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Magazine - Year 1984 - Version 2

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पूर्व जन्म की स्मृति अवाँछनीय

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First 7 9 Last
राजा भोज की रानी उन्हें मल-मल कर स्नान करा रही थी। स्नान से तृप्ति ही न होती। राजा और अधिक देर तक स्नान का आनंद देने का आग्रह करते।

रानी को कुछ स्मरण हो आया और वे ठठाका मार कर हँसने लगीं। राजा को इस अकारण अट्टहास पर आश्चर्य हुआ। उसने पूछा- “किस कारण ऐसी हँसी आई।” रानी चुप थीं। लेकिन रहस्य न बताने से कोई संकट खड़ा होने की आशंका से रानी ने चतुरता बरती। उनने कहा- “मेरी छोटी बहिन जो समीप की नगरी की रानी हैं, उनसे आप पूछ लें। मैं तो बता नहीं सकूँगी।”

राजा का आश्चर्य और असमंजस और भी बढ़ा, वे रहस्य जानने के लिए आतुर हो उठे। प्रभात होते ही घोड़ा कसा और उस नगरी की ओर चल पड़े। आगमन का समाचार सुनकर सभी को बड़ी प्रसन्नता हुई। रानी ने व्यक्तिगत आतिथ्य के लिए उन्हें राजमहल में बुलाया।

कुशल समाचार के प्रश्नोत्तर पूरे भी न हो पाये थे कि रानी ने एकान्त देखकर उस प्रसंग की चर्चा आरम्भ कर दी जिसके लिए उनका यहाँ आगमन हुआ। बिना पूछताछ की प्रतीक्षा किये रानी ने अपनी ओर से ही बात आरम्भ कर दी। उनने कहा- “आप अच्छे समय पर आये। आज बड़ी अद्भुत घटना घटने वाली है। अगले प्रभात मैं पुत्र प्रसव करूँगी। नगर भर में प्रसन्नता सूचक आयोजन चलेगा। रात्रि होते-होते मैं बीमार पड़ूँगी और में दूसरे दिन प्राण त्याग दूँगी।”

राजा के विषय का निवारण रानी ने कहा- आप मेरी बहिन के हँसने का कारण पूछने आये हैं न। सो मैं अभी तो न बता सकूँगी। इसके लिए कुछ प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। मरने के दसवें दिन मेरा जन्म विदर्भ राजा की राजकुमारी के रूप में होगा। मेरा नवजात पुत्र, पाल-पोष लिया जाएगा। बीस वर्ष की आयु होने पर मेरा विवाह इसी नवजात पुत्र के साथ होगा जिसका कल जनम होना है। आप उस विवाह में अवश्य आना। जब वधू बनकर आऊँगी तब उसी स्थान पर उस रहस्य को प्रकट करूँगी जिसे आप अभी जानने आये हैं।

दूसरा दिन आया। घटनाक्रम ठीक उसी प्रकार घटा। पुत्र जन्मा। रानी बीमार पड़ी। उपचार हुआ और कुछ ही समय में मृत्यु हो गई। कथन अक्षरशः सही निकला। भारी मन वे वापस लौट आये और स्नान के समय हँसने का रहस्य जानने के लिए मृत रानी के दिये वचन के अनुसार प्रतीक्षा करने लगे। धारा नगरी में ठीक समय पर जन्म लेने और नवजात पुत्र के जीवित रहने की जानकारी उन्हें मिलती रही।

बीस वर्ष बीते। पूर्व कथन के अनुरूप विवाह निश्चित हुआ। भोज उसमें उत्सुकतापूर्वक सम्मिलित हुए। नए वधू ने ससुराल पहुँचते ही अनुरोध किया, उसे राज भोज से कुछ एकान्त कथन का अवसर दिया जाए। बात न तो अनुचित थी न आशंका की दृष्टि से देखे जाने योग्य। सो स्वीकृति मिल गई।

नव वधू ने भोज से कहा- “मेरी बहिन- आपकी पत्नी पूर्व जन्म में आपकी माता थी। बचपन में स्नान कराते समय आप उसे बहुत हैरान करते थे और कठिनाई से ही नहलाया जाता था। कहाँ यह पुरानी आदत और कहाँ नया परिवर्तन जिसके अनुसार घण्टों स्नान करने पर भी मन नहीं भरता। मेरी बहिन को पूर्व जन्म की वह याद आ गई और आपकी आदतों में भारी अन्तर देखकर हँसने लगी। बस इतनी भर बात थी जिसे तब बताया न जा सका और आप असमय उसे जानने का हठ करने लगे। समय पर ही उसे बताया जा सकता था। असमय बताने में हानि की आशंका जो थी।

नव वधू ने उत्तर दिया। पूर्व जन्मों के रहस्य इसीलिए छिपाकर रखें जाते हैं कि पुरानी स्मृतियाँ नये व्यवहार में समस्याएँ उत्पन्न कर सकती है। बहिन ने बात उसी समय बता दी होती तो आपका दाम्पत्य जीवन माता पुत्र के सम्बन्धों को याद करने पर गड़बड़ा जाता। मैं भी तो वर्तमान पति को यह नहीं बताऊँगी कि वे पिछले जन्म में मेरे पुत्र थे। पूर्व जन्मों का सम्बन्ध तथा सम्बन्धियों की जानकारी मिलने पर लाभ कुछ नहीं हानि बहुत है। सम्बन्ध गड़बड़ाते जो हैं।

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Language: HINDI
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Language: HINDI
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