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Magazine - Year 1982 - Version 2

Media: TEXT
Language: HINDI
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दुर्भाग्यग्रस्तों की दुनिया

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First 11 13 Last
सितम्बर अंक में इसी शीर्षक से प्रकाशित लेख का उत्तरार्ध

कई बार अनीतिकर्ताओं को सताने वालों की हाय ले बैठती है। कई बार दुरात्माओं को दण्ड स्वरूप आत्मबल सम्पन्न शाप देते भी देखे गये हैं। कोई व्यक्ति पूर्व संचित संस्कारों पर अविज्ञात कारणों से ऐसे दुर्भाग्य ग्रस्त होते हैं कि सामान्य घटनाएँ भी उनके विपरित पड़ती हैं। कई बार दूसरों के सताने वाला व्यक्ति एवं पदार्थ कर्मफल भुगतने और दैवी प्रकोप से ग्रसित होते देखे गये हैं। ऐसे अभागे अभिशप्त के अनेक उदाहरण जहाँ−तहाँ मिलते रहते हैं।

ब्राजील की भूतकालीन राजधानी ‘रियो−डि−डिनरो के सम्बन्ध में पुरातत्व अभिलेखागार में सन् 1734 का दस्तावेज रखा है। क्रमांक है इसका—512/1734। इन दस्तावेजों के अनुसार वोलोविया और ब्राजील की सीमा के निकट एक हिमाच्छादित पर्वत शृंखला के निकटवर्ती सघन वन में ऐसे ध्वंसावशेष नगर की चर्चा है जहाँ किसी समय सम्भवतः ब्राजील की राजधानी रही होगी और कोई सभ्य जाति शासन करती रही होगी। उन ध्वंसावशेषों में बहुमूल्य स्वर्ण खण्ड बिखरे पड़े हैं। आसान है कि खुदाई करने पर जहाँ सोने और चाँदी के बहुमूल्य भण्डार मिल सकते हैं।

विवरण के अनुसार अठारहवीं सदी के प्रारम्भ में एक खोजी दल क्षेत्र में दबे स्वर्ण खजाने का पता लगाने के लिए चला। कई महीनों के बाद वह उस खण्डहर तक पहुँचा और इन खण्डहरों में जहाँ तहाँ सोने के सिक्के, सलाखें, बर्तन, शस्त्र आदि बिखरे पड़े पाये। खोजी दल आवश्यक जानकारी एकत्रित करके वापस लौटा तो पराणुवासु, नदी के तट बसे आदिवासियों के हाथों अपने साथियों को आने के लिए एक पत्र भेजा जिसमें उस स्वर्ण नगरी का नक्शा, वहाँ की सम्पदा, पहुँचने का मार्ग आदि के बारे में साँकेतिक भाषा में लिखा। यही है वह 512 नम्बर का दस्तावेज जिसकी खोज में अब तक कितनों ने अपनी जानें गँवायी है। पत्र यथा स्थान पहुँच गया। सहायक दल पहुँचा भी पर उसे अपने अग्रणी साथियों का कहीं पता नहीं चल सका।

सन् 1947 में लन्दन के एक प्रोफेसर ऐरिक हेमण्ड उस खोज पर निकले। उन्होंने दस्तावेजों का बारीकी से अध्ययन किया और हवाई जहाज, जीप, मोटर साइकिल आदि का सहारा लेकर चले। आगे बीहड़ रास्ते में पैदल ही चल पड़े। वे इस वन प्रदेश में ईसाई धर्म के प्रचारक पादरी जोनायन वेल्स से मिले। उन्होंने आगे जाने से मना किया फिर भी हेमण्ड नहीं माने। तब उन पादरी ने हेमण्ड को तेरह प्रशिक्षित कबूतर दिए और कहा—’एक−एक करके वह इनके पैरों में पत्र बाँधकर उन तक सन्देश पहुँचाते रहें। हेमण्ड ने किया भी ऐसा ही परन्तु छठें, ग्यारहवें, और तेरहवें नम्बर के कबूतर ही पहुँचे शेष रास्ते में ही गायब हो गये। तेरहवें पत्र में हेमण्ड ने लिखा—”मैं बीमार पड़ गया हूँ, मेरा मृत्युकाल निकट है लेकिन फार्सेट द्वारा आरम्भ की गई खोज का अन्तिम चरण पूरा कर लिया।” पादरी जोनायन ने स्वयं खोजबीन की पर बाद में इन सज्जन श्री हेमण्ड का कहीं पता नहीं चला।

दूसरी घटना है—सन् 1832 की। पाइलीन बीवर नामक व्यक्ति को कहीं से पता चला कि समीपवर्ती सघन वन की पर्वत शृंखला में न केवल सोने का भण्डार दवा पड़ा है वरन् वह उस स्थान पर पहुँचा, खेमा गाढ़ा। रात्रि के समय उसने स्वर्ण कणों की वर्षा होते देखा और लगा सोना समेटने। ऊपर सिर उठाया तो कुछ छायाओं के खिलखिलाते चेहरे दिखाई दिये। भयभीत हो जैसे ही खेमे की ओर नजर दौड़ायी—खेमा गायब था। वह भयभीत हो सोना छोड़कर वापस घर लौट आया। ठीक इसी से मिलता−जुलता अनुभव मैक्सिको निवासी एक युवक ‘डान पैरेलता’ भी कर चुका था। वह तो कम से कम अपनी जान बचा सकने में सफल हो गया लेकिन उसके साथी इसी कुचक्र में अपनी जान गँवा बैठे।

स्टेनले फर्नेड को ‘जेम्स’ नामक व्यक्ति की लिखी एक डायरी मिली जिसमें अमेरिका स्थित एक खूनी पहाड़ का वर्णन था जहाँ सोना दबा ही नहीं पड़ा है वरन् बरसता भी है। जेम्स इसी खोज में अपनी जान गँवा बैठा था लेकिन इसके पूर्व वह वहाँ के समस्त विवरण लिख चुका था। फर्नेड उस डायरी के आधार पर अपने साथी बेजामिन फरेश को साथ ले सौ मील लम्बे निस्तब्ध वनों को पार करते हुए सायंकाल तीन बजे उस पर्वत के निकट पहुँच गए। ठहरने के लिए उपयुक्त स्थान की तलाश कर रहे थे कि अचानक फरेश के शिर में कहीं से आकर दो गोलियाँ लगीं और वह खून से लथपथ होकर वहीं गिर पड़ा। स्टेनले वापस भाग तो गया पर वह पागल हो गया। यह समाचार मेक्सिको और अमेरिका के समाचार पत्रों में सविस्तार छपा। मामला अमेरिका खुपिया पुलिस के एफ. वी. आई. को सौंपा गया। कुछ समय पूर्व रॉबर्ट मेरे नामक व्यक्ति के साथ भी यही घटना घट चुकी थी। अतः मामले की गहराई से जाँच की गई लेकिन कुछ भी ज्ञात न हो सका।

बाल्ज नामक युवक ने इस दिशा में अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण कदम उठाने का निश्चय किया। उसने उस क्षेत्र के आदिवासियों के साथ घनिष्ठता बढ़ाई और एक आदिवासी युवती से शादी करली जिससे उस क्षेत्र में देर तक टिक सके एवं उनकी सहायता से अधिक जानकारी प्राप्त कर सके। बस जाने पर वह सोना समेटने और भेजने का काम तो करता रहा पर आदिवासियों से उद्गम की अधिक जानकारी प्राप्त करने में सफल न हो सका, उस क्षेत्र में सबसे अधिक दिन तक रहने और अधिक खोज करने का काम बाल्ज ने ही किया। अपने विवरणों के सम्बन्ध में उसने एक ऐसी सुरंग का उल्लेख किया है जिसमें सैकड़ों नर कंकाल भरे पड़े थे। सम्भवतः इस क्षेत्र के रखवाले देवताओं या तान्त्रिकों का तूफानी आक्रमण ही स्वर्ण खोजियों की जान ले बैठता है। प्रथम महायुद्ध के पराक्रमी योद्धा बरेनी ने भी इस क्षेत्र में अधिक दिन रहकर अधिक खोजें की। उनका मत था कि इस क्षेत्र में विपुल सम्पदा है जिसका रहस्य वहाँ के कबीले आदिवासी जानते हैं पर वे किसी को उस क्षेत्र में आने नहीं देते और ताँत्रिक पुरोहितों की आज्ञानुसार आगन्तुकों की हत्या कर देते हैं।

होप नामक हीरा योरोप में अपने अमंगल के लिए बहुत विख्यात हो चुका है। वह जिसके पास भी रहा उसे चैन से नहीं रहने दिया। यह हीरा ब्रह्मा के किसी हिन्दू मन्दिर में भगवान की मूर्ति में आँख में जड़ा हुआ था। 300 वर्ष पहले की बात है, बेपटिस्ट अवर्नियर नामक अंग्रेज उसे चुरा ले गया। उसने उसे जौहरी टामस होप के हाथ बेच दिया। उसी ने हीरे का नाम होप रखा। हीरे के पहुँचते ही उसका कारोबार बैठ गया। उसने घबड़ाकर उसे कम दामों में बेच दिया। बाद में वही हीरा वाशिंगटन (अमेरिका) की एक नवयुवती ईवलिन मैकलिन रेनल्ड्स ने खरीदा और उसके कुछ दिन बाद ही उसने निद्रा की गोलियाँ अधिक मात्रा में लेकर आत्म−हत्या कर ली। इसके बाद हीरा एण्टानयट के पास पहुँचा। उसके पहुँचते ही उसके जीवन में झगड़ों की बाढ़ आ गई। अभी वह हीरे को बेचने की ताक में ही था कि उसका सिर काट लिया गया। अब वह हीरा प्रिन्सेस दि तम्बल ने पहना और उसकी भी हत्या कर दी गई। उसके पास से फास नामक एक जौहरी ने यह हीरा चुरा लिया और उसने कुल सात दिन में आत्महत्या कर ली। तब फाँलीज वर्गर नामक एक ड्रामा करते समय वह हीरा पहना। रंगमंच (स्टेज) पर चढ़ते ही किसी ने उसे गोली मार दी। स्टाक मार्केट के प्रमुख उद्योगपति लार्ड फ्रांसिस होप ने यह हीरा लेकर अपनी सारी सम्पत्ति गँवादी। तब वह पहुँचा अरब के सुल्तान अब्दुल हमीद के पास। उसे गद्दी से उतार दिया गया। तब इसे श्रीमती वाल्श मैकलीन ने खरीदा और उसी दिन उनका प्रियपुत्र मोटर से कुचलकर मारा गया। इस तरह यह हीरा अपने अमंगल के कारण सारे योरोप में बदनाम हुआ।

सगर पुत्रों का कपिल मुनि के शाप से भस्म हो जाना, श्रृंगी ऋषि के शाप से परीक्षित को साँप द्वारा काटा जाना, मेघदूत वर्णन में यक्ष का वियोग दुःख सहना, गांधारी के शाप से यदुकुल का लड़कर समाप्त होना, नहुष का सर्प बनना, त्रिशंकु का उलटा लटकना, दमयन्ती के शाप से व्याध की दुर्गति होना जैसी असंख्य पुराण कथाएँ सुनी जाती हैं। पुराण के इन घटनाक्रमों की साक्षी आज भी देखने को मिलती।

केप कालानी के उच्च गवर्नर की अदालत से 9 सैनिकों को फाँसी की सजा सुनाई थी। गवर्नर का काम था। पीटर जिर्ज्वट नार्दन सैनिकों पर इल्जाम था कि वे भागने की कोशिश कर रहे थे। वस्तुतः सैनिक निर्दोष थे। फिर भी उन्हें फाँसी के तख्ते पर चढ़ना पड़ा।

अन्तिम सिपाही जब मृत्यु वेदी की ओर जा रहा था तो वह जोर से चिल्लाया—”नार्दन, जरा ठहरो, मैं कुछ ही समय में तुझे ईश्वर के दरबार में जवाब देने के लिए घसीटकर ले चलूँगा।” फाँसी लगा दी गई। देखा गया कि कुछ ही मिनटों के उपरान्त गवर्नर अपने दफ्तर की कुर्सी पर बैठा−बैठा मर गया।

बेनिस के वैज्ञानिक फ्रान्सेस्को डेले वार्न ने युद्ध में काम आने वाले एक विचित्र राकेट का आविष्कार किया। वह 3000 पौण्ड भारी गोला लेकर उड़ता था और लक्ष्य तक जा पहुँचता था। उन दिनों इस आविष्कार की बहुत चर्चा थी।

एक बार इस आविष्कार का उपयोग यूगोस्लाविया की घेराबन्दी तोड़ने में किया जाना था। गोला दागा गया। संयोग की बात कि दंगित समय आविष्कारक खुद उस मशीन में फँस गया और गोले के साथ उड़ता हुआ निर्धारित निशाने के नजदीक मरा। वह एक महिला से जा टकराया। महिला और कोई नहीं उसकी पत्नी जो किसी काम से उस इलाके में आई थी। टक्कर में पति−पत्नी दोनों चूर−चूर हो गये। दोनों एक साथ दफनाये गये।

30 मई 1887 को इटली के टोरिओटिकाने की राजकुमारी का विवाह इटली के राजकुमार ड्यूक डिआडस्टा के साथ हुआ। विवाह का दिन ऐसा अभागा निकला कि उस समारोह में भाग लेने वालों में से कितनों को ही अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। उन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में से कुछ इस प्रकार हैं—

(1)राजकुमारी की निजी नौकरानी ने उसी दिन फाँसी लगाकर आत्म−हत्या कर ली।

(2)द्वारपाल ने अपना गला काट डाला।

(3)बारात के जुलूस का नेतृत्व करने वाला कर्नल लू लगने से ऐसा बीमार पड़ा और मरने के बाद ही चारपाई से उठा।

(4)जिस ट्रेन से वे दोनों सुहाग रात मनाने जा रहे थे उसका स्टेशन मास्टर गाड़ी के नीचे आ गया और कुचल कर मर गया।

(5)राजा का व्यक्ति गत सहायक घोड़े से शिर के बल गिरा और वहीं मर गया।

(6)विवाह के विशेष प्रबन्धक वेस्ट मैन अर्धविक्षिप्त स्थिति में असन्तुलित हो गये और प्राण गँवा बैठे।

ऐन्टोनिया रोम के राजा क्लाईडयस की बेटी थी। राजकुमारी तथा सुन्दरी होने के कारण उसके सामने विवाह प्रस्ताव सदा पड़े ही रहे। दो बार उसने विवाह किया था पर उनमें से सफल एक भी नहीं हुआ। विभिन्न कारणों से उसके यह पति कुछ ही दिन पीछे किसी अपराध में फँसे और मृत्यु दण्ड के अधिकारी बने। एन्टोनिया ने उन दिनों की भयानक मृत्यु अपनी आँखों से देखी। तीसरी बार सम्राट नीरो की बारी आई। उनसे जोशीला विवाह प्रस्ताव भेजा। पर वह स्वीकृत न हुआ। इस पर अपमानित और क्षुब्ध नीरो ने स्वयं अपने आपको फाँसी लगाकर आत्म−हत्या कर ली।

अभिशाप जिस भी वस्तु अथवा व्यक्ति के साथ जुड़ा हो, अन्ततः उन्हें विनाश की ओर ही ले जाता है। यह प्रकृति की एक सुनिश्चित विधि व्यवस्था है। दुस्साहस की चरम सीमा और वह भी गलत दिशा में हो तो परिणाम निश्चित ही दुःखद होंगे। यदि यही प्रयास सही दिशा में हों तो फिर सुखद परिणतियों की कल्पना ही की जा सकती है।

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