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Magazine - Year 1977 - Version 2

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अगले दिनों ब्रह्माण्ड भर के प्राणी एक होंगे

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कई वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ब्रह्माण्ड में कम से कम 10 लाख सभ्यताएँ हमारी पृथ्वी की इस सभ्यता जैसी ही विकसित हैं। उनमें से अनेक सभ्यताएँ हमसे बहुत अधिक विकसित हैं।

इस सुविस्तृत ब्रह्माण्ड में पृथ्वी निवासी ही एकमेव बुद्धिमान प्राणी हो, यह बात वैसे भी तर्क सम्मत नहीं प्रतीत होती।

मनुष्य चन्द्रमा तक पहुँच चुका ओर मंगल की भी खोज खबर ला रहा है। मंगल में जीवन के लक्षणों की पुष्टि हुई है, यद्यपि उस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी अभी नहीं मिल सकी है। यद्यपि लावेल आदि अनेक विख्यात खगोलविदों की यह धारणा है कि मंगल ग्रह पर पृथ्वी से ज्यादा उन्नत जीवन है, सही सिद्ध नहीं हुआ है। पर यह अनुमान अवश्य है कि वहाँ ऐसे प्राणी हो सकते हैं, जिनकी जैव तत्व रचना हमारी जैव तत्व रचना से सर्वतः भिन्न प्रकार की होगी। अन्तरिक्षीय अभियान से संचित ज्ञान मानव कल्याण की दिशा में प्रगति में अत्यधिक सहायक सिद्ध होगा, अभी भले ही इन प्रयासों का प्रत्यक्ष लाभ कुछ न दिखाई देता हो।

जिस प्रकार अन्य ग्रहों की खोज खबर में हमें दिलचस्पी है, स्वाभाविक ही है कि अन्य विकसित ग्रह नक्षत्रों के सुसंस्कृत समुन्नत निवासी उसी तरह हमारी पृथ्वी की जाँच पड़ताल करने के लिए यहाँ अपने यान भेजें। अब तक कई ऐसे यान अपने आकाश में उड़ते और पृथ्वी तल पर उतरते देखे-पाये गये हैं। परीक्षण के बाद इन्हें सचाई के रूप में स्वीकार किया गया है। इन अन्तरिक्षयानों को उड़न तश्तरी ही कहा जाता है।

सन 1930 में प्लूटो ग्रह की खोज करने वाले अन्तरिक्ष विज्ञानी क्लाइड डब्ल्यू टाम्बा ने भी पिछले दिनों कहा था-मैंने व मेरी पत्नी ने उड़न तश्तरियाँ आकाश में उड़ती देखी हैं। इंग्लैण्ड के अन्तरिक्ष वैज्ञानिक एच॰ पर्सी विल्किस ने 50 फुट व्यास की उड़न तश्तरियाँ देखने का विवरण दिया था। वैज्ञानिक सिल्यार हेस ने एरिजोना क्षेत्र में धातु निर्मित और ईंधन चालित एक उड़न तश्तरी देखने की बात कही। जर्मनी के राकेट विशेषज्ञ हरमन ओवर्थ ने भी उड़न तश्तरियों की बाबत महत्त्वपूर्ण जानकारियों के संचित होने की घोषणा की थी।

ब्राजील की वायुसेना द्वारा 1955 में सार्वजनिक रूप से प्रकाशित प्रतिवेदन के अनुसार भी उड़न तश्तरियों को देखा, परखा गया था। कनाडा सरकार की ओटावा स्थित अनुसन्धानशाला के निर्देशक विल्वर्ट स्मिथ ने उड़न तश्तरियों के ठोस प्रमाण होने की बात कही थी।

अर्जेन्टीना के वैज्ञानिक मार्क्स तथा कई अफसरों ने कारडोवा विमानतल के पास दो उड़न तश्तरियाँ देखीं। दो रूसी वैज्ञानिक कैजेन्त्सेव तथा एग्रेस्त भी उनके अस्तित्व की घोषणा कर चुके हैं। स्वीडन के अनेक लोगों ने उड़न तश्तरियाँ देखीं, जिनका विवरण 11 जुलाई 1946 के अंक में रेजिस्तेन्स नामक फ्रेंच अख़बार ने छापा था और स्टाक होम के ल-माद अखबार ने भी इसके विवरण छापे थे। प्रख्यात ब्रिटिश पत्र डेलीमेल के प्रतिनिधि ने स्वीडन व डेनमार्क का दौरा कर, पाया कि- इन देशों में अनेक सम्भ्रान्त नागरिकों ने उड़न तश्तरियाँ प्रत्यक्ष देखी हैं तथा यहाँ के फौजी अफसर भी इस बात को लेकर चिन्तित थे कि कहीं इन उड़न तश्तरियों से कोई खतरा पैदा न हो।

अमरीकी कमाण्डर मैक्लाफलिंन के प्रतिवेदन के अनुसार उड़न तश्तरियाँ किसी अन्य ग्रह के बुद्धिमान प्राणियों द्वारा प्रेषित विमान है। इनका औसत आकार 40 फुट चौड़ा और 100 फुट लम्बा पाया गया है, गति 25 हजार मील प्रति घण्टा तथा उड़ने की ऊँचाई 2 लाख फुट देखी गई। अमरीकी वैज्ञानिकों के एतद् विषयक सम्मेलन में जनरल ममफोर्ड ने इस उड़न तश्तरियों को अत्यन्त शक्तिशाली निरूपित किया।

1961 में केपकेनेडी अन्तरिक्ष केन्द्र से पोलारिम नामक राकेट उड़ने के तुरन्त बाद उस पर एक अज्ञात वस्तु ने भयंकर झपटा मारा। यह प्रहार राडार ने नोट किया। राकेट का वैज्ञानिकों से संपर्क ही इस प्रहार के कारण टूट गया। बहुत प्रयास के बाद 14 मिनट पश्चात् उसे खोजा, देखा जा सका। इसी तरह का एक झपटा ब्यूनस आयर्स के एजेजिया विमान अड्डे के पास पैनिग्रा डी. सी. 8 नामक जेट वायुयान पर मारा गया। सरकारी विज्ञप्ति में इन घटनाओं पर पर्दा डालने के प्रयास किये गये, पर प्रत्यक्षदर्शी तथ्य जानते ही थे। न्यू मैक्सिको के प्रक्षेपणास्त्र अधिकारी श्री स्टोक्स ने ऊलामागोर्दो के पास एक भीमकाय यन्त्र अपनी कार के पास से उड़ते हुए देखा। 18 जून 1963 को कैलीफोर्निया में जेट विमानों का एक उड़न तश्तरी ने पीछा किया। केनबरा(आस्ट्रेलिया) में अनेक लोगों ने एक लड़खड़ाता सा लाल रंग का प्रकाश पिण्ड देखा। लिस्बन की वेधशाला ने एक बार उड़न तश्तरियों का आक्रमण नोट किया। ऐसे ही अनेक प्रामाणिक विवरण उड़न तश्तरियों की वास्तविकता पर प्रकाश डालते हैं।

अखबारों में समय समय पर छपने वाले ये विवरण भी महत्त्वपूर्ण हैं-

(1)4 अक्टूबर 1967 को हजारों लोगों ने कनाडा के समुद्री तट 'शाका हार्वर' पर एक विशालकाय अग्नि पिण्ड को आकाश से उतरते देखा। यह पिण्ड समुद्र में प्रविष्ट हो गया।

(2) ब्रिटेन के विक्टोरिया जलयान के नाविकों द्वारा माल्टा के पास तीन चमकदार उड़न तश्तरियाँ समुद्र से निकल कर अन्तरिक्ष में उड़ती, जाती देखी गई।

(3) पादरी विर्कर लौरिया ने आकाश से प्रकाश विमान द्वारा एक देवदूत आता देखा। कैथोलिक चर्च ने इस तथ्य की पुष्टि की।

(4) पेरिस के पास एक अँधेरी रात में पौन घण्टे तक एक नीली रोशनी वाला प्रकाश पिण्ड घुमड़ता रहा। अनेक लोगों ने इसे स्पष्ट देखा।

(5) लिस्बन के निकट फातिमा में और न्यूगिनी में 6 बार बच्चों ने देव मानवो के साथ भेंट की। इसके विवरण छपे।

(6) क्वारोबल के पास एक उड़न तश्तरी उतरी और समुद्री पोशाक जैसे वस्त्रों वाले दो व्यक्ति उसमें से निकले। हजारों लोगों ने उन्हें देखा।

(7) कोइम्क्रा यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक अलमीदा गैरत के इस विवरण की 7 हजार दर्शकों ने समर्थन करते हुए साक्षी दी कि एक भयंकर अन्तरिक्षयान वहाँ से गुजरा।

(8) अमेरिकी जलयान अलास्का पर सवार वैज्ञानिक राबर्ट एस॰ क्राफर्ड ने सेतल के समीप समुद्र से 250 फुट व्यास का एक पिण्ड निकल कर अन्तरिक्ष में उड़ते देखा। इस पिण्ड पर तोपें दागने की भी सतर्क नाविकों ने तैयारी कर ली थी।

(9) अन्तरिक्ष शोधक एन्डयू ब्लाजम की प्रकाशित डायरी में अनेकों प्रकाश पिण्डों के धरती पर आवागमन के विवरणों का संग्रह ।

(10) रेवरेन्ड विलियम वूथ गिल, डा0 के0 हाउस्टन मेजर डोनाल्ड की हो, जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा उड़न तश्तरियों की आँखों देखी गतिविधियों का वर्णन।

इनके साथ ही विश्व भर में हजारों लोगों ने उड़न तश्तरियों से सम्बद्ध प्रत्यक्ष दर्शन पर आधारित विवरण दिए हैं, जो उड़न तश्तरियों के आकार प्रकार एवं गतिविधियों पर प्रकाश डालते हैं।

फेट नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में मार्शल ने वर्जीनिया के मैनबोरो नामक स्थान में एक ऐसे ही आकाशयान के अपने पास से गुजरने का विवरण लिखा है।

'उड़न तश्तरियों' की खोज नामक पुस्तक में लेखक एम॰ के0 जसप ने ऐसी अनेक घटनाएँ साक्षियों के साथ प्रस्तुत की है-

(1) लेनिनग्राड के जंगली नाले के पास ही तीन प्रकाश पिण्डों का देखा जाना।

(2) चीन सागर में ब्रिटिश जलपोत कैरोलीन के कप्तान नारकाक द्वारा दो प्रकाश नौकाएँ दो घण्टे तक देखा जाना।

(3) स्काटलैंड में इववनिस नगर में घनी अँधेरी रात में दो प्रकाश गोलकों की धमा चौकड़ी।

(4) वेल्सड्रीप में तीव्र वेग से दो आलोक प्रवाहों की परिक्रमा।

(5) वेनिस नगर में रात्रि में एक घण्टे तक बादलों के बीच दो प्रकाश पुंजों की लगातार भाग दौड़।

(6) जान फिलिप वेसर द्वारा देखी गई उड़न तश्तरियों का वर्णन।

(7) ब्रिटिश जलपोत लिएन्डर के नाविकों द्वारा सात घण्टे तक समुद्री सतह पर एक प्रकाश पिण्ड का परिभ्रमण देखना।

पहले तो इन उड़न तश्तरियों के विवरण उपेक्षित ही रहे। पर जब डेली मिरर तथा न्यूयार्क टाइम्स जैसे प्रख्यात पत्रों ने इसके विवरण विस्तार से छापे, तो दुनिया भर में हलचल मच गई। विश्व भर में उड़न तश्तरियों के अस्तित्व के सम्बन्ध में विभिन्न पहलुओं की सत्यता की परख के लिए एक संस्था वाशिंगटन में गठित की गई-निकैप (नेशनल इनवेस्टीगेशन कमेटी आन एरियल फिनामिना’) ।इसमें इस विषय से सम्बन्धित विशिष्ट जानकारी रखने वाले दुनिया के 5 हजार व्यक्ति सदस्य हैं। इस कमेटी ने विशाल सामग्री सम्बद्ध विषयों पर एकत्रित की है। ये प्रामाणिक विवरण हैं और हजारों प्रतिष्ठित व्यक्तियों की साक्षियाँ है। इनमें से मुख्य ये हैं-

(1) कप्तान विलियम ने अमरीकी पत्रकारों को जानकारी दी कि 24 फरवरी 1959 की रात्रि जब डी0 जी0 6 विमान पेन्सिलवेनिया से डिट्राएट की ओर उड़ता जा रहा था, तीन तश्तरियाँ सहसा उसके सामने आई और देर तक विमान के चारों ओर चक्कर काटती रहीं।

मानो अध्ययन कर रही हो। सहसा एक तीव्र झटके के साथ वे विलीन हो गई उसी अनन्त आकाश में जहाँ से आती दिखी थीं। कई अन्य हवा बाजों ने भी यह घटना देखी।

(2) अमरीका में मेडिसन विल केन्टुकी की पुलिस को जुलाई 1948 में एक दिन खबर मिली कि गाडमैन विमान तल के आस पास एक विशालकाय उड़न तश्तरी उड़ रही है। कप्तान थामस मेन्टल के नेतृत्व में तीन एफ॰ 51 लड़ाकू विमान उड़न तश्तरी का पीछा करने भेजे गए। कप्तान रेडियो संपर्क द्वारा लगातार सूचना देते रहे कि उड़न तश्तरी दिख रही है। वह हमें पीछा करते जान गई और तेजी से भाग रही है। हम उनका पीछा 360 मील की गति से कर रहे हैं। यदि 20 हजार फुट की ऊँचाई तक भी वे पकड़ में न आई तो हम लौट पड़ेंगे।

पीछे के दो विमान तो लौट आये, पर कप्तान मेन्टल का विमान जो आगे था, नहीं आया। दो साथी विमान चालाकों ने लौटकर यह खबर दी कि कप्तान का विमान भी उड़न तश्तरियों के साथ ही गायब हो गया। इस घटना पर अमरीकी सरकार ने दो वर्ष तक कोई टिप्पणी नहीं की। फिर मौन तोड़ा और मात्र यह कहा-मेन्टल सन्तुलन खो बैठे और उनका विमान नष्ट हो गया।

(3) 23 नवम्बर 1953 सुपीरियर लेक के ऊपर एक विशाल उड़न तश्तरी के उड़ने की राडार से जानकारी मिली। किनरास हवाई अड्डे से मौन्कला किल्सन एफ॰ 89 जेट के साथ उसका पीछा करने उड़ा। राडार पर दिखता रहा कि जेट तेजी से उड़न तश्तरी का पीछा कर रहा है और उसके पास पहुँच रहा है। फिर सहसा दृश्यांकन बन्द हो गया। न उड़न तश्तरी दिख रही थी, न जेट। खोजी दल गये, जेट का मलबा तलाशने की कोशिश की, पर कही भी कोई सुराग नहीं मिला। इस रहस्य पर पर्दा ही पड़ा रहने दिया गया।

(4)मई 1967 में कालरैडो हवाई अड्डे के राडार ने भी उड़न तश्तरी की उड़ान की सूचना दी। अमरीकी सरकार द्वारा स्थापित अनुसन्धान समिति के एक सदस्य ने इन यानों की सम्भावना के समर्थन में एक पुस्तक लिखी है-उड़न तश्तरियाँ? हाँ।'

‘नेचर पत्रिका में अमरीकी रेडियो खगोलवेत्ता प्रो0 कोनाल्ड ब्रैस वैल का एक लेख छपा है, जिसमें यह सम्भावना व्यक्त की गई है कि उड़न तश्तरियाँ किसी विकसित सभ्यता वाले तारे से सूचना यान के रूप में आई हों और यहाँ के विवरण अपने केन्द्रों को भेज रही हो।

अन्तरिक्ष भौतिकी के वैज्ञानिक श्री वै वैलेस सलीवान ने एक पुस्तक लिखी है-वी आर नाट एलोन'- हम अकेले नहीं। इसमें ब्रह्माण्ड व्यापी संचार साधन पर बल देते हुए एक नई वेवलेंथ प्रस्तुत की है, जो प्रकाश गति से कई गुनी तीव्र होगी। यह वेवलेंथ पद्धति 21 से. मी. अथवा 1420 मेगा साइकिल वेवलेंथ के रेडियो कम्पनों पर आधारित है। अणु विकिरण की यह स्वाभाविक कम्पन गति है। उनके अनुसार अन्तरिक्ष संचार व्यवस्था में इसी गति को अपनाने से अन्य लोकों के प्राणियों से संपर्क साधा जा सकता है। हमारे लिए जो दूरी पार करनी कठिन या असम्भव लगती हे, सम्भव है अन्य लोक कर लेते हों, ऐसा श्री सलीवान का अनुमान है।

इस धरती पर उल्लेखनीय प्रगति तो विगत तीन वर्षों में ही हुई है। उसके पूर्व तो हमारे यहाँ भौतिक पिछड़ापन अत्यधिक था। विचार, आदर्श और समाज व्यवस्था की दृष्टि से तो अभी भी व्यापक पिछड़ापन ही है। ऐसी स्थिति में अन्य लोकों के वे निवासी जो सचमुच प्रगतिशील होंगे, हमारी दयनीय दशा के प्रति आकर्षित क्योंकर होंगे? यहाँ से संपर्क साधने का प्रयास वो क्योंकर करेंगे ?

यह तो सम्भव है कि वे अनेक अन्य लोकों का अध्ययन करने के साथ ही इस पृथ्वी लोक की भी छान बीन करते हों, किन्तु यहाँ के लोक जीवन से उनके आकर्षित होने और संपर्क साधने की-इच्छा करने की सम्भावना अत्यल्प ही है।

उधर 'साइन्स' और 'द न्यू साइन्टिस्ट' पत्रों के स्तम्भ लेखकों का कहना है कि ये उड़न तश्तरियाँ निश्चय ही अन्य ग्रहों से आने वाले सन्देश वाहक हैं। अन्य लोकों के प्राणी भी ब्रह्माण्ड में प्रगतिशीलता के संवर्द्धन की दृष्टि से संपर्क के लिए उत्सुक हो सकते हैं।

डा0 एस॰ मिलर और डा0 विलीले की मान्यता है कि इस विशाल ब्रह्माण्ड में एक लाख से अधिक ग्रह पिण्डों पर प्राणियों के अस्तित्व की सम्भावना है। इनमें से सैकड़ों हम पृथ्वीवासियों से अधिक विकसित हो सकते हैं।

अन्तरिक्ष विज्ञानी डा0 फानवन का कथन है कि इस विशाल ब्रह्माण्ड में ऐसे प्राणियों का अस्तित्व निश्चित रूप से विद्यमान है, जो मनुष्यों से बहुत अधिक समुन्नत है।

अन्य ग्रहों के निवासी मनुष्यों जैसी आकृति प्रकृति के ही हों, यह भी कतई जरूरी नहीं। वे वनस्पति,कृमिकीटक, झाग, धुँआ जैसे भी हो सकते हैं और विशाल दैत्यों जैसे भी। हमारे पास जो इन्द्रियाँ हैं, उनसे सर्वथा भिन्न प्रकार के ज्ञान तथा कर्म साधन उनके पास हो सकते हैं।

कैलीफोर्निया के रेडियो एस्ट्रानामी इन्स्टीट्यूट के निदेशक डा0 रोनाल्ड एन॰ ब्रेस्वेल ने विभिन्न आधारों द्वारा अन्य ग्रह तारकों में समुन्नत सभ्यताओं का अस्तित्व सिद्ध किया है और कहा है कि वे पृथ्वी से संपर्क स्थापित करने का सतत् प्रयास कर रहे हैं एवं इस हेतु संचार उपग्रह भेज रहे हैं। उनके अनुसार फुटबाल जैसे इन उपग्रहों में अनेक रेडियो यन्त्र एवं कम्प्यूटर लगे रहते हैं। और इनमें सचेतन जीव सत्ता भी उपस्थित रहती है। इन उपग्रहों द्वारा हमारे लिए विशेष रेडियो सन्देश भी भेजे जाते हैं। इन्हें अभी तक सुना तो गया है, पर समझ पाना सम्भव नहीं हो सका है बहरहाल उड़न तश्तरियों के संचालकों ने पृथ्वी वासियों की छेड़छाड़ को पसन्द नहीं किया है।

दस वर्षों में 137 उड़न तश्तरी वैज्ञानिकों को प्राण गवाने पड़े हैं। कभी किसी विज्ञान क्षेत्र के शोधकर्ताओं की मृत्यु दर इतनी नहीं रही।

अन्तरिक्ष में लेसर व क्वासर यन्त्रों की स्थापना द्वारा लोकान्तरों के संकेतों का ग्रहण विश्लेषण तथा उन तक संकेत सम्प्रेषण का कार्य सहज हो सकता है। तब अन्तरिक्ष में विकसित सभ्यताओं का पता लगने की सम्भावना बढ़ जायेगी।

ऐसी स्थिति में विश्व ब्रह्माण्ड के सुविकसित प्राणियों में पारस्परिक एकता एवं आत्मीयतापूर्ण आदान प्रदान विकसित होने की सम्भावना है। तब क्षुद्र संकीर्णताओं की आपा धापी का घटियापन स्पष्ट हो जायेगा और मात्र इसी शरीर को जीवन का रूप, सर्वत्र मानकर भौतिक सुखों के संचय एवं उपयोग की उन्मत्त दौड़ लज्जाप्रद प्रतीत होगी। विश्व बन्धुत्व का विकास होगा और विज्ञान अध्यात्मवाद से प्रभावित होगा। मनुष्य मनुष्य के बीच स्नेह सौहार्द में सम्बन्ध सुदृढ़ होंगे।

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