
प्रेम और करुणा का चुम्बकीय आकर्षण
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
‘‘चारों तरफ घटाटोप छाये जंगल से हम लोग मौन जा रहे थे। धनी गहरी झाड़ियों और पत्तों शाखाओं से लदी लता बेलियों के बीच राह, जैसी कोई चीज नहीं थी परन्तु हमारे मार्गदर्शक इस जंगल में ऐसे जा रहे थे मानो वर्षों से दिन में कई बार आते जाते रहे हों। इस अतल अविभाज्य मौन में जो हस्तक्षेप होते थे, वे उन जीव जन्तुओं द्वारा ही होते थे, जो मार्ग में हमारे पास से निकल जाया करते-थे। इनमें कई जानवर तो बहुत खूंखार भी थे परन्तु वे हमें देखकर कुछ नहीं कहते। हमारे मार्गदर्शक नीची गर्दन किये हुए चुपचाप आगे चलते जा रहे थे। मार्ग में मिलने वाले सर्प, बिच्छू और भयानक हिंसक जन्तुओं की ओर वे आँख उठाकर भी नहीं देखते। हम उन जीव जन्तुओं को देखकर भयभीत हो उठते परन्तु उनके कारण यात्रा में कोई व्यवधान नहीं होता।’’
ये पंक्तियां हैं मिस्र के योगी पर्यटक सुग्र-अल-जहीर के यात्रा वृत्त की, जो उन्होंने मंगोलिया के घने जंगलों में एक लामा गुरु के साथ सम्पन्न की थी। घने जंगलों में घुसते हुए भी इसलिए डर लगता है। कि वहाँ रहने वाले हिंस्र जीव जन्तुओं का खतरा रहता है। और मंगोलिया के उस वन में जहाँ लता-बेल, पेड़-झाड़ी से कब कौन कीड़ा, साँप टपक पड़े अथवा कौन-सा हिंसक जानवर निकल कर आक्रमण कर दे- कोई ठीक नहीं, यह यात्रा निश्चित ही रोंगटे खड़े कर देने वाली थी। परन्तु सुग्र-अल-जहीर तथा उनके गुरु भाई के पास साँप पैरों में गिर कर भी चुपचाप चले गये। क्या सचमुच ऐसे खतरनाक स्थानों में जाकर और हिंसक जानवरों के बीच पहुँचकर भी सुरक्षित रहा जा सकता है ?
इस सम्बन्ध में महर्षि पतंजलि ने योगसूत्र में स्पष्ट कहा है- अहिंसा में दृढ़ स्थिति हो जाने पर उसके निकट सब प्राणियों का बैर छूट जाता है (साधना पाद 35)। इसी कारण प्राचीन काल में महर्षि आश्रमों में गाय और सिंह, भेड़िया और बकरी एक ही स्थान पर रह लेते थे, सबमें आत्मदर्शन और किसी को किसी प्रकार कष्ट न पहुँचाने की दृढ़ स्थिति अन्तःकरण में ऐसी सात्विक धारा इतने तीव्र और प्रबल वेग से प्रवाहित कर देती है कि उसके निकटवर्ती तामसी अन्तःकरण भी उससे प्रभावित होकर हिंसक वृत्ति का परित्याग कर देता है। कई बार ऐसा भी होता है कि दूसरे प्राणियों के आक्रमण की अत्यन्त उग्र भावना होती है परन्तु ऐसी स्थिति में भी अहिंसक व्यक्ति का कुछ नहीं बिगड़ता।
सुग्र-अल-जहीर ने अपनी पुस्तक ‘सहस्र सिद्धों का मठ’ में लिखा है- ‘‘हम ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते गये हमारा मार्ग और भी बीहड़ होता गया। खाई और घाटियाँ कदम-कदम पर आने लगीं। इसी समय रीछों का एक झुण्ड आया और हमें तीन दिशाओं से घेरकर जीभें लपलपाता खड़ा हो गया । हम सबके भयाक्रांत कण्ठों से अकस्मात चीखें निकल पड़ी। वास्तव में इतने बड़े रीछ मैंने पहले कभी नहीं देखे थे।’’
‘‘हमारे मार्गदर्शक लामा ने दोनों हाथ उठाकर हमें आश्वस्त किया और हमारी ओर देखा, जैसे वे हमें हिम्मत बंधा रहे हों। फिर लामा उन भालुओं की ओर टकटकी बाँधकर देखने लगे। उनके नेत्रों से करुणा की धारा बह रही थी। चेहरे पर शान्ति और स्निग्धता के भाव थे। होठों पर मन्द स्मिति मुस्कान थी। लामा उस समय प्रेम और शान्ति की प्रति मूर्ति लग रहे थे। कुछ क्षणों तक ही उन्होंने लपलपाती जीभ वाले भालुओं की ओर देखा होगा कि वे भालू एक एक कर तीनों ओर से हट गये तथा आस-पास की झाड़ियों में चले गये। मैं समझ नहीं पाया कि यह क्या हुआ।’’
हालैण्ड निवासी एक वन संरक्षक दंपत्ति ने अपने व्यवहार से सिंह जैसी खूनी और क्रूर प्रकृति के प्राणी को स्नेह सौजन्य के बंधनों में इस प्रकार बाँधा कि वे स्वयं मृदुलता और सौजन्य की प्रतिमूर्ति बन गये। हालैण्ड निवासी मि0 जार्ज वहाँ के नेशनल पार्क में वरिष्ठ जन्तु संरक्षक के पद पर काम करते हैं। उनका निवास अधिकतर इन्हीं जन्तुओं के साथ रहा। मि0 जार्ज एडम्सन की पत्नी का नाम था- जाय एडम्सन। दोनों पति पत्नी अधिकांशतः वन्य जीवों के साथ रहते-रहते उनसे इतने प्रेम करने लगे कि जाय एडम्सन की वनदेवी तथा एडम्सन को वन मित्र कहा जाने लगा।
जिस सुरक्षित वन में वे काम करते थे उसका नाम है सिरमनेटी। इस वन का क्षेत्रफल 4500 वर्गमील है। वन जीवों के लिए बने इस उन्मुक्त उद्यान को देखने के लिए संसार भर से लाखों लोग लम्बी यात्रायें करके आते हैं। कुछ समय पूर्व इसमें रहने वाले वन्य जानवरों की संख्या करीब 4 लाख आँकी गयी थी। एक दिन पार्क का वन रक्षक कर्मचारी को किसी सिंह ने मार डाला।
सर्वविदित है कि मनुष्य के रक्त का चस्का लग जाने के बाद सिंह प्रायः नरभक्षी हो जाते हैं। बहुत सम्भावना थी कि वह शेर जिसने वन रक्षक कर्मचारी को मारा था, वह भी नरभक्षी हो जाये। जार्ज को यह काम सौंपा गया कि वे उस नरभक्षी का अन्त कर डालें और उन्होंने ऐसा कर भी दिया वह नरभक्षी सिंह मादा शेरनी थी। और उसकी मांद में तीन सिंह शावक पाये गये।
जार्ज को न जाने क्या सूझी कि वे तीनों सिंह शिशुओं को ले आये और उन्हें लाकर पत्नी को भेंट किया। जाय सिंह शावकों को देखकर पहले डरी, पीछे उसने इन बच्चों को पालने का निश्चय किया। उन्हें पालते समय ही जाय के हृदय में वात्सल्य का स्रोत उमड़ पड़ा और वह उन्हें चाव दुलार से पालने लगी। आरम्भ में उन्हें दूध पीना सिखाना तक बड़ा कठिन था। मुँह में रबड़ की नली डालकर दूध पिलाया गया। कुछ ही महीनों में बच्चे उछलने कूदने लायक हो गये।
तब तीन सिंह शिशुओं में से दो को तो चिड़ियाघर भेज दिया गया और एक मादा शिशु को जाय ने अपने पास ही रख लिया। उसका नाम था ऐल्सा। जाय ने ऐल्सा को अपनी पुत्री की तरह पालना, लाड़ दुलार करना आरम्भ कर किया। वे अपने हाथों से उसे भोजन कराती, उसी के लिए बनायी गयी चारपाई पर उसे सुलातीं। मच्छरों से बचाने के लिए मसहरी लगातीं। सर्दी न लग जाय इसलिए रजाई ओढ़ातीं।
एल्सा भी इस प्रेम व्यवहार से प्रभावित हुए बिना न रहा सकी। वह अपनी इस नर शरीर धारी मौसी के हाथ पैर चाटकर अपने ढंग से प्रेम प्रदर्शित करती। जाय की गोदी में जा बैठती और सिर खुजलाये जाने का आनन्द लेती। बिल्ली की तरह वह पीछे-पीछे लगी रहती इन दोनों के प्रेम सम्बन्ध इतने सघन हो गये कि ऐल्सा जाय एडम्सन की गोदी में सिर रखकर घण्टों निद्रामग्न रहती। जाय भी कभी-कभी ऐल्सा की पीठ पर सिर रखकर चुपचाप पड़ी रहती थी।
यह स्नेह सद्-भावना का ही चमत्कार था कि क्रूरता और हिंसक स्वभाव को भूलकर वह सिंह शाविका इतनी मृदुल हो गयी, उसके स्वभाव में ममता और आत्मीयता के अंकुर इतने गहरे जमते गये कि उसकी भयंकरता और आक्रामकता एक दम तिरोहित ही हो गयी। घर में रहते-रहते ऐल्सा बहुत से शब्दों और इशारों का अर्थ भी समझने लगी। वह धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। होते-होते प्रौढ़ हो गयी और साथी की आवश्यकता अनुभव कर व्याकुलता प्रदर्शित करने लगी। जार्ज ने उसकी मनःस्थिति को समझ कर जंगल के उस क्षेत्र में छोड़ दिया जिधर सिंह रहते थे।
यौवन गंध के आकर्षण ने उसे सिंह साथी भी मिला दिया और फिर वह उधर ही रहने लगी। लेकिन वह अपने मायके को सर्वथा भुला न सकी। जब कभी वह एडम्सन दंपत्ति के निवास पर आ जाया करती और हफ्तों वहाँ रहती। लोग तो ऐल्सा को देखकर सहम से जाते परन्तु उसने कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया और न ही कभी किसी की ओर गुर्रा कर देखा ही। उन्मुक्त वातावरण में स्नेह और प्रेम द्वारा सिंह को बोलने और उसकी क्रूरता निरस्त कर उसमें सौम्य स्वभाव उत्पन्न करने की कुशलता के लिये एडम्सन दंपत्ति को सर्वत्र सराहा गया। स्नेह वात्सल्य, प्रेम, ममता और आत्मीयता ऐसे चुम्बकीय गुण हैं जो किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर उसमें भी चुम्बकत्व उत्पन्न कर देते है फिर क्या कारण है कि अहिंसा, प्रेम तथा करुणा की धाराओं से अयाचित व्यक्तित्व के संरक्षण में हिंसक पशु अपना स्वभाव न भूल सके और शेर तथा मेमने के एक साथ रहने की बात कपोल कल्पना लगे।
----***----