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Magazine - Year 1977 - Version 2

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First 25 27 Last
अपनी कमजोरियाँ और बुराइयों को स्वीकार करना साहस का काम है और उससे बड़ी हिम्मत यह है कि उन्हें छोड़ने का निश्चय किया जाय साथ ही उन्हें दूर करने के लिए तत्परतापूर्वक जुट जायें। असफलताएँ मिलने पर लोग हताश हो बैठते हैं और उपयुक्त दिशा में चलने का भी हौसला छोड़ बैठते हैं। उन्हें बहादुर ही कहा जाएगा जो हर असफलता के बाद दूनी हिम्मत और दूसरी सतर्कता के साथ लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कदम बढ़ाते हैं।

अपने साथ पक्षपात की आदत से प्रायः सभी लोग घिरे रहते हैं दूसरों की आलोचना करने के लिए काफी तथ्य संग्रह कर लिए जाते हैं, पर अपनी खामियाँ खराबियाँ ढूंढ़ने के लिए किसी की रुचि नहीं होती। इतना ही नहीं कोई वैसा सुझाता है तो बुरा लगता है। इस स्वभावगत दुर्बलता से लोहा लेकर जो अपनी कमजोरियों को स्वयं ढूंढ़ते हैं उन्हें स्वीकार करते हैं और सुधारने के लिए बार-बार असफल होने पर भी धैर्यपूर्वक जुटे रहते हैं उन्हें बहादुर ही कहा जाएगा ।

साहस हर किसी के भीतर मौजूद है कई उसे प्रयत्न पूर्वक बढ़ा लेते हैं। संकल्प करने और उसके पूरा होने तक जुटे रहने से साहस बढ़ता है। कठिनाइयों को निमन्त्रण देने, उनके साथ खिलवाड़ करने और टकराने से हिम्मत खुलती है। अखाड़े में उतरने का अभ्यास करने वाले दंगलों में कुश्ती पछाड़ते हैं।

आलस इस प्रकार की कायरता है काम को देखकर डर जाना- उसका मुकाबला करने की अपेक्षा कल पर खिसका देना यह बताता है कि आदमी डरपोक है। काम के साथ जो जिम्मेदारी और कठिनाई जुड़ी होती है उसे पूरा कर सकने से जो घबराते हैं वे काल के आँचल में अपना मुँह छिपाते हैं। अच्छा यह है कि जो काम आज हो सकता है उसे कल पर न टालें। यदि अभी समय है तो पीछे के लिए उसे छोड़ने की आवश्यकता नहीं। काम अपना आत्मीय मित्र है जो प्रशंसा, सम्पदा, सम्पत्ति, सफलता, योग्यता आदि न जाने क्या-क्या देने आता है? ऐसे मित्र के सामने आने पर उसका हार्दिक स्वागत सत्कार करना ही योग्यता है। उसके साथ रहने और साथ रखने में ही बुद्धिमानी हैं इस शुभागमन की घड़ी में जो नाक, भौं सिकोड़ते हैं, उदासी खाते हैं समझना चाहिए वे अपने आगत सौभाग्य का तिरस्कार ही करते हैं।

शूरवीर वे नहीं जो हर घड़ी लड़ाई-झगड़े पर उतारू रहते हैं और हर किसी को ताल ठोक कर चुनौती देते हैं। वीरता सिद्ध करने के लिए किसी को गिराने की जरूरत नहीं पड़ती। वीरता बनाने में है। ध्वंस का कार्य तो माचिस की तीली भी कर सकती है। बड़प्पन बनाने में है। जिन्होंने सृजन की बड़ी योजनाएँ बनाई और पूरी की उन्हें लड़ाई में कितनों को ही परास्त करने वालों से कम नहीं वरन् अधिक शूरवीर ही गिना जाएगा ।

किसी को कुछ देने की इच्छा हो और देते बन पड़े तो सर्वोत्तम उपहार आत्म-विश्वास जगाने वाला प्रोत्साहन देना ही हो सकता है। आदमी के भीतर सब कुछ तो नहीं है-पर इतना अवश्य है जिसके सहारे वह सुखी और समुन्नत रह सके। अपने बलबूते ही लोग प्रगति करते हैं। दूसरे तो उनका समर्थन, सहयोग भर कर देते हैं। पराश्रय में कोई ऊँचा नहीं उठ सका, यात्रा अपने ही पैरों से चलकर पूरी होती हैं दूसरे तो हारा भर देते हैं परावलम्बन से दूर हटकर स्वावलम्बन अपनाने का यदि आत्मविश्वास पैदा किया जा सके तो यह बहुत बड़ी बात है। यह सदा सर्वदा के लिए समस्याओं का समाधान है।

यह मानना गलत है कि हम दुर्भाग्यग्रस्त है और पिछड़े रहने के लिए ही बने हैं यह सोचना भी निरर्थक है कि सहयोग और साधनों के अभाव में ऊँचा उठने की सम्भावना नहीं है। वास्तविकता इतनी है कि भीतर से वे उमंगें नहीं उठती जो अपनी प्रस्तुत क्षमताओं का बिखराव रोक कर उन्हें केन्द्रित करती और एक दिशा में लगाती हैं यदि साहस जागे तो साथ ही वे सत्प्रवृत्तियाँ भी उभरे जिनके सहारे छोटे मनुष्य बड़े बनते हैं और पिछड़े हुओं को उन्नति के उच्च शिखर पर जा पहुँचने का अवसर मिलता है।

मनुष्य वह सब कुछ है जिसे सराहा जा सके, जिसे श्रेय और सम्मान मिल सके। मनुष्य सफलताओं के लिए बनाया गया है। उसमें ऐसे तत्त्व कूट-कूटकर भरे है जिनके सहारे छिपी हुई महानता को उजागर कर सकना सम्भव हो सके। आवश्यकता उस साहस की है जिसके झटके से महानता को प्रसुप्त स्थिति से उबार कर जागृत और समुन्नत किया जाता है।

*समाप्त*

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