसी झाड़ी को चरते समय तेजी से अपनी ओर खींचते हैं। गेंडा भी झाड़ियों को चरते हैं। पर वे उन्हें तेजी से ऊपर की ओर खींचते हैं, जैसे उखाड़कर फेंक देंगे कारण ? बात यह है कि गेंडे प्रायः कंटीली झाड़ियों को चरते हैं। उन्हें अपनी ओर खींचें, तो काँटे आँखों में आ घुसें।

प्रत्येक जीव जन्म से मृत्यु तक निरन्तर संघर्षरत रहता है। संघर्ष के दो पहलू है, आक्रमण और सुरक्षा। प्रत्येक जीव अपनी सुरक्षा के लिए सतर्क रहता है। विभिन्न जीव जन्तु अपने बचाव हेतु स्फूर्ति, छल, कौशल, चातुर्य आदि का आश्रय लेते हैं। प्रकृति ने आत्म रक्षा की अनेक विशेषताएँ प्राणियों को दी हैं। साथ ही आहार प्राप्ति में वे पिछड़ न जायें इसके लिए भी उन्हें आवश्यक सामर्थ्य एवं कुशलता प्रदान की है।

गिरगिट अपना रंग इसलिए बदलता है कि यह विपत्ति से बचने के लिए छिपने का प्रयास करता है। प्लूरोनैटिक्स नामक मछलियाँ और सीपियाँ भी रंग परिवर्तन में पटु होती हैं। सागरवासिनी कटिल नामक मछली विपत्ति का आभास पाते ही, अपने वातावरण, व निवासस्थान जैसा ही अपना रंग बदल लेती है।

यों कुछ जीवों का प्रकृति प्रदत्त रंग भी उनकी इस काम में सहायता करता है। तोतों को हरे वृक्ष की शाखाओं के बीच, सफेद भालू को बर्फीले विस्तार के मध्य तथा टिड्डों को हरी घास या हरी टहनियों के बीच पहचान पाना कठिन होता है। सूखी घास का वाशिंदा यूसस कीड़ा उसी रंग का होता है।

अमरीका का आजरो और आस्ट्रेलिया का डिंगों नामक कुत्ते आपत्ति आने पर मरने का अभिनय करते हैं। वे भूमि पर शवासन में लेट जाते हैं। कांचिल हिरण भी मृत्यु अभिनय में प्रवीण होते हैं। खटमल तथा अन्य कई कीड़े भी इसमें निपुण होते हैं। वे सिर पर खतरा देख सहसा शव- वत हो जाते हैं, खतरा टल जाने का अनुमान कर पूर्ववत् चलने लगते हैं।

छिपकली तो विपत्ति आते ही अपनी पूँछ को तोड़कर अलग कर देती है। वह पूँछ कुछ देर तक उछलती कूदती रहती है, जिससे कि शत्रु उसे ही छिपकली समझ भ्रम में पड़ सकता है।

कुछ केकड़े तथा समुद्री तटों पर चट्टानों आदि के तले रहने वाला रिवनवर्म नामक जीव भी, आपत्तिकाल में अपने को कोई हिस्सों में बाँट देते हैं यानी अपने अंगों को अलग अलग कर डालते हैं।

बन्दर घुड़की प्रसिद्ध है। विपत्ति की आशंका से बन्दर शत्रु को डराते धमकाते हैं। लामा नामक एक अमरीकी जीव शत्रु पर तेजी से थूकता है। स्कडंक नामक एक अन्य जीव दुर्गन्ध भरा द्रव्य छोड़ता है।

आत्मरक्षार्थ सर्प फन फैला कर शत्रु पर फुसकारते हैं। अमरीका की होनर्ड लिआर्ड नामक छिपकली का शरीर आपत्तिकाल में फूल जाता है, फिर वह नेत्रों से रक्त की तेज धार छोड़ती है। मेंक नामक जीव भी शत्रु को भगाने के लिए तीव्र गन्ध वाला द्रव्य छोड़ते हैं।

लोमड़ी अपनी रक्षा के लिए चकमा देती है। कभी इधर भागती है, कभी उधर। साही अपने शरीर के काँटों को सख्त व खड़ा कर लेती है। पेगोलिन नामक प्राणी भी ऐसा ही करता है। कछुआ अपने हाथ पैर अपने खोल के भीतर समेट लेता है। आर्मडेलो नामक जीव जिसके उदर की त्वचा कोमल और पृष्ठ भाग कठोर होता है, आपत्तिकाल में अपने आपको गोल बना लेता है। आत्मरक्षा के साथ ही कई जीव अपने सहयोगियों को भी संकट से सतर्क कर देते हैं। गिलहरी, कौए ऊँचे चढ़ कर अपने स्वर से खतरे के संकेत दे देते हैं। चीतल, काकड़ और बन्दर आदि शेर या किसी अन्य खतरनाक जीव को देखकर चीख चीख कर सबको सतर्क कर देते हैं। खरगोश विपत्ति देखते ही अपने पिछले पैरों पर खड़ा होकर जमीन खोद कर आवाज करता है, इससे सभी खरगोश बन्धु चौकस हो जाते हैं। बबून नामक बन्दरों में एक बन्दर खेतों की मेंड़ पर सन्तरी बनकर बैठा रहता और खतरा देखते ही समूह को सतर्क कर देता है। एक जंगली गधा, तिब्बत में होता है, वह विपत्ति देखते ही तेजी से रेंक-रेंककर साथियों को सूचना दे देता है। एक दक्षिण अफ्रीकी मेंढक रुदन ध्वनि द्वारा संकेत भेजता है।

हिंसक पशुओं से अपने स्वामी कि या रखवाले की रक्षा के निमित्त गायें कई बार सामूहिक प्रतिरोध करती हैं। शेर तक का भी गायों द्वारा मुकाबला किये जाने की कई घटनाएँ प्रकाश में आ चुकी हैं।

गौ का वात्सल्य प्रसिद्ध है। बछड़े को जन्म देते ही गाय के थनों में स्फूर्ति व सक्रियता आ जाती है। घास पचने से बना हुआ रक्त, जब इन सक्रिय हो उठे थनों के भीतरी कोषों से गुजरता है, तो उस ग्रन्थि के सेल्स उस रक्त को दूध में बदल डालते हैं।

हँसी खुशी की अभिव्यक्ति मनुष्यों के ही हिस्से में नहीं आई है उनका आनन्द पशु पक्षी और कीड़े मकोड़े भी उठाते हैं। सच तो यह है कि आनन्दानुभूति को व्यक्त करने वाले, भाव भरे नृत्य अभिनय मनुष्य ने इस अन्य जीवों से ही सीखे हैं। इस प्रकार के भावों में इन प्राणियों का नामोल्लेख भी किया जाता है। मयूर नृत्य, भ्रमर गीत, कोकिल तान, झींगुर लय, आदि की चर्चा कला क्षेत्र में होती रहती है और उनका अनुकरण किया जाता है।

मेघ दर्शन से विभोर मयूर का मयूर नृत्य प्रसिद्ध हैं और नृत्य कला का एक अंग भी है।

मेफ्लाई नामक मक्खी का नृत्य संगीत विश्व प्रसिद्ध है युवा मेफ्लाई युवती मेफ्लाई को तरह तरह की आकर्षक मुद्राओं में नृत्य दिखाता है।

मादा मछली डैने फैलाकर नाचती है, जो परिधान का छोर पकड़ कर तैरने की सी मुद्रा में किए जाने वाले नृत्यों का प्रेरणा स्रोत है।

बिच्छू आकर्षक बाल डांस करते हैं। मकड़े का नृत्य भी तालमय होता है आठ दस मकड़े मिलकर ट्विस्ट भी करते हैं।

बरसात में जंगली बतखें नर मादा मिलकर दिन भर नाचती हैं और दिन ढले घर लौटती हैं।

दक्षिण अफ्रीका की डान्सर मैना संगीत की सुमधुर धुनों के साथ सामूहिक नृत्य करती है। न्यूजीलैण्ड की बर्ड आफ पैराडाइज भी नृत्य निपुण होती है और तो और युवा घोंघा भी गुनगुनाहट के साथ विभोरावस्था में नृत्य करता है।

सारस प्रणय याचना के समय परों और पैरों को एक निश्चित ताल के साथ पटकते हुए, गोलाकार घूमते हैं। उनका स्वर भी ताल के अनुरूप होता है। जियरे गणतन्त्र के वत्सुई समाज में तो इस नृत्य के आधार पर बने पारस्परिक नृत्य का नाम ही सम्मानित सारसों का नृत्य है। पशु पक्षी भी नृत्य के समय किसी अनिवर्चनीय आनन्द का अनुभव करते हैं।

मधु मक्खियों के नाच तो अत्यधिक अर्थपूर्ण होते हैं। नृत्य ही उनकी मुख्य भाषा है, विचार सम्प्रेषण का यही माध्यम उनके पास सर्वाधिक विकसित है।

मधु मक्खी की प्रत्येक नृत्य मुद्रा का विशिष्ट अर्थ होता है। भोजन भण्डार पास ही मिल जाए, तो छत्ते के ऊपर घूमती जैसा नाचेंगी। यदि भंडार अधिक दूर हो तो सीधे उड़ती हुई ऊपर जाएगी और फिर जिस दिशा में भोजन हो, उधर उड़ेंगी। वे दूरी को भी नृत्य द्वारा सांकेतिक करती हैं। उनके संकेत इतने सही होते हैं कि मधु-मक्खियाँ निर्दिष्ट दिशा में ही उड़ती हैं।

पशुओं को अपने परिवेश से भी गहरा लगाव हो जाता है तथा वहाँ की स्मृति उनमें भीतर सुरक्षित रहती है। रूस में ब्लादिमिर दुरोब एक प्रसिद्ध पशु प्रशिक्षक हैं वे अफ्रीका से माइयस नामक एक बन्दर लाए। एक रूसी महिला एक बार अपने नीग्रो पति के साथ दुरोव के घर गई। बन्दर अपने अफ्रीकी देश के निवासी जैसे उस नीग्रो सज्जन को देखते ही झूम उठा, लपककर जा लिपटा। स्नेह प्रदर्शन करता रहा और जब तक वे वहाँ रहे, वह उन्हीं के पास बना रहा।

क्रीमिया में डान क्विग्जोट पर फिल्म बनने के दौरान बोरिस एडर ने लेनिनग्राड चिड़ियाघर के एक शेर वास्पा का भी सहयोग लिया। डेढ़ वर्ष बाद एडर लेनिनग्राड गया और वास्पा से मिला। वास्पा एडर को देख खिल उठा। फिल्म के समय दिखाए गए करतब दुहराने लगा।

यूनान की, एन्ड्रोक्लीस और शेर की, कथा प्रसिद्ध है। एक शेर के पाँवों में चुभे काँटे को देखकर उसकी सहज करुणा जाग उठी थी और निडर भाव से शेर के पास जा उसने वह चुभा शूल निकाल दिया था। शेर ने गहरी आत्मीयता से, एन्ड्रोक्लीस को देखा। एन्ड्रोक्लीस ने आहत शेर का उपचार भी किया। शेर ने एन्ड्रोक्लीस को स्मृति पटल पर आँक लिया।

कालान्तर में एन्ड्रोक्लीस से क्रुद्ध राजा ने उसे दण्ड दिया और कई दिनों से भूखे शेर के पिंजरे में एन्ड्रोक्लीस को फेंक दिया। शेर जो माँस की गन्ध के लिए तड़प रहा था, एन्ड्रोक्लीस को देखते ही पहचान गया और उसने एन्ड्रोक्लीस को खरोंच तक नहीं पहुँचाई। प्यार भरे नेत्रों से उसे देखता रहा।

कुत्ते की स्वामी भक्ति प्रसिद्ध है। हाथी और घोड़े अपने मालिकों के प्रति भारी सद्भावना रखते हैं और विपत्ति के समय प्राण प्रण से उनकी रक्षा करते हैं। प्यार, दुलार और सहयोग के वातावरण में हिंस्र पशु भी बछड़े जैसे पालतू बन जाते हैं। अफ्रीका में जान एडम्स नामक महिला ने दर्जनों सिंह, चीते पाले और उन्हें बच्चों की तरह लाड़ दुलार देते हुए लम्बा जीवन बिताया। यह हिंस्र जन्तु उसके आस पास बैठे रहते और कई बार बिस्तर पर आ लेटते थे। कितने ही पशु पक्षियों में यह स्नेह, सहयोग एवं वफादारी की इतनी अधिक प्रबलता होती है कि मनुष्य उनकी तुलना में पिछड़े ही कहे जा सकते हैं।

प्रकृति के अनुदानों में मनुष्य को ही सब कुछ नहीं मिला, अन्य प्राणी भी अपनी अपनी आवश्यकता के अनुरूप लाभान्वित हुए हैं। मनुष्य अपने स्थान पर महत्त्वपूर्ण हो सकता है, पर अन्य प्राणी तुच्छ एवं नगण्य हैं, ऐसा नहीं सोचा जाना चाहिए।

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