
धरती से लोक लोकान्तरों का आवागमन मार्ग
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(नवम्बर 81 में इसी शीर्षक से प्रकाशित लेख का उत्तरार्ध)
अपनी धरती पर अब तक मात्र एक ही ‘ब्लैक होल’ का पता चला है– ’वारमूडा त्रिकोण’। क्योंकि वह जलयानों और वायुयानों के आवागमन मार्ग पर है। आवश्यक नहीं कि मात्र यह एक ही हो। अपने पृथ्वी पर ऐसे अनेकों सुविस्तृत क्षेत्र हैं जिनमें मानवी आवागमन अभी सम्भव नहीं हुआ है या आवश्यक नहीं समझा गया है। हो सकता है कि उन क्षेत्रों में कोई और ब्लैक होल हो। आवश्यक नहीं कि वे धरती के पदार्थ को ऊपर ही उड़ा ले जाते हो, हो सकता है उनमें से कुछ ऐसी प्रकृति के भी हो जो अन्य लोकों के पदार्थों एवं प्राणियों को अपनी धरती पर भी लाते है। और पट्टी का काम करते है।
पिछले लेख (पृष्ठ 28, नवम्बर 81) में कुछ ऐसी घटनाओं का उल्लेख किया गया है जिनमें समय−समय पर धरती के पदार्थों और प्राणियों के अदृश्य हो जाने का विवरण है। यह शृंखला बहुत लम्बी है। पिछली शताब्दी की ज्ञात और अविज्ञात घटनाओं का तारतम्य जैसे−जैसे प्रकाश में आता जायगा, यह विदित होगा कि यदि समय रहते यह जानकारी मनुष्य के हाथ लग गई होती तो उस क्षेत्र से दूर रहा जा सकता था और डडडड रही भयावह क्षति से बचाव हो सकता था।
12 सितम्बर 1971 को कैप्टेन जॉन रोमेरो जब उसके साथी पायलेट ने फ्लोरिडा के होम स्टेड डडडड वेस’ से ‘जेट−फेन्टम द्वितीय’ में उड़न की। डडडड से ‘मियामी’ के दक्षिण पूर्व में जेट को उड़ते देखा गया उसके तुरन्त बाद वह रेडार के परदे पर दिखाई न दिया। ‘एअर फोर्स’ एवं ‘कोस्टल गार्ड’ के द्वारा बड़े पैमाने पर विस्तृत खोज की गयी, परन्तु गायब हुए जेट एअर लाइनर’ का चिन्ह प्राप्त नहीं हुआ। अधिकाधिक निर्णय खुला छोड़ दिया गया अर्थात् कोई निष्कर्ष नहीं निकला।
जून 1965 में ‘फ्लाइंग बाक्सर ए.सी. 119 बिस्कान्सिन’ की उड़ान प्रारम्भ हुई। उसमें 10 कर्मचारी थे। ‘ग्रान्ड ट्रन्क रोड−द्वीप’ पर माल पहुँचाना था। उड़ान के कुछ समय बाद ‘बहरमा’ के उत्तर तट से जहाज का आखिरी रेडियो सन्देश मिला। उसके तुरन्त बाद वह अदृश्य हो गया। शोध करने पर कुछ ऐसे अवशेष चोक आदि पाये गये जो यह प्रदर्शित करते थे कि वे जहाज से गिर गये हों। दुर्घटना या यान्त्रिक संरचना की गड़बड़ी का कोई संकेत नहीं मिला। उस समय मौसम भी अच्छा था।
उस समय ‘जेमिनी चार’ नामक उपग्रह भ्रमण–कक्षा में था। उसके संकेतों से ‘कै रेबियन समुद्र तट पर एक सफेद धब्बा दिखाई दे रहा था, सम्भवतः वह यूफो (यू. एफ. ओ.) था। वैज्ञानिक उस सफेद धब्बे का कोई स्पष्टीकरण नहीं दे सके।
जुलाई 1949 को ‘मियामी इन्टरनेशनल एअर पोर्ट के ‘फ्लाइट−कन्ट्रोलर’ कार्लटन हेमिल्टन’ एक हवाई जहाज सी−46 के पायलेट को गाइड कर रहे थे। पायलेट ‘बोगोटा’ से आ रहा था और कन्ट्रोलर कर परिचित था। कन्ट्रोल टॉवर से 40 मील से कम दूरी पर से उसके संकेत मिल रहे थे, परन्तु एकाएक वह अदृश्य हो गया। बार−बार विभिन्न रेडियो सूत्रों से संपर्क करने का प्रयत्न किया गया परन्तु संपर्क न हो सका। 15 मिनट के अन्दर ही उसकी खोज की गयी– उसका कोई अवशेष चिन्ह नहीं मिला। अधिकारीगण कोई निर्णय न कर सके।
कार्लटल हैमिल्टन के अनुसार समय−समय पर कुछ अदृश्य इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विक्षोभों के कारण रेडियो एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरण अपना कार्य करना बन्द कर देते हैं जिसके फलस्वरूप यन्त्र तथा मानव शरीर भी अदृश्य हो जाते है। नवम्बर 1971 में “लकीएडर” नामक मछली पकड़ने वाली 25 फुट लम्बी यान्त्रिक नाव “जरसी” के दक्षिणी समुद्र तट पर पायी गयी। किसी भी कर्मचारी का पता न चला। ‘लाइफ−−प्रिजर्बर्स’ दस रखे थे−−ज्यों के त्यों रखे पाए गए। विस्तृत खोज किए जाने पर भी कोई जानकारी न मिल सकी कि आखिर कर्मचारी कहाँ गायब हो गये। दिसम्बर 1945 में पाँच फाइटर हवाई जहाज फ्लोरिडा के ‘फोर्टलाडर डेल’ हवाई अड्डे से नियमित ‘ट्रनिग एक्सरसाइज’ की उन्नीसवीं उड़ान कर रहे थे जिनकी उड़ान पूरी होने का समय 3−45 (पी.सी) था। उड़ान के पूर्व प्रत्येक हवाई जहाज की यान्त्रिक कमियों की जाँच की गयी थी। सुरक्षा के सभी उपकरणों से हवाई जहाज सुसज्जित थे एवं दुर्घटना होने पर बाहर निकलने के साधन भी मौजूद थे। मौसम बिल्कुल साफ था। 3−45 उड़ान पूरी होने का समय था−उस समय तक किसी भी हवाई जहाज से कोई सन्देश नहीं पाया गया। 6−30 से कुछ मिनट पूर्व इन हवाई जहाजों से संकेत मिल और रेडार पर भी दिखाई दिये उसके तुरन्त बाद वे अदृश्य हो गए। इनकी शोध के लिए आठ−दस ‘रेस्क्यू प्लेन’ भेजे गये। उनमें से एक रेस्क्यू प्लेन भी गायब हो गया। अधिक जानकारी प्राप्त करने पर पता चला कि फ्लाइट के कप्तान ने उस दिन उड़ान की अनिच्छा प्रकट की थी, अपनी धड़ी भी नहीं पहनी और रेडियो को ‘इमरजेन्सी चैनल’ पर भी रखने से इन्कार कर दिया। बचाव के लिए भेजा गया ‘इमरजेन्सी चैनल’ पर भी रखने से इनकार कर दिया। बचाव के लिए भी रखने से इन्कार कर दिया। बचाव के लिए भेजा गया ‘रेस्क्यू प्लेन’ उसी दिन 7−27 पर निकला। 8−30 तक ़ उसकी प्रतीक्षा करने के उपरान्त उसको गायब समझा गया। कन्ट्रोलर टावर से उसने संपर्क भी नहीं किया। 7−50 पर हवा में विस्फोट होने वाले किसी निर्णय पर न पहुँच सके। आत्मविस्मृति और अदृश्य होने की संभावना बतायी।
ब्लैक होलों के माध्यम से अदृश्य हुए मनुष्य और पदार्थ आखिर चले कहाँ जाते हैं। और फिर जहाँ पहुँचते हैं वहाँ उनकी क्या स्थिति होती है। इस सम्बन्ध में विज्ञान की पहुँच अभी उतनी लम्बी नहीं हुई है जितनी कि ऐसे रहस्यों पर से पर्दा उठाने के लिए आवश्यक है। फिर भी कुछ अतिरिक्त सूत्र ऐसे हाथ लगे हैं जिनसे प्रतीत होता है कि यह ‘ब्लैक होल’ किसी अन्य लोक के साथ धरती का सम्बन्ध जोड़ते हैं और जो कुछ इस मार्ग से खींचा घसीटा जाता है वह नष्ट नहीं होते वरन् सुरक्षित रहने के साथ−साथ अच्छी स्थिति में भी बना रहता है।
इस संदर्भ में अनायास ही एक रेडियो वार्ता किसी ऐसे मनुष्य के साथ हो गई जिससे मनुष्य लोक ब्लैक−होल’ के मार्ग से पहुँचे हुए मनुष्यों के स्थिति का कुछ आभास मिलता है।
सन् 1975 की 18 अप्रैल की रेडियो सुनने वाले डब्ल्यू.एफ.टी.एल.स्टूडियो (फ्लोरिडा के लाँडरडेल स्टूडियो) से अपने प्रश्नों के उत्तर पाने के लिये संपर्क करने का प्रयत्न कर रहे थे। स्टूडियो के प्रोग्राम डायरेक्टर रे.स्मिािर्स’ की टेबल पर एक ‘की बोर्ड’ था। जिसमें उपयोक्त (सब्सक्राइबर) का नम्बर संकेत मिल जाता था। संकेत के क्रमानुसार उन्होंने फोन उठाये−पहले फोन से कोई जवाब नहीं आया, दूसरा उठाया−कोई जवाब नहीं मिला। दुबारा इसी प्रकार नौ टेलीफोन उठाने पर भी उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।
अचानक एक सन्देश सुनाई दिया जिसने अदृश्य लोक की स्थिति की जानकारी पृथ्वी वालों को बताने की चेष्टा की गई थी। संदेश इस प्रकार था। (1) जिस लोक से हम बात कर रहे हैं। यहाँ प्रत्येक जीवित वस्तु की आभा (औरा) होती है। (2) उसी प्रकार इस लोक की भी अपनी आभा है। जिस क्षेत्र से सम्बन्धित आ बात कर रहे हैं यह इस ‘औरा−प्रदेश’ में पड़ता है। (3) ‘मिलियन काउंसिल’ इस ग्रह का नियन्त्रण कर रहा है। वारमूडा प्रदेश उस नियन्त्रण माध्यम का क्षेत्र है। (4) ‘चैनेल खुली होने के समय इसमें जो प्रवेश करते है, वे अदृश्य नहीं हो जाते। जीवित स्वस्थ अवस्था क्रम में कालातीत शून्य में हैं। (5) इस ग्रह के साथ कौंसिल से संपर्क स्थापित करने के लिए केवल यही एक मार्ग है बात अधूरी रहे गई और वार्ताक्रम टूट गया।
इस रहस्य को सुलझाने के लिए अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न प्रसिद्ध महिला ‘प्रेग ब्रायन्ट’ को बुलाया गया। ऐसे प्रसंगों पर प्रकाश डालने–रहस्योद्घाटन करने के लिए प्रख्यात थी। ‘रेडियो स्टूडियो’ में आते ही वह ध्यानमग्न हो गई। कुछ मिनट बाद उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। रे. स्मिथर्स के द्वारा पूछे जाने पर उस महिला ने बताया “मैंने एक मृतक वायुयान चालक को देखा है जो सन् 1969 में वारमूडा क्षेत्र से गायब हो गया था।”
दूसरी बार स्मिथर्स महोदय ने उसे महिला से–1969 में गायब हवाई बेड़े के कप्तान ‘गलीबान’ से संपर्क करने को कहा। ‘प्रेग−ब्रायन्ट’ ने कहा–”इसके ठीक−ठीक संकेत नहीं मिल रहे हैं।” सही संकेत प्राप्त करने के लिए वह घटनास्थल पर कईबार गयी। अन्त में उसने बताया कि वे लोग ऐसे आयाम में रहते हैं। जिसे हम मृतलोक कहते हैं।
रे. स्मिथर्स ने ‘प्रेग‘ से तीसरा प्रश्न पूछा–”वहाँ क्या विशेषता है? उसने बताया कि उस त्रिकोण क्षेत्र में चुम्बकीय ऊर्जा मालूम होती है जिसका शरीर व मन पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है जिसके फलस्वरूप आत्म−विस्मृति हो जाती है।”
इस रेडियो वार्ता को यदि प्रामाणिक माना जा सके तो अन्य लोकों की स्थिति के सम्बन्ध में–वहाँ के आवागमन मार्ग के सम्बन्ध में ऐसी आशा बँधती है कि भविष्य में और भी अधिक महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध हो सकेंगी।